आइये जाने केसे तीन चरणों में दिखाते हैं अपना असर/प्रभाव शनि देव ???—–
शनि देव जब अपनी राशि बदलते हैं तो राशियों पर साढ़ेसाती बदल जाती है। राशि बदलकर शनि देव अपना असर तीन चरणों में दिखाते हैं। ये असर साढ़े सात सप्ताह से साढ़े सात साल तक होता है। .5 नवंबर,..11 से कन्या, तुला और वृश्चिक राशि वालों पर साढ़ेसाती रहेगी । कर्क, वृश्चिक और मीन राशि वालों पर ढैय्या शुरू हो जाएगा है।
शनि की ढैय्या और साढ़ेसाती से परेशान लोगों के लिए अब अच्छा समय आने वाला है। 15 नवंबर,2011 को जैसे ही शनि देव राशि बदलेंगे वैसे ही सिंह राशि पर चल रही साढ़ेसाती खत्म हो जाएगी। सिंह राशि वाले लोग साढ़ेसाती से मुक्त हो जाएंगे। शनि के तुला राशि में आ जाने से कुंभ और मिथुन राशि पर चल रही शनि की ढ़ैय्या भी समाप्त हो जाएगी और इन राशि वालों पर शनि का कुप्रभाव खत्म हो जाएगा।
5 नवंबर को सुबह 10 बजकर 10 मिनट पर शनि देव राशि बदलेंगे और कन्या से तुला राशि में प्रवेश करेंगे और 2 नवंबर 2014 तक इसी राशि में रहेंगे। जो भारत की राशि कर्क पर शनि का ढैय्या लगाएगा। भारत के आजादी के समय की कुंडली के अनुसार भारत की राशि कर्क हैं एवं उसे पंचग्रही योग हैं। गुरु शत्रु रशि तुला में षष्ठ स्थान पर है, इसी स्थान पर शनि का प्रवेश अपने मित्र की राशि की राशि में हो रहा यहां शनि उच्च का होगा।
शनि द्वारा राशि परिवर्तन के संबंध में अभी भारत को सूर्य की महादशा चल रही हैं एवं सूर्य उसका मित्र राशि में तथा कर्क में ही स्थित है जिस पर शनि का ढैय्या लग रहा है। सूर्य शनि को एक-दूसरे का शत्रु माना जाता है।
जिस राशि में शनि देव रहते हैं उससे अगली राशि को साढ़ेसाती का पहला चरण शुरू हो जाता है। पहले चरण में यानि शुरूआत के ढाई साल में जातक का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और वह अपने उद्देश्य से भटक कर चंचल वृत्ति धारण कर लेता है, उसके अंदर स्थिरता का अभाव बना रहता है। परेशान होता रहता है। तनाव बना रहता है। छोटी छोटी बातों पर गुस्सा आने लग जाता है।
शनि के तुला में जाने का असर भारत पर भी पड़ेगा। भारत में सत्ता परिवर्तन का जोरदार योग बनेगा। जनता को भ्रमित करने के राजनेताओं के प्रयास विफल होंगे। अभी शक्तिशाली नेता आने वाले सालों में परेशानियों एवं आरोपों का सामना करेंगे। देश में कोई रोग फैलने की संभावना बनेगी जो हानिकारक होगी। शत्रु हम पर हावी होंगे ऐसी संभावनाएं बन रही है लेकिन गुरु की वजह से इनसे बचने की शक्ति भी भारत को मिल जाएगी। जुलाई 2012 से जून 201. का समय संकट पूर्ण हो सकता हैं। इस समय कई विपदाओं से जूझना पड़ सकता हैं।
इस परिवर्तन के फल स्वरूप गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, गोवा, तमिलनाडू के प्रदेशों को आतंकवादी अपना निशाना बना सकते हैं। पूर्वोत्तर राज्यों में भी इसका असर होगा। ये प्रदेश व्यापार में अन्य सभी राज्यों से आगे रहेंगे। शनि के कारण इनको खनिज, लौह, इस्पात, चमड़े आदि से बहुत लाभ होगा। विदेशों से भी फायदा होगा। भारत के पराक्रम में कमी आएगी। सभी के लिए व्यय की अधिकता बढ़ जाएगी। तेल, पेट्रोल, केरोसीन, गैस आदि के दामों से जनता त्रस्त रहेगी। देशवासियों के लिए हनुमानजी का पूजन-दर्शन एवं गण्ेाशजी को भोग लगाना लाभदायी रहेगा। शिवजी का दर्शन रोगों एवं आर्थिक हानि से रक्षा करेगा।
नवग्रह में सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली ग्रह शनिदेव इस बार अपनी उच्च राशि ‘तुला’ में आएंगे। शनि 29 साल एक माह नौ दिन में 12 राशियों का चक्र पूरा कर तुला राशि में प्रवेश करेंगे। हालांकि शनि के राशि परिवर्तन को लेकर पंचांगों में मतभेद है।
