भगवान शिव को यह मास अतिप्रिय है। श्रावण मास लगते ही जहां मन में सुकून और ठंडक का अहसास होता है, वहीं धरती पर हरियाली लहराने लगती है। प्रकृति को सजा-संवरा देख वन-उपवन में मयूर नाचने लगते हैं। मेघ मल्हार गाते हैं और श्रावण के स्वागत में हर दिल में सावन के गीत गूंज उठते हैं कि सावन को आने दो…
भगवान शिव की पूजा-अर्चना का पवित्र महीना श्रावण मास शुरू हो गया है। प्रथम श्रावण सोमवार, 18 जुलाई को मनाया जाएगा। शिवालयों में अलसुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगेगी तथा बम-बम भोले से मंदिर गुंजायमान होंगे।
माना जाता है कि शिव के त्रिशूल की एक नोक पर काशी विश्वनाथ की नगरी का भार है। उसमें श्रावण मास भी अपना विशेष महत्व रखता है। इसलिए श्रावण का महीना अधिक फल देने वाला होता है।
श्रावण माह में एक बिल्वपत्र शिव को चढ़ाने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। एक अखंड बिल्वपत्र अर्पण करने से कोटि बिल्वपत्र चढ़ाने का फल प्राप्त होता है।
इस मास के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर शिवामुट्ठी चढ़ाई जाती है। इससे सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं तथा मनुष्य अपने बुरे कर्मों से मुक्ति पा सकता है।
प्रथम सोमवार को कच्चे चावल एक मुट्ठी।
दूसरे सोमवार को सफेद तिल्ली एक मुट्ठी।
तीसरे सोमवार को खड़े मूंग की एक मुट्ठी।
चौथे सोमवार को जौ एक मुट्ठी।
पांचवें सोमवार को सतुआ चढ़ाना चाहिए।
साथ ही भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने के लिए शिव को कच्चा दूध, सफेद फल, भस्म तथा भांग, धतूरा, श्वेत वस्त्र अधिक प्रिय है। श्रावण मास में शिवभक्तों द्वारा शिव पुराण, शिवलीलामृत, शिव कवच, शिव चालीसा, शिव पंचाक्षर मंत्र, शिव पंचाक्षर स्त्रोत, महामृत्युंजय मंत्र का पाठ एवं जाप किया जाता है। श्रावण मास में इसके करने से अधिक फल प्राप्त होता है।
आषाढ़ में गरज-चमक के साथ बदरवा बरसते हैं तो सावन में सेरे आते हैं वहीं भादौ में लगती है बारिश की झड़ी, लेकिन व्रत-त्योहार की झड़ी श्रावण से लगेगी जो भादौ, क्वांर व कार्तिक मास तक चलेगी। माह के अन्य व्रत त्योहारों के अलावा हरियाली अमावस्या, नागपंचमी, रक्षाबंधन विशेष रूप से होंगे।