क्या हें ज्योतिष शास्त्र के फलादेश का वैज्ञानिक आधार ?????
बहुत से वैज्ञानिक इस आधार पर इसे विज्ञान मानने से इनकार करते हैं कि भौतिक विज्ञान में सिद्धान्तजों एवं नियमों के आधार पर जब किसी चीज का परीक्षण किया जाता है तब एक बार जो परिणाम मिलता है वहीं परिणाम दूसरी बार परीक्षण करने पर भी प्राप्त होता है, परन्तु ज्योतिष शास्त्र में ऐसा नहीं होता है। ज्योतिष गणना में जो परिणाम एक बार आता है दूसरे ज्योतिष शास्त्री जब उसी सिद्धान्त पर फलादेश करते हैं तो फलादेश अलग आता है।
ज्योतिष शास्त्र बहुत ही गूढ और जटिल विज्ञान है इसलिए इसके सिद्धांतो एवं नियमों का पालन बहुत ही सावधानी से करना होता है। इसमें असावधानी होने पर ही इस प्रकार की सिथति पैदा हो सकता है। दूसरी तरफ ज्योतिष शास्त्र के बहुत से नियम कालान्तर में गुम हो गये हैं जिसके कारण भी भविष्य कथन में कुछ परेशानी और अन्तर हो सकता है अगर उपलब्ध नियमों एवं सिद्धान्तों को सूक्ष्मता से देखकर भविष्य कथन किया जाय तो परिणाम में अन्तर आना सम्भव नहीं है। दूसरी और भविष्य कथन का रूप अलग हो सकता है यह सम्भव है परन्तु परिणाम में समानता से इनकार नहीं किया जा सकता। अत: जो अनिशिचत फलादेश की बात कह कर ज्योतिष शास्त्र को विज्ञान मानने से इनकार करते हैं उन्हें सही नहीं कहा जा सकता।
निष्कर्ष के तौर पर देखें तो ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कहलाने का अधिकार रखता है यह उस कसौटी पर खड़ा उतरता है जहाँ से किसी भी शास्त्र विषय को विज्ञान की संख्या प्राप्त होती है। इसे अंधविश्वास या भ्रम कहने वाले अगर साफ मन से इस विषय का अध्ययन करें तो वे इसे विज्ञान मानने से इनकार नहीं कर सकते।
पिछली दो शताब्दियों में किसी भी वस्तु, विषय या सिध्दांतों को भौतिकतावादी आधुनिक विज्ञान के कसौटी पर परखने का एक ऐसा सिलसिला प्रारंभ हुआ जिसने अनेकानेक आधारहीन अंधविश्वासों की धज्जियां उड़ाने के म में कुछ अति महत्वपूर्ण विषयों व आस्थाओं को भी संदेह
के कटघरे में खड़ा कर दिया। उसे लोग विज्ञान की नयी रोशनी कहकर संबोधित करने लगे। उसमें संसार की हर वस्तु व विषय का नये तरीके से आकलन व मूल्यांकन किया जाने लगा। उस मूल्यांकन में ज्योतिष को संभवत : सबसे अधिक तिरस्कृत व उपेक्षित विषय साबित करने की चेष्टा की गयी है। यही वजह है कि अपने आपको अत्याधुनिक व वैज्ञानिक विचारों का पोषक दिखाने के फैशन में अधिकांश लोग इस गूढ़ विद्या को मूर्खता व अंधविश्वास का पर्याय भी समझने लगे।
लेकिन यह भी एक तथ्य है कि ज्योतिष एक ऐसा विषय है जिससे प्राचीन कोई और विषय नहीं। इतिहास गवाह है कि ऐसा कोई भी समय नहीं था जब ज्योतिष का अस्तित्व नहीं था। आधुनिक विज्ञान के कसौटी पर भी इस बात की पुष्टि हो जाती है। क्योंकि ईसा से भी .5 हजार वर्ष पूर्व की कुछ ऐसी अस्थियां मिली हैं जिन पर सूर्यादि ग्रहों के ज्योतिषीय चिह्नों का अंकन पाया गया है।
प्रसन्नता की बात है कि आज जैसे -जैसे आधुनिक विज्ञान का विकास हो रहा है, उसकी पिछली धारणाओं का नयी धारणाओं से अपने आप खंडन होता जा रहा है। फलस्वरूप आज नौबत यहां तक आ पहुंची है कि वैज्ञानिकों का भी एक बड़ा वर्ग ज्योतिष को विज्ञान का दर्जा दिये जाने का पक्षधर बनता जा रहा है।
अध्यातिमक क्षेत्र मनिदर गुरूद्वारा इत्यादि से जुड़े हुए अधिकतर सन्त ज्योतिष विधाा के प्रति नकारात्मक दृषिटकोण रखते हैं। आश्चर्य तो इस बात से होता है कि उन सन्त महापुरूषों वेद-पुराणों में पूर्ण आस्था एवं विश्वास होता है परन्तु वेदों के नेत्र माने जाने वाले ज्योतिष का अपनी बुद्धि के अनुसार खण्डन करते हैं इसके पीछे कौन सा कारण है। यह विचारणीय एवं खोज का विषय है कि लेखक का अपने जीवन में ऐसे कर्इ सन्तों से सामना हुआ है जिनका कहना है कि कुछ भी है सब परमात्मा है ज्योतिष बकवास है तथा इस मनत्र का जप करो सब ठीक हो जायेगा।
समाज में एक लोकोकित बहुत प्रचलित है कि नीम, हकीम खतरा ए जान संसार में जड़-चेतन जो कुछ भी है उसका अपना एक अर्थ तथा प्रभाव है लेकिन उसका लाभ किस प्रकार से लिया जा सकता है। इसे कोर्इ विरला ही जान पाता है परमात्मा का स्थान जीवन में सर्वोच्च है। इसमें शक करने का कोइ कारण नहीं परन्तु जो एक बात हम भूल जाते हैं वो यह है कि परमात्मा हम सबका स्वामी है, सेवक नहीं सांसार में जो कुछ भी घटित होता है वह परमात्मा की इच्छा से होता है।
लेकिन परमात्मा अपनी इच्छा विशेष सेवकों को उत्पन्न करके उनके माध्यम से पूरी करता है। गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि मनुष्य को केवल कर्म करने का अधिकार है फल देने का अधिकार केवल परमात्मा के हाथों में है। ज्योतिष शास्त्र एक ऐसा दर्पण है जिसमें मनुष्य अपने कर्मों के फल को देख सकता है तथा परमात्मा की इच्छा से नवग्रहों के माध्यम से मनुष्य अपने कर्मों का अच्छा या बुरा फल भोगता है।
