ये गृह दिलवाएंगे प्रोपर्टी निवेश में कामयाबी–
आजकल जमीन-जायदाद में निवेश करना फायदे का सौदा साबित हो रहा है। प्रोपर्टी में निवेश के ग्रह नक्षत्रों का संबंध ज्योतिष से गहरा है। किस व्यक्ति को प्रोपर्टी में निवेश से फायदा होगा, इसका निर्धारण उसकी जन्मपत्री में इस व्यापार से संबंधित ग्रह व भाव देखने से हो सकता है।
जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव से जमीन-जायदाद और भू-सम्पत्ति के बारे में विचार किया जाता है। यदि चतुर्थ भाव और उसका स्वामी ग्रह शुभ राशि में, शुभ ग्रह या अपने स्वामी से संयोग करे या एक दूसरे को देखें, किसी पाप ग्रह का इन पर असर न हो, तो जमीन संबंधी व्यापार से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। भूमि का कारक ग्रह मंगल है। इसलिए कुंडली में चतुर्थ भाव, चतुर्थेश और मंगल की शुभ स्थिति से भूमि संबंधी व्यापार से फायदा होगा।
भूमि के व्यापार में जमीन का क्रय-विक्रय करना, प्रोपर्टी में निवेश कर लाभ में बेचना, दलाली के रूप में काम करना और कॉलोनाइजर के रूप में स्कीम काटकर बेचना इत्यादि शामिल होता है। ऎसे सभी व्यापार का मकसद धन कमाना होता है। लिहाजा भूमि से संबंधित ग्रहों का शुभ संयोग कुंडली के धन (द्वितीय) और आय (एकादश) भाव से भी होना आवश्यक है। चतुर्थ भाव का स्वामी और मंगल उच्च, स्वग्रही या मूल त्रिकोण का होकर शुभ युति में हो और धनेश, लाभेश से संबंध बनाए तो प्रोपर्टी के कारोबार से उत्तम फलों की प्राप्ति होती है।
मेष लग्न—-
मेष लग्न में, द्वितीय भाव में चन्द्र, मंगल व शुक्र का संबंध व्यक्ति को श्रेष्ठ व्यापारी बनाता है और वह प्रोपर्टी से धन कमाता है। चतुर्थेश चंद्रमा नवमांश कुंडली में चतुर्थ भाव में मंगल से योग करे तो वह प्रोपर्टी में निवेश से फायदा उठाता है। चंद्रमा की दृष्टि लाभ में स्थित शुक्र व शनि पर हो तो वह कॉलोनाइजर के रूप में धन कमा सकता है।
वृष लग्न—
बुध-गुरू चौथे भाव मे बैठे हों और उन्हें दशम भाव में बैठा सूर्य पूर्ण दृष्टि से देखे तो, भूमि संबंधी व्यापार से धन वृद्धि के योग बनेंगे। शुक्र और बुध पहले भाव में हों और गुरू सातवें भाव में हो तो, बुध की महादशा धन कारक होती है। लग्न में मंगल शुक्र हों, नवम में गुरू हो तो बुध तथा गुरू की दशा में जमीनी कारोबार से भाग्योदय होगा।
मिथुन लग्न—-
चंद्र, मंगल तथा बुध तीनों चौथे भाव में हों तो, व्यक्ति जमीन के व्यवसाय से अथाह पैसा कमा सकता है। इस योग में धनेश, लाभेश,भूमि कारक चतुर्थेश बुध तीनों चौथे भाव में साथ हैं। इसी प्रकार चंद्र और मंगल लाभ भाव में और भाग्येश शनि नवम भाव में बैठकर चंद्र-मंगल को दृष्टि दे तो जमीनी कारोबार भाग्य बदल सकता है।
कर्क लग्न—
कर्क लग्न में, भूमि कारक मंगल पंचमेश एवं दशमेश होने से स्वयं राजयोग कारक बनता है। लिहाजा इसकी चन्द्र और सूर्य से युति निश्चित ही भूमि से धन प्राप्ति के योग बनाएगी। सूर्य और शुक्र चतुर्थ में और मंगल दशम में हो तो प्रोपर्टी में निवेश करें, विशेष धन लाभ होगा।