शनि देव जिस राशि में रहते हैं उस राशि वालों को साढ़ेसाती का दूसरा चरण शुरू हो जाता है। दूसरे चरण में मानसिक के साथ-साथ शारीरिक कष्ट भी उसको घेरने लगते हैं। हर वो काम जो सरलता से हो जाता है उसको करने के लिए भी मेहनत करना पड़ती है। उसकी सारी कोशिश असफल होने लगती है। किसी काम का परिणाम मेहनत के अनुसार नही मिलता।
देशभर के कम्प्यूटर गणना आधारित अधिकांश पंचांग 15 नवंबर 2011 को शनि का राशि परिवर्तन बता रहे है वहीं पारंपरिक गणना वाले कुछ पंचांगों ने यह परिवर्तन 2 नवंबर को बतलाया है।
पंडितों के अनुसार 9 सितंबर 2009 को शनि ने कन्या राशि में प्रवेश किया था। अब 15 नवंबर को सुबह 10 बजकर 10 मिनट पर कन्या से तुला राशि में प्रवेश कर, 2 नवंबर 2014 तक वे इसी राशि में रहेंगे। पूर्व में 6 अक्टूबर 1982 को शनि ने तुला राशि में प्रवेश किया था। आगे सन् 2041 में शनि पुन: तुला राशि में आएंगे।
तुला राशि में शनि उच्च के होते है और मेष राशि में नीच के। शनि का शाब्दिक अर्थ है- ‘शनै: शनै: चरति इति शनैश्चर:’ अर्थात धीमी गति से चलने के कारण यह शनैश्चर कहलाए। नवग्रहों में शनि की सबसे मंद गति है।
एक राशि में ढाई वर्ष और सभी 12 राशि के भ्रमण में शनि को लगभग 30 वर्ष का समय लगता है। चंद्र के गोचर से शनि जब 12वीं राशि में आते है तब साढ़े साती शुरू होती है।
जिस राशि में शनि होता है उससे पिछली राशि वालों को साढ़ेसाती का अखिरी चरण चल रहा होता है। दूसरे चरण के प्रभाव से ग्रस्त जातक, तीसरे चरण में अपने संतुलन को पूरी तरह रूप से खो चुका होता है और उसका गुस्सा बढ़ता जाता है। परिणाम स्वरूप हर काम का उल्टा ही परिणाम सामने आता है और उसके शत्रुओं की वृद्धि होती जाती है।
कैसे बन रहा है महासंयोग——–
इस साल की शुरुआत शनिवार से हुई थी और इस साल का आखिरी दिन भी शनिवार ही है। हिन्दु पंचांगो के अनुसार अभी क्रोधी नाम का संवत्सर चल रहा है इसके स्वामी शनि देव है। कई विद्वानों के अनुसार डेढ़ सौ साल पहले ऐसा हुआ था कि शनि अपने ही संवत्सर में अपनी उच्च राशि में आया था ।सौ सालों बाद शनि देव का दुर्लभ महासंयोग बन रहा है। अब सबकुछ बदलने वाला है क्योंकि शनि देव का स्वभाव बदलाव करना होता है।
क्या असर पड़ेगा दुर्लभ महासंयोग का—–
तुला राशि शनि की उच्च राशि है ये शनिदेव का प्रिय स्थान होता है। इस राशि में होने से शनि देव शुभ फल देने वाला रहेगा। शनि देव के बदलने से लोगों की सोच में सकारात्मक बदलाव आएंगे। ” क्रोधी ” संवत्सर में शनि के उच्च राशि में आने से हर काम का तेजी से असर होगा। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग रूक कर शांति से निर्णय लेंगे।
शनिदेव न्यायप्रिय है इसलिए न्यायपालिका की व्यवस्था बदलेगी। सुखद बदलाव देखने को मिलेंगे। भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा। गरीब देशों की अर्थव्यवस्था सुधरेगी। शनिदेव भारत को बदल देंगे।
आइये जानें की किस राशि वालों को क्या देकर जाएंगे शनि देव—-
शनि के राशी परिवर्तन का विभिन्न राशियों पर प्रभाव को संक्षेप में जानिए—
मेष : राशि से सातवें शनि आपके लिए नए व्यावसायिक प्रस्ताव लेकर आएंगे और व्यक्तिगत संबंधों में भी बढ़ोत्तरी होगी। यदि अविवाहित हैं तो विवाह के नए प्रस्ताव आयेंगे और कई व्यावसायिक संधियां भी देखने को मिलेंगी। पद-प्रतिष्ठा में बढ़ोत्तरी होगी। इस अवधि में आप अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें, कई बार क्रोध के अतिरेक में आप कुछ ऐसा कर जाएंगे जो रिश्तों में कड़वाहट ला सकता है। स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह समय महत्वपूर्ण है। नवंबर और दिसम्बर के माह की शुरुआत में पाचन संबंधी विकार हो सकते हैं या खानपान के दूषण से कठिनाई रहेगी। यदि आप नौकरीपेशा हैं तो पद-वृद्धि की संभावना अधिक है। राशि पर संचार कर रहे बृहस्पति, पंचम मंगल तथा शनि भी आपकी मदद करेंगे। ग्रहस्थिति आपके अनुकूल है और इसका लाभ आपको मिल सकता है। नौकरीपेशा लोगों के स्थानान्तरण की संभावना अधिक है। यदि आप व्यवसायी हैं तो बाहर के शहरों से नए संबंध बनेंगे और व्यापार की संभावना अधिक बढ़ जाएगी। वर्तमान स्थान से दूर यात्राएं करनी पड़ सकती हैं। भूमि-भवन आदि में निवेश कर सकते हैं अथवा कोई परिवर्तन का कार्य भी करा सकते हैं। आफिस बदलना भी इसी श्रेणी में आता है।
