क्यों होगी/मनेगी धनतेरस/धनत्रयोदशी(२०११ में )दो बार–//केसे मनाये धनतेरस???(कथा,पूजा और अन्य जानकारी)—-
नो वर्ष बाद होगा दो धनतेरस का योग; धन और श्रद्धा होगी दुगनी—भगवान धनवन्तरी की पूजा का पर्व हे धनतेरस—
दीपावली से पूर्व खरीददारी का महापर्व धनतेरस/धनत्रयोदशी इस बार दो दिन तक मनाया जायेगा ..यह योग नो वर्षों के बाद आ रहा हें…इसका कारन यह हें की .4 अक्टूबर को सूर्य शाम को स्वाती नक्षत्र( .4 :45 बजे) में आ जायेगा..इसी दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र भी रहेगा..यह उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र 25 अक्टूबर को तड़के/प्रातः तीन बजकर 45 मिनट तक रहेगा..इसके बाद में हस्त नक्षत्र आ जायेगा..शाश्त्रनुसार उत्तराफाल्गुनी नक्श्रा में अबूझ मुहूर्त, मांगलिक कार्य,और खरीददारी करने का श्रेष्ठ मुहूर्त होता हें..वहीँ हस्त नक्षत्र भी इन कार्यो हेतु उत्तम हें..चोबीस(24 ) अक्टूबर,20.1 को धन त्रयोदशी दोपहर में 12 :.5 से शुरू होकर अगले दिन सुबह नो (09 )बजे तक रहेगी…चूँकि दीपदान शाम को त्रयोदशी और प्रदोष कल में किया जाता हें..और धन्वन्तरी जयंती उदियत तिथि में त्रयोदशी होने पर मनाई जाती हें..इसी कारण २४ अक्टूबर,2011 की शाम को त्रयोदशी होने पर दीपदान किया जा सकेगा…जबकि 25 अक्टूबर,2011 को सूर्योदय के समय त्रयोदशी होने के कारन इसी दिन भगवन धन्वन्तरी की जयंती धूम धाम से मनाई जाएगी…25 अक्टूबर,2011 की शाम को चतुर्दशी तिथि होने के कारन इस दिन रूप चतुर्दशी पर्व मनाया जायेगा…
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पांच दिनों तक चलने वाले पर्वों के पुन्ज दीपावली की शुरुआत धन तेरस से होती है।
धन तेरस को धन त्रयोदशी भी कहते हैं। धनतेरस का त्योहार हिन्दू पंचाग के अनुसार कार्तिक बदी १३ को मनाया जाता है।
जिस प्रकार देवीलक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थीं, उसी प्रकार भगवान धनवन्तरी भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। देवी लक्ष्मी हालांकि धन देवी हैं, परन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए हमको स्वस्थ्य और लम्बी आयु भी चाहिए। यही कारण है कि दीपावली के दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती हैं।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही भगवान धन्वन्तरी का जन्म हुआ था, इसलिए इस तिथि को भगवान धन्वन्तरी के नाम पर धनतेरस कहते है । धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरी चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे,इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है।
यह तो सर्व विदित है कि भगवान धन्वन्तरी देवताओं के वैद्य हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्व पूर्ण होता है। आज भी कई डॉक्टर अपने अस्पताल का नाम धन्वन्तरी चिकित्सालय रखते हैं। धनतेरस के दिन दीप जलाककर भगवान धन्वन्तरि की पूजा करें और उनसे स्वास्थ एवमं सेहतमंद बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है।
धनतेरस पर करें कुबेर को प्रसन्न—-
इस धनतेरस पर आप धन के देवता कुबेर को प्रसन्न कर धनवान बन सकते हैं। धन के देवता कुबेर को प्रसन्न करने का यह सबसे अच्छा मौका है।
धनतेरस के इस मौके पर आप कुबेर की उपासना करके अपनी दरिद्रता दूर कर धनवान बन सकते हैं। यदि कुबेर आप पर प्रसन्न हो गए तो आप के जीवन में धन-वैभव की कोई कमी नहीं रहेगी। कुबेर को प्रसन्न करना बहुत ही आसान है।