सिंह लग्न—-
सिंह लग्न में बुध धनेश व लाभेश होता है और भूमि कारक मंगल चतुर्थेश व भाग्येश होने से पूर्ण कारक बनता है। दोनों की युति इन्हीं चारों भावों में से किसी एक भाव में हो और वे लग्नेश सूर्य से दृष्ट हों तो, भूमि से संबंधित किसी भी कारोबार में भाग्य आजमाएं, सफलता मिलेगी।
कन्या लग्न—
कन्या लग्न में, गुरू तथा बुध का राशि परिवर्तन पहले तथा चौथे भाव में हो (अर्थात बुध गुरू की राशि धनु में चौथे भाव में और गुरू बुध की राशि कन्या में पहले भाव में स्थित हो) और नवमांश कुंडली में भी कन्या लग्न हो तो, व्यक्ति जमीनी कारोबार से धनवान होगा। केतु व शुक्र दूसरे भाव में हो तो, व्यक्ति बहुत धनाढ्य होता है।
तुला लग्न —-
तुला लग्न में, शनि दो शुभ भावों चतुर्थ व पंचम का स्वामी होने से प्रबल कारक बनता है। ऎसा शनि यदि धनेश मंगल और लग्नेश शुक्र से युति करे या दृष्टि संबंध बनाए तो विशेष धनदायक योग बनेगा। इन ग्रहों की दशाओं में प्रोपर्टी में निवेश करना अत्यन्त लाभकारी होगा।
वृश्चिक लग्न—
वृश्चिक लग्न में मंगल, बुध एवं गुरू धन भाव में और शनि चतुर्थ में हो तथा नवमांश कुंडली में शनि-मंगल चतुर्थ भाव में हों तो, व्यक्ति भूमि सुधार संबंधी सलाहकार होता है और प्रोपर्टी में निवेश के कारण अतुल धनवान बनता है। इसी प्रकार गुरू तथा शनि आमने-सामने बैठे हों तो उस व्यक्ति को भूमि से बहुत अधिक लाभ मिलता है।
जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव से जमीन-जायदाद और भू-सम्पत्ति के बारे में विचार किया जाता है। यदि चतुर्थ भाव और उसका स्वामी ग्रह शुभ राशि में, शुभ ग्रह या अपने स्वामी से संयोग करे या एक दूसरे को देखें, किसी पाप ग्रह का इन पर असर न हो, तो जमीन संबंधी व्यापार से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। भूमि का कारक ग्रह मंगल है। इसलिए कुंडली में चतुर्थ भाव, चतुर्थेश और मंगल की शुभ स्थिति से भूमि संबंधी व्यापार से फायदा होगा।
भूमि के व्यापार में जमीन का क्रय-विक्रय करना, प्रोपर्टी में निवेश कर लाभ में बेचना, दलाली के रूप में काम करना और कॉलोनाइजर के रूप में स्कीम काटकर बेचना इत्यादि शामिल होता है। ऎसे सभी व्यापार का मकसद धन कमाना होता है। लिहाजा भूमि से संबंधित ग्रहों का शुभ संयोग कुंडली के धन (द्वितीय) और आय (एकादश) भाव से भी होना आवश्यक है। चतुर्थ भाव का स्वामी और मंगल उच्च, स्वग्रही या मूल त्रिकोण का होकर शुभ युति में हो और धनेश, लाभेश से संबंध बनाए तो प्रोपर्टी के कारोबार से उत्तम फलों की प्राप्ति होती है।
मेष लग्न—-