कुछ खर्चा घर की सुख-सुविधा बढ़ाने वाली वस्तुओं पर भी करेंगे। घर के बुजुर्गों की इच्छाओं का विशेष ध्यान रखें। वर्ष 2012 की गर्मियों के बाद आर्थिक समस्याएं कुछ कम होंगी और ऋण यदि कोई हैं तो उनके पुनर्भुगतान की स्थितियां बनेंगी। विरोधी पक्ष सक्रिय रहेगा परंतु आपका नुकसान कुछ नहीं होगा।
वृषभ : राशि से छठे शनि विरोधियों की सक्रियता को बढ़ाएंगे और आप भी उसी गति से उन पर प्रहार करेंगे। यद्यपि अंतिम विजय आपकी ही होगी परंतु फिर भी कुछ समय के लिए मानसिक परेशानी बनी रहेगी। यह अवधि पुराने ऋणों को चुकाकर नया ऋण लेने की है और भूमि और अचल संपत्ति में निवेश करने की संभावनाएं हैं। यदि नौकरीपेशा हैं तो जन्मस्थान के आसपास की यात्राएं अधिक होंगी और मनचाहे स्थान पर स्थानान्तरण की संभावनाएं भी अधिक प्रबल हैं। यदि विवाहित हैं तो जीवनसाथी का स्वास्थ्य प्रभावित होगा, साथ ही व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में कुछ आरोप आप पर लगेंगे जिनके निराकरण आपको करने ही होंगे। यदि अविवाहित हैं तो अपने संबंधों को संभाले रखने के लिए आपको अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी। ऐसे कोई काम ना करें जो आपको शक के दायरे में ले आए।इस समय नई चीजें सीखने, ज्ञान पाने और रहस्यविद्याओं में रुचि बढ़ेगी, धार्मिक स्थलों की यात्रा होगी और धन भी परोपकारी कामों में खर्च होगा। भूमि संबंधी विवाद फरवरी 2012 के आसपास जन्म ले सकता है अत: भूमि संबंधी मामलों में सावधानी बरतनी आवश्यक है। मातृपक्ष से लाभ मिलेगा। पुराना वाहन बदलने की सोच सकते हैं। इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं की खरीद घर के लिए करेंगे। वर्ष 2012 के द्वितीयाद्र्ध में पद संबंधी विशेष बातें सामने आएंगी। यदि नौकरीपेशा है और बदलाव की सोचते हैं तो वह इस अवधि में संभव है। जीवनसाथी को लाभ होगा। यदि वे कार्यरत हैं तो उन्नति की संभावनाएं है और यदि कार्य व्यवसाय उनके नाम से है तो उसमें भी लाभ की संभावनाएं अधिक हैं।
मिथुन : पद संबंधी विशेष बातें सामने आएंगी, साथी का स्वास्थ्य प्रभावित होगा। कुटुंब संबंधी मामलों में विशेष हलचल देखने को मिलेगी और आपको उनको सुलझाने के लिए दखलदाजी करनी ही पड़ेगी। आय के नए स्त्रोत बनेंगे। छोटे भाई-बहिनों के लिए लाभदायक स्थिति है। विरोधियों के ऊपर आपका वर्चस्व बना रहेगा परंतु स्वास्थ का विशेष ध्यान रखना होगा। किसी छोटी-समस्या की भी अनदेखी ना करें। साथी के नाम से किए जाने वाले कामों में लाभ मिलेगा। जो लोग अविवाहित हैं उनके विवाह संबंधी बातें चलेंगी और गति बढ़ेगी। विवाहित लोगों के लिए समय शुभ रहेगा। यदि आपका व्यवसाय विदेशी मामलों से संबंध रखता है तो उसमें भी लाभ की मात्रा बढ़ेगी। यदि नौकरीपेशा हैं तो भी स्थान या नौकरी बदलने की सोच सकते हैं।
जून 2012 के द्वितीयाद्र्ध में आपको विशेष सावधानी बरतनी होगी। खासतौर से मई और जून के महीने में खर्च की अधिकता रहेगी और कुछ ऐसे खर्च होंगे जिन्हें आप नहीं चाहते हैं। यद्यपि आर्थिक लाभ भी बराबर बने रहेंगे परंतु फिर भी मानसिक परेशानी रहेगी। अचल संपत्ति का कोई मामला हल हो सकता है। 16 मई, 2012 से 04 अगस्त, 2012 के बीच आप पुन: शनि की ढैया के प्रभाव में रहेंगे अत: इस समय में आपको विशेष सावधानी रखनी होगी और शनिदेव को प्रसन्न करने के सभी उपाय करने होंगे।
कर्क : इस समय आप शनि की ढैया में प्रवेश कर रहे हैं तथा यह ढैया 15 नवम्बर, 2011 से 03 नवम्बर 2014 तक रहेगी। जब तक शनि तुला राशि मेें रहेंगे, यह ढैया चलेगी। इस समय एक तरफ आपको अपनी वाणी और क्रोध पर नियंत्रण रखना होगा तो दूसरी तरफ भूमि संबंधी विशेष मामले आपका उत्साह बढ़ाएंगे। शत्रुओं की गतिविधियों को आप नियंत्रण में कर लेंगे। सार्वजनिक स्थल पर आपकी प्रशंसा होगी। जीवनसाथी से संबंधित मामलों में भी अच्छे परिणाम सामने आएंगे। यदि अविवाहित हैं तो कुछ नए प्रस्ताव आयेंगे। विवाहित व्यक्तियों को संंतान संबंधी कोई समस्या हो सकती है परंतु बृहस्पतिदेव अनुकूल हैं और आगे लाभ दे देंंगे जिसकी वजह से कोई बड़ी परेशानी सामने नहीं आएगी।
वर्ष 2012 के द्वितीयाद्र्ध में विशेष रूप से जून के महीने में आय बढ़ेगी, छोटे भाई-बहिनों को फायदा होगा और पद-उन्नति की संभावना है। व्यावसायिक भागीदारी बढ़ सकती है अथवा कोई नया प्रस्ताव सामने आ सकता है। द्वितीयाद्र्ध में मई से अगस्त तक लगभग संतान की किसी ना किसी बात से परेशान रहेंगे परंतु अगस्त के बाद समस्याएं हल हो जाएंगी।
सिंह : इस समय आप साढ़ेसाती के प्रभाव से मुक्त हो गए है तथा पिछले समय से चल रही परेशानियां अब कुछ कम हो जाएंगी। शनि अपनी उच्च राशि में हैं और आपको कोई बड़ा निर्णय लेने का साहस देंगे। आप कोई ऐसा व्यावसायिक निर्णय ले सकते हैं या बदलाव की सोच सकते हैं जो भविष्य के लिए लाभ सुरक्षित कर रहा हो। भाग्य में वृद्धि होगी परंतु आपको इस अवधि में अपने क्रोध पर थोड़ा नियंत्रण रखना होगा। खाने-पीने की ओर भी विशेष ध्यान देना होगा। भूमि संबंधी कोई निवेश यदि करते हैं तो सावधानी बरतनी होगी। कानूनी दस्तावेजों की जांच आवश्यक रूप से कर लेें।
16 मई, 2012 से 04 अगस्त, 2012 के बीच एक दौर साढ़ेसाती का रहेगा। इस समय में आपको विशेष सावधानी रखनी है और शनिदेव को प्रसन्न करने के सभी उपाय करने होंगे।
कन्या : इस समय आप साढ़ेसाती के दूसरे चरण में प्रवेश कर रहे हैं तथा इसके प्रभाव में आप 03 नवंबर 2014 तक रहेंगे। पारिवारिक संबंधों में बढ़ोत्तरी होगी और परिवार में कुछ अच्छे कार्य भी होंगे। ज्ञान प्राप्ति में रुचि बढ़ेगी और रहस्यविद्याओं की तरफ आपका ध्यान ज्यादा होगा। आर्थिक लाभ बढ़ेगा लेकिन खर्च भी उसी अनुपात में हो जाएगा। किसी अचल संपत्ति का निस्तारण यदि करना चाहते हैं तो इस समय आप कर सकते हैं। जन्मस्थान से दूर यात्राएं होंगी और कोई बड़ा निर्णय आप ले सकते हैं। बड़े भाई-बहिनों के लिए थोड़ी परेशानी हो सकती है और उनके कामों में कोई बाधा आ सकती है। अविवाहित लोगों के विवाह संबंध की बात चल सकती है। यदि विवाहित हैं तो जीवनसाथी के स्वभाव में थोड़ी गर्मी रहेगी आपको धीरज का परिचय देना होगा।
वर्ष के द्वितीयाद्र्ध में भाग्य में बढ़ोत्तरी होगी और बृहस्पति देव आपकी मदद करेंगे। यदि नौकरीपेशा हैं तो लाभ अधिक मिलेगा। छोटे भाई-बहिनों के लिए भी समय शुभ है।
तुला : इस समय आप साढ़ेसाती के के दूसरी ढैया में प्रवेश कर रहे हैं और इसके प्रभाव में आप 26 जनवरी 2017 तक रहेंगे। यह समय नए व्यावसायिक प्रस्ताव पाने का है और उनमें से किसी एक को आप स्वीकार कर सकते हैं। आय के साधन बढ़ेंगे और साथ ही कुछ धन आप अपने पारिवारिक संपत्ति को बढ़ाने के लिए खर्च करेंगे। पद संबंधी लाभ होगा, ऋण का पुनर्भुगतान हो सकता है। विरोधियों पर विजय पाने में भी आप सफल होंगे। यदि नौकरीपेशा हैं तो थोड़ा सावधान रहने की आवश्यकता है।
वर्ष 2012 के द्वितीयाद्र्ध में रहस्यविद्याओं और ज्ञान में रुचि बढ़ेगी। पारिवारिक विवाद यदि कोई हैं तो उनके सुलझने के आसार हंै। भूमि-भवन में निवेश की संभावनाएं बढ़ेंगी और जन्मस्थान के आसपास रहने के अवसर ज्यादा मिलेंगे। तीर्थस्थान की यात्राएं होंगी। ऋण यदि कोई हैं तो उनके पुनर्भुगतान की संभावना अधिक रहेगी।
