वास्तुशास्त्र और पूजा स्थान (Vastushastra and The Place of Worship in Your House)—
मानव जीवन के चार स्तम्भ हैं १. धर्म २. अर्थ ३.काम ४. मोक्ष, इन चार स्तम्भों में से अंतिम मोक्ष है और मानव इसे ही पाने को लालयित रहता है हम किसी भी मत को मानने वाले हों परन्तु जैसे जैसे आयु क्षीण होती है शनै-शनै उस परम शक्ति को प्राप्त करने की इच्छा होने लगती है परन्तु मोक्ष की कामना, मात्र कामना ही न रह जाये, हमारे ऋषि – मुनियों ने सर्व-साधारण के लिए भी उसी के घर में एक स्थान ऐसा बताया है, कि उसे कंही पहाडों और कन्दराओं में जा कर गहन तप करने कि आवश्यकता नहीं है बल्कि अपने घर में पूजा का सही स्थान चुनाव ले तो उसे अपने घर में ही सिद्धि और रिद्धि दोनों की प्राप्ति के साथ-साथ मोक्ष भी प्राप्त हो सकता है
आज का युग आभाव का युग है जब मानव मात्र के लिए भूमि की कमी है ऐसे में परम पिता परमेश्वर के लिए घर में अलग से कक्ष सोच के ही ह्रदय में सिरहन सी होती है परन्तु यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है जब बड़े – बड़े भवनों में भी पूजा का स्थान नहीं होता है और उस परमेश्वर के लिए जिससे हम सभी पदार्थों की कामना करते हैं उस के लिए घर में सब से बेकार और रद्दी सामान का कमरा दिया जाता है तो ऐसे में दैवीय कोप और घर में व्यर्थ के विवाद निश्चित ही होंगे
पूजाघर, आपकी ईश्वर में आस्था का प्रतीक हैं। विश्वास और आस्था के साथ जब आप घर में भगवान को स्थान देते हैं, तो परिवार के कल्याण की कामना करते हैं। वास्तुशास्त्र में घर में पूजा का स्थान नियत करने के कई मार्गदर्शन दिए गए हैं, जिन्हें अपनाकर पूरे परिवार के लिए सुख-समृद्धि का वरण किया जा सकता है। चलिए, घर में पूजा का स्थान कहां होना चाहिए और किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, इस पर नज़र डालें-
घर में पूजा का स्थान पूर्व दिशा में शुभ माना जाता है, क्योंकि पूर्व दिशा से सूर्य उगता है और धरती पर रोशनी का आगमन होता है। दक्षिण की दिशा में पूजा का स्थान शुभ नहीं माना जाता है।
घर में पूजास्थल के सम्बंध में वास्तुशास्त्र में कहा गया है कि उत्तर-पूर्व का स्थान भी भगवान का होता है और इस स्थान को भी पूजा के लिए तय किया जा सकता है। पूजा के समय व्यक्ति का चेहरा पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए। पूर्व दिशा पूजा के लिए सबसे अच्छी दिशा मानी जाती है।
यदि पूर्व दिशा की ओर पूजा कर पाना सम्भव न हो, तो उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पूजा करना उचित है। इससे व्यक्ति के जीवन में सुख व समृद्धि आती है।
विशेष स्थिति में पश्चिम की ओर मुंह करके पूजा भी की जा सकती है, लेकिन दक्षिण की तरफ मुंह करके पूजा करना अशुभ माना जाता है।
घर में पूजा का स्थान उत्तर-पूर्व दिशा में हो, तो घर के सदस्यों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और सुख-समृद्धि बनी रहती है।
पूजाघर उत्तर-पूर्व कोने में या उसके निकट होना चाहिए। उत्तर-पूर्व दिशा में मंदिर और पूजाघर में गणेश और लक्ष्मी जी की मूर्ति स्थापित करना, मंगलकारी होता है।
सूर्योदय और सूर्यास्त के समय आरती करना चाहिए। प्रात: सूर्यनमस्कार कर सकें, तो पूजन लाभ के साथ-साथ सेहत लाभ भी मिलेगा।
वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में सबसे अधिक उर्जा पूजा कक्ष में ही होती है यह वह स्थान है जो घर का उर्जा केन्द्र है और जिस घर में उर्जा का मुख्य स्रोत्र ही न हो वहाँ सुख की मात्र कल्पना ही की जा सकती है उस घर को कोई कब तक बचायेगा यह विचारणीय प्रश्न है इसीलिए वास्तुशास्त्र में पूजा-गृह या देवता का स्थान ईशान कोण या पूर्व दिशा में होना चाहिए, ईशान कोण भगवान आशुतोष का स्थान माना जाता है यही दिशा देवताओं की दिशा मानी जाती है घर में इस दिशा में पूजा का स्थान होना लाभदायक, मान-सम्मान दिलाने वाला और हर प्रकार की कामनाओं की पूर्ति का स्थान है दक्षिण दिशा और अग्निकोण में पूजा का स्थान कामनाओं के पूर्ति नहीं करता है पूर्व दिशा में पूजा का स्थान भी हर प्रकार के सुख और समृद्धि देता है परन्तु ध्यान देने योग्य यह है की पूजा के समय आपका मुख पूर्व की और होना चाहिए उतर दिशा में पूजा का स्थान भोतिकता सम्बन्धी पदार्थों की आपूर्ति नहीं करता बल्कि व्यक्ति को आध्यत्मिकता के क्षेत्र में शिखर पर पंहुचता है इसलिए आप अपने घर को स्वर्ग के समान सुंदर और नर्क के समान, आप स्वयं बना सकते है निर्णय केवल आपको करना है
कुछ महत्वपूर्ण बातें–
वास्तुशास्त्र में पूजा घर के संदर्भ विशेष निर्देश दिए हैं इनका पालन करके हम सांसारिक सुख और आध्यात्मिक लाभ दोनों साथ-साथ प्राप्त कर सकते हैं-
आजकल भिन्न-भिन्न प्रकार की धातुओं से मंदिर बनाए जाते हैं लेकिन घर में शुभता की दृष्टि से मंदिर लकड़ी, पत्थर और संगमरमर का होना चाहिए।
मंदिर इमारती लकड़ियों के बने होने चाहिए जैसे चंदन, शाल, चीड़, शीशम, सागौन आदि। पर जंगली लकड़ी से परहेज करना चाहिए जैसे नीम की लकड़ी।
मंदिर, गुम्बदाकार या पिरामिडनुमा होना शुभ माना जाता है। प्राचीन ग्रंथों में ऐसा लिखा गया है कि मंदिर में तीन गणपति, तीन दुर्गा, दो शिवलिंग, दो शंख, दो शालिग्राम, दो चंद्रमा, दो सूरज, द्वारिका के दो गोमती चक्र एक साथ, एक जगह पर नहीं रखने चाहिए।
ग्रह वास्तु के अनुसार, घर में पूजा के लिए डेढ़ इंच से छोटी और बारह इंच से बड़ी मूर्ति का प्रयोग नहीं करना चाहिए। बारह इंच से बड़ी मूर्ति की पूजा मंदिरों में की जाती है। घर में पीतल, अष्ठधातु की भी बड़े आकार की मूर्ति नहीं होनी चाहिए।
.. पूजाघर के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान ईशान कोण हाता है। पूजागृह को पूर्व या उत्तर दिशा में स्थापित किया जा सकता है। पूजा करते समय हमारा मुख ईशान, पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए। ऐसा संभव न होने पर किसी भी कमरे के ईशान कोण में स्थापित करें।
.. पूजागृह रसोई और शयन कक्ष में कदापि नहीं होना चाहिए।
.. पूजाघर में पीला या सफेद रंग करवाना ठीक रहता है।
4. पूजाघर के ऊपर पिरामिड होना चाहिए साथ ही ध्यान रखना चाहिए कि मंदिर के ऊपर कोई सामान नहीं रखा हो।
5. पूजाघर में दो शिवलिंग, दो शालिग्राम, दो शंख, तीन दुर्गा और तीन गणेश रखने का शास्त्रों में निषेध है।
6. आराधना स्थल में देवी-देवताओं की प्रतिमा या मूर्तिया एक-दूसरे के आमने-सामने होने चाहिए।
7. बहुमंजिले मकान में पूजा मंदिर निर्माण भूतल पर करें।
8. पूजा स्थल पर पितृ-मृतकों की तस्वीर न रखें।
9. पूजागृह शौचालय से सटा अथवा उसके सामने न हो।
1.. पूजाघर के समीप तिजोरी बिल्कुल न रखें।
11. यथासंभव स्थिर प्रतिमाओं को घर में स्थापित करने से बचना चाहिए। इसे शास्त्र सम्मत नहीं माना जाता।
12. सीढि़यों के नीचे पूजा स्थल न बनाएं। अन्यथा पूजा निष्फल हो जाती है।
13. पूजाघर साधक के सम्मुख होना चाहिए। न ज्यादा ऊंचा और न ज्यादा नीचा होना चाहिए।
14. पूजाघर में सदैव प्रकाश की व्यवस्था होनी चाहिए। रात्रि में पट बंद करें।
घर का पूजा स्थल होता हें आस्था का मंदिर–