यह सत्य है जब तक ज्योतिष और ग्रहों के तथाकथित असर साबित नहीं हो जाते, कम से कम तब तक तो ज्योतिष विद्या एक “अप्रायोगिक-विश्वास” ही है, लेकिन सिर्फ़ यही आधार ज्योतिष को विज्ञान नहीं होना सिद्ध नहीं करता, कुछ और भी आधार हैं जिन पर विचार किया जाना आवश्यक है जिससे यह साबित किया जा सके कि ज्योतिष विज्ञान नहीं है, बल्कि कोरे अनुमान, ऊटपटाँग कल्पनायें और खोखला अंधविश्वास है । वैज्ञानिक ज्योतिष को विज्ञान का दर्जा देने से कतराते है |
क्या सत्ता में बैठा शासक वर्ग ज्योतिष को विज्ञान समझता है ? बिलकुल नहीं समझता है, अगर शासक वर्ग इसे विज्ञान समझता, तो इस क्षेत्र में कार्य करनेवालों के लिए कभी-कभी किसी प्रतियोगिता, अधिकृत संगोष्ठियों आदि का आयोजन होता और ज्योतिष क्षेत्र के विद्वानों को पुरस्कारों से सम्मानित कर प्रोत्साहित किया जाता। दुर्भाग्य की बात है कि आज तक ऐसा कुछ भी नहीं किया गया। यदि पत्रकारिता के क्षेत्र में देखा जाए, तो लगभग सभी पत्रिकाएँ यदा-कदा ज्योतिष से संबंधित लेख, साक्षात्कार,भविष्यवाणियॉ आदि निकालती ही रहती है, लेकिन जब आज तक इसकी वैज्ञानिकता के बारे में कोई निष्कर्ष ही नहीं निकाला जा सका और जनता को कोई संदेश ही नहीं मिल पाया, तो ऐसे ज्योतिष से संबंधित लेख, साक्षात्कार,भविष्यवाणियॉ आदि का क्या औचित्य है ? इस तरह मूल तथ्य की परिचर्चा के अभाव में फलित ज्योतिष को जाने-अनजाने काफी नुकसान हुआ है ।
ज्योतिष के सन्दर्भ में कारण और निवारण का सिद्धान्त अपना कर भौतिक जगत की श्रेणी मे ज्योतिष को तभी रखा जा सकता है,जब उसे पूरी तरह से समझ लिया जाये |
ज्योतिष विधा की सत्यता इस बात से प्रमाणित हो जाती है कि मनुष्य की लाख इच्छा करने के बावजूद उसके जीवन में अप्रत्याशित रूप से अविश्वसनीय घटनायें घटित होती हैं। यदि हम सिद्धातों की बात करें तो किसी भी कार्य का परिणाम नियम के अनुरूप होना चाहिये परन्तु हमारी सोच एवं सिद्धान्तों के विपरीत होने वाली आश्चर्यजनक घटनायें ही ज्योतिष के असितत्व को सिद्ध करने के लिए काफी हैं। प्रत्येक मनुष्य का कुछ न कुछ सपना होता है और वह अपने सपने को यथार्थ में बदलने के लिए युकित एवं शकित का पूर्ण उपयोग करता है। इसके बावजूद स्तब्ध कर देने वाला परिणाम सामने आता है। आखिर क्यों क्योंकि हमारे असितत्व से अलग हम पर नियंत्रण करने वाली शकितयाँ ग्रहों एवं देवों, देवी-देवताओं के रूप में सृष्ट में मौजूद हैं एवं परमात्मा के संकल्पों को पूर्ण करने का उत्तरदायित्व इन्हीं शकितयों के जिम्मे होता है।
जिज्ञासा की दृषिट से एक महत्वपूर्ण प्रश्न उभरकर सामने आता है कि ज्योतिष और अध्यात्मक में घनिष्ठ या निकटवर्ती सम्बन्ध होने के बावजूद भी एक दूसरे से भिन्न परिणाम क्यों हैं। इसका कारण यह है कि ज्योतिष के माध्यम से हम अपने इस लोक को सुधार कर सकते हैं अर्थात जीवन में सुख-समृद्धि की प्रापित और कष्टों से निवृत्ति पा सकते हैं, जबकि अध्यात्म से परलोक सुधरता है तथा परमात्मा की कृपा एवं मुकित की प्रापित होती है। वेदों में विशेषकर कर्मकाण्ड के अन्तर्गत सकाम फल प्रापित के लिए बहुत से मन्त्र दिये गये हैं जो कि यज्ञ के दौरान आहुति में प्रयुक्त किये जाते हैं। इस सबसे यह सिद्ध होता है कि ज्योतिष शास्त्र बकवास नहीं यथार्थ है।
वास्तव में ज्योतिष विद्या न केवल विज्ञान है अपितु विज्ञानों का भी विज्ञान है। यह एक ऐसा शास्त्र है जिसे वेदों का नेत्र भी कहा गया है। वेद के छहों अंगों में ज्योतिष को नेत्र का सर्वोच्च स्थान देते हुए भारत के प्राचीन मनीषियों ने सनातन काल से इस विद्या को ज्ञान-विज्ञान , धर्म व अध्यात्म आदि विषयों में सर्वोत्कृष्ट स्थान देते हुए इसके महत्व को विशेष रूप से रेखांकित किया है। ऋग्वेद में पंचानवे हजार वर्ष पहले जो ग्रह -नक्षत्रों की स्थिति थी, उसका उल्लेख किया गया है, जिसका जिक्र करते हुए लोकमान्य तिलक ने यह अनुमान व्यक्त किया था कि हमारे वेद निश्चित रूप से पंचानवे हजार वर्ष से भी अधिक प्राचीन हैं।
सचमुच ज्योतिष कोई नवीन विज्ञान नहीं है जिसे विकसित होना है। यह एक अति प्राचीन विज्ञान है जो कभी अपने चरम उत्कर्ष पर पहुंच चुका था। कालक्रम से जिस अति प्राचीन भारतीय सभ्यता में इस विज्ञान का चरम विकास हुआ था, वह विनष्ट हो गयी। अत : इस विज्ञान की समस्त कड़ियां यकायक इधर-उधर बिखर गयीं। थोड़ी-बहुत कड़ियां जो यत्र-तत्र बिखरी रह गयीं , उन्हीं के आधार पर वर्तमान ज्योतिष विज्ञान का ताना -बाना बुना गया है और उनके गणितीय सूत्रों की सहायता से की गयी गणनाएं आज भी पूर्णत: सही सिध्द होती हैं। उपलब्ध ज्योतिष शास्त्रों में ज्योतिषीय गणित -सूत्रों के आधार पर जो फलादेश निकाले जाते हैं वे भी आश्चर्य जनक रूप से सच साबित होते हैं।
भारतीय ज्योतिष का प्राचीनतम इतिहास (खगोलीय विद्या) के रूप सुदूर भूतकाल के गर्भ मे छिपा है,केवल ऋग्वेद आदि प्राचीन ग्रन्थों में स्फ़ुट वाक्याशों से ही आभास मिलता है,कि उसमे ज्योतिष का ज्ञान कितना रहा होगा। निश्चित रूप से ऋग्वेद ही हमारा प्राचीन ग्रन्थ है,बेवर मेक्समूलर जैकीबो लुडविंग ह्विटनी विंटर निट्ज थीवो एवं तिलक ने रचना एवं खगोलीय वर्णनो के आधार पर ऋग्वेद के रचना का काल ४००० ई. पूर्व स्वीकार किया है। चूंकि ऋग्वेद या उससे सम्बन्धित ग्रन्थ ज्योतिष ग्रन्थ नही है,इसलिये उसमे आने वाले ज्योतिष सम्बन्धित लेख बहुधा अनिश्चित से है,परन्तु मनु ने जैसा कहा है कि “भूतं भव्यं भविष्यं च सर्वं वेदात्प्रसिद्धयति”। इससे स्पष्ट है कि वेद त्रिकाल सूत्रधर है,और इसके मंत्र द्रष्टा ऋषि भी भी त्रिकालदर्शी थे ।