वृश्चिक : आप साढ़ेसाती के दौर में प्रवेश कर रहे हैं तथा यह 15 नवंबर 2011 से 24 जनवरी 2020 तक रहेगी। इस अवधि में लाभ बढ़ेंगे। कार्यस्थल पर आपका वर्चस्व बढ़ेगा परंतु खर्च भी अपेक्षा से अधिक होगा। पारिवारिक विवाद जन्म ले सकते हैं, उनको सुलझाने के लिए आपको प्रयास करने होंगे। ऋण यदि कोई हैं तो उनके पुनर्भुगतान वर्ष 2012 के द्वितीयाद्र्ध तक कुछ हद तक कर पायेंगे। यदि विवाहित हैं तो जीवनसाथी का स्वास्थ्य प्रभावित होगा और यदि अविवाहित हैं तो संबंधों को सावधानी से आगे बढ़ाएं। यदि नौकरीपेशा हैं तो आपके प्रभाव में वृद्धि होगी और यदि स्वयं का व्यवसाय है तो भी प्रभाव क्षेत्र कम नहीं रहेगा।
वर्ष के द्वितीयाद्र्ध में व्यक्तिगत और व्यावसायिक संबंधों में बहुत अधिक सावधानी बरतनी होगी, विशेष रूप से जून 2012 इन संबंधों के लिए कुछ कठिन रहेगा। यात्राएं बहुत अधिक होंगी। संभव है कि कोई विदेश यात्रा भी कर लें।
धनु : इस समय आर्थिक लाभ अधिक होगा और आप खर्च की नई योजनाएं भी उसी हिसाब से बनाएंगे। कोई बड़ा और विशेष निर्णय ले लेंगे। रहस्यविद्याओं में रुचि बढ़ेगी परंतु स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना होगा। यदि नौकरी करते हैं तो वर्ष 2011 के अंतिम महीने और 2012 का प्रथमाद्र्ध बहुत शुभ जाने वाला है।
वर्ष के द्वितीयाद्र्ध में स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान देना होगा। कुछ नए ऋण विशेष कारणों से ले सकते हैं। यदि नौकरीपेशा हैं तो आपकी नीतियों की पालना भी होगी और उनके लिए प्रशंसा भी मिलेगी। खर्च की अधिकता रहेगी और अनपेक्षित, अचानक कोई खर्च करना पड़ सकता है। अगस्त 2012 के बाद आर्थिक लाभ बढ़ जाएंगे। कुटुंब से भी सहयोग मिलेगा।
मकर : इस अवधि में काम के घंटे बढ़ जाएंगे और कार्यक्षेत्र का भी विस्तार होगा। यात्राएं अधिक होंगी और उन पर खर्च भी उसी अनुपात में करेंगे। स्थान बदलने की यदि सोच रहे हैं तो वर्ष 2012 के प्रथमाद्र्ध तक यह कदम उठा सकते हैं। आय की मात्रा बढ़ेगी परंतु आपको यह भी ध्यान रखना होगा कि वह आय नीतिगत तरीकों से ही अर्जित की जाए। पाचन संबंधी विकार हो सकते हैं। व्यावसायिक भागीदारी यदि कोई हैं तो उसे सावधानीपूर्वक आगे ले जाए। निर्माण कार्यों पर भी कुछ धन खर्च होगा।
वर्ष के द्वितीयाद्र्ध में पूर्व में चले आ रहे अनावश्यक खर्चों पर रोक लगेगी और धन कमाने के लिए आपको कुछ अतिरिक्त प्रयास जून 2012 से अगस्त 2012 के मध्य करने होंगे। इसके बाद आर्थिक समस्याएं नहीं रहेंगी, काम के घंटे लगातार बढ़ेंगे और आपको अपेक्षा से अधिक समय अपने कार्यस्थल पर देना होगा। यदि नौकरी करते हैं तो लाभ की स्थितियां रहेंगी।
कुंभ : इस अवधि में भाग्य बढ़ेगा। पुराने खर्चों पर रोक लगेगी और विरोधियों की गतिविधियों पर नियंत्रण करने में सफल रहेंगे। शत्रु पक्ष परास्त होगा। यदि विवाहित हैं तो जीवनसाथी का स्वास्थ प्रभावित हो सकता है। यदि अविवाहित हैं तो संबंधों में दरार आ सकती है। नौकरी करते हैं तो कार्यक्षेत्र में प्रभाव बढ़ेगा और पदोन्नति की संभावनाएं भी अधिक हैं।
16 मई, 2012 से 04 अगस्त, 2012 के बीच आप शनि की ढैया के प्रभाव में रहेंगे अत: इस समय में आपको विशेष सावधानी रखनी होगी। इसी अवधि में मातृपक्ष से कुछ समस्याएं होंगी और एक कठिनाई का दौर रहेगा। यदि आप नौकरीपेशा हैं तो अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए काम करें अन्यथा परेशानी हो सकती है। भूमि संबंधी कोई विवाद जन्म ले सकता है।
मीन : इस समय आप शनि की ढैया में प्रवेश कर रहे हैं तथा यह ढैया 15 नवम्बर, 2011 से 03 नवम्बर 2014 तक रहेगी। यदि आप नौकरीपेशा हैं तो आपको सावधान रहना होगा। बॉस अथवा अन्य उच्चाधिकारियों से व्यर्थ विवाद में नहीं पड़ें अन्यथा संभव है कि आपको नौकरी बदलनी पड़े। आपको चाहिए कि इस पूरी अवधि में शनिदेव के पूजा-पाठ करते रहें। यदि व्यवसाय करते हैं तो उसमें भी बदलाव के संकेत हैं। कोई ऋण प्रबंधन करना पड़ सकता है। शत्रुओं पर यद्यपि आप हावी रहेंगे परंतु फिर भी कोई ना कोई परेशानी बनी रहेगी।
