बुरा न मनो—-आजकल मिडिया ( अखबार/न्यूज चेनल वाले और न्यूज पोर्टल पर) यही खबर प्रमुखता से सुनाई /दिखाई/पढाई जाती हें की ….दीपावली पर पटाखे न चलायें क्योंकि ध्वनि और वायु प्रदूषण होता है, होली पर रंग न खेलें क्योंकि रासायनिक रंग त्वचा ख़राब कर देते हैं और हजारों लीटर पानी की बर्बादी होती है, दुर्गा प्रतिमा और गणेश प्रतिमा के विसर्जन से नदियाँ और समुद्र प्रदूषित होते हैं| और हिन्दू पर्वों के लिए तो अभी याद नहीं आ रहा पर मीडिया बताता जरुर होगा कुछ न कुछ| कोई हिन्दू पर्व आया नहीं कि मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवियों के इस तरह के प्रवचन शुरू हो जाते हैं, कान्वेंट स्कूल के बच्चों को इकठ्ठा कर रैली भी निकाल ली जाती है और ऐसा प्रचार किया जाता है कि बेचारा हिन्दू अपना त्यौहार भी अपराध बोध के साथ मनाता है कि जैसे कितना बड़ा पाप कर दिया उसने| पर कभी नहीं सुना कि इस मीडिया ने बकरीद पर गली मोहल्लों में बिखरे पड़े खून और उसे साफ करने में खर्च हुए पानी को लेकर कुछ बताया हो, कभी नए साल के जश्न के नाम पर खर्च हुए रुपयों का हिसाब किया हो या छुटायी गयी आतिशबाजी पर हिसाब किया हो| सारा ठेका हम हिन्दुओ ने ही लिया है क्या???
जरा धयान दीजियेगा..गंभीरता से सोचने की जरुरत हे??? नहीं हें क्या..????पर कोन समझाए इनको??? जबकि इन सभी को ऐसे अवसरों/मोको पर सबसे अधिक/ज्यादा विज्ञापन भी मिलते हें?? तो क्या इलाज/इंतजाम नहीं किया जा सकता हें????अपनी-अपनी-राय/टिपण्णी जरुर दीजियेगा…!!! धन्यवाद/प्रतीक्षारत…

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