ज्योतिष शास्त्र एक बहुत ही वृहद ज्ञान है। इसे सीखना आसान नहीं है। ज्योतिष शास्त्र को सीखने से पहले इस शास्त्र को समझना आवश्यक है। सामान्य भाषा में कहें तो ज्योतिष माने वह विद्या या शास्त्र जिसके द्वारा आकाश स्थित ग्रहों, नक्षत्रों आदि की गति, परिमाप, दूरी इत्या‍दि का निश्चय किया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र की व्युत्पत्ति ‘ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्‌’ की गई है। हमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ज्योतिष भाग्य या किस्मत बताने का कोई खेल-तमाशा नहीं है। यह विशुद्ध रूप से एक विज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र वेद का अंग है। ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति ‘द्युत दीप्तों’ धातु से हुई है। इसका अर्थ, अग्नि, प्रकाश व नक्षत्र होता है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार ज्योतिर्मय सूर्यादि ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि को लेकर लिखे गए वेदांग शास्त्र का नाम ही ज्योतिष है।
छः प्रकार के वेदांगों में ज्योतिष मयूर की शिखा व नाग की मणि के समान सर्वोपरी महत्व को धारण करते हुए मूर्धन्य स्थान को प्राप्त होता है। सायणाचार्य ने ऋग्वेद भाष्य भूमिका में लिखा है कि ज्योतिष का मुख्य प्रयोजन अनुष्ठेय यज्ञ के उचित काल का संशोधन करना है। यदि ज्योतिष न हो तो मुहूर्त, तिथि, नक्षत्र, ऋतु, अयन आदि सब विषय उलट-पुलट हो जाएँ।
ज्योतिष शास्त्र के द्वारा मनुष्य आकाशीय-चमत्कारों से परिचित होता है। फलतः वह जनसाधारण को सूर्योदय, सूर्यास्त, चन्द्र-सूर्य ग्रहण, ग्रहों की स्थिति, ग्रहों की युति, ग्रह युद्ध, चन्द्र श्रृगान्नति, ऋतु परिवर्तन, अयन एवं मौसम के बारे में सही-सही व महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है। इसलिए ज्योतिष विद्या का बड़ा महत्व है ।
महर्षि वशिष्ठ का कहना है कि प्रत्येक ब्राह्मण को निष्कारण पुण्यदायी इस रहस्यमय विद्या का भली-भाँति अध्ययन करना चाहिए क्योंकि इसके ज्ञान से धर्म-अर्थ-मोक्ष और अग्रगण्य यश की प्राप्ति होती है। एक अन्य ऋषि के अनुसार ज्योतिष के दुर्गम्य भाग्यचक्र को पहचान पाना बहुत कठिन है परन्तु जो जान लेते हैं, वे इस लोक से सुख-सम्पन्नता व प्रसिद्धि को प्राप्त करते हैं तथा मृत्यु के उपरान्त स्वर्ग-लोक को शोभित करते है |
ग्रह नक्षत्रों के परिज्ञान से काल का उद्बोधन करने वाला शास्त्र ज्योतिष शास्त्र ही है। प्रन्तु उस उद्बोधन के साथ आकाशीय चमत्कार को देखने के लिये गणित ज्योतिष के तीन भेद किये गये हैं:-
१.सिद्धान्त गणित–
जिस गणित के द्वारा कल्प से लेकर आधुनैक काल तक के किसी भी इष्ट दिन के खगोलीय स्थितिवश गत वर्ष मास दिन आदि सौर सावन चान्द्रभान को ज्ञात कर सौर सावन अहर्गण बनाकर मध्यमादि ग्रह स्पष्टान्त कर्म किये जाते है,उसे सिद्धान्त गणित कहा जाता है।
२. तंत्र गणित–
जिस तंत्र द्वारा वर्तमान युगादि वर्षों को जानकर अभीष्ट दिन तक अहर्गण या दिन समूहों के ज्ञान के मध्यमादि ग्रह गत्यादि चमत्कार देखा जाता है,उसे तंत्र गणित कहा जाता है।
३. करण गणित
वर्तमान शक के बीच में अभीष्ट दिनों को जानकर अर्थात किसी दिन वेध यंत्रों के द्वारा ग्रह स्थिति देख कर और स्थूल रूप से यह ग्रह स्थिति गणित से कब होगी,ऐसा विचार कर तथा ग्रहों के स्पष्ट वश सूर्य ग्रहण आदि का विचार जिस गणित से होता है,उसे करण गणित कहते हैं ।तंत्र तथा करण ग्रन्थों का निर्माण वेदों से हजारों वर्षों के उपरान्त हुआ,अत: इस पर विचार न करके वेदों में सिद्धान्त गणित सम्बन्धी बीजों का अन्वेषण आवश्यक होगा। वेदों में सूर्य के आकर्षण बल पर आकाश में नक्षत्रों की स्थिति का वर्णण मिलता है ।
संपूर्ण भारतीय ज्योतिषशास्त्र को मूलतः तीन भागों में बाँटा जा सकता है—
(१) सिद्धान्त ज्योतिष:-
काल गणना की एक विशेष सूक्ष्म माप त्रुटि से लेकर प्रलय के अन्त तक कालों का आकलन, उनका मान, उनका भेद, उनका चार (चलन), आकाश में उनकी गति आदि क्रम से द्विविध प्रकार की गणित से उनके प्रश्न तथा उत्तर जिसमें निहित है। पृथ्वी और आकाश के मध्य स्थित ग्रहों का जिसमें कथन और उनको जानने, वैध करने का यन्त्र आदि वस्तुओं का जिसमें गणित निहित हो, उस प्रबन्ध को विद्वानों ने सिद्धान्त रूप से अभिहित किया है।
सिद्धान्त ज्योतिष के प्रमुख ग्रन्थों के नाम:–सिद्धान्त ग्रन्थों में सूर्य सिद्धान्त, वशिष्ठ सिद्धान्त, ब्रह्म सिद्धान्त, रोमक सिद्धान्त, पौलिश सिद्धान्त, ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त, पितामह सिद्धान्त आदि प्रसिद्ध सिद्धान्त ग्रन्थ हैं ।
सिद्धान्त ज्योतिष के प्रमुख आचार्यों के नाम:–
