शनि बुरा है या अच्छा यह कैसे जाने..??? आइये जाने शनि के प्रभाव, गुण-दोष और साढ़े साती के विषय में…समझाने का एक प्रयास उपाय सहित —-
लोग बेवजह भयभीत हो उठते हैं कि शनिदेव न जाने क्या गजब ढाएगे? जिन लोगों की कुण्डली नहीं बनी होती उनके लिए यह बड़ा प्रश्न होता है कि शनि बुरा है या अच्छा यह कैसे जाने… शनि की प्रतिकूल अवस्था हमारी निदचर्या को भी प्रभावित करती है, जिसे नोट करके जाना जा सकता है कि कही शनि प्रतिकूल तो नहीं।
(१) यदि शरीर में हमेशा थकान व आलस भरा लगने लगे।
(२) नहाने-धोने से अरूचि होने लगे या नहाने का वक्त ही न मिले।
(३) नए कपड़े खरीदने या पहनने का मौका न मिले।
(४) नए कपड़े व जूते जल्दी-जल्दी फटने लगे।
(५) घर में तेल, राई, दाले फैलने लगे या नुकसान होने लगे।
(६) अलमारी हमेशा अव्यवस्थित होने लगे।
(७) भोजन से बिना कारण अरूचि होने लगें
(८) सिर व पिंडलियों में, कमर में दर्द बना रहे।
(९) परिवार में पिता से अनबन होने लगे।
(१०) पढ़ने-लिखने से, लोगों से मिलने से उकताहट होने लगे, चिड़चिड़ाहट होने लगे।
सिद्धियों के दाता सभी विघ्नों को नष्ट करने वाले शनिदेव की जयन्ती . जून ..11 को है. यह सभी ग्रहों में सबसे अधिक शक्तिशाली माने गये हैं. आइये जाने शनि महाराज सभी राशियों को क्या शुभाशुभ फ़ल देने वाले हैं.सिंह, कन्या, तुला राशि पर शनि साढ़ेसाती का शुभाशुभ प्रभाव 14 नवंबर तक रहेगा। ढैय्या विचार- मिथुन व कुंभ राशि वालों को शनि की ढैय्या का अशुभ प्रभाव 14 नंवबर तक होगा।
मेष राशि- को शनि षष्ठ में संचार होने तथा पाया सोना होने से कठिन संघर्ष रहेगा। शनिवार के दिन तेल के साथ काली तिल, जौ और काली उड़द, काला कपड़ा ये सब चढ़ाने से लाभ होता है। ।
वृषभ राशि- को पंचमस्थ शनि पूज्य होगा। पाया लौहपाद होने से उच्च विद्या प्राप्ति में एवं कार्य, व्यवसाय में विघ्न-बाधाएँ होंगी। आय कम व खर्च भी अधिक रहेंगे। शनि का उपाय करना शुभ होगा। शनि की आराधना ‘ॐ शं शनैश्चराय नमः’ से करनी चाहिए।।
मिथुन राशि- चतुर्थ शनि होने से शनि की ढैय्या का प्रभाव अभी रहेगा। इस पर शनि का पाया भी सुवर्ण है जिससे आकस्मिक खर्च बढ़ेंगे तथा घरेलू उलझनें व व्यवसायिक परेशानियों में भी वृद्धि होगी। गृह पीड़ा और रोग पीड़ा निवारण के लिए सूर्यपुत्र शनि देव का अभिषेक करना फलदायी रहता है। ।
कर्क राशि- में शनि तृतीयस्थ होने से शुभफली है। इस राशि को शनि का पाया ताँबा होने से पराम में वृद्धि, निर्वाह योग्य धन प्राप्ति के साधन बनेंगे।।
सिंह राशि- में द्वितीय स्थान का शनि होने से साढ़ेसाती का प्रभाव अभी रहेगा। आर्थिक परेशानियाँ एवं घरेलू उलझनें रहेंगी। परंतु इस पर शनि का पाया रजत होने से गुजारे योग्य आय के साधन बनते रहेंगे। शनि की आराधना ‘ॐ शं शनैश्चराय नमः’ से करनी चाहिए।।
