भगवान श्री गणेश के सिद्ध मंत्र—–



लम्बोदर के प्रमुख चतुर्वर्ण हैं। सर्वत्र पूज्य सिंदूर वर्ण के हैं। इनका स्वरूप व फल सभी प्रकार के शुभ व मंगल भक्तों को प्रदान करने वाला है। नीलवर्ण उच्छिष्ट गणपति का रूप तांत्रिक क्रिया से संबंधित है। शांति और पुष्टि के लिए श्वेत वर्ण गणपति की आराधना करना चाहिए। शत्रु के नाश व विघ्नों को रोकने के लिए हरिद्रा गणपति की आराधना की जाती है। 


 

गणपतिजी का बीज मंत्र ‘गं’ है। इनसे युक्त मंत्र- ‘ॐ गं गणपतये नमः’ का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। षडाक्षर मंत्र का जप आर्थिक प्रगति व समृद्धि प्रदायक है

ॐ वक्रतुंडाय हुम्‌
किसी के द्वारा नेष्ट के लिए की गई क्रिया को नष्ट करने के लिए, विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए उच्छिष्ट गणपति की साधना करना चाहिए। इनका जप करते समय मुँह में गुड़, लौंग, इलायची, पताशा, ताम्बुल, सुपारी होना चाहिए। यह साधना अक्षय भंडार प्रदान करने वाली है। इसमें पवित्रता-अपवित्रता का विशेष बंधन नहीं है।
 


उच्छिष्ट गणपति का मंत्र–

ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा 

आलस्य, निराशा, कलह, विघ्न दूर करने के लिए विघ्नराज रूप की आराधना का यह मंत्र जपें –

गं क्षिप्रप्रसादनाय नम: 

विघ्न को दूर करके धन व आत्मबल की प्राप्ति के लिए हेरम्ब गणपति का मंत्र जपें – 

ॐ गं नमः’ 

रोजगार की प्राप्ति व आर्थिक वृद्धि के लिए लक्ष्मी विनायक मंत्र का जप करें- 

ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा। 

विवाह में आने वाले दोषों को दूर करने वालों को त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्र का जप करने से शीघ्र विवाह व अनुकूल जीवनसाथी की प्राप्ति होती है- 

ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा

इन मंत्रों के अतिरिक्त गणपति अथर्वशीर्ष, संकटनाशन गणेश स्तोत्र, गणेशकवच, संतान गणपति स्तोत्र, ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र, मयूरेश स्तोत्र, गणेश चालीसा का पाठ करने से गणेशजी की कृपा प्राप्त होती है।


भगवान श्रीगणेश गजमुखी गणेश—


भगवान श्रीगणेश जन्म के बारे में भारतीय धर्म स्थूल के सात सूक्ष्य को लेकर अर्थात बाह्यï रूप और अध्यात्म अर्थ दोनों के मिलने से बनना बताते है । इस दृष्टि से गणपति तत्व पर विचार करे, तो कई तथ्य सामने आते हैं । गणेश के बाह्यï रूप की व्याख्या भी हो जाती है । गणेश को शिव पार्वती का पुत्र माना गया है । वस्तुत: शिव और पार्वती अद्र्धनारीश्वर देवता माने गए हैं । दक्षिणांग नर और वामांग नारी । यही नर नारी रूप शिव पार्वती सोमा के रूप है । अग्नि और सोम के संयोग से सृष्टि आरंभ होती है । अग्नि में सोम के प्रतिनिधि गणेस है। कई स्त्रोतों में गणेश को ब्राह्मïणस्पति और ज्येष्ठराज कहा गया है । गणेश को शिव पार्वती का पुत्र माना गया है । किन्तु पुराणों में इस संबंध में काफी मतभेद है । ब्रह्यïवैवर्त, स्कन्द और लिंग पुराण के अनुसार गणेश का जन्म आयोजित है । एक अनुश्रुति के अनुसार गणेश का जन्म शिव से हुआ है । उन्होंने तप से एक तेजस्वी बालक का निर्माण किया और पार्वती ने उसका पालन पोषण किया । बाद में उस बालक के प्रति द्वेष होने पर शिव ने उसे शाप देकर कुरूप बना दिया । एक अन्य कहानी में , एक दिन पार्वती ने अपने शरीर से जो पसीना भूमि पर गिराया, वही बालक बनकर प्रकट हो गया । उस बालक को द्वार पर बैठाकर पार्वती स्नान करने चली गी । कुछ समय पश्चात शिवजी वहां आए उन्होंने गणेश को देख तो दंगरह गए , शिव को बालक गणेश ने भीतर जाने से रोका, तो शिव ने कुपित होकर गणेश को मस्तक विहीन कर दिया । पार्वती के विलाप करने पर शिव ने इन्द्र के हाथी का मस्तक काटकर बालक के धड़ पर रख दिया । तभी से वे गजानन हो गए । ब्रह्मïयवैवर्त पुराण के अनुसार शनि की कुदृष्टि से गणे का सिर गल गया । तब शोकाकुल माता पार्वती सृष्टि के रचयिता ब्रह्मïजी के पास पहुंची । ब्रह्मा ने कहा, तुम्हें जो प्रथम प्राणी दिखे उसका सिर लाओ । मैं उसे गणेश के धड़ पर लगाकर सजीव बना दूंगा । पार्वती को सर्वप्रथम गज मस्तक ही मिला, उसी को ब्रह्मïजी ने धड़ से जोड़ दिया । पद्यपुराण और शिव पुराण में भी गणेश के आयोनिज जन्म की कथा मिलती है एक अन्य कल्पना के अनुसार शिव पार्वती दोनों गजचण्र्म धारम करते हैं ।

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