जिन्होंने ज्योतिष शास्त्र को चलाया ऐसे ज्योतिष शास्त्र के .8 प्रवर्तक आचार्य माने जाते हैं। ये हैं- ब्रह्मा, आचार्य, वशिष्ठ, अत्रि, मनु, पौलस्य,रोमक, मरीचि, अंगिरा, व्यास, नारद, शौनक, भृगु, च्यवन, यवन, गर्ग, कश्यप और पाराशर |
(२) संहिता ज्योतिष:–
ग्रहों की चाल, वर्ष के लक्षण, तिथि, वार, नक्षत्र, योग, कण, मुहूर्त, ग्रह-गोचर भ्रमण, चन्द्र ताराबल, सभी प्रकार के लग्नों का निदान, कर्णच्छेद, यज्ञोपवीत, विवाह इत्यादि संस्कारों का निर्णय तथा पशु-पक्षी चेष्टा ज्ञान, शकुन विचार, रत्न विद्या, अंग विद्या, आकार लक्षण, पक्षी व मनुष्य की असामान्य चेष्टाओं का चिन्तन संहिता विभाग का विषय है।
संहिता ज्योतिष के प्रमुख ग्रन्थों के नाम:-
संहिता ग्रन्थों में वृहत्संहिता, कालक संहिता, नारद संहिता, गर्ग संहिता, भृगु संहिता, अरुण संहिता, रावण संहिता, लिंग संहिता, वाराही संहिता, मुहूर्त चिन्तामण इत्यादि प्रमुख संहिता ग्रन्थ हैं।
संहिता ज्योतिष के प्रमुख आचार्यों के नाम:-
मुहूर्त गणपति, विवाह मार्तण्ड, वर्ष प्रबोध, शीघ्रबोध, गंगाचार्य, नारद, महर्षि भृगु, रावण, वराहमिहिराचार्य सत्य-संहिताकार रहे हैं ।
(३) होरा शास्त्र:-
राशि, होरा, द्रेष्काण, नवमांश, चलित, द्वादशभाव, षोडश वर्ग, ग्रहों के दिग्बल, काल बल, चेष्टा बल, ग्रहों के धातु, द्रव्य, कारकत्व, योगायोग, अष्टवर्ग, दृष्टिबल, आयु योग, विवाह योग, नाम संयोग, अनिष्ट योग, स्त्रियों के जन्मफल, उनकी मृत्यु नष्टगर्भ का लक्षण प्रश्न एवं ज्योतिष के फलित विषय पर जहाँ विकसित नियम स्थापित किए जाते हैं, वह होरा शास्त्र कहलाता है ।
होरा शास्त्र के प्रमुख ग्रन्थों के नाम:-
सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ वृहद पाराशर होरा शास्त्र मानसागरी, सारावली, वृहत्जातक, जातकाभरण, चमत्कार चिन्तामणि, ज्योतिष कल्पद्रुम, जातकालंकार, जातकतत्व होरा शास्त्र इत्यादि हैं।
होरा शास्त्र के प्रमुख आचार्यों के नाम:-पुराने आचार्यों में पाराशर, मानसागर, कल्याणवर्मा, दुष्टिराज, रामदैवज्ञ, गणेश, नीपति आदि हैं |
इन तीन स्कन्धों वाला उत्तम भारतीय ज्योतिषशास्त्र ही वेदों का पवित्र नेत्र कहा गया है ।
क्या ज्योतिष नक्षत्र विज्ञान हें..????
विज्ञान उसे कहते हैं जिनका प्रयोगशाला में परीक्षण किया जा सके और उसके प्रभाव का अध्ययन सम्भव हो। ज्योतिष शास्त्र के आलोचक इस आधार पर भी इसे विज्ञान मानने से इनकार करते हैं कि ज्योतिष शास्त्र के सिद्धान्तों और नियमों का भौतिक प्रयोगशाला में परीक्षण नहीं किया जा सकता है। यही सत्य है कि ज्योतिष विज्ञान का भौतिक प्रयोगशाला में परीक्षण नहीं होता परन्तु इस विज्ञान में भी कारण और प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखार्इ देता है। इस विज्ञान के प्रयोग में गुरूत्वाकर्षण को कारण माना जाता है व शरीर को वस्तु जिसके ऊपर अंतरिक्षीय तत्वों के प्रभाव का पौराणिक नियम एवं सिद्धान्त के आधार पर विश्लेषण किया जाता है। इस आधार पर भौतिक विज्ञान के नियमों को मानने वाले ज्योतिष शास्त्र को विज्ञान कह सकते हैं।
ज्योतिष शास्त्र यूँ तो एक प्रकार का विज्ञान है फिर भी आधुनिक वैज्ञानिक दृषिट रखने वाले बहुत से व्यकित इसे अंधविश्वास और वहम मानते हैं इस विज्ञान के प्रति आलोचनात्मक दृषिट रखने वालों में ऐसे लोग मुख्य रूप से है जिनके लिए ज्योतिष शास्त्र पढ़ पाना और समझना कठिन होता है। बहुत से आलोचक ज्योतिष के सिद्धान्तों की हंसी उड़ाते हैं कि यह कैसे सम्भव है कि किसी के भविष्य को आप देख रकते हैं। आलोचनात्मक दृषिट रखने वाले लोग ज्योतिष विज्ञान को कोरी कल्पना और ठगी मानते हैं।
ज्योतिष विज्ञान की आलोचना करने वाले भले ही अपने अपने तर्क दें परन्तु यह भी गौर करने वाली बात है कि ऐसा कौन सा विज्ञान और सिद्धान्त है जो आलोचनाओं से बचा हुआ है। आलोचना ही सिद्धान्तों एवं विज्ञान को बल प्रदान करता है आवश्यकता यह है कि आलोचनात्मक दृषिट रखने वालों को इस विज्ञान के प्रति मन साफ करना चाहिए और खुले मन से इसका अध्ययन करना चाहिए। इससे वे समझ पायेंगे कि ज्योतिष किस प्रकार विकसित और रहस्यों से भरा विज्ञान है, यह विज्ञान पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल के आधार पर कार्य करता है।
सिद्धान्तों नियमों प्रयोगों समालोचनाओं एवं प्रेक्षण के आधार पर जो ज्ञान प्राप्त किया जाता है, वह विज्ञान है ज्योतिषशास्त्र इन सभी कसौटियों पर खड़ा उतरता है जिसेस इस विज्ञान कहा जा सकता है।विज्ञान की परिभाषा के अनुसार ‘सिद्धांतों, नियमों, प्रयोगों, समालोचनाओं एवं प्रेक्षण के आधार पर जो ज्ञान प्राप्त किया जाता है वह विज्ञान है’ | अब हमें यह विचार करना है कि क्या ज्योतिषशास्त्र इन सभी कसौटियों पर खड़ा उतरता है जिससे इसे विज्ञान कहा जा सकता है |
इसके लिए आइये कुछ तथ्यों पर विश्लेषण करते है —-