आधुनिक जीवनशैली में पूजा-अर्चना के लिए एक अलग कमरे की जरूरत ठीक उसी तरह महसूस की जाने लगी है, जिस तरह की जरूरत अन्य कमरों की होती है। ‘भले ही आज लोगों की आमदनी पहले के मुकाबले अधिक हो गई हो, पर यह भी सच है कि लोग पहले के मुकाबले कुछ ज्यादा ही तनावग्रस्त रहने लगे हैं। ऐसे में पूजा रूम से
लोगों को एक मानसिक शांति और सुकून की अनुभूति होती है।’ कहते हैं एचसीएल में कार्यरत कंप्यूटर इंजीनियर सचिन। यह लोगों की आस्था का ही प्रतीक है कि एक ओर घरों में जहां होम थिएटर नजर आते हैं, वहीं पूजाघर की भी अनिवार्यता बनती जा रही है। समय के साथ अच्छे घर की परिभाषा बदलती रहती है।
कभी सिर्फ प्लॉट पर बने घर ही लोगों को पसंद आते थे। बाद में गगनचुंबी इमारतें लोगों को भाने लगीं और स्टेटस सिंबल का द्योतक बनने लगीं। इमारतों का सिर्फ स्वरूप ही नहीं बदला, बल्कि इंटीरियर डिजाइनिंग में भी बदलाव खूब नजर आने लगा। अब तो एक ओर घर में जहां मॉडर्न लाइफ स्टाइल के प्रतीक मॉडय़ूलर किचन, स्पा, वुडन फ्लोर आदि चीजें नजर आने लगी हैं, वहीं पूजाघर भी गृह-निर्माण का खास हिस्सा बन गया है।
वास्तुशास्त्र और फेंग्शुई के अनुसार भी घर में पूजा-स्थल का होना व्यक्ति में ऊर्जा का संचार करता है। वास्तुशास्त्री नरेश सिंगल घर में पूजा-स्थल के प्रति लोगों की मानसिकता को स्पष्ट करते हुए कहते हैं, ‘जितनी अहमियत रसोईघर यानी किचन को दी जाती है, उतनी ही अहमियत पूजा-स्थल को भी दी जाती है। ऐसी सोच हर वर्ग के लोगों में देखी जाती है।’ कोई शक नहीं कि पूजा-स्थल से लोगों को एक मनोवैज्ञानिक ताकत मिलती है, जिससे अपने किसी भी काम को वह बेहतर ढंग से कर पाते हैं।
घर में मंदिर होने से सबसे बड़ा फायदा यह है कि मौसम चाहे जो भी हो, पूजा के लिए इंतजार करने की जरूरत नहीं है, वरना धूप, बारिश आदि के वक्त बाहर निकलना काफी मुश्किल हो जाता है। ‘काम पर निकलने से पहले मैं भगवान की तस्वीर के सामने हाथ जोड़ कर प्रार्थना जरूर करता हूं। ऐसे में
मंदिर जाने का वक्त ही नहीं होता। इसीलिए मैंने अपने डाइनिंग हॉल के ही एक भाग को छोटे से मंदिर का रूप दे दिया है।’ कहते हैं आईसीआईसीआई बैंक में एकाउंट एग्जीक्यूटिव एस. कुमार। इतना ही नहीं, छोटे-मोटे पूजा आयोजन के लिए भी ऐसे में जगह को लेकर किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती।अध्यात्म के प्रति लोगों की रुचि दशहरा जैसे किसी बड़े अवसर पर या किसी प्रवचन जैसे समारोह में तो देखी जा सकती है, पर वहां घूमने-फिरने और मौज-मस्ती करने का भी आकर्षण होता है। लेकिन घर में पूजा-स्थल या मंदिर के छोटे प्रारूप की स्थापना शुद्ध रूप से लोगों की आस्था का द्योतक है और यह आस्था आज लोगों के रग-रग में समा चुकी है।
प्राय: लोगों के मन में सवाल उठता है कि घर में मंदिर स्थापित करने का शुभ मुहूर्त क्या होना चाहिए..???
घर में मंदिर की आकृति रखनी हो या छोटा-सा मंदिर ही बनवाकर भगवान को स्थापित करना हो तो इसके लिए नवरात्रों का समय सबसे अनुकूल है। इन दिनों किसी भी समय यह स्थापना की जा सकती है। आम दिनों में शुभ मुहूर्त के अनुसार ही मंदिर का प्रारूप रखना चाहिए। दिशाओं में पूर्व दिशा को इसके लिए बेहतर माना जाता है। फिर पश्चिम और उत्तर दिशाएं आती हैं, पर दक्षिण की ओर मंदिर की स्थापना नहीं करनी चाहिए।’
मैं सरकारी नौकरी के लिए प्रयास कर रहा हूँ, लेकिन बहुत ज्यादा पढ़ने के बावजूद भी मैं सफल नहीं हो पा रहा हूँ। कृपया कोई उचित उपाय बताए। मेरी जन्मदिनांक १७/०७/१९९३ है.