क्यों होता हे प्यार/प्रेम..??? जानिए प्रेम-विवाह को ज्योतिषीय दृष्टिकोण से प्रेम एक पवित्र भाव है। मानव मात्र प्रेम के सहारे जीता है और सदैव प्रेम के लिए लालयित रहता है। प्रेम का अर्थ केवल पति-पत्नी या प्रे‍मी-प्रेमिका के प्रेम से नहीं लिया जाना चाहिए। मनुष्य जिस समाज में रहता है, उसके हर रिश्ते से उसे कितना स्नेह- प्रेम मिलेगा, यह बात कुंडली भली-भाँति बता सकती है।
कुंडली का पंचम भाव प्रेम का प्रतिनिधि भाव कहलाता है। इसकी सबल स्थिति प्रेम की प्रचुरता को बताती है। इस भाव का स्वामी ग्रह यदि प्रबल हो तो जिस भाव में स्थित होता है, उसका प्रेम जातक को अवश्य मिलता है।

जब किसी लड़का और लड़की के बीच प्रेम होता है तो वे साथ साथ जीवन बीताने की ख्वाहिश रखते हैं और विवाह करना चाहते हैं। कोई प्रेमी अपनी मंजिल पाने में सफल होता है यानी उनकी शादी उसी से होती है जिसे वे चाहते हैं और कुछ इसमे नाकामयाब होते हैं। ज्योतिषशास्त्री इसके लिए ग्रह योग को जिम्मेवार मानते हैं। देखते हैं ग्रह योग कुण्डली में क्या कहते हैं।
ज्योतिषशास्त्र में “शुक्र ग्रह” को प्रेम का कारक माना गया है । कुण्डली में लग्न, पंचम, सप्तम तथा एकादश भावों से शुक्र का सम्बन्ध होने पर व्यक्ति में प्रेमी स्वभाव का होता है। प्रेम होना अलग बात है और प्रेम का विवाह में परिणत होना अलग बात है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पंचम भाव प्रेम का भाव होता है और सप्तम भाव विवाह का। पंचम भाव का सम्बन्ध जब सप्तम भाव से होता है तब दो प्रेमी वैवाहिक सूत्र में बंधते हैं। नवम भाव से पंचम का शुभ सम्बन्ध होने पर भी दो प्रेमी पति पत्नी बनकर दाम्पत्य जीवन का सुख प्राप्त करते हैं।
ऐसा नहीं है कि केवल इन्हीं स्थितियो मे प्रेम विवाह हो सकता है। अगर आपकी कुण्डली में यह स्थिति नहीं बन रही है तो कोई बात नहीं है हो सकता है कि किसी अन्य स्थिति के होने से आपका प्रेम सफल हो और आप अपने प्रेमी को अपने जीवनसाथी के रूप में प्राप्त करें। पंचम भाव का स्वामी पंचमेश शुक्र अगर सप्तम भाव में स्थित है तब भी प्रेम विवाह की प्रबल संभावना बनती है । शुक्र अगर अपने घर में मौजूद हो तब भी प्रेम विवाह का योग बनता है।
शुक्र अगर लग्न स्थान में स्थित है और चन्द्र कुण्डली में शुक्र पंचम भाव में स्थित है तब भी प्रेम विवाह संभव होता है। नवमांश कुण्डली जन्म कुण्डली का शरीर माना जाता है अगर कुण्डली में प्रेम विवाह योग नहीं है और नवमांश कुण्डली में सप्तमेश और नवमेश की युति होती है तो प्रेम विवाह की संभावना ..0 प्रतिशत बनती है। शुक्र ग्रह लग्न में मौजूद हो और साथ में लग्नेश हो तो प्रेम विवाह निश्चित समझना चाहिए । शनि और केतु पाप ग्रह कहे जाते हैं लेकिन सप्तम भाव में इनकी युति प्रेमियों के लिए शुभ संकेत होता है। राहु अगर लग्न में स्थित है तो