(१) समस्त ब्रह्मांड की अति सूक्षम हलचल का प्रभाव भी पृथ्वी पर पडता है,सूर्य और चन्द्र का प्रत्यक्ष प्रभाव हम आसानी से देख और समझ सकते है,सूर्य के प्रभाव से ऊर्जा और चन्द्रमा के प्रभाव से समुद में ज्वार-भाटा को भी समझ और देख सकते है,जिसमे अष्ट्मी के लघु ज्वार और पूर्णमासी के दिन बृहद ज्वार का आना इसी प्रभाव का कारण है,पानी पर चन्द्रमा का प्रभाव अत्याधिक पडता है,मनुष्य के अन्दर भी पानी की मात्रा अधिक होने के कारण चन्द्रमा का प्रभाव मानव मस्तिष्क पर भी पडता है,पूर्णमासी के दिन होने वाले अपराधों में बढोत्तरी को आसानी से समझा जा सकता है,जो पागल होते है उनके असर भी इसी तिथि को अधिक बढते है,आत्महत्या वाले कारण भी इसी तिथि को अधिक होते है,इस दिन स्त्रियों में मानसिक तनाव भी अधिक दिखाई देता है,इस दिन आपरेशन करने पर खून अधिक बहता है,शुक्ल पक्ष मे वनस्पतियां अधिक बढती है,सूर्योदय के बाद वन्स्पतियों और प्राणियों में स्फ़ूर्ति का प्रभाव अधिक बढ जाता है,आयुर्वेद भी चन्द्रमा का विज्ञान है जिसके अन्तर्गत वनस्पति जगत का सम्पूर्ण मिश्रण है,कहा भी जाता है कि “संसार का प्रत्येक अक्षर एक मंत्र है,प्रत्येक वनस्पति एक औषधि है,और प्रत्येक मनुष्य एक अपना गुण रखता है,आवश्यकता पहिचानने वाले की होती है”,’ग्रहाधीन जगत सर्वम”,विज्ञान की मान्यता है कि सूर्य एक जलता हुआ आग का गोला है,जिससेसभी ग्रह पैदा हुए है,गायत्री मन्त्र मे सूर्य को सविता या परमात्मा माना गया है,रूस के वैज्ञानिक “चीजेविस्की” ने सन १९२० में अन्वेषण किया था,कि हर ११ साल में सूर्य में विस्फ़ोट होता है,जिसकी क्षमता १००० अणुबम के बराबर होती है,इस विस्फ़ोट के समय पृथ्वी पर उथल-पुथल,लडाई झगडे,मारकाट होती है,युद्ध भी इसी समय मे होते है,पुरुषों का खून पतला हो जाता है,पेडों के तनों में पडने वाले वलय बडे होते है,श्वास रोग सितम्बर से नबम्बर तक बढ जाता है,मासिक धर्म के आरम्भ में १४,१५,या १६ दिन गर्भाधान की अधिक सम्भावना होती है |
(२) विज्ञान की परिभाषा के अनुसार विज्ञान उसे कहते हैं जिनका प्रयोगशाला में परीक्षण किया जा सके और उसके प्रभाव का अध्ययन संभव हो | ज्योतिषशास्त्र के आलोचक इस आधार पर भी इसे विज्ञान मानने से इंकार करते हैं कि ज्योतिषशास्त्र के सिद्धान्तों एवं नियमों का भौतिक प्रयोगशाला में परीक्षण नहीं किया जा सकता है | यह सही है कि ज्योतिष विज्ञान का भौतिक प्रयोगशाला मे परीक्षण नहीं होता, परंतु इस विज्ञान में भी कारण और प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देते है | इस विज्ञान के प्रयोग में गुरूत्वाकर्षण को कारण माना जाता है व शरीर को वस्तु जिसके उपर अंतरिक्षीय तत्वों के प्रभाव का पौराणिक नियमों एवं सिद्धांतों के आधार पर विश्लेषण किया जाता हैं | इस आधार पर भौतिक विज्ञान के नियमों को मानने वाले ज्योतिषशास्त्र को विज्ञान कह सकते हैं |
(३) विभिन्न ग्रहों की एक खास अवधि में निश्चित भूमिका को देखते हुए ही ‘गत्यात्‍मक दशा पद्धति की नींव रखी गयी। अपने दशाकाल में सभी ग्रह अपने गत्यात्मक और स्थैतिक शक्ति के अनुसार ही फल दिया करते हैं। उपरोक्त दोनो वैज्ञानिक आधार प्राप्त हो जाने के बाद भविष्यवाणी करना काफी सरल होता चला गया। ‘ गत्यात्मक दशा पद्धति ’ में नए-नए अनुभव जुडत़े चले गए और शीघ्र ही ऐसा समय आया ,जब किसी व्यक्ति की मात्र जन्मतिथि और जन्मसमय की जानकारी से उसके पूरे जीवन के सुख-दुख और स्तर के उतार-चढ़ाव का लेखाचित्र खींच पाना संभव हो गया। धनात्मक और ऋणात्मक समय की जानकारी के लिए ग्रहों की सापेक्षिक शक्ति का आकलण सहयोगी सिद्ध हुआ ।
(४) ज्योतिषियों के एक वर्ग की मान्यता है कि ज्योतिष और जड़ी-बूटियों की मदद से ब्लड कैंसर और अन्य गंभीर रोगों का भी इलाज संभव है। जातक की पत्रिका में यदि चंद्र और मंगल कमजोर स्थिति में हों और शनि रोग, मृत्यु या व्यय के घर में बैठे हैं तो व्यक्ति को ब्लड कैंसर की पूरी-पूरी आशंका रहती है । कुंडली में कमजोर चंद्र सफ़ेद रक्त कण को कम करता है तथा मंगल के कमजोर होने की स्थिति में व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कण कम होते हैं ।
(५) अधिकांश वैज्ञानिक इस आधार पर इसे विज्ञान मानने से इंकार करते हैं कि भौतिक विज्ञान में सिद्धांतों एवं नियमों के आधार पर जब किसी चीज का परीक्षण किया जाता है तब एक बार जो परिणाम मिलता है वही परिणाम दूसरी बार परीक्षण करने पर भी प्राप्त होता है, परंतु ज्योतिषशास्त्र में ऐसा नहीं होता है | जब कि ज्योतिष गणना में जो परिणाम एक बार आता है दूसरे ज्योतिषशास्त्री जब उसी सिद्धांत पर फलादेश करते हैं तो फलादेश अलग आता है | यदि ज्योतिषशास्त्र के उपलब्ध नियमों एवं सिद्धांतों को सूक्ष्मता से देखकर भविष्य कथन किया जाय तो परिणाम में अंतर आना संभव नहीं है, अत: जो अनिश्चित फलादेश की बात कह कर ज्योतिषशास्त्र को विज्ञान मानने से इंकार करते हैं उन्हें सही नहीं कहा जा सकता |
(६) अरबों-खरबों रुपये के खर्च पर पलनें वाला विज्ञान अभी तक यह भी नहीं जानता कि मंगल लाल क्यों दिखता है, शनि चित्र-विचित्र रंगों से युक्त क्यों है, बृहस्पति पीला क्यों दिखता है आदि और इनका पृथ्वी और पृथ्वी पर रहनें वालों पर क्या कोई प्रभाव पड़ता है ? वह भी तब जब वह इसी सौरमण्डल के सदस्य हैं जिसमें हमारी पृथ्वी है। अनेकानेक प्रश्न हैं जिन्हें विज्ञान जानने का प्रयास कर रहा है और यह प्रयास जारी रहनें भी चाहिये | परन्तु ज्योतिषशास्त्र में आधुनिक वैज्ञानिक साधनों के अभाव में हजारों वर्ष पूर्व इन सभी प्रश्नों का समुचित उत्तर दे दिया गया था |