डरें /घबराएँ नहीं शनि की साढ़े साती से..येशुभ/लाभकारी भी होती हें—
शनि की ढईया और साढ़े साती का नाम सुनकर बड़े बड़े पराक्रमी और धनवानों केचेहरे की रंगत उड़ जाती है। लोगों के मन में बैठे शनि देव के भय का कई ठगज्योतिषी नाज़ायज लाभ उठाते हैं। विद्वान ज्योतिषशास्त्रियों की मानें तोशनि सभी व्यक्ति के लिए कष्टकारी नहीं होते हैं। शनि की दशा के दौरान बहुतसे लोगों को अपेक्षा से बढ़कर लाभसम्मान व वैभव की प्राप्ति होती है।कुछ लोगों को शनि की इस दशा के दौरान काफी परेशानी एवं कष्ट का सामना करनाहोता है। देखा जाय तो शनि केवल कष्ट ही नहीं देते बल्कि शुभ और लाभ भीप्रदान करते हैं (। हम विषय की गहराई में जाकर देखें तो शनि का प्रभाव सभी व्यक्ति परउनकी राशिकुण्डली में वर्तमान विभिन्न तत्वों व कर्म पर निर्भर करता हैअत: शनि के प्रभाव को लेकर आपको भयग्रस्त होने की जरूरत नहीं है।आइयेहम देखे कि शनि किसी के लिए कष्टकर और किसी के लिए सुखकारी तो किसी कोमिश्रित फल देने वाला कैसे होता है। ज्योतिषशास्त्री बताते हैं यह ज्योतिषका गूढ़ विषय है जिसका उत्तर कुण्डली में ढूंढा जा सकता है। साढ़े साती केप्रभाव के लिए कुण्डली में लग्न व लग्नेश की स्थिति के साथ ही शनि औरचन्द्र की स्थिति पर भी विचार किया जाता है। शनि की दशा के समय चन्द्रमाकी स्थिति बहुत मायने रखती है। चन्द्रमा अगर उच्च राशि में होता है तो आपमें अधिक सहन शक्ति आ जाती है और आपकी कार्य क्षमता बढ़ जाती है जबकिकमज़ोर व नीच का चन्द्र आपकी सहनशीलता को कम कर देता है व आपका मन काम मेंनहीं लगता है जिससे आपकी परेशानी और बढ़ जाती है।जन्म कुण्डलीमें चन्द्रमा की स्थिति का आंकलन करने के साथ ही शनि की स्थिति का आंकलनभी जरूरी होता है। अगर आपका लग्न वृषमिथुनकन्यातुलामकर अथवा कुम्भहै तो शनि आपको नुकसान नहीं पहुंचाते हैं बल्कि आपको उनसे लाभ व सहयोगमिलता है (। उपरोक्त लग्न वालों केअलावा जो भी लग्न हैं उनमें जन्म लेने वाले व्यक्ति को शनि के कुप्रभाव कासामना करना पड़ता है। ज्योतिर्विद बताते हैं कि साढ़े साती का वास्तविकप्रभाव जानने के लिए चन्द्र राशि के अनुसार शनि की स्थिति ज्ञात करने केसाथ लग्न कुण्डली में चन्द्र की स्थिति का आंकलन भी जरूरी होता है।शनिअगर लग्न कुण्डली व चन्द्र कुण्डली दोनों में शुभ कारक है तो आपके लिएकिसी भी तरह शनि कष्टकारी नहीं होता है (। कुण्डली में अगर स्थिति इसके विपरीत है तो आपको साढ़े साती केदौरान काफी परेशानी और एक के बाद एक कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। अगरचन्द्र राशि आर लग्न कुण्डली उपरोक्त दोनों प्रकार से मेल नहीं खाते होंअर्थात एक में शुभ हों और दूसरे में अशुभ तो आपको साढ़ेसाती के दौरान मिलाजुला प्रभाव मिलता है अर्थात आपको खट्टा मीठा अनुभव होता है।निष्कर्षके तौर पर देखें तो साढ़े साती भयकारक नहीं है शनि चालीसा (में एक स्थान पर जिक्र आया है “गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । हय ते सुखसम्पत्ति उपजावैं।।गर्दभ हानि करै बहु काजा । गर्दभ सिद्घ कर राजसमाजा ।। श्लोक के अर्थ पर ध्यान दे तो एक ओर जब शनि देव हाथी पर चढ़ करव्यक्ति के जीवन प्रवेश करते हैं तो उसे धन लक्ष्मी की प्राप्ति होती तोदूसरी ओर जब गधे पर आते हैं तो अपमान और कष्ट उठाना होता है। इस श्लोक सेआशय यह निकलता है कि शनि हर स्थिति में हानिकारक नहीं होते अत: शनि से भयखाने की जरूरत नहीं है। अगर आपकी कुण्डली में शनि की साढ़े साती चढ़ रहीहै तो बिल्कुल नहीं घबराएं और स्थिति का सही मूल्यांकण करें।