नवमांश कुण्डली या जन्म कुण्डली में से किसी में भी सप्तमेश तथा पंचमेश का किसी प्रकार दृष्टि या युति सम्बन्ध होने पर प्रेम विवाह होता है। लग्न भाव में लग्नेश हो साथ में चन्द्रमा की युति हो अथवा सप्तम भाव में सप्तमेश के साथ चन्द्रमा की युति हो तब भी प्रेम विवाह का योग बनता है। सप्तम भाव का स्वामी अगर अपने घर में है तब स्वगृही सप्तमेश प्रेम विवाह करवाता है। एकादश भाव पापी ग्रहों के प्रभाव में होता है तब प्रेमियों का मिलन नहीं होता है और पापी ग्रहों के अशुभ प्रभाव से मुक्त है तो व्यक्ति अपने प्रेमी के साथ सात फेरे लेता है। प्रेम विवाह के लिए सप्तमेश व एकादशेश में परिवर्तन योग के साथ मंगल नवम या त्रिकोण में हो या फिर द्वादशेश तथा पंचमेश के मध्य राशि परिवर्तन हो तब भी शुभ और अनुकूल परिणाम मिलता है।

* पंचमेश लग्नस्थ होने पर जातक को पूर्ण देह सुख व बुद्धि प्राप्त होती है।
* पंचमेश द्वितीयस्थ होने पर धन व परिवार का प्रेम मिलता है।
* तृतीयस्थ पंचमेश छोटे भाई-बहनों से प्रेम दिलाता है।
* पंचमेश चतुर्थ में हो तो माता का, जनता का प्रेम मिलता है।
* पंचमेश पंचम में हो तो पुत्रों से प्रेम मिलता है।
* पंचमेश सप्तम में हो तो जीवनसाथ‍ी से अत्यंत प्रेम रहता है।
* पंचमेश नवम में हो तो भाग्य साथ देता है, ईश्‍वरीय कृपा मिलती है। पिता से प्रेम मिलता है।
* पंचमेश दशमस्थ होकर गुरुजनों, अधिकारियों का प्रेम दिलाता है।
* पंचमेश लाभ में हो तो मित्रों व बड़े भाइयों का प्रेम मिलता है।
पंचमेश की षष्ट, अष्‍ट व व्यय की स्थिति शरीर व प्रेम भरे रिश्तों को नुकसान पहुँचाती है।
पंचम भाव के अतिरिक्त लग्न का स्वामी द्वितीय में जाकर परिवार का, तृतीय में भाई-बहनों का, चतुर्थ में माता व जनता का, पंचम में पुत्र-पुत्री का, सप्तम में पत्नी का, नवम में पिता का व दशम में गुरुजनों का स्नेह दिलाता है।


ये होते हें प्रेम/विजातीय  विवाह योग—
कुंडली में पंचम भाव का स्वामी प्रबल होकर सप्तम में हो या सप्तमेश पंचम में हो, शुक्र-मंगल युति-प्रतियुति हो, केंद्र या नव पंचम योग हो, लग्नेश पंचम, सप्तम या व्यय में हो, पत्रिका में चंद्र, शुक्र शुभ हो तो प्रेम विवाह अवश्‍य होता है।
यदि सप्तम में स्वराशि का मंगल हो, फिर भी जीवन साथी का भरपूर प्रेम मिलता है। सप्तम व व्यय पर शुभ ग्रहों की दृष्‍टि विवाह सुख बढ़ाती है, प्रेम संबंध प्रबल करती है, वहीं अशुभ ग्रहों की उपस्थिति प्रेम की राह में रोडे अटकाती है।
प्रेम विवाह मुख्यत: शुक्र प्रधान राशियों में देखा जाता है। जैसे वृषभ व तुला ! इसके अतिरिक्त धनु राशि के व्यक्ति रुढि़यों को तोड़ने का स्वभाव होने से प्रेम विवाह करते हैं। इसके अलावा कर्क राशि में यदि चंद्र-शुक्र प्रबल हो तो प्रेम विवाह में रुचि रहती है। पंचम भाव यदि शनि से प्रभावित हो और शनि सप्तम में हो तो प्रेम विवाह अवश्‍य होता है।
* केतु यदि नवम भाव या व्यय में स्थित हो तो मनुष्‍य को आध्यात्मिक प्रेम मिलता है, अलौकिक शक्ति के प्रेम को हासिल करने में उसकी रुचि रहती है।