(७) वर्तमान समय में जो पंचांग बन रहे हैं, वह लगभग सभी लहरी एफेमरी जो नाटिकल एल्मनॅक पर आधारित है । कम्प्यूटर प्रोग्राम में भी डाटाबेस यही एफेमेरी/अल्म है अतः समान चूक वहाँ भी हो गयी है। ज्योतिष गणना में ग्रह आकाश में सदैव एक निश्चित गति से चलते हैं यह ज्योतिष गणना का मुख्य आधार है। अन्तरिक्ष में, सौर धब्बो के अधिक बनने/ कम बननें या किसी केतु (कामेट) के संचरण या अन्य किसी अभिनव खगोलीय घटना वश ग्रहों की गति, भ्रमण स्थिति आदि पर विचलनकारी प्रभाव पड़्ते हैं, उनका आँकलन तभी संभव है जब प्राचीन ज्योतिष गणना पद्धति के अनुसार दृग ज्योतिषीय आधार पर पंचांग निर्मित हों और कम्प्यूटर प्रोग्राम में भी डाटाबेस यही प्राचीन ज्योतिष गणना पद्धति के अनुसार प्रोग्रामिंग की जाये।
(८) वर्तमान विज्ञान ने एक चमत्कारी बात का पता लगाया है कि शनि के दोनों ध्रुवों पर नीली रौशनी चमकती है । अभी हाल ही में आधुनिक और शक्तिशाली हबल टेलिस्कोप से नासा को भेजी गई तस्वीरों ने आश्चर्यजनक और हैरानी में डालने वाला खुलासा किया है | इन तस्वीरों से यह ज्ञात हुआ है कि शनिवार के दिन शनि के दोनों ध्रुवों पर नीली चमकदार रौशनी आश्चर्यजनक तरीके से बढ़ जाती है | यह रौशनी बिल्कुल वैसी ही है, जैसी कि हमारी पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के आकाश में दिखाई देती है । शनिवार की ये रौशनी कई गुना तेज़ क्यों हो जाती है इस बारे में विज्ञान अभी तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया है । यह तो स्पष्ट है कि विज्ञान के पास शनि की नीली रौशनी का कोई जवाब नहीं है, लेकिन ज्योतिषशास्त्र के पास है | हज़ारों साल से ही ज्योतिषशास्त्र ने शनि का रंग काला और नीला बताया है । शनि का प्रकोप शांत करने वाला रत्न नीलम है और शनि में दिखने वाली नीली रौशनी भी कुछ कुछ वैसी ही दिखती है। ज्योतिष में शनिवार के दिन का स्वामी भगवान शनि को ही माना जाता है | ज्योतिषशास्त्र मानता है कि शनिवार का स्वामी होने के कारण शनिवार को शनि देव की शक्ति का प्रभाव काफी ज्यादा रहता है । विज्ञान के क्षेत्र में इन तथ्यों को स्वीकार नहीं किया जाता है लेकिन इनका कोई समुचित उत्तर भी नहीं है |
(९) वैज्ञानिकों तक मंगल की धरती से पहुंची जानकारी कहती है कि मंगल की सतह लाल है | मंगल की सतह से मंगल का आकाश भी लाल ही दिखता है | ज्योतिषशास्त्र ने हज़ारों साल पहले कैसे मंगल का रंग लाल मान लिया । ज्योतिषशास्त्र में ये सिद्धांत लिख दिया कि लाल रंग के कपड़े के दान से मंगल ग्रह की शांति होती है और कैसे लाल रंग के मूंगे को मंगल का रत्न मान लिया गया । जब ज्योतिषशास्त्र ने ये नियम बनाए गए थे, तब मंगल ग्रह की कोई भी तस्वीर मौजूद नहीं थी । अब मंगल ग्रह की मिट्टी की जांच कर रहे वैज्ञानिक मानते हैं कि मंगल की ज़मीन में सोना और तांबा जैसी धातुओं की मात्रा हो सकती है और ज्योतिष के मुताबिक तांबा या सोने में ही मंगल के रत्न मूंगे को धारण किया जाता है । सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि बिना मंगल को समझे कोई कैसे उसे लाल रंग से जोड़ सकता है । ज्योतिषशास्त्र ने मंगल को हमेशा से एक गर्म और उग्र ग्रह माना है जो जोश हिंसा और युद्ध का कारक है और अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों को अब जाकर ये जानकारी मिली है कि मंगल की सतह पर तापमान बहुत ज्यादा रहता है और साथ ही साथ मंगल के वातावरण में समय-समय पर भयानक तूफान उठते रहते हैं । अब हज़ारों साल पहले ज्योतिषशास्त्र के सिद्धांत लिखने वालों के पास ये जानकारियां ज्योतिषशास्त्र के वैज्ञानिक-दृष्टिकोण को ही पुष्ट करता है ।
ज्योतिष को विज्ञान कहने के लिये इतने सब कारण क्या पर्याप्त नही है ? इतने विश्लेषण के पश्चात् मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि ज्योतिषशास्त्र निश्चित रूप से विज्ञान कहलाने का अधिकार रखता है यह उस कसौटी पर खड़ा उतरता है जहां से किसी भी शास्त्र विषय को विज्ञान की संज्ञा प्राप्त होती है | ज्योतिषशास्त्र को अंधविश्वास या भ्रम कहने वाले अगर साफ मन से इस विषय का अध्ययन करें तो वे इसे विज्ञान मानने से इंकार नहीं कर सकते हैं | मुझे यह कहने में तनिक संकोच नहीं है कि ज्योतिषशास्त्र कभी एक निश्चित सिद्धांतों पर आधारित विज्ञान रहा था जिसकी रचना करने वालों के पास आकाशगंगा को समझने का कोई न कोई सशक्त माध्यम अवश्य था और अब तो बॉम्बे हाईकोर्ट भी ज्योतिष को विज्ञान होने की मान्यता दे चुका है । दुनिया भर के वैज्ञानिक भले ही ज्योषित को विज्ञान मानने से इनकार करते हों, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि ज्योतिष एक विज्ञान है। अदालत ने ज्योतिषशास्त्र को विज्ञान के रूप में दी गई मान्यता रद्द करने के लिए दायर जनहित याचिका खारिज कर दी। जनहित मंच नामक गैर सरकारी संगठन की इस याचिका में फर्जी ज्योतिषियों, तांत्रिकों और वास्तुशास्त्री पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी ।
बॉम्बे हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि जहां तक ज्योतिष शास्त्र से जुड़े आग्रह का सवाल है तो सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस मुद्दे पर विचार कर चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने भीज्योतिष को विज्ञान बताया है। शीर्ष अदालत ने वर्ष २००४ ईस्वी में विश्वविद्यालयों को निर्देश भी दिया था कि वे ज्योतिष विज्ञान को अपने पाठ्यक्रम में शामिल करने पर विचार करें । पीठ ने इस संबंध में केंद्र सरकार की ओर से दाखिल शपथ पत्र का भी हवाला दिया ।
सरकार ने शपथ पत्र में कहा है कि ज्योतिषशास्त्र चार हजार साल पुराना विश्वसनीय विज्ञान है और यह दवा व जादुई उपचार अधिनियम (आपत्तिजनक विज्ञापन) सन १९५४ ईस्वी के तहत नहीं आता । इसमें कहा गया है कि इस कानून के दायरे में ज्योतिष शास्त्र और संबंधित विज्ञान नहीं आते हैं । ज्योतिष शास्त्र जैसे समय की कसौटी पर परखे गए विज्ञान पर प्रतिबंध का विचार अनुचित व अन्यायपूर्ण है । यह याचिका जनहित मंच के संयोजक भगवानजी रैयानी और उनके सहयोगी दत्ताराम ने दायर की थी ।
पेस इंटर एस्ट्रोमेडिकल एसोसिएशन गुजरात की अध्यक्ष एवं भारतीय प्राच्य ज्योतिष शोध संस्थान की गुजरात प्रभारी श्रीमती सोनी ने ज्योतिष से जुड़े प्रश्न ‘ज्योतिष विज्ञान है, गणित है अथवा ढकोसला है ?’ के प्रत्युत्तर में उन्होंने कहा कि “ज्योतिष ढकोसला नहीं है, यह विज्ञानसम्मत शास्त्र है। इसका उद्‍देश्य जनता के बीच व्याप्त अंधविश्वास को दूर करना है तथा भविष्य की गतिविधियों से परिचित कराना है। ज्यो‍‍तिष विज्ञान से भी पुराना विषय है। वर्तमान में भारत में ही नहीं, दुनिया के अन्य देशों में भी ज्योतिष को मान्यता मिली हुई है ।”
अत: यह कहा जा सकता है कि वर्तमान विज्ञान की नई शोध और खोजें ज्योतिष के पूर्व धारणाओं को पुष्ट करने हेतु सबूत इकट्ठे कर रही हैं और एक दिन ज्योतिष फिर से अपनी पुरानी गरिमा को अवश्य प्राप्त कर सकेगा । ज्योतिष समय का विज्ञान है, इसमें तिथि, वार, नक्षत्र, योग और कर्म इन पांच चीजों का अध्ययन कर भविष्य में होने वाली घटनाओं की जानकारी दी जाती है। यह किसी जाति या धर्म को नहीं मानता। वेद भगवान भी ज्योतिष के बिना नहीं चलते। वेद के छः अंग हैं, जिसमें छठा अंग ज्योतिष है। हमने पूर्व जन्म में क्या किया और वर्तमान में क्या कर रहे हैं, इसके आधार पर भविष्य में क्या परिणाम हो सकते हैं, इसकी जानकारी दी ‘जाती है ।
निष्कर्ष के तौर देखें तो ज्योतिषशास्त्र विज्ञान कहलाने का अधिकार रखता है यह उस कसौटी पर खड़ा उतरता है जहां से किसी भी शास्त्र विषय को विज्ञान की संज्ञा प्राप्त होती है. इसे अंधविश्वास या भ्रम कहने वाले अगर साफ मन से इस विषय का अध्ययन करें तो वे इसे विज्ञान मानने से इंकार नहीं कर सकते.

2 COMMENTS

  1. ज्‍योतिष शास्‍त्र अंधविश्‍वास के सडे हुए तालाब की वो मछली है जिसे तर्क की जमीन पर रखा जाए तो वो छटपटा कर दम तोड देती है।
    ज्योतिष के अनुसार चन्द्रमा और मंगल दोनो मित्र है. चन्द्रमा कर्क राशि का स्वामी है। और मंगल मेष के साथ वृश्चिक राशि का स्वामी भी है। परन्तु चन्द्रमा अपने ही मित्र मंगल की राशि वृश्चिक मे नीच का हो जाता है और मंगल भी अपने ही मित्र चन्द्रमा की राशि कर्क मे नीच का हो जाता है। यदि सिद्धांत सही होता तो अपने ही मित्र की राशि मे चन्द्रमा / मंगल नीच भी नहीँ होते। अत: इस प्रकार के अन्तर्विरोधी सिद्धांतो के आधार पर किसी निष्कर्ष पर नहीँ पहुंचा जा सकता है। और ज्योतिषी व्यक्ति के मनः स्थिति को परख कर मनोवैज्ञानिक भविष्यवाणी, जो को सामान्य बाते ही होती है – से भ्रमित करते रहते है। प्राचीन समय मे पृथ्वी को ही हमारे सौरमंडल का केन्द्र माना जाता था. इसी आधार पर फलित ज्योतिष की रचना की गई ।
    • पृथ्वी को स्थिर माना जाता था, और स्थिर पृथ्वी के गिर्द सूर्य चन्द्र आदि परिक्रमा करते ग्रह ज्योतिष का आधार है ।
    • ऋषियो के अनुसार पृथ्वी से अन्य ग्रहो की दूरी इस प्रकार थी. पृथ्वी – सूर्य – चन्द्रमा – नक्षत्र – बुध – शुक्र – मंगल – बृहस्पति – शनि ।
    • ज्योतिष मे सूर्य और चन्द्रमा दोनो ग्रह है. जब्कि सूर्य एक तारा और चन्द्रमा उपग्रह है
    • सभी राशियां और नक्षत्र विभिन्न तारो के ही समूह है, हमारे सौरमंडल से भी कई प्रकाश वर्ष दूर स्थित है ।
    • चन्द्रमा एक राशि मे २-१/४ दिन तक रहता है. क्या यह सम्भव है कि २-१/४ दिन तक एक ही रंग, आकार प्रकार, गुण, स्वभाव, प्रकृति वाले व्यक्ति उत्पन्न हो ।
    • एक ही समय मे शनि की साढे़-साती के अन्तर्गत भारत मे ही ३० करोङ व्यक्ति आते है. क्या यह सम्भव है कि सभी का बेङा गर्क हो जाए ।
    • एक दिन मे १० घन्टे मंगल दोष वाले व्यक्ति उत्पन्न होते है. यानि ४०% आबादी का वैवाहिक जीवन नर्क – ?