मेष लग्न में, द्वितीय भाव में चन्द्र, मंगल व शुक्र का संबंध व्यक्ति को श्रेष्ठ व्यापारी बनाता है और वह प्रोपर्टी से धन कमाता है। चतुर्थेश चंद्रमा नवमांश कुंडली में चतुर्थ भाव में मंगल से योग करे तो वह प्रोपर्टी में निवेश से फायदा उठाता है। चंद्रमा की दृष्टि लाभ में स्थित शुक्र व शनि पर हो तो वह कॉलोनाइजर के रूप में धन कमा सकता है।
वृष लग्न—
बुध-गुरू चौथे भाव मे बैठे हों और उन्हें दशम भाव में बैठा सूर्य पूर्ण दृष्टि से देखे तो, भूमि संबंधी व्यापार से धन वृद्धि के योग बनेंगे। शुक्र और बुध पहले भाव में हों और गुरू सातवें भाव में हो तो, बुध की महादशा धन कारक होती है। लग्न में मंगल शुक्र हों, नवम में गुरू हो तो बुध तथा गुरू की दशा में जमीनी कारोबार से भाग्योदय होगा।
मिथुन लग्न—-
चंद्र, मंगल तथा बुध तीनों चौथे भाव में हों तो, व्यक्ति जमीन के व्यवसाय से अथाह पैसा कमा सकता है। इस योग में धनेश, लाभेश,भूमि कारक चतुर्थेश बुध तीनों चौथे भाव में साथ हैं। इसी प्रकार चंद्र और मंगल लाभ भाव में और भाग्येश शनि नवम भाव में बैठकर चंद्र-मंगल को दृष्टि दे तो जमीनी कारोबार भाग्य बदल सकता है।
कर्क लग्न—
कर्क लग्न में, भूमि कारक मंगल पंचमेश एवं दशमेश होने से स्वयं राजयोग कारक बनता है। लिहाजा इसकी चन्द्र और सूर्य से युति निश्चित ही भूमि से धन प्राप्ति के योग बनाएगी। सूर्य और शुक्र चतुर्थ में और मंगल दशम में हो तो प्रोपर्टी में निवेश करें, विशेष धन लाभ होगा।
सिंह लग्न—-
सिंह लग्न में बुध धनेश व लाभेश होता है और भूमि कारक मंगल चतुर्थेश व भाग्येश होने से पूर्ण कारक बनता है। दोनों की युति इन्हीं चारों भावों में से किसी एक भाव में हो और वे लग्नेश सूर्य से दृष्ट हों तो, भूमि से संबंधित किसी भी कारोबार में भाग्य आजमाएं, सफलता मिलेगी।
कन्या लग्न—
कन्या लग्न में, गुरू तथा बुध का राशि परिवर्तन पहले तथा चौथे भाव में हो (अर्थात बुध गुरू की राशि धनु में चौथे भाव में और गुरू बुध की राशि कन्या में पहले भाव में स्थित हो) और नवमांश कुंडली में भी कन्या लग्न हो तो, व्यक्ति जमीनी कारोबार से धनवान होगा। केतु व शुक्र दूसरे भाव में हो तो, व्यक्ति बहुत धनाढ्य होता है।
तुला लग्न —-
तुला लग्न में, शनि दो शुभ भावों चतुर्थ व पंचम का स्वामी होने से प्रबल कारक बनता है। ऎसा शनि यदि धनेश मंगल और लग्नेश शुक्र से युति करे या दृष्टि संबंध बनाए तो विशेष धनदायक योग बनेगा। इन ग्रहों की दशाओं में प्रोपर्टी में निवेश करना अत्यन्त लाभकारी होगा।
वृश्चिक लग्न—
वृश्चिक लग्न में मंगल, बुध एवं गुरू धन भाव में और शनि चतुर्थ में हो तथा नवमांश कुंडली में शनि-मंगल चतुर्थ भाव में हों तो, व्यक्ति भूमि सुधार संबंधी सलाहकार होता है और प्रोपर्टी में निवेश के कारण अतुल धनवान बनता है। इसी प्रकार गुरू तथा शनि आमने-सामने बैठे हों तो उस व्यक्ति को भूमि से बहुत अधिक लाभ मिलता है।
धनु लग्न—