जिन राशियों पर साढ़ेसाती तथा ढैया प्रभाव है, वे शनि के निम्न उपाय करें तो अशुभ फल से बचा जा सकता है—–
जिस प्रकार हर पीला दिखने वाला धातु सोना नहीं होता उस प्रकार जीवन में आने वाले सभी कष्ट का कारण शनि नहीं होता। आपके जीवन में सफलता और खुशियों में बाधा आ रही है तो इसका कारण अन्य ग्रहों का कमज़ोर या नीच स्थिति में होना भी हो सकता है। आप अकारण ही शनिदेव को दोष न दें, शनि आपसे कुपित हैं और उनकी साढ़े साती चल रही है अथवा नहीं पहले इस तत्व की जांच करलें फिर शनि की साढ़े साती के प्रभाव में कमी लाने हेतु आवश्यक उपाय करें।
ज्योतिषशास्त्री कहते हैं शनि की साढ़े साती के समय कुछ विशेष प्रकार की घटनाएं होती हैं जिनसे संकेत मिलता है कि साढ़े साती चल रही है। शनि की साढ़े साती के समय आमतौर पर इस प्रकार की घटनाएं होती है जैसे घर कोई भाग अचानक गिर जाता है। घ्रर के अधिकांश सदस्य बीमार रहते हैं, घर में अचानक अग लग जाती है, आपको बार-बार अपमानित होना पड़ता है। घर की महिलाएं अक्सर बीमार रहती हैं, एक परेशानी से आप जैसे ही निकलते हैं दूसरी परेशानी सिर उठाए खड़ी रहती है। व्यापार एवं व्यवसाय में असफलता और नुकसान होता है। घर में मांसाहार एवं मादक पदार्थों के प्रति लोगों का रूझान काफी बढ़ जाता है। घर में आये दिन कलह होने लगता है। अकारण ही आपके ऊपर कलंक या इल्ज़ाम लगता है। आंख व कान में तकलीफ महसूस होती है एवं आपके घर से चप्पल जूते गायब होने लगते हैं।
आपके जीवन में जब उपरोक्त घटनाएं दिखने लगे तो आपको समझ लेना चाहिए कि आप साढ़े साती से पीड़ित हैं। इस स्थिति के आने पर आपको शनि देव के कोप से बचने हेतु आवश्यक उपाय करना चाहिए। ज्योतिषाचार्य साढ़े साती के प्रभाव से बचने हेतु कई उपाय बताते हैं आप अपनी सुविधा एवं क्षमता के आधार पर इन उपायों से लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आप साढ़े साती के दुष्प्रभाव से बचने क लिए जिन उपायों को आज़मा सकते हैं वे निम्न हैं:
शनिदेव भगवान शंकर के भक्त हैं, भगवान शंकर की जिनके ऊपर कृपा होती है उन्हें शनि हानि नहीं पहुंचाते अत: नियमित रूप से शिवलिंग की पूजा व अराधना करनी चाहिए। पीपल में सभी देवताओं का निवास कहा गया है इस हेतु पीपल को आर्घ देने अर्थात जल देने से शनि देव प्रसन्न होते हैं। अनुराधा नक्षत्र में जिस दिन अमावस्या हो और शनिवार का दिन हो उस दिन आप तेल, तिल सहित विधि पूर्वक पीपल वृक्ष की पूजा करें तो शनि के कोप से आपको मुक्ति मिलती है। शनिदेव की प्रसन्नता हेतु शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए।
शनि के कोप से बचने हेतु आप हनुमान जी की आराधाना कर सकते हैं, क्योंकि शास्त्रों में हनुमान जी को रूद्रावतार कहा गया है। आप साढ़े साते से मुक्ति हेतु शनिवार को बंदरों को केला व चना खिला सकते हैं। नाव के तले में लगी कील और काले घोड़े का नाल भी शनि की साढ़े साती के कुप्रभाव से आपको बचा सकता है अगर आप इनकी अंगूठी बनवाकर धारण करते हैं। लोहे से बने बर्तन, काला कपड़ा, सरसों का तेल, चमड़े के जूते, काला सुरमा, काले चने, काले तिल, उड़द की साबूत दाल ये तमाम चीज़ें शनि ग्रह से सम्बन्धित वस्तुएं हैं, शनिवार के दिन इन वस्तुओं का दान करने से एवं काले वस्त्र एवं काली वस्तुओं का उपयोग करने से शनि की प्रसन्नता प्राप्त होती है।
साढ़े साती के कष्टकारी प्रभाव से बचने हेतु आप चाहें तो इन उपायों से भी लाभ ले सकते हैं। शनिवार के दिन शनि देव के नाम पर आप व्रत रख सकते हैं। नारियल अथवा बादाम शनिवार के दिन जल में प्रवाहित कर सकते हैं। शनि के कोप से बचने हेतु नियमित 108 बार शनि की तात्रिक मंत्र का जाप कर सकते हैं स्वयं शनि देव इस स्तोत्र को महिमा मंडित करते हैं। महामृत्युंजय मंत्र काल का अंत करने वाला है आप शनि की दशा से बचने हेतु किसी योग्य पंडित से महामृत्युंजय मंत्र द्वारा शिव का अभिषेक कराएं तो शनि के फंदे से आप मुक्त हो जाएंगे।
