आइये जपें महालक्ष्म्यषट्कम ( श्री महालक्ष्मी अष्टकम स्तोत्रं ) Shri Maha lakshmi Ashtkm स्तोत्रम—-
श्री महालक्ष्मी अष्टकम स्तोत्रं स्वर्गाधिपति इंद्र देव द्वारा रचित है जिनका कोषाध्यक्ष कुबेर है ऐसे देव द्वारा जब स्वयं महालक्ष्मी जी की स्तुति की गई है तो हम साधारण मनुष्य किस अहंकार से वशीभूत है इंद्र देव कहते है, हे देवि ! तुम्हारी जय हो ! तुम समस्त शरीरों को धारण करने वाली, स्वर्गलोक का दर्शन कराने वाली और दुखों को हरने वाली हो, हे व्यधिनाशनी देवि! तुम्हारी जय हो ! मोक्ष तुम्हारे करतलगत है, हे मनोवांछित फल देने वाली अष्ट सिद्धियों से सम्पन्न परा देवि ! तुम्हारी जय हो ! जो कंही भी रहकर पवित्र भाव से नियमपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करता है उसके उपर भगवती महालक्ष्मी सदैव प्रसन्न रहती हैं इसमें कोई संदेह नही है इस स्तोत्र को जो भी व्यक्ति दीपावली के दिन प्रदोषकाल में या निशीथकाल सम्पूर्ण विधि से पाठ करता है या किसी शुभ लग्न में पाठ करता है,दरिद्रता उस व्यक्ति से वैसे ही दूर चली जाती है जैसे राजा के मित्र हो जाने पर शत्रु भाग जाते है इस स्तोत्र के शब्दों की संधियों को विच्छेद कर के इस तरह से लिखा गया है कि कोई संस्कृत ना जानने वाला भी इस स्तोत्र का आसानी से पाठ कर ले
महालक्ष्म्यषट्कम ( श्री महालक्ष्मी अष्टकम स्तोत्रं )—
नमस्तेअस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शँखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोअस्तुते ॥
नमस्ते गरुडारुढे कोलासुर भयङ्करी ।
सर्व पाप हरे देवि महा लक्ष्मी नमो अस्तु ते ॥
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयङ्करी ।
सर्व दुख:हरे देवि महालक्ष्मी नमोअस्तुते ॥
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्ति प्रदायिनि ।
मंत्र पुते सदा देवि महा लक्ष्मी नमोअस्तुते ॥
आद्यन्तरहिते देवि आद्य शक्ति महेश्वरि ।
योगजे योग सम्भूते महालक्ष्मी नमो अस्तु ते ॥
स्थूलसूक्ष्म महारोद्रे महाशक्ति महोदरे ।
महापाप हरे देवि महालक्ष्मी नमो अस्तु ते ॥
पद्मासन स्थिते देवि पर ब्रम्हा स्वरूपिणी ।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोअस्तुते ॥
श्वेताम्बरधरे देवि नाना अलंकार भूषिते ।
जगत स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोअस्तुते ॥
महालक्ष्म्य अष्टकम स्तोत्रं य: पठेद भक्ति मान्नरः ।
सर्वसिद्धिम वापोनोती राज्यं प्रापोनोती सर्वदा ॥
एककाले पठे नित्यं महापाप विनाशनम ।
दिविकालं य: पठे नित्यं धन धान्य समन्वित: ॥
त्रिकालं य: पठे नित्यं महाशत्रुविनाशनम ।
महालक्ष्मीर्भनित्यं प्रसन्नावरदा शुभा ॥
इतीन्द्र कृतं महालक्ष्म्यषट्कम सम्पूर्णम ।

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