प्रेम /विजातीय विवाह के कुछ मुख्य योग—
1. लग्नेश का पंचक से संबंध हो और जन्मपत्रिका में पंचमेश-सप्तमेश का किसी भी रूप में संबंध हो। शुक्र, मंगल की युति, शुम्र की राशि में स्थिति और लग्न त्रिकोण का संबंध प्रेम संबंधों का सूचक है। पंचम या सप्तक भाव में शुक्र सप्तमेश या पंचमेश के साथ हो।
.. किसी की जन्मपत्रिका में लग्न, पंचम, सप्तम भाव व इनके स्वामियों और शुक्र तथा चन्द्रमा जातक के वैवाहिक जीवन व प्रेम संबंधों को समान रूप से प्रभावित करते हैं। लग्र या लग्नेश का सप्तम और सप्तमेश का पंचम भाव व पंचमेश से किसी भी रूप में संबंध प्रेम संबंध की सूचना देता है। यह संबंध सफल होगा अथवा नही, इसकी सूचना ग्रह योगों की शुभ-अशुभ स्थिति देती है।
.. यदि सप्तकेश लग्नेश से कमजोर हो अथवा यदि सप्तमेश अस्त हो अथवा मित्र राशि में हो या नवांश में नीच राशि हो तो जातक का विवाह अपने से निम्र कुल में होता है। इसके विपरीत लग्नेश से सप्तवेश बाली हो, शुभ नवांश में ही तो जीवनसाथी उच्च कुल का होता है।
4. पंचमेश सप्तम भाव में हो अथवा लग्नेश और पंचमेश सप्तम भाव के स्वामी के साथ लग्न में स्थित हो। सप्तमेश पंचम भाव में हो और लग्न से संबंध बना रहा हो। पंचमेश सप्तम में हो और सप्तमेश पंचम में हो। सप्तमेश लग्न में और लग्नेश सप्तम में हो, साथ ही पंचम भाव के स्वामी से दृष्टि संबंध हो तो भी प्रेम संबंध का योग बनता है।
5. पंचम में मंगल भी प्रेम विवाह करवाता है। यदि राहु पंचम या सप्तम में हो तो प्रेम विवाह की संभावना होती है। सप्तम भाव में यदि मेष राशि में मंगल हो तो प्रेम विवाह होता है। सप्तमेश और पंचमेश एक-दूसरे के नक्षत्र पर हों तो भी प्रेम विवाह का योग बनता है।
6. पंचमेश तथा सप्तमेश कहीं भी, किसी भी तरह से द्वादशेष से संबंध बनाए लग्नेश या सप्तमेष का आपस में स्थान परिवर्तन अथवा आपस में युक्त होना अथवा दृष्टि संबंध।
7. जैमिनी सूत्रानुसार दाराकारक और पुत्रकारक की युति भी प्रेम विवाह कराती है। पंचमेश और दाराकार का संबंध भी प्रेम विवाह करवाता है।
8. सप्तमेश स्वग्रही हो, एकादश स्थान पापग्रहों के प्रभाव में बिलकुल न हो, शुक्र लग्न में लग्नेश के साथ, मंगल सप्तक भाव में हो, सप्तमेश के साथ, चन्द्रमा लग्न में लग्नेश के साथ हो, तो भी प्रेम विवाह का योग बनता है।

क्यों होता हें प्रेम विवाह असफल..???? आइये जाने कारण—-वर्तमान में आधुनिक परिवेश, खुला वातावरण, टीवी संस्कृति, वेलेन्टाइन डे जैसे अवसर के कारण हमारी युवा पीढ़ी अपने लक्ष्यों से भटक रही है। प्यार-मोहब्बत करें लेकिन सोच-समझकर। अवसाद, आत्महत्या या बदनामी से बचने हेतु प्रेम विवाह करने और दिल लगाने से पूर्व अपने साथी से अपने गुण-विचार ठीक प्रकार से मिला लें ताकि भविष्य में पछताना न पड़े।