    • भारत मे ही १० करोङ व्यक्ति एक ही राशि के अन्तर्गत आते है. राशि फल के अनुसार सभी का दिन एक जैसा ही हो, सम्भव है ?
    • कालसर्प योग, अष्टकूट मिलान, मंगली दोष, साढे़-साती आदि का किसी भी प्राचीन ज्योतिष की किताब मे कहीँ पर उल्लेख नहीँ है ।
    • ज्योतिषी द्वारा “वैदिक ज्योतिष” शब्द से भ्रमित किया जाता है. किसी भी वेद अथवा पुराण मे “फलित” ज्योतिष का कहीं उल्लेख नहीँ है ।
    • फलित ज्योतिष के सिद्धांत रचे गए है न कि किसी वेद/पुराण से लिए गए है. इनमे फलित के सिद्धांतो का उल्लेख ही नहीँ है ।
    • प्राचीन समय मे आज के खगोलशास्त्र को ही ज्योतिष कहा जाता था – १८वीं शताब्दी तक ।
    • ऋषियो ने ज्योतिष (खगोलशास्त्र) को ही बनाया था, न कि फलित ज्योतिष को.
    • पहली बार ज्योतिष को “वेद की आंख ” भास्कराचार्य द्वितीय ने कहा था. वह भी खगोलशास्त्र को न कि फलित ज्योतिष को.
    • राशियां ऋषियोँ ने नहीँ वरन प्राचीन ग्रीस मे बनाई गई थी. किसी भी वेद मे राशियो का कहीँ पर भी उल्लेख नहीँ है ।
    • ऋषियो ने न तो फलित ज्योतिष को बनाया था, न ही वह इसका समर्थन ही करते थे
    • ग्रह नक्षत्रो से जीविका चलाने वाले व्यक्तियों को चांडाल कहा जाता था. उनका पूजा हवन यज्ञ व अन्य धार्मिक कार्य मे प्रयोग वर्जित था ।

  2. ज्योतिष के अनुसार चन्द्रमा और मंगल दोनो मित्र है. चन्द्रमा कर्क राशि का स्वामी है। और मंगल मेष के साथ वृश्चिक राशि का स्वामी भी है। परन्तु चन्द्रमा अपने ही मित्र मंगल की राशि वृश्चिक मे नीच का हो जाता है और मंगल भी अपने ही मित्र चन्द्रमा की राशि कर्क मे नीच का हो जाता है। यदि सिद्धांत सही होता तो अपने ही मित्र की राशि मे चन्द्रमा / मंगल नीच भी नहीँ होते। अत: इस प्रकार के अन्तर्विरोधी सिद्धांतो के आधार पर किसी निष्कर्ष पर नहीँ पहुंचा जा सकता है। और ज्योतिषी व्यक्ति के मनः स्थिति को परख कर मनोवैज्ञानिक भविष्यवाणी, जो को सामान्य बाते ही होती है – से भ्रमित करते रहते है। प्राचीन समय मे पृथ्वी को ही हमारे सौरमंडल का केन्द्र माना जाता था. इसी आधार पर फलित ज्योतिष की रचना की गई ।
    • पृथ्वी को स्थिर माना जाता था, और स्थिर पृथ्वी के गिर्द सूर्य चन्द्र आदि परिक्रमा करते ग्रह ज्योतिष का आधार है ।
    • ऋषियो के अनुसार पृथ्वी से अन्य ग्रहो की दूरी इस प्रकार थी. पृथ्वी – सूर्य – चन्द्रमा – नक्षत्र – बुध – शुक्र – मंगल – बृहस्पति – शनि ।
    • ज्योतिष मे सूर्य और चन्द्रमा दोनो ग्रह है. जब्कि सूर्य एक तारा और चन्द्रमा उपग्रह है
    • सभी राशियां और नक्षत्र विभिन्न तारो के ही समूह है, हमारे सौरमंडल से भी कई प्रकाश वर्ष दूर स्थित है ।
    • चन्द्रमा एक राशि मे २-१/४ दिन तक रहता है. क्या यह सम्भव है कि २-१/४ दिन तक एक ही रंग, आकार प्रकार, गुण, स्वभाव, प्रकृति वाले व्यक्ति उत्पन्न हो ।
    • एक ही समय मे शनि की साढे़-साती के अन्तर्गत भारत मे ही ३० करोङ व्यक्ति आते है. क्या यह सम्भव है कि सभी का बेङा गर्क हो जाए ।
    • एक दिन मे १० घन्टे मंगल दोष वाले व्यक्ति उत्पन्न होते है. यानि ४०% आबादी का वैवाहिक जीवन नर्क – ?
    • भारत मे ही १० करोङ व्यक्ति एक ही राशि के अन्तर्गत आते है. राशि फल के अनुसार सभी का दिन एक जैसा ही हो, सम्भव है ?
    • कालसर्प योग, अष्टकूट मिलान, मंगली दोष, साढे़-साती आदि का किसी भी प्राचीन ज्योतिष की किताब मे कहीँ पर उल्लेख नहीँ है ।
    • ज्योतिषी द्वारा “वैदिक ज्योतिष” शब्द से भ्रमित किया जाता है. किसी भी वेद अथवा पुराण मे “फलित” ज्योतिष का कहीं उल्लेख नहीँ है ।
    • फलित ज्योतिष के सिद्धांत रचे गए है न कि किसी वेद/पुराण से लिए गए है. इनमे फलित के सिद्धांतो का उल्लेख ही नहीँ है ।
    • प्राचीन समय मे आज के खगोलशास्त्र को ही ज्योतिष कहा जाता था – १८वीं शताब्दी तक ।
    • ऋषियो ने ज्योतिष (खगोलशास्त्र) को ही बनाया था, न कि फलित ज्योतिष को.
    • पहली बार ज्योतिष को “वेद की आंख ” भास्कराचार्य द्वितीय ने कहा था. वह भी खगोलशास्त्र को न कि फलित ज्योतिष को.
    • राशियां ऋषियोँ ने नहीँ वरन प्राचीन ग्रीस मे बनाई गई थी. किसी भी वेद मे राशियो का कहीँ पर भी उल्लेख नहीँ है ।
    • ऋषियो ने न तो फलित ज्योतिष को बनाया था, न ही वह इसका समर्थन ही करते थे
    • ग्रह नक्षत्रो से जीविका चलाने वाले व्यक्तियों को चांडाल कहा जाता था. उनका पूजा हवन यज्ञ व अन्य धार्मिक कार्य मे प्रयोग वर्जित था ।

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