कन्या राशि- में शनि का संचार 14 नवंबर तक रहेगा। शनि साढ़ेसाती का प्रभाव अभी बना रहेगा। तनाव रहेगा, बनते कामों में अड़चनें पैदा होंगी। ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः। मंत्र का जाप करे।।
तुला राशि- में शनि साढ़ेसाती का प्रभाव बना रहेगा जिससे कार्य व्यवसाय में आय कम, परंतु खर्च अधिक रहेंगे। 15 नवंबर से शनि इसी राशि पर संचार करने से आकस्मिक धन लाभ के अवसर भी प्राप्त होंगे।।
वृश्चिक राशि- में 11वाँ शनि शुभफलदायक होगा। . मई से 24 जुलाई तक मंगल की स्वगृही दृष्टि होगी जिससे कुछ बिगड़े काम बनेंगे। निर्वाह योग्य आय के साधन बनेंगे। परंतु खर्च अधिक तथा तनाव भी रहेंगे।।
धनु राशि- में शनि दसवें स्थान पर होने से व्यवसाय एवं परिवार संबंधी कठिन परिस्थितियों का सामना रहेगा। मई के बाद गुरु की दृष्टि शुभ होगी।।
मकर राशि- में शनि नवमस्थ होने से भाग्योन्नति व धन लाभ में अड़चनें पैदा होंगी। शनि का पाया लोहा होने से आय कम परंतु खर्चों में अत्याधिक वृद्धि होगी। शनि स्तोत्र का पाठ करना शुभ होगा।।
कुंभ राशि- में शनि अष्टमस्थ होने से शनि की ढैय्या अभी 14 नवंबर तक रहेगी जिससे व्यवसाय एवं पारिवारिक उलझनें तथा खर्च बढ़ेंगे। पौराणिक मंत्र- नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामी शनैश्चरम्॥।
मीन राशि- में शनि सप्तमस्थ होने से परिवार एवं करियर संबंधी परेशानियाँ रहेंगी। शनि का पाया चाँदी है तथा 7 मई तक गुरु का भी इस राशि पर स्वगृही संचार होने से धर्म-कर्म की ओर रुचि होगी तथा निर्वाह योग्य आय के साधन बनते रहेंगे। ।
शास्त्रो मे शनि के नौ वाहन कहे गये है. शनि की साढेसाती के दौरान शनि जिस वाहन पर सवार होकर (Sadesati gives results according to Saturn’s ride) व्यक्ति की कुण्डली मे प्रवेश करते है. उसी के अनुरुप शनि व्यक्ति को इस अवधि मे फल देते है. वाहन जानने के लिए निम्न विधि से शनि साढ़ेसाती के वाहन का निर्धारण करते हैं
शनि के वाहन निर्धारण का तरीका – 1
व्यक्ति को अपने जन्म नक्षत्र की संख्या (Number of the birth Nakshatra) और शनि के राशि बदलने की तिथि की नक्षत्र संख्या दोनो को जोड कर योगफल को नौ से भाग करना चाहिए. शेष संख्या के आधार पर शनि का वाहन निर्धारित होता है.]
शनि का वाहन जानने की एक अन्य विधि भी प्रचलन मे है. इस विधि मे निम्न विधि अपनाते हैं
शनि के वाहन निर्धारण का तरीका – 2
शनि के राशि प्रवेश करने कि तिथि संख्या+ ऩक्षत्र संख्या +वार संख्या +नाम का प्रथम अक्षर संख्या सभी को जोडकर योगफल को 9 से भाग किया जाता है. शेष संख्या शनि का वाहन बताती है. दोनो विधियो मे शेष 0 बचने पर संख्या नौ समझनी चाहिए.
- अगर शेष संख्या 1 होने पर शनि गधे पर सवार होते है. इस स्थिति मे मेहनत के अनुसार फल मिलते है.
- शेष सँख्या 2 होने पर शनि घोडे पर सवार होते है. और व्यक्ति को शत्रुओ पर विजय दिलाते है.