ग्रहों के कारण व्यक्ति प्रेम करता है और इन्हीं ग्रहों के प्रभाव से दिल भी टूटते हैं। ज्योतिष शास्त्रों में प्रेम विवाह के योगों के बारे में स्पष्ट वर्णन नहीं मिलता है, परन्तु प्रेम विवाह असफल रहने के कई कारण होते है :-
1. शुक्र व मंगल की स्थिति व प्रभाव प्रेम संबंधों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। यदि किसी जातक की कुण्डली में सभी अनुकूल स्थितियाँ होते हुई भी, शुक्र की स्थिति प्रतिकूल हो तो प्रेम संबंध टूटकर दिल टूटने की घटना होती है।
2. सप्तम भाव या सप्तमेश का पाप पीड़ित होना, पापयोग में होना प्रेम विवाह की सफलता पर प्रश्नचिह्न लगाता है। पंचमेश व सप्तमेश दोनों की स्थिति इस प्रकार हो कि उनका सप्तम-पंचम से कोई संबंध न हो तो प्रेम की असफलता दृष्टिगत होती है।
3. शुक्र का सूर्य के नक्षत्र में होना और उस पर चन्द्रमा का प्रभाव होने की स्थिति में प्रेम संबंध होने के उपरांत या परिस्थितिवश विवाह हो जाने पर भी सफलता नहीं मिलती। शुक्र का सूर्य-चन्द्रमा के मध्य में होना असफल प्रेम का कारण है।
4. पंचम व सप्तम भाव के स्वामी ग्रह यदि धीमी गति के ग्रह हों तो प्रेम संबंधों का योग होने या चिरस्थायी प्रेम की अनुभूति को दर्शाता है। इस प्रकार के जातक जीवनभर प्रेम प्रसंगों को नहीं भूलते चाहे वे सफल हों या असफल।

ऐसे मनाये प्रेमी को (प्रेम विवाह को मजबूत करने के उपाय) :—–1. शुक्र देव की पूजा करें।
2. पंचमेश व सप्तमेश की पूजा करें।
3. पंचमेश का रत्न धारण करें ।
4. ब्ल्यू टोपाज सुखद दाम्पत्य एवं वशीकरण हेतु पहनें।
5. चन्द्रमणि प्रेम प्रसंग में सफलता प्रदान करती है।
प्रेम विवाह के लिए जन्मकुण्डली के पहले, पाँचवें सप्तम भाव के साथ-साथ बारहवें भाव को भी देखें क्योंकि विवाह के लिए बारहवाँ भाव भी देखा जाता है। यह भाव शय्या सुख का भी है। इन भावों के साथ-साथ उन (एक, पाँच, सात) भावों के स्वामियों की स्थिति का पता करना होता है। यदि इन भावों के स्वामियों का संबंध किसी भी रूप में अन्य भावों से बन रहा हो तो निश्चित रूप से जातक प्रेम विवाह करता है।

ये हें प्रेम विवाह को मजबूत करने के उपाय—अन्तरजातीय विवाह के मामले में शनि की मुख्य भूमिका होती है। यदि कुण्डली में शनि का संबंध किसी भी रूप से प्रेम विवाह कराने वाले भावेशों के भाव से हो तो जातक अन्तरजातीय विवाह करेगा। जीवनसाथी का संबंध सातवें भाव से होता है, जबकि पंचम भाव को सन्तान, विद्या एवं बुद्धि का भाव माना गया है, लेकिन यह भाव प्रेम को भी दर्शाता है। प्रेम विवाह के मामलों में यह भाव विशेष भूमिका दर्शाता है।
प्रेम एक दिव्य, अलौकिक एवं वंदनीय तथा प्रफुल्लता देने वाली स्थिति है। प्रेम मनुष्य में करुणा, दुलार, स्नेह की अनुभूति देता है। फिर चाहे वह भक्त का भगवान से हो, माता का पुत्र से या प्रेमी का प्रेमिका के लिए हो, सभी का अपना महत्व है। प्रेम और विवाह, विवाह और प्रेम दोनों के समान अर्थ है लेकिन दोनों के क्रम में परिवर्तन है। विवाह पश्चात पति या पत्नी के बीच समर्पण व भावनात्मकता प्रेम का एक पहलू है। प्रेम संबंध का विवाह में रूपांतरित होना इस बात को दर्शाता है कि प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे से भावनात्मक रूप से इतना जुड़े हुए हैं कि वे जीवनभर साथ रहना चाहते हैं।