धन भाव का स्वामी शनि एकादश भाव में हो तो, जातक खुद के कमाए धन से ऊंचा उठता है। मंगल पंचम भाव में बैठे तो वह जमीनी कारोबार से धन कमाएगा।गुरू-मंगल का चौथे-पांचवें भाव में राशि परिवर्तन करना व्यक्ति को अद्वितीय बनाकर भूमि, भवन व वाहन का मालिक बनाता है। उसके लिए प्रोपर्टी में निवेश धनदायक है।
मकर लग्न —
मकर लग्न में, भूमि पुत्र मंगल चतुर्थ व लाभ भाव का स्वामी होकर प्रथम भाव में शनि के साथ हो और शुक्र स#म भाव में हो तो, व्यक्ति भूमि व्यवसाय से जुड़कर निश्चित ही धनवान होगा। लग्न में मंगल और सप्तम भाव में चन्द्र हो तो, व्यक्ति भूमि के लेन-देन से अत्यधिक धनवान हो सकता है।
कुंभ लग्न—-
कुंभ लग्न में, धनेश-लाभेश गुरू की दृष्टि जिस भाव पर भी होती है उसे मूल्यवान बना देती है। इसलिए चौथे भाव पर गुरू की दृष्टि हो तो, जमीन से लाभ होता है। दूसरे भाव में गुरू तथा ग्यारहवें भाव में शुक्र हो तो, व्यक्ति धनवान होता है।
मीन लग्न—-
मीन लग्न में धनेश व भाग्येश मंगल यदि चौथे भाव के स्वामी बुध से संयोग करे और गुरू से दृष्ट हो तो, यह योग भूमि कारोबार से समस्त सुख सुविधाएं प्रदान करने वाला होता है। यह योग मंगल की दशा में फलित होगा। इसी प्रकार चंद्र, मंगल, बुध एकादश भाव में हों तो, ऎसे व्यक्ति को जीवन भर प्रोपर्टी में निवेश करना लाभकारी होता है।
प्रोपर्टी निवेश में दिशाओं का महत्व—-
मेष-वृश्चिक राशि : इन दोनों राशियों का स्वामी मंगल है। इनके लिए दक्षिण दिशा शुभ है। दक्षिण का विकल्प ईशान है। क्योंकि ईशान का स्वामी गुरू, मंगल का मित्र है। लेकिन इनको जहां तक संभव हो उत्तर दिशा में निवेश से बचना चाहिए।
मिथुन-कन्या राशि : इन राशियों का स्वामी बुध होने से इनके लिए श्रेष्ठ दिशा उत्तर है। जन्म स्थान से उत्तर में किया गया प्रोपर्टी में निवेश दूरगामी शुभफल देने वाला होता है। परन्तु इन्हें ईशान कोण से बचना चाहिए। इन्हें जन्म स्थान से ईशान में व्यापार को जहां तक सम्भव हो, टालना चाहिए।
कर्क-सिंह राशि : कर्क का स्वामी चंद्रमा होने से इनके लिए पूर्व दिशा और वायव्य दोनों ही श्रेष्ठ हैं। इन्हें दक्षिण दिशा से भी लाभ होता देखा गया है। सिंह राशि का स्वामी सूर्य होने से इनके लिए दक्षिण दिशा अनुकूल है। इन्हें पश्चिम दिशा से बचना चाहिए। इनके लिए दक्षिण का विकल्प पूर्व है।
वृष्ा-तुला राशि : इनमें जन्मे व्यक्तियों का राशि स्वामी शुक्र होने से इनके लिए आग्नेय दिशा शुभ रहती है। हसके अलावा दक्षिण दिशा भी अनुकूल है। इन्हें ईशान कोण से बचना चाहिए।
मकर-कुंभ राशि : इन दोनों राशियों का स्वामी शनि है। इन्हें पश्चिम दिशा से लाभ मिलता है। नैऋत्य कोण में निवेश करना भी इनके लिए वृद्धिदायक रहता है। यदि ये अपना व्यापार पूर्व में करते हैं, तो उसमें बाधा की आशंका बनी रहती है।
धनु-मीन राशि : इनका स्वामी गुरू होने से ईशान दिशा शुभ है। इन राशि के व्यक्तियों को जन्म स्थान से दूर व्यापार आदि करना हो, तो पूर्व और उत्तर दिशा में ही करना चाहिए।