- शेष सँख्या 3 होने पर शनि को हाथी पर सवार कहा गया है- इस अवधि मे आशा के विपरित फल मिलते है.
- शेष सँख्या 4 होने पर शनि को भैसे पर सवार बताया गया है- ऎसा होने पर व्यक्ति को मिले जुले फल मिलते है.
- शेष सँख्या 5 होने पर शनि सिंह पर सवार होते है. व्यक्ति अपने शत्रुओ को हराता है.
- शेष सँख्या 6 होने पर शनि सियार पर सवार माने गये है. इस दौरान शनि अप्रिय समाचार देते है.
- शेष सँख्या 7 होने पर शनि का वाहन कौआ कहा गया है. साढेसाती की अवधि मे कलह बढती है.
- शेष सँख्या 8 होने पर शनि को मोर पर सवार बताया गया है. व्यक्ति को शुभ फल मिलते है.
- शेष सँख्या 9 होने पर शनि का वाहन हँस कहा गया है. व शनि व्यक्ति को सुख देते है.
- विशेष शेष संख्या 0 आने पर सँख्या 9 समझनी चाहिए- और शनि का वाहन हँस समझना चाहिए-
शनि साढेसाती फल या वाहन के फल
जिस व्यक्ति को शनि की साढेसाती के चरण (If both the Sadesati Phase and Vehicle are unlucky, take care) के फल अशुभ मिल रहे है- तथा शनि का वाहन भी शुभ नही है- तो इस स्थिति मे साढेसाती के दौरान व्यक्ति को विशेष रुप से सावधान रहना चाहिए- इस स्थिति मे व्यक्ति के सामने अनेक चुनोतियाँ आती है- जिनका व्यक्ति को हिम्मत के साथ सामना करना चाहिए
- अगर किसी व्यक्ति को साढेसाती के अशुभ फल (Sadesati is malefic) मिल रहे हो तथा शनि का वाहन शुभ हो तो इस स्थिति मे साढेसाती के कष्टो मे कमी आती है और व्यक्ति को मिला जुला फल मिलता है-
- जिस व्यक्ति के लिए शनि का वाहन शुभ हो तथा साढेसाती के चरण के फल भी शुभ हो तो इस स्थिति मे शुभता बढ जाती है- पर साढेसाती का चरण शुभ तो और वाहन का फल अशुभ आ रहा हो तो व्यक्ति को मिल&जुले फल मिलते है
- शनि का वाहन कुछ व्यक्तियो के लिए शुभ फलकारी है- तथा कुछ के लिए अशुभ फल देने वाला होता है- प्रत्येक व्यक्ति के लिए शनि के फल अलग अलग हो सकते है-
शनि वाहन : गधा (Saturn’s Vehicle – Donkey)
व्यक्ति के लिए शनि का वाहन गधा होने पर शनि की साढेसाती मे मिलने वाले शुभ फलो मे कमी होती है. शनि के इस वाहन को शुभ नही कहा गया है. शनि की साढेसाती की अवधि मे व्यक्ति को कार्यो मे सफलता प्राप्त करने के लिए काफी प्रयास करना होता है. व्यक्ति को मेहनत के अनुरुप ही फल मिलते है. इसलिए व्यक्ति का अपने कर्तव्य का पालन करना हितकर होता है.
शनि वाहन : घोडा (Saturn’s Vehicle – Horse)
शनि का वाहन घोडा होने पर व्यक्ति को शनि की साढेसाती मे शुभ फल मिलते है. इस दौरान व्यक्ति समझदारी व अक्लमंदी से काम लेते हुए अपने शत्रुओ पर विजय हासिल करता है. व व्यक्ति अपने बुद्धिबल से अपने विरोधियों को परास्त करने मे सफल रहता है. घोडे को शक्ति का प्रतिक माना गया है इसलिए इस अवधि मे व्यक्ति के उर्जा व जोश मे बढोतरी होती है.