निष्कर्ष के तौर पर हम यह समझ सकते हैं कि जीवन में मुश्किलें तो हज़ार आती हैं, सिकन्दर वही होता है जो मुश्किलों से टकाराकर आगे बढ़ता है।निकालो रास्ता ऐसा जिससे आप हों बुलंद, मुश्किलें देखकर आपको, फिर देखना कैसे रूख बदलता है।।कहना यही है कि साढ़े साती से आपको बिल्कुल भयभीत होने की जरूरत नहीं है, आप कुशल चिकित्सक की तरह मर्ज़ को पहचान कर उसका सही ईलाज़ करें।
बिगड़े हुए शनि अथवा इसकी साढ़ेसाती के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए अनेक सरल और मनोवैज्ञानिक उपाय हैं । जैसे अपना काम स्वयं करना, फिजूल खर्च से बचना, कुसंगति से दूर रहना, बुजुर्गों का आदर करना, दान पुण्य के तौर पर दीन दुखी की सहायता करना, अन्न- वस्त्र दान समाज सेवा व परोपकार से अभिप्रेरित होकर शनि का दुष्प्रभाव घटता जाता है। अनेक सज्जन शनिवार के दिन तेल खिचड़ी फल सब्जी आदि का भी दान कर सकते हैं ।शनि दान जप आदि करने से साढ़ेसाती के फल पीडादायक नहीं होते हैं। गुरूद्वारा मंदिर देवालय तथा सार्वजनिक स्थलों की स्वयं साफ सफाई करने रोगी और अपंग व्यक्तियों को दान देने से भी शनि की शांति होती है।
शनि के लिए काले द्रव्यों से पूजा होती है और काली वस्तुएँ दान दी जाती हैं। तिल, तेल और लोहा शनि के लिए दान की प्रिय वस्तुएँ हैं। शनि का पूजा-पाठ, शनि का दर्शन और जन्मपत्रिका के निर्णय के आधार पर शनि के रत्न नीलम का धारण करना अच्छा रहता है। शनि निम्न वर्ग के प्रतिनिधि हैं अत: गरीब, मजदूर, निर्बल और बेसहारा लोगों की सेवा करने पर शनिदेव प्रसन्न होते हैं। छोटे कर्मचारी वर्ग के ग्रह भी शनि ही हैं अत: इन वर्गो की सेवा करने या उन्हें सुख देने या दान देने से शनि प्रसन्न होते हैं।
प्रतिदिन लोबान युक्त बत्ती सरसों तेल के दीये में डालकर शाम को पीपल की जड़ में दीपक जलाएं।
कच्चे धागे को सात बार पीपल के पेड़ में लपेटें।
बन्दरों को गुड़ और चना, भैसों को उड़द के आटे की रोटी खिलाएं।
जटायुक्त कच्चे नारियल सिर के ऊपर से 11 बार उतार कर 11 नारियल बहते जल में प्रवाहित करें।
काला कपड़ा, कंबल और छाया पात्र दान करें।
शनि ग्रह की प्रिय वस्तुएं जैसे गाली गाय, काला कपड़ा, तेल, उड़द, खट़टा-कसैला पदार्थ, काले पुष्प, चाकू, छाता, काली चप्पल और काले तिल आदि का शनिवार के दिन दान करना चाहिए।
शनि का रत्न नीलम, जामुनिया, कटेला पांच रत्ती से ऊपर का धारण करना चाहिए।
पीपल के पेड़ के नीचे प्रदोष काल में कड़ुए तेल का दीपक जलाना चाहिए। तिल्ली के तेल का दीपक भी जला सकते हैं। काला तिल चढ़ाने से विशेष लाभ मिलता है।
शनिवार को सायंकाल बूढ़े-बुजुर्ग की सेवा करनी चाहिए।
काले घोड़े की नाल का छल्ला पहनना उत्तम माना जाता है।
भैंसा या घोड़े को शनिवार के दिन काला देशी चना खिलाने से शनि जी प्रसन्न होते हैं।
शनिवार के दिन पुष्प नक्षत्र होने पर बिछुआ बूटी की जड़ एवं शमी (छोकर) की जड़ को काले धागे में बांधकर दाहिनी भुजा में धारण करने से शनि का प्रभाव कम होता है।
मंगलवार, शनिवार व्रत से शनि जी प्रसन्न होते हैं। बजरंगबाण का पाठ और हनुमान जी आराधना भी साढ़ेसाती/ढैया में विशेष रूप से प्रभावकारी मानी गई है।
शनि-मंगल मंत्र का जाप:—-
ऊं शं शनैश्चराय नम:।
ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:।
ऊं हं हनुमते नम:।
शनि के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए इन मंत्रों का 23000 की संख्या में जाप करना चाहिए। इसके अलावा व्रत, रत्न, अन्धविद्यालय एवं कुष्ठाश्रम में दान करके भी शनि के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
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