सर्वविदित है कि हिन्दू संस्कृति में जिन सोलह संस्कारों का वर्णन किया गया है उनमें से विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार है। जीवन के विकास, उसमें सरलता और सृष्टि को नए आयाम देने के लिए विवाह परम आवश्यक प्रक्रिया है, इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता है।
प्रेम संवंध का परिणाम विवाह होगा या नहीं इस प्रकार की स्थिति में ज्योतिष का आश्रय लेकर काफी हद तक भविष्य के संभावित परिणामों के बारे में जाना जा सकता है। दिल लगाने से पूर्व या टूटने की स्थिति न आए, इस हेतु प्रेमी-प्रेमिका को अपनी जन्मपत्रिका के ग्रहों की स्थिति किसी योग्य ज्योतिषी से अवश्य पूछ लेनी चाहिए। प्रेम ईश्वर का वरदान है। प्रेम करें अवश्य लेकिन सोच-समझकर, कुंडली दिखाकर।
प्रेम और विवाह पर ग्रहों का प्रभाव—-
यदि दो प्रेमियों में से किसी भी एक की कुंडली में द्वितीयेश, सप्तमेश और दशमेश तीनों ग्रह दशम् भाव में हों, तो प्रेम संबंधों का प्रभाव व्यापार, व्यवसाय या नौकरी के लिए शुभ फलदायी होता है। द्वितीयेश या सप्तमेश चतुर्थ में हो और चंद्रमा, मंगल, शु से युति, दृष्टि या परिर्वतन हो, तो अपने ननिहाल के परिवार से संबंध बनता है।
सृष्टि के आरंभ से आज तक नर और नारी के बीच एक असमाप्त ऐन्द्रजालिक सम्मोहन विद्यमान है। प्राचीन भारतीय वाड्:मय में ऐसे कितने ही उदाहरण मिलते हैं, जिनसे नर-नारी का अन्योन्याश्रय संबंध द्योतित होता है।

 न हि शक्तिमय: शक्त्या विप्रयोगोऽस्ति जातुचित्।
  तस्माच्छक्ते: शक्तिमतस्तादात्मयान्निर्वृ तिर्द्ध्रयो:।
(शिवपुराण 721)
नर और नारी के मध्य शाश्वत आकर्षण ही प्रेम है। किसी भी सभ्यता और संस्कृति की शुरुआत प्रेम से ही हुई है। समस्त समाजों, संस्कारों, विधि-विधानों, संस्थाओं और स्वीकृतियों से प्राचीन प्रेम मनुष्य की अनिवार्य जरूरत है। शास्त्रों, पुराणों के अनुसार प्रकृति-पुरुष या पार्वती और शिव के प्रतिमान शक्ति और शक्तिमान के प्रतिरूप हैं। कुमारसंभव में महाकवि कालिदास द्वारा भी सृष्टिकर्ता को स्वयं दो भागों में विभक्त किया है- नर और नारी। शास्त्रों में गांधर्व विवाह के कितने ही उदाहरण आए हैं। गांधर्व विवाह ही प्रेम विवाह का प्राचीनतम स्वरूप है। ऋषि ‘मनु’ ने इस विवाह को ‘मनुस्मृति’ में वर्णित किया है।
महाभारत के रचयिता ‘व्यास’ के अनुसार-
 सकामाया: सकामेन निर्मन्त्र: श्रेष्ठ उच्चते।
आज के भौतिक युग में स्त्री-पुरुष का आपस में बार-बार मिलना तथा बाद में प्रेम विवाह में परिणीत हो जाना आम बात है। इस कामाकर्षण, राग संवर्द्धन को संयमित करने का सामाजिक, मनोवैज्ञानिक स्थिरता तथा सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखने का उचित पर्याय विवाह है।
रामायण काल में भी स्वयंवर हुए हैं। अर्थात् कन्या को पूरी छूट थी कि वह अपनी पसंद से विवाह करे।
 यस्यां मनोऽनुरमते चक्षुश्च प्रतिपद्यते।
तां विद्यात् मुख्यलक्ष्मीकां किं ज्ञानने करिष्यति॥
(भारद्वाज गृह्यसूत्र)
पुरुष को उस कन्या से विवाह करना चाहिए, जिसमें उसका मन रमे तथा नेत्र बराबर उसके रूप में उलझे रहें। ऐसी कन्या शुभ लक्षणों से संपन्न मानी जाती है। उसके ज्ञान तथा बुद्धि का क्या प्रयोजन।

प्रेम-विवाह के ज्योतिषीय दृष्टिकोण:—- जन्मकुंडली में प्रेम विवाह संबंधी संभावनाओं का विश्लेषण करते समय सर्वप्रथम पंचम् भाव का अध्ययन करना अति आवश्यक है क्योंकि पंचम् भाव व्यक्ति से संकल्प, विकल्प, इच्छा, मैत्री, साहस, भावना और योजना-सामर्थ्य का ज्ञान कराता है। सप्तम् भाव से विवाह, सुख, सहभागी तथा सहभागिता देखते हैं।
नवम् भाव से प्रेम विवाह में जाति धर्म देखते हैं। एकादश भाव इच्छा पूर्ति का भाव होता है। द्वितीय भाव पारिवारिक संतोष को प्रकट करता है। सप्तम् भाव काम त्रिकोण का मुख्य भाव है। एकादश भाव काम त्रिकोण का तीसरा और काम इच्छा पूर्ति का भाव है। प्रथम भाव या लक्षण स्वयं। सप्तम् भाव शक्ति अर्थात् शिव और शक्ति का मिलन भाव है। जन्म कुंडली में पुरूष के लिए शुक्र तथा स्त्री (कन्या) के लिए मंगल ग्रह का अवलोकन किया जाता है। शुक्र आकर्षण, सेक्स, प्रणय, सौंदर्य, विलासिता का प्रेरक है। मंगल उत्साह-उत्तेजना का। जन्मकुंडली में मंगल जितना प्रभावी होगा, जातक उसी के अनुसार साहसी और धैर्यवान होता है। यह दोनों ग्रह काम परक क्रियाकलापों के उत्तरदायी हैं।
चंद्रमा मन-भावना, इच्छाशक्ति का स्वामी है। बृहस्पति (गुरू) योजना-निर्माता है। इन चारों ग्रहों का प्रभाव सामाजिक स्तर पर प्रणय योग को जन्म देता है।
प्रेम विवाह के योग
 प्रेम विवाह क लिए पंचम, सप्तम् व नवम् (5-7-9) भाव तथा उनके स्वामियों का आपसी संबंध, दृष्टि या परिर्वतन द्वारा होना।
 एकादशेश या एकादश में स्थित ग्रह का संबंध सप्तमेश या सप्तम् से पंचम् या पंचमेश से, शुक का संबंध लग्न, पंचम् या सप्तम् भाव से हो।
 पंचम भाव का शुक्र प्रेम का शुद्ध स्वरूप स्थापित करता है।
 पंचमेश और सप्तमेश का एक साथ होना।
 पंचमेश का मंगल के साथ पंचम भाव में होना।
 लग्नेश का पंचमेश, सप्तमेश या भाग्येश से संबंध।
 सप्तमेश का एकादश भाव में तथा एकादशेश का सप्तम् में होना।
 मंगल, शुक्र तथा लग्नेश का संबंध
 शनि पर राहु मंगल का प्रभाव हो तथा चंद्रमा मध्य में आ जाए।
 मंगल और शुक्र का युति योग, तृतीय या चतुर्थ भाव में हो, तो पड़ोस में या एक ही बिल्डिंग में रहने वाले व्यक्ति से प्रेम संबंध बनता है। यदि बृहस्पति केंद्र या त्रिकोण में हो, तो प्रेम संबंध के पश्चात् विवाह भी हो जाता है।
 मंगल और शुक्र दोनों नवम् या दशम् भाव में हों, तो आकर्षक कार्य स्थान में होता है। साथ कार्य करने वाले या उच्च पद के व्यक्ति के प्रति। बृहस्पति तीसरे स्थान में अथवा केंद्र या त्रिकोण में हो तो विवाह की संभावना बनती है।
 पंचमेश के साथ बुध या बृहस्पति के साथ मंगल और शु का संबंध, चतुर्थ, पंचम, दशम् या एकादश भाव(4, 5, 10, 11) में बने तो स्कूल, कॉलेज में, शिक्षक या सहपाठी के बीच प्रेम-संबंध बनता है।
 यदि लग्नेश और षष्ठेश एक साथ हों या दृष्टि संबंध हो, तो व्यक्ति अपने प्रेम संबंध को बनाए रखने के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है। यदि लग्नेश या षष्ठेश में से एक ग्रह शु या चंद्रमा हो और लग्न, पंचम,नवम् या द्वादश (1-5-9-12) भाव में हो, तो प्रेम संबंध में स्थायित्व की संभावना होगी। (लग्न वृषभ, कर्क, तुला या कुंभ, धनु हो)। यदि दो प्रेमियों में से किसी भी एक की कुंडली में द्वितीयेश, सप्तमेश और दशमेश तीनों ग्रह दशम् भाव में हों, तो प्रेम संबंधों का प्रभाव व्यापार, व्यवसाय या नौकरी के लिए शुभ फलदायी होता है। द्वितीयेश या सप्तमेश चतुर्थ में हो और चंद्रमा, मंगल, शुक्र से युति, दृष्टि या परिर्वतन हो, तो अपने ननिहाल के परिवार से संबंध बनता है। दक्षिण भारत में यह योग्य अक्सर मिलता है, क्योंकि वहां मामा से विवाह किया जाता है। बृहस्पति की युति, बुध या चंद्रमा या शुक्र के साथ पंचम, सप्तम या नवम् भाव में ही, तो एक सामान्य स्थिति के व्यक्ति का संबंध बहुत ही धनवान या उच्च पद के व्यक्ति से होगा।
यदि यह योग वृषभ, मिथुन, कन्या, तुला या मीन राशि में बने तो प्रबल योग होता है। पुरुष कुंडली में शुक्र तथा स्त्री कुंडली में समान राशिगत हों अर्थात् जिस राशि में पु्रुष का शुक्र हो, स्त्री कुंडली में उसी राशि में मंगल हो, तो उन दोनों में प्रेमाकर्षण होता है। यदि दोनों ग्रहों के अंश समान हों, तो अपरिसीम आकर्षण उत्पन्न होता है। यदि स्त्री कुंडली में मंगल और पुरुष कुंडली में शुक्र आपस में केंद्र या त्रिकोण में हों, तो आपसी प्रेमाकर्षण होता है। परंतु यह दोनों 2-12 या षडाष्टक (6-8) हों तथा राशियां भी अलग-अलग हों, तो विकर्षण रहता है। यदि यही शुक्र-मंगल 3-11 हों, तो आकर्षण धनीभूत होता है। किसी भी देश की सरकार में उच्च पदाधिकारियों के प्रेम संबंध स्थापित होने में उस व्यक्ति की कुंडली मे शु के साथ-साथ सूर्य और मंगल पर भी ध्यान देना होगा।

राजनीतिज्ञों और प्रशासनिक पदों पर आसीन व्यक्तियों के कारक ग्रह सूर्य और मंगल हैं तथा प्रेम अथवा विवाह का कारक ग्रह शुक्र है। इसी प्रकार जल सेना, जल पोतों पर काम करने वाले व्यक्तियों की कुंडली में शुक्र का संबंध चंद्रमा और मंगल से भी होता है। फिल्म जगत् में काम करने वाले अभिनेता, अभिनेत्री, डायरेक्टर, टेक्नीशियन अथवा कलाकारों के प्रेम संबंधों तथा विवाह में चंद्रमा एवं शुक्र का प्रभाव रहता है।
यदि चंद्रमा या शुक्र अथवा दोनों 6-7-8 या 12वें भाव में हों और इनके साथ मंगल, बुध, शनि राहु या हर्षल का युति योग, दृष्टि योग बने तो ऐसे कलाकार का किसी व्यक्ति के साथ लंबे समय तक प्रेम संबंध चलेगा। यदि चंद्रमा या शुक्र की उपर्युक्त स्थिति के साथ बली बृहस्पति या केतु का दृष्टि या युति योग बने तो प्रेम संबंध विवाह में परिणीत हो जाएगा। यदि चंद्रमा या शु की उपर्युक्त स्थिति के साथ बुध या बृहस्पति या केतु का किसी प्रकार का संबंध नहीं हो तथा साथ ही चंद्रमा या शुक्र की उपर्युक्त स्थिति के साथ मंगल, शनि, राहू अथवा हर्शल का किसी भी प्रकार का संबंध हो, तो उक्त प्रेम या विवाह अधिक समय तक नहीं चलेगा।
धर्म परिवर्तन
प्रेम एक ऐसी अभिव्यक्ति है, जो कि जाति-धर्म से अलग है। प्रेम करने वाले दो इंसान विवाह करने के लिए अपना धर्म तक परिवर्तित कर लेते हैं।
यदि सप्तम् और नवम् भाव में एक-एक क्रूर ग्रह हों, तथा इन दोनों का किसी अन्य बली ग्रह से कोई संबंध नहीं बन रहा हो तो ऐसा व्यक्ति विवाह के लिए अपना धर्म परिर्वतन कर लेगा। यदि सप्तम् भाव में चंद्रमा, मंगल या शनि की राशि (कर्क, मेष, वृश्चिक, मकर या कुंभ)हो तथा द्वादश भाव में कोई भी दो क्रूर ग्रह हों, तो विवाह के लिए धर्म परिवर्तन होगा।
यदि शनि छठे या सातवें भाव में स्थित हो या छठे भाव से सप्तमेश को दृष्ट करे तो ऐसे व्यक्ति परंपरा के विरुद्ध जा कर अपनी जाति के बाहर या विदेशी के साथ प्रेम विवाह करते हैं। शनि की विशेषता है कि किशोरावस्था में प्रेम संबंध स्थापित करा देता है और कई वर्ष पूर्व समाप्त हुए प्रेम संबंध को दोबारा शुरू करा देता है या यह कहें कि विवाहित जीवन में अनुचित या अनैतिक प्रेम संबंध बना देता है। यह स्थिति तब आती है जब शनि सप्तम भाव पर गोचर करता है या शनि की महादशा अथवा अंर्तदशा हो। शनि के प्रभाव के कारण 15-20-28 अथवा 30 वर्ष पुराने संबंध नए सिरे से स्थापित हो जाते हैं।
जन्म कुंडली में पुरुष के लिए शुक्र तथा स्त्री (कन्या) के लिए मंगल ग्रह का अवलोकन किया जाता है। शुक्र आकर्षण, सैक्स, प्रणय, सौंदर्य विलासिता का प्रेरक है। मंगल उत्साह-उत्तेजना का जन्मकुंडली में मंगल जितना प्रभावी होगा, जातक उसी के अनुसार साहसी और धैर्यवान होता है।
सारांश : सभी योग तभी फलीभूत होते हैं जब उन योगों में सम्मिलित ग्रहों की दशा या अंतर्दशा आएगी (देश-काल-पात्र का ध्यान अवश्य रखना चाहिए)। दशा के साथ-साथ गोचर भी अनुकूल होना चाहिए। विवाह एक सामाजिक कार्य है। प्रेम संबंध और विवाह दोनों को अलग नहीं रखा जा सकता। विवाह के पश्चात् प्रेम संबंध बने, यह अनुचित है। प्रेम विवाह कब होगा? इसके लिए सर्वप्रथम कुंडली में विवाह का योग होना आवश्यक है। जन्म लग्न, चंद्र लक्षण तथा शुक्र लग्न से सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में अनुकूल गोचर में तथा शुभ मुहूर्त में ही विवाह संपन्न होगा।

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