मंत्रोच्चार के द्वारा आप कुबेर को प्रसन्न कर सकते हैं। इसके लिए आपको पारद कुबेर यंत्र के सामने मंत्रोच्चार करना होगा। यह उपासना धनतेरस से लेकर दिवाली तक की जाती है। पारद कुबेर यंत्र के सामने धनतेरस से लेकर दिवाली की रात्रि तक निमA मंत्र की स्फटिक माला से 11 माला जप करें। ऎसा करने से जीवन में भी प्रकार का अभाव नहीं रहता, दरिद्रता का नाश होता है और व्यापार में वृद्धि होती है।
मंत्र: यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्यादिपतये पतये धनधान्य समृद्धि मे देहि स्वाहा।
धनतेरस पर यमराज को करें दीपदान—-
एक बार भगवान विष्णु माता लक्ष्मीजी सहित पृथ्वी पर घूमने आए। कुछ देर बाद भगवान विष्णु लक्ष्मीजी से बोले कि मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं। तुम यहीं ठहरो। परंतु लक्ष्मीजी भी विष्णुजी के पीछे चल दीं। कुछ दूर चलने पर ईख (गन्ने) का खेत मिला। लक्ष्मीजी एक गन्ना तोड़कर चूसने लगीं। भगवान लौटे तो उन्होंने लक्ष्मीजी को गन्ना चूसते हुए पाया। इस पर वह क्रोधित हो उठे। उन्होंने श्राप दे दिया कि तुम जिस किसान का यह खेत है उसके यहां पर 12 वर्ष तक उसकी सेवा करो।
विष्णु भगवान क्षीर सागर लौट गए तथा लक्ष्मीजी ने किसान के यहां रहकर उसे धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। 12वर्ष के बाद लक्ष्मीजी भगवान विष्णु के पास जाने के लिए तैयार हो गईं परंतु किसान ने उन्हें जाने नहीं दिया। भगवान विष्णुजी लक्ष्मीजी को बुलाने आए परंतु किसान ने उन्हें रोक लिया। तब भगवान विष्णु बोले कि तुम परिवार सहित गंगा स्नान करने जाओ और इन कौड़ियों को भी गंगाजल में छोड़ देना तब तक मैं यहीं रहूंगा। किसान ने ऐसा ही किया। गंगाजी में कौडि़यां डालते ही चार हाथ बाहर निकले और कौडि़यां लेकर चलने को तैयार हुए। ऐसा आश्चर्य देखकर किसान ने गंगाजी से पूछा कि ये चार हाथ किसके हैं। गंगाजी ने किसान को बताया कि ये चारों हाथ मेरे ही थे। तुमने जो मुझे कौडि़यां भेंट की हैं। वे तुम्हें किसने दी हैं।
किसान बोला कि मेरे घर पर एक स्षी और पुरुष आए हैं। तभी गंगाजी बोलीं कि वे देवी लक्ष्मीजी और भगवान विष्णु हैं। तुम लक्ष्मीजी को मत जाने देना। वरना दोबारा निर्धन हो जाओगे। किसान ने घर लौटने पर देवी लक्ष्मीजी को नहीं जाने दिया। तब भगवान ने किसान को समझाया कि मेरे श्राप के कारण लक्ष्मीजी तुम्हारे यहां 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही हैं। फिर लक्ष्मीजी चंचल हैं। इन्हें बड़े-बड़े नहीं रोक सके। तुम हठ मत करो। फिर लक्ष्मीजी बोलीं हे किसान यदि तुम मुझे रोकना चाहते हो तो कल धनतेरस है। तुम अपने घर को साफ-सुथरा रखना। रात में घी का दीपक जलाकर रखना। मैं तुम्हारे घर आउंगी। तुम उस वक्त मेरी पूजा करना। परंतु मैं अदृश्य रहूंगी। किसान ने देवी लक्ष्मीजी की बात मान ली और लक्ष्मीजी द्वारा बताई विधि से पूजा की। उसका घर धन से भर गया।
इस प्रकार किसान प्रति वर्ष लक्ष्मीजी को पूजने लगा तथा अन्य लोग भी देवी लक्ष्मीजी का पूजन करने लगे। इस दिन घर के टूटे-फूटे पुराने बर्तनों के बदले नये बर्तन खरीदे जाते हैं। इस दिन चांदी के बर्तन खरीदना अत्यधिक शुभ माना जाता है। इन्हीं बर्तनों में भगवान गणेश और देवी लक्ष्मीजी की मूर्तियों को रखकर पूजा की जाती है। इस दिन लक्ष्मीजी की पूजा करते समय ‘यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये धन-धान्य समृद्ध में देहि दापय स्वाहा’ का स्मरण करके फूल चढ़ाये। इसके पश्चात कपूर से आरती करें। इस समय देवी लक्ष्मीजी, भगवान गणेशजी और जगदीश भगवान की आरती करे। धनतेरस के ही दिन देवता यमराज की भी पूजा होती है।
यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता है। रात्रि में महिलाएं दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाती हैं। जल, रोली, चावल, गुड़ और फूल आदि मिठाई सहित दीपक जलाकर पूजा की जाती है। यम दीपदान को धनतेरस की शाम में तिल के तेल से युक्त दीपक प्रज्वलित करें। इसके पश्चात गंध, पुष्प, अक्षत से पूजन कर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके यम से निम्न प्रार्थना करें। मृत्युना दंडपाशाभ्याम्घ्कालेन यामया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात्घ्सूर्यज: प्रयतां मम। अब उन दीपकों से यम की प्रसन्नतार्थ सार्वजनिक स्थलों को प्रकाशित करें। इसी प्रकार एक अखंड दीपक घर के प्रमुख द्वार की देहरी पर किसी प्रकार का अन्न (साबुत गेहूं या चावल आदि)बिछाकर उस पर रखें। (मान्यता है कि इस प्रकार दीपदान करने से यम देवता के पाश और नरक से मुक्ति मिलती है।) देवता यमराज के लिये भी एक लोकप्रिय कथा है।
एक बार यमदूतों ने यमराज को बताया कि महाराज अकाल मृत्यु से हमारे मन भी पसीज जाते हैं। यमराज ने द्रवित होकर कहा कि क्या किया जाए विधि के विधान की मर्यादा हेतु हमें ऐसा अप्रिय कार्य करना ही पड़ता है। यमराज ने अकाल मृत्यु से बचाव के उपाय बताते हुए कहा कि धनतेरस के दिन पूजन एवं दीपदान को विधिपूर्वक करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिल जाता है। जहां-जहां और जिस-जिस घर में यह पूजन होता है वहां अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। इसी घटना से धनतेरस के दिन धनवंतरि पूजन सहित यमराज को दीपदान की प्रथा का भी प्रचलन हुआ।
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धनतेरस के शुभ मुर्हूत में ऐसे होंगी लक्ष्मी प्रसन्न:—
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥
भारतीय संस्कृति और धर्म में शंख का बड़ा महत्व है। विष्णु के चार आयुधो में शंख को भी एक स्थान मिला है। मन्दिरों में आरती के समय शंखध्वनि का विधान है। हर पुजा में शंख का महत्व है। यूं तो शंख की किसी भी शुभ मूहूर्त में पूजा की जा सकती है, लेकिन यदि धनत्रयोदशी के दिन इसकी पूजा की जाए तो दरिद्रता निवारण, आर्थिक उन्नति, व्यापारिक वृद्धि और भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए तंत्र के अनुसार यह सबसे सरल प्रयोग है।यह दक्षिणावर्ती शंख जिसके घर में रहता है, वहां लक्ष्मी का स्थाई निवास होता है। यदि आप भी चाहते हैं कि आपके घर में स्थिर लक्ष्मी का निवास हो तो ये प्रयोग जरुर करें
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ऊं श्रीं क्लीं ब्लूं सुदक्षिणावर्त शंखाय नम:………..उपरोक्त मंत्र का पाठ कर लाल कपड़े पर चांदी या सोने के आधार पर शंख को रख दें। आधार रखने के पूर्व चावल और गुलाब के फूल रखे। यदि आधार न हो तो चावल और गुलाब पुष्पों (लाल रंग) के ऊपर ही शंख स्थापित कर दें। तत्पश्चात निम्न मंत्र का 108 बार जप करें- “मंत्र – ऊं श्रीं”.
अ- 10 से 12 बजे के बीच उपरोक्त प्रकार से सवा माह पूजन करने से-लक्ष्मी प्राप्ति।ब- 12 बजे से 3 बजे के बीच सवा माह पूजन करने से यश कीर्ति प्राप्ति, वृद्धि।स- 3 से 6 बजे के बीच सवा माह पूजन करने से-संतान प्राप्तिइसके अन्य प्रयोग निम्न हैक. सवा महा पूजन के बाद इसी रंग की गाय के दूध से स्नान कराओ तो बन्ध्या स्त्री भी पुत्रवती हो जाती है।ख. पूजा के पश्चात शंख को लाल रंग के वस्त्र मं लपेटकर तिजोरी में रख दो तो खुशहाली आती है।ग. शंख को लाल वस्त्र से ढककर व्यापारिक संस्थान में रख दो तो दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि और लाभ होता है।
हिंदुओं के महत्वपूर्ण त्यौहार दीवाली का आरंभ धन त्रयोदशी के शुभ दिन से हो जाता है. इस समय हिंदुओं के पंच दिवसीय उत्सव प्रारंभ हो जाते हैं जो क्रमश: धनतेरस से शुरू हो कर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली फिर दीवाली, गोवर्धन (गोधन) पूजा और भाईदूज तक उत्साह के साथ मनाए जाते हैं. पौराणिक मान्यताओं अनुसार धनतेरस के दिन ही भगवान धन्वंतरि जी का प्रकाट्य हुआ था, आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि समुद्र मंथन के समय इसी शुभ दिन अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. इस कारण इस दिवस को धनवंतरि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है. धनत्रयोदशी के दिन संध्या समय घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाए जाते हैं. इस वर्ष धन तेरस, सोमवार, कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष 24 अक्तूबर, 2011 को मनाया जाएगा.
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धन त्रयोदशी कथा—
धन त्रोदोदशी के पर्व के संदर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचलित है इस कथा के अनुसार समुद्र-मन्थन के दौरान भगवान धन्वन्तरि इसी दिन समुद्र के दौरान एक हाथ में अमृतकलश लेकर तथा दूसरे हाथ में आयुर्वेदशास्त्र लेकर प्रकट होते हैं उनके इस अमृत कलश और आयुर्वेद का लाभ सभी को प्राप्त हुआ धन्वंतरि जी को आरोग्य का देवता, एवं आयुर्वेद का जनक माना जाता है. भगवान धनवीतरि जी तीनों लोकों में विख्यात देवताओं के वैद्य और चिकित्सा के देवता माने गए हैं. इसके साथ ही साथ यह भगवान विष्णु के अंशावतार भी कहे जाते हैं.
यमदेव की पूजा करने तथा उनके नाम से दीया घर की देहरी पर रखने की एक अन्य कथा है जिसके अनुसार प्राचीन समय में हेम नामक राजा थे, राजा हेम को संतान रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. वह अपने पुत्र की कुंडली बनवाते हैं तब उन्हें ज्योतिषियों से ज्ञात होता है कि जिस दिन उनके पुत्र का विवाह होगा उसके ठीक चार दिन के बाद उनका पुत्र मृत्यु को प्राप्त होगा. इस बात को सुन राजा दुख से व्याकुल हो जाते हैं.
कुछ समय पश्चात जब राजा अपने पुत्र का विवाह करने जाता है तो राजा की पुत्रवधू को इस बात का पता चलता है और वह निश्चय करती है कि वह पति को अकाल मृत्यु के प्रकोप से अवश्य बचाएगी. राजकुमारी विवाह के चौथे दिन पति के कमरे के बाहर गहनों एवं सोने-चांदी के सिक्कों का ढेर बनाकर लगा देती है तथा स्वयं रात भर अपने पति को जगाए रखने के लिए उन्हें कहानी सुनाने लगती है.
मध्य रात्रि जब यम रूपी सांप उसके पति को डसने के लिए आता है तो वह उन स्वर्ण चांदी के आभूषणों के पहाड़ को पार नहीं कर पाता तथा वहां बैठकर राजकुमारी का गाना सुनने लगाता है. ऐसे सारी रात बीत जाती है और सांप प्रात: काल समय उसके पति के प्राण लिए बिना वापस चला जाता है. इस प्रकार राजकुमारी अपने पति के प्राणों की रक्षा करती है मान्यता है की तभी से लोग घर की सुख-समृद्धि के लिए धनतेरस के दिन अपने घर के बाहर यम के नाम का दीया निकालते हैं और यम से प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें अकाल मृत्यु के भय से मुक्त करें.
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धनतेरस की कथा—-
एक बार भगवान विष्णु जी देवी लक्ष्मी के साथ पृथ्वी में विचरण करने के लिए आते हैं. वहां पहुँच कर भगवान विष्णु लक्ष्मी जी सकते हैं कि वह दक्षिण दिशा की ओर जा रहे हैं अत: जब तक वह आपस न आ जाएं लक्ष्मी जी उनका इंतजार करें और उनके दिशा की ओर न देखें. विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी जी बैचैन हो जाती हैं और भगवान के दक्षिण की ओर जाने पर लक्ष्मी भी उनके पीछे चल देती हैं. मार्ग में उन्हें एक खेत दिखाई पड़ता है उसकी शोभा से मुग्ध हो जाती हैं.
खेत से सरसों के फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करती हैं और कुछ आगे जाने पर गन्ने के खेत से गन्ने तोड़ कर उन्हें खाने लगती हैं. तभी विष्णु जी उन्हें वहां देख लेते हैं अपने वचनों की अवज्ञा देखकर वह लक्ष्मी जी को क्रोधवश श्राप देते हैं कि जिस किसान के खेतों में उन्होंने बिना पूछे आगमन किया वह उस किसान की बारह वर्षों तक सेवा करें. इतना कहकर विष्णु भगवान उन्हें छोड़ कर अंतर्ध्यान हो जाते हैं. देवी लक्ष्मी वहीं किसान के घर सेवा करने लगती हैं.
किसान बहुत गरीब होता है उसकी ऐसी दशा देख कर लक्ष्मी जी उसकी पत्नि को देवी लक्ष्मी अर्थात अपनी मूर्ति की पूजा करने को कहती हैं. किसान कि पत्नि नियमित रूप से लक्ष्मी जी पूजा करती है तब लक्ष्मी जी प्रसन्न हो उसकी दरिद्रता को दूर कर देती हैं. किसान के दिन आनंद से व्यतीत होने लगते हैं और जब लक्ष्मीजी वहां से जाने लगती हैं तो वह लक्ष्मी को जाने नहीं देता. उसे पता चल जाता है कि वह देवी लक्ष्मी ही हैं अत: किसान देवी का का आंचल पकड़ लेता है. तब भगवान विष्णु किसान से कहते हैं की मैने इन्हें श्राप दिया था जिस कारण वो यहां रह रही थी अब यह शाप से मुक्त हो गईं हैं.सेवा का समय पूरा हो चुका है.
इन्हें जाने दो परंतु किसान हठ करने लगता है तब लक्ष्मी जी किसान से कहती हैं कि ‘कल तेरस है, मैं तुम्हारे लिए धनतेरस मनाऊंगी तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ रखना संध्या समय दीप जलाकर मेरा पूजन करना इस दिन की पूजा करने से मैं वर्ष भर तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी. यह कहकर देवी चली अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कहे अनुसार लक्ष्मी पूजन किया और उसका घर धन-धान्य से भरा रहा अत: आज भी इसी प्रकार से हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा कि जाती है. ऎसा करने से लक्ष्मी जी का आशिर्वाद प्राप्त होता है.
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केसे करें धनत्रयोदशी की पूजा—
धन त्रयोदशी के दिन घरों को लीप पोतकर कर स्वच्छ किया जाता है ,रंगोली बना संध्या समय दीपक जलाकर रोशनी से लक्ष्मी जी का आवाहन करते हैं. धन त्रयोदशी के दिन नए सामान, गहने, बर्तन इत्यादि ख़रीदना शुभ माना जाता है. इस दिन चांदी के बर्तन ख़रीदने का विशेष महत्व होता है. मान्यता अनुसार इस दिन स्वर्ण, चांदी या बर्तन इत्यादी खरीदने से घर में सुख समृद्धी बनी रहती है. इस दिन आयुर्वेद के ग्रन्थों का भी पूजन किया जाता है.
आयुर्वेद चिकित्सकों का यह विशेष दिन होता है आयुर्वेद विद्यालयों, तथा चिक्कित्सालयों में इस दिन भगवान धन्वन्तरि की पूजा की जाती है. आरोग्य प्राप्ति के लिए तथा जिन व्यक्तियों को शारीरिक एवं मानसिक बीमारियां अकसर परेशान करती रहती हैं, उन्हें भगवान धनवंतरि का धनत्रयोदशी को श्रद्धा-पूर्वक पूजन करना चाहिए ऐसा करने से आरोग्य की प्राप्ति होगी. धनत्रयोदशी को यम के निमित्त दीपदान भी करते हैं जिससे व्यक्ति अकाल मृत्यु के भय से मुक्त होता है

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