शनि वाहन : हाथी (Saturn’s Vehicle – Elephant)
जिस व्यक्ति के लिए शनि का वाहन हाथी होता है. उस व्यक्ति के लिए शनि के वाहन को शुभ नही कहा गया है. इस दौरान व्यक्ति को अपनी उम्मीद से हटकर फल मिलते है. इस स्थिति मे व्यक्ति को साहस व हिम्मत से काम लेना चाहिए. तथा विपरित परिस्थितियों मे भी घबराना नहीं चाहिए.
शनि वाहन : भैसा (Saturn’s Vehicle – Buffalo)
शनि का वाहन भैंसा आने पर व्यक्ति को मिले-जुले फल मिलते है. शनि की साढेसाती की अवधि मे व्यक्ति को संयम व होशियारी से काम करना चाहिए. इस सममे मे बातो को लेकर अधिर व व्याकुल होना व्यक्ति के हित मे नही होता है. व्यक्ति को इस समय मे सावधानी से काम करना चाहिए. अन्यथा कटु फलो मे वृ्द्धि होने की संभावना होती है.
शनि वाहन : सिंह (Saturn’s Vehicle – Lion)
शनि का वाहन सिँह व्यक्ति को शुभ फल देता है- सिँह वाहन होने पर व्यक्ति क समझदारी व चतुराई से काम लेना चाहिए- ऎसा करने से व्यक्ति अपने शत्रुओ पर विजय प्राप्त करने मे सफल होता है- अत इस अवधि मे व्यक्ति को अपने विरोधियोँ से घबराने की जरुरत नही होती है-
शनि वाहन : सियार (Saturn’s Vehicle – Jackal)
शनि की साढेसाती के आरम्भ होने पर शनि का वाहन सियार होने पर व्यक्ति को मिलने वाले फल शुभ नही होते है- इस स्थिति मे व्यक्ति को साहस व हिम्मत से काम लेना चाहिए- क्योकि इस दौरान व्यक्ति को अशुभ सूचनाएं अधिक मिलने की संभावनाएं बनती है
शनि वाहन : कौआ (Saturn’s Vehicle – Crow)
व्यक्ति के लिए शनि का वाहन कौआ होने पर उसे शान्ति व सँयम से काम लेना चाहिए- परिवार मे किसी मुद्दे को लेकर विवाद व कलह की स्थिति को टालने का प्रयास करना चाहिए- ज्यादा से ज्यादा बातचित कर बात को बढने से रोकने की कोशिश करनी चाहिए- इससे कष्टो मे कमी होती है
शनि वाहन : मोर (Saturn’s Vehicle – Peacock)
शनि का वाहन मोर व्यक्ति को शुभ फल देता है- इस समय मे व्यक्ति को अपनी मेहनत के साथ&साथ भाग्य का साथ भी मिलता है- शनि की साढेसाती की अवधि मे व्यक्ति अपनी होशियारी व समझदारी से परेशानियों को कम करने मे सफल होता है- इस दौरान व्यक्ति मेहनत से अपनी आर्थिक स्थिति को भी सुधार पाता है-
शनि वाहन : हंस (Saturn’s Vehicle – Swan)
जिस व्यक्ति के लिए शनि का वाहन हँस होता है उनके लिए शनि की साढेसाती की अवधि बहुत शुभ होती है- इस मे व्यक्ति बुद्धिमानी व मेहनत से काम करके भाग्य का सहयोग पाने मे सफल होता है- यह वाहन व्यक्ति के आर्थिक लाभ व सुखो को बढाता है- शनि के सभी वाहनो मे इस वाहन को सबसे अधिक अच्छा कहा गया है-
शनि की साढ़े साती—–
नियमानुसार सभी ग्रह गोचरवश एक राशि से दूसरी राशि में भ्रमण करते हैंशनि ग्रह भी इस नियम का पालन करता है। शनि जब आपके लग्न से बारहवीं राशिमें प्रवेश करता है तो उस विशेष राशि से अगली दो राशि में गुजरते हुए अपनासमय चक्र पूरा करता है। यह समय चक्र साढ़े सात वर्ष का होता हैंज्योतिषशास्त्र में इसे ही साढ़े साती के नाम से जाना जाता है।शनि कीगति चुंकि मंद होती है अत: एक राशि को पार करने में इसे ढ़ाई वर्ष का समयलगता है (। उदाहरण के तौरपर देखें तो माना लीजिए आपके लग्न से बारहवीं राशि है मेष है तो इस राशिमें जब शनि प्रवेश करेगा तब क्रमश: वृष और मिथुन तीन राशियों से गुजरेगाऔर अपना समय चक्र पूरा करेगा।साढ़े साती के शुरू होने को लेकरकई मान्यताएं हैं (। प्राचीन मान्यता के अनुसार जिस दिन शनि का गोचर किसी विशेष राशिमें होता है उस दिन से शनि की साढ़े साती शुरू हो जाती है। यह मान्यताहलांकि तर्क संगत नहीं है फिर भी प्राचीन होने के कारण व्यवहार में है।इसी संदर्भ में एक मान्यता यह भी है कि शनि गोचर में जन्म राशि से बारहवेंराशि में प्रवेश करता है तब साढ़े साती की दशा शुरू हो जाती है और जब शनिजन्म से दूसरे स्थान को पार कर जाता है तब इसकी दशा से मुक्ति मिल जातीहै।तर्क के आधार पर ज्योतिषशास्त्री शनि के आरम्भ और समाप्ति कोलेकर एक गणितीय विधि का हवाला देते हैं। इस विधि में साढ़े साती के शुरूहोने के समय और समाप्ति के वक्त का ज़ायज़ा लेने के लिए चन्द्रमा केस्पष्ट अंशों की आवश्यकता होती है। चन्द्रमा को इस विधि में केन्द्रबिन्दुमान लिया जाता है। चुंकि साढ़े साती के दौरान शनि तीन राशियों से गुजरताहै (अत: तीनों राशियों केअंशों को जोड़ कर दो भागों में विभाजित कर लिया जाता है। इस प्रक्रिया मेंचन्द्र से दोनों तरफ अंश अंश की दूरी बनती है। शनि जबइस अंश केआरम्भ बिन्दु पर पहुचता है तब साढ़े साती का आरम्भ माना जाता है और जबअंतिम सिरे को अर्थात अंश को पार कर जाता है तब इसका अंत माना जाता है।शनि की साढ़े साती की शुरूआत को लेकर जहां कई तरह की विचारधाराएंमिलती हैं वहीं इसके प्रभाव को लेकर भी हमारे मन में भ्रम और कपोल कल्पितविचारों का ताना बाना बुना रहता है। लोग यह सोच कर ही घबरा जाते हैं किशनि की साढ़े साती आज शुरू हो गयी तो आज से भी कष्ट और परेशानियों कीशुरूआत होने वाली है। ज्योतिषशास्त्री कहते हैं जो लोग ऐसा सोचते हैंवेअकारण ही भयभीत होते हैंवास्तव में अलग अलग राशियों के व्यक्तियों परशनि का प्रभाव अलग अलग होता है । कुछ व्यक्तियों को साढ़े साती शुरू होनेके कुछ समय पहले ही इसके संकेत मिल जाते हैं और साढ़े साती समाप्त होने सेपूर्व ही कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और कुछ लोगों को देर से शनि काप्रभाव देखने को मिलता है और साढ़े साती समाप्त होन के कुछ समय बाद तकइसके प्रभाव से दो चार होना पड़ता है अत: आपको इस विषय में घबराने कीआवश्यकता नहीं है।अंत में एक छोटी किन्तु महत्वपूर्ण बात यहकहूंगा कि साढ़े साती के संदर्भ में व्यक्ति के जन्म चन्द्र से द्वादशस्थान का विशेष महत्व है। इस स्थान का महत्व अधिक होने का कारण यह है किद्वादश स्थान चन्द्र रशि से काफी निकट होता है। ज्योतिष परम्परा मेंद्वादश स्थान से काल पुरूष के पैरों का विश्लेषण किया जाता है तो दूसरी ओरबुद्धि पर भी इसका प्रभाव होता है। शनि के प्रभाव से बुद्धि प्रभावित होतीहै और हम अपनी सोच व बुद्धि पर नियंत्रण नहीं रख पाते हें जिसके कारण ग़लतकदम उठा लेते हैं और हमें कष्ट व परेशानी से गुजरना होता है। हमें यादरखना चाहिए कि साढ़े साती के दौरान मन और बुद्धि के सभी दरवाजे़ वखिड़कियां खोल देनी चाहिए और शांत चित्त होकर कोई भी काम और निर्णय लेनाचाहिए।
लक्षण और उपाय—–
जिस प्रकार हर पीला दिखने वाला धातु सोना नहीं होता उस प्रकार जीवन में आने वाले सभी कष्ट का कारण शनि नहीं होता। आपके जीवन में सफलता और खुशियों में बाधा आ रही है तो इसका कारण अन्य ग्रहों का कमज़ोर या नीच स्थिति में होना भी हो सकता है। आप अकारण ही शनिदेव को दोष न दें, शनि आपसे कुपित हैं और उनकी साढ़े साती चल रही है अथवा नहीं पहले इस तत्व की जांच करलें फिर शनि की साढ़े साती के प्रभाव में कमी लाने हेतु आवश्यक उपाय करें।
ज्योतिषशास्त्री कहते हैं शनि की साढ़े साती के समय कुछ विशेष प्रकार की घटनाएं होती हैं जिनसे संकेत मिलता है कि साढ़े साती चल रही है। शनि की साढ़े साती के समय आमतौर पर इस प्रकार की घटनाएं होती है जैसे घर कोई भाग अचानक गिर जाता है। घ्रर के अधिकांश सदस्य बीमार रहते हैं, घर में अचानक अग लग जाती है, आपको बार-बार अपमानित होना पड़ता है। घर की महिलाएं अक्सर बीमार रहती हैं, एक परेशानी से आप जैसे ही निकलते हैं दूसरी परेशानी सिर उठाए खड़ी रहती है। व्यापार एवं व्यवसाय में असफलता और नुकसान होता है। घर में मांसाहार एवं मादक पदार्थों के प्रति लोगों का रूझान काफी बढ़ जाता है। घर में आये दिन कलह होने लगता है। अकारण ही आपके ऊपर कलंक या इल्ज़ाम लगता है। आंख व कान में तकलीफ महसूस होती है एवं आपके घर से चप्पल जूते गायब होने लगते हैं।
आपके जीवन में जब उपरोक्त घटनाएं दिखने लगे तो आपको समझ लेना चाहिए कि आप साढ़े साती से पीड़ित हैं। इस स्थिति के आने पर आपको शनि देव के कोप से बचने हेतु आवश्यक उपाय करना चाहिए। ज्योतिषाचार्य साढ़े साती के प्रभाव से बचने हेतु कई उपाय बताते हैं आप अपनी सुविधा एवं क्षमता के आधार पर इन उपायों से लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आप साढ़े साती के दुष्प्रभाव से बचने क लिए जिन उपायों को आज़मा सकते हैं वे निम्न हैं:
शनिदेव भगवान शंकर के भक्त हैं, भगवान शंकर की जिनके ऊपर कृपा होती है उन्हें शनि हानि नहीं पहुंचाते अत: नियमित रूप से शिवलिंग की पूजा व अराधना करनी चाहिए। पीपल में सभी देवताओं का निवास कहा गया है इस हेतु पीपल को आर्घ देने अर्थात जल देने से शनि देव प्रसन्न होते हैं। अनुराधा नक्षत्र में जिस दिन अमावस्या हो और शनिवार का दिन हो उस दिन आप तेल, तिल सहित विधि पूर्वक पीपल वृक्ष की पूजा करें तो शनि के कोप से आपको मुक्ति मिलती है। शनिदेव की प्रसन्नता हेतु शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए।
शनि के कोप से बचने हेतु आप हनुमान जी की आराधाना कर सकते हैं, क्योंकि शास्त्रों में हनुमान जी को रूद्रावतार कहा गया है। आप साढ़े साते से मुक्ति हेतु शनिवार को बंदरों को केला व चना खिला सकते हैं। नाव के तले में लगी कील और काले घोड़े का नाल भी शनि की साढ़े साती के कुप्रभाव से आपको बचा सकता है अगर आप इनकी अंगूठी बनवाकर धारण करते हैं। लोहे से बने बर्तन, काला कपड़ा, सरसों का तेल, चमड़े के जूते, काला सुरमा, काले चने, काले तिल, उड़द की साबूत दाल ये तमाम चीज़ें शनि ग्रह से सम्बन्धित वस्तुएं हैं, शनिवार के दिन इन वस्तुओं का दान करने से एवं काले वस्त्र एवं काली वस्तुओं का उपयोग करने से शनि की प्रसन्नता प्राप्त होती है।
साढ़े साती के कष्टकारी प्रभाव से बचने हेतु आप चाहें तो इन उपायों से भी लाभ ले सकते हैं। शनिवार के दिन शनि देव के नाम पर आप व्रत रख सकते हैं। नारियल अथवा बादाम शनिवार के दिन जल में प्रवाहित कर सकते हैं। शनि के कोप से बचने हेतु नियमित 108 बार शनि की तात्रिक मंत्र का जाप कर सकते हैं स्वयं शनि देव इस स्तोत्र को महिमा मंडित करते हैं। महामृत्युंजय मंत्र काल का अंत करने वाला है आप शनि की दशा से बचने हेतु किसी योग्य पंडित से महामृत्युंजय मंत्र द्वारा शिव का अभिषेक कराएं तो शनि के फंदे से आप मुक्त हो जाएंगे।
निष्कर्ष के तौर पर हम यह समझ सकते हैं कि जीवन में मुश्किलें तो हज़ार आती हैं, सिकन्दर वही होता है जो मुश्किलों से टकाराकर आगे बढ़ता है।
निकालो रास्ता ऐसा जिससे आप हों बुलंद, मुश्किलें देखकर आपको, फिर देखना कैसे रूख बदलता है।।
कहना यही है कि साढ़े साती से आपको बिल्कुल भयभीत होने की जरूरत नहीं है, आप कुशल चिकित्सक की तरह मर्ज़ को पहचान कर उसका सही ईलाज़ करें।
साढ़े साती शुभ भी—–
शनि की ढईया और साढ़े साती का नाम सुनकर बड़े बड़े पराक्रमी और धनवानों केचेहरे की रंगत उड़ जाती है। लोगों के मन में बैठे शनि देव के भय का कई ठगज्योतिषी नाज़ायज लाभ उठाते हैं। विद्वान ज्योतिषशास्त्रियों की मानें तोशनि सभी व्यक्ति के लिए कष्टकारी नहीं होते हैं। शनि की दशा के दौरान बहुतसे लोगों को अपेक्षा से बढ़कर लाभसम्मान व वैभव की प्राप्ति होती है।कुछ लोगों को शनि की इस दशा के दौरान काफी परेशानी एवं कष्ट का सामना करनाहोता है। देखा जाय तो शनि केवल कष्ट ही नहीं देते बल्कि शुभ और लाभ भीप्रदान करते हैं (। हम विषय की गहराई में जाकर देखें तो शनि का प्रभाव सभी व्यक्ति परउनकी राशिकुण्डली में वर्तमान विभिन्न तत्वों व कर्म पर निर्भर करता हैअत: शनि के प्रभाव को लेकर आपको भयग्रस्त होने की जरूरत नहीं है।आइयेहम देखे कि शनि किसी के लिए कष्टकर और किसी के लिए सुखकारी तो किसी कोमिश्रित फल देने वाला कैसे होता है। ज्योतिषशास्त्री बताते हैं यह ज्योतिषका गूढ़ विषय है जिसका उत्तर कुण्डली में ढूंढा जा सकता है। साढ़े साती केप्रभाव के लिए कुण्डली में लग्न व लग्नेश की स्थिति के साथ ही शनि औरचन्द्र की स्थिति पर भी विचार किया जाता है। शनि की दशा के समय चन्द्रमाकी स्थिति बहुत मायने रखती है। चन्द्रमा अगर उच्च राशि में होता है तो आपमें अधिक सहन शक्ति आ जाती है और आपकी कार्य क्षमता बढ़ जाती है जबकिकमज़ोर व नीच का चन्द्र आपकी सहनशीलता को कम कर देता है व आपका मन काम मेंनहीं लगता है जिससे आपकी परेशानी और बढ़ जाती है।जन्म कुण्डलीमें चन्द्रमा की स्थिति का आंकलन करने के साथ ही शनि की स्थिति का आंकलनभी जरूरी होता है। अगर आपका लग्न वृषमिथुनकन्यातुलामकर अथवा कुम्भहै तो शनि आपको नुकसान नहीं पहुंचाते हैं बल्कि आपको उनसे लाभ व सहयोगमिलता है (। उपरोक्त लग्न वालों केअलावा जो भी लग्न हैं उनमें जन्म लेने वाले व्यक्ति को शनि के कुप्रभाव कासामना करना पड़ता है। ज्योतिर्विद बताते हैं कि साढ़े साती का वास्तविकप्रभाव जानने के लिए चन्द्र राशि के अनुसार शनि की स्थिति ज्ञात करने केसाथ लग्न कुण्डली में चन्द्र की स्थिति का आंकलन भी जरूरी होता है।शनिअगर लग्न कुण्डली व चन्द्र कुण्डली दोनों में शुभ कारक है तो आपके लिएकिसी भी तरह शनि कष्टकारी नहीं होता है (। कुण्डली में अगर स्थिति इसके विपरीत है तो आपको साढ़े साती केदौरान काफी परेशानी और एक के बाद एक कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। अगरचन्द्र राशि आर लग्न कुण्डली उपरोक्त दोनों प्रकार से मेल नहीं खाते होंअर्थात एक में शुभ हों और दूसरे में अशुभ तो आपको साढ़ेसाती के दौरान मिलाजुला प्रभाव मिलता है अर्थात आपको खट्टा मीठा अनुभव होता है।निष्कर्षके तौर पर देखें तो साढ़े साती भयकारक नहीं है शनि चालीसा (में एक स्थान पर जिक्र आया है “गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । हय ते सुखसम्पत्ति उपजावैं।।गर्दभ हानि करै बहु काजा । गर्दभ सिद्घ कर राजसमाजा ।। श्लोक के अर्थ पर ध्यान दे तो एक ओर जब शनि देव हाथी पर चढ़ करव्यक्ति के जीवन प्रवेश करते हैं तो उसे धन लक्ष्मी की प्राप्ति होती तोदूसरी ओर जब गधे पर आते हैं तो अपमान और कष्ट उठाना होता है। इस श्लोक सेआशय यह निकलता है कि शनि हर स्थिति में हानिकारक नहीं होते अत: शनि से भयखाने की जरूरत नहीं है। अगर आपकी कुण्डली में शनि की साढ़े साती चढ़ रहीहै तो बिल्कुल नहीं घबराएं और स्थिति का सही मूल्यांकण करें।
यदि ये लक्षण आप स्वयं में महसूस करें, तो शनि का उपाय करें-
तेल, राई, उड़द का दान करें। पीपल के पेड़ को सीचें, दीपक लगाएँ। हनुमान जी व सूर्य की आराधना करें, मांस-मदिरा का त्याग करें, गरीबों की मदद करें, काले रंग न पहनें, काली चीजें दान करें।
साढ़े साती का नाम ही हमारी नींद उड़ाने के लिए पर्याप्त होता है। शनि वैसे ही कठोर माना जाता है, उस पर साढ़े सात वर्ष उसका हमारी राशि से संबंध होना मुश्किल ही प्रतीत होता है।
वास्तव में साढ़े साती में आने वाले अशुभ फलों की जानकारी लेकर उनसे बचने हेतु अपने व्यवहार में आवश्यक परिवर्तन लाए जाएं तो साढ़ेसाती की तीव्रता कम की जा सकती है। साढ़ेसाती में मुख्यत: प्रतिकूल बातें क्या घटती हैं?
आइए देखें- पारिवारिक कलह, नौकