क्या सुख-शांति देता हें चन्द्रमा…???
वैसे तो चन्द्रमा को सुख-शांति का कारक माना जाता है…लेकिन यही चन्द्रमा जब उग्र रूप धारण कर ले तो प्रलयंकर स्वरूप दिखता है। तंत्र ज्योतिष में तो ये कहावत है कि चन्द्रमा का पृथ्वी से ऐसा नाता है कि मानो मां-बेटे का संबंध हो, जैसे बच्चे को देख कर मां के दिल में हलचल होने लगती है, वैसे ही चन्द्रमा को देख कर पृथ्वी पर हलचल होने लगती है, चन्द्रमा जिसकी सुन्दरता से मुग्ध हो कवि रसीली कविताओं और गीतों का सृजन करते हैं वहीँ भारतीय तंत्र शास्त्र इसे शक्तियां अर्जित करने का समय मानता है।
आकाश में पूरा चांद निकलते ही कई तांत्रिक सिद्घियां प्राप्त करने में जुट जाते हैं। चन्द्रमा प्राकृतिक तौर पर बहुत सूक्ष्म प्रभाव डालता है जिसे साधारण तौर से नहीं आंका जा सकता लेकिन कई बार ये प्रभाव बहुत बढ जाता है जिसके कई कारण हो सकते हैं।
ज्योतिष शास्त्र इसके संबंध में कहता है कि चन्द्रमा का आकर्षण पृथ्वी पर भूकंप, समुद्री आंधियां, तूफानी हवाएं, अति वर्षा, भूस्खलन आदि लाता हैं। रात को चमकता पूरा चांद मानव सहित जीव-जंतुओं पर भी गहरा असर डालता है।
शास्त्रों के अनुसार भी चन्द्रमा मन का कारक है। चन्द्रमा दिल का स्वामी है। चांदी की तरह चमकती रात चन्द्रमा का विस्तार राज्य है। इसका कार्य सोने चांदी का खजाना शिक्षा और समृद्घि व्यापार है। चन्द्रमा के घर शत्रु ग्रह भी बैठे तो अपने फल खराब नहीं करता। प्रकृति की हलचल में चंद्र के प्रभाव विशेष होते हैं।
चन्द्रमा से ही मनुष्य का मन और समुद्र से उठने वाली लहरे दोनों का निर्धारण होता है। माता और चंद्र का संबंध भी गहरा होता है। मूत्र संबंधी रोग, दिमागी खराबी, हाईपर टेंशन, हार्ट अटैक ये सभी चन्द्रमा से संबंधित रोग है।
लाल किताब कहती है कि चन्द्रमा शुभ ग्रह है। यह शीतल और सौम्य प्रकृति धारण करता है। ज्योतिष शास्त्र में इसे स्त्री ग्रह के रूप में स्थान दिया गया है। यह वनस्पति, यज्ञ एवं व्रत का स्वामी ग्रह है।
भारतीय ज्योतिष पर आधारित दैनिक, साप्ताहिक तथा मासिक भविष्यफल भी व्यक्ति की जन्म के समय की चंद्र राशि के आधार पर ही बताए जाते हैं। किसी व्यक्ति के जन्म के समय चन्द्रमा जिस राशि में स्थित होते हैं, वह राशि उस व्यक्ति की चंद्र राशि कहलाती है।
कितना महत्वपूर्ण हें चन्द्रमा—????
(जन्मकालीन चंद्रमा के प्रभाव)—-
चंद्रमा हमारे सबसे निकट का ग्रह है और इसलिए इसका मनुष्य के जीवन में क्षणिक ही सही , पर सबसे अधिक प्रभाव है। खासकर यह हमारे मन को ही प्रभावित करता है , इसलिए हमारे मन को प्रभावित करने वाली सभी घटनाएं दुर्घटनाएं इसी के कारण होती है। इसके अलावे हम सभी महसूस करते हैं कि बचपन के मनोवैज्ञानिक विकास में बच्चों के स्वास्थ्य , मिलनेवाले प्यार दुलार और आसपास के वातावरण का बहुत बडा प्रभाव होता है। बचपन और कुछ से नहीं , मन के सुख दुख से प्रभावित होता है , इसलिए मनुष्य के बालपन में चंद्रमा का खासा महत्व होता है।
पांडवों के भिक्षु होने से भी रुक न पाया था विस्फोटक महासमर। ध्वंस से सिर फोड़ने को हों तुले, जब क्रुद्ध ग्रह-उपग्रह हर डगर।।
प्रस्तुत लेखक ‘चन्द्रमा का भारतीय ज्योतिष में स्थान’ पर एक अध्धयन है।
शुद्ध दीपिका (अध्याय-., पृष्ठ 59) का श्लोक है:
सर्वकर्मण्युपादेया विशुद्धिष्चन्द्रतारायो:।
तत्छुद्धावेव सर्वेषां ग्रहाणां फलदातृता:।।
सभी कर्मों में चन्द्र-तारा शुद्धि का उत्कर्ष अभिहित है। इनके शुद्ध होने से सभी ग्रहों की शुभता में वृद्धि होती है। यूं तो सभी ग्रह अपनी-अपनी महत्वता रखते हैं, परंतु मात्रा का अंतर अवश्य होता है। देश, काल, पात्र का सम्यक अध्धयन भी महत्वपूर्ण होता है। सूर्य एवं चन्द्रमा का सर्विधक महत्व है। चन्द्रमा पृथ्वी का अभिन्न अंग है अस्तु चंद्रमा का महत्व भारतीय ज्योतिष में अधिक महत्व है। ऋतुओं के आंकलन एवं Mundane में सूर्य की महत्ता अधिक है। परंतु जातक संबंधी ज्योतिष विचार करने पर चंद्रमा का अध्धयन अधिक महत्वपूर्ण है। जातक के संबंध में गोचर, दशा, नक्षत्र, योग, तिथि मुहूर्त सभी का महत्वपूर्ण स्थान है और इनकी गणना में चंद्रमा एक अभिन्न अंग हैं। कार्यसिद्धि हेतु चंद्रमा का बलाबल, चंद्र स्थित, चंद्र सानिध्य चंद्रमा की पुष्टता आदि का आंकलन अति आवश्यक है। इन सभी के लिए भारतीय ज्योतिष शास्त्र में स्थान-स्थान पर दिशा निर्देश उपलब्ध है। आवश्यकता है उहापोह के द्धारा इनके गूढ़ अर्थों को जानने की। ऋषियों-मनीषियों की मेघा को साष्टांग प्रणाम। पाश्चात्य ज्योतिष में इसकी चर्चा अत्यंत अल्प है परंतु वैज्ञानिक इसकी महत्ता स्वीकार रहे है। अपने इस कथन के समर्थन में आपके संज्ञान में कुछ उद्धरण प्रस्तुत है।
अस्तु तिथि, रश्मि साधन, चंद्र स्थिति, देशकाल पात्र का आंकलन भिन्न-भिन्न परिणाम देंगे, अतः इनका आंकलन अत्यावश्यक है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक राशि में एक विशिष्ट अंश पर चंद्र का विशेष प्रभाव होता है जिसे मृत्यु भाग कहा है। इससे कुछ मतभेद भी है। मैं विभिन्न मत उद्धत कर रहा हूं। मैं इन अंशो की गणना लग्न के अंश से, चंद्र के अंश से और सूर्य के अंश से करता हूं। एवं न 3 अंशों की गणना से जब दो प्रकार से जब दो प्रकार से मृत्यु भाग श पर गोचर वश ग्रह आते है तो अशुभ प्रभाव का विचार पुष्ट करते हैं। प्रश्न मार्ग के मतानुसार fateful degrees of Moon मेष से मीन राशि में .6, .2, 22, 22, 21, 14, 21, 18, 2., 20, 10 जातक परिजात के मतानुसार 8, 5, 22, 22, 21, 1, 4, 23, 18, 20, 20, 10 वृहत्य प्रजापत्य के मतानुसार 26, 12, 13, 25, 24, 11, 26, 14, 13, 25, 5, 12 इसके अतिरिक्त जातक परिजात ने प्रत्येक राशि में विशिष्ट अंश लग्न अंश से भी निर्धारित किये हैं। श्री गोपेश ओझा जी की Hindu Predictive Astrology में इस विषय पर विशेष चर्चा है। पुस्तक से ही पढ़ने का उपाय करें। चन्द्रमा के अन्तर्गत तीन नक्षत्र रोहणी, हस्त एवं श्रवण है। इनका वार के साथ संयोग सुयोग-कुयोग बनाता है। चन्द्रमा के ही तीनों नक्षत्र उसमें मिलते। अन्य ग्रहों के सभी नक्षत्र इसमें नहीं मिलते।
वैसे तो चंद्रमा का कुंडली के विभिन्न स्थानों पर बैठना भी महत्व रखता है , पर शक्ति के अनुसार चंद्रमा के फल में हमें काफी सटीकता मिली है। वैसे तो मजबूत या कमजोर चंद्रमा का प्रभाव बचपन में पूरे माहौल में नजर आता है , पर अधिक असर उन भावों पर होता है , जिनका स्वामी चंद्र हो या जिस भाव में चंद्र की स्थिति हो। चंद्रमा मजबूत हो , तो जिस भाव का स्वामी हो और जिस भाव में स्थित हो , जीवन में उससे संबंधित फल मजबूत प्राप्त होता है। खासकर बचपन में इसका असर खूब देखने को मिलता है।
इसके विपरीत चंद्रमा कमजोर हो , तो जिस भाव का स्वामी हो और जिस भाव में स्थित हो , जीवन में उससे संबंधित ऋणात्मक फल मिलता है। इसका असर भी बचपन में ही अधिक देखने को मिलता है। आज के लेख के हिसाब से अष्टमी में जन्म लेने वाले बच्चों के चंद्रमा का फल आप नहीं समझ पाएंगे , पर इतना अवश्य है कि अष्टमी के आसपास जन्म लेनेवाले बच्चो के समक्ष माहौल ऐसा होता है कि वे मन से बहुत ही संतुलित होते हैं । और खासकर यह संतुलन उन मामलों में अधिक दिखाई पडता है , जिन मामलों का स्वामी चंद्रमा होता है और जिस भाव में वो स्थित होता है।
चंद्रमा की शक्ति का निर्णय इसके आकार के हिसाब से किया जाता है। चंद्रमा जब बडा हो , यानि पूर्णिमा का हो , वह सबसे अधिक शक्ति संपन्न होगा। इसके अतिरिक्त छोटा यानि अमावस्या का चंद्रमा सबसे शक्तिहीन होता है। इस तरह जैसे जैसे चंद्रमा का आकार छोटा होता जाता है , उसकी शक्ति कम होती जाती है। यही कारण है कि पूर्णिमा के आसपास जन्म लेने वाले बच्चों के समक्ष घर परिवार में कुछ अधिक ही लाड प्यार का माहौल मिलता है , इस कारण उनकी जिद की प्रवृत्ति भी बढती है , वैसे मनोवैज्ञानिक विकास सही होने के कारण ऐसे बच्चे अपनी बात आगे रखने में अधिक सक्षम होते हैं। जबकि अमावस्या के आसपास जन्म लेनेवालों के समक्ष ऐसा वातावरण होता है कि जरूरत के हिसाब से उनके लाड प्यार में कुछ कमी हो जाती है। मन में कुछ भावनाओं के दबे होने से उनका मनोवैज्ञानिक विकास बाधित होता है , जिसका प्रभाव बाद के जीवन में भी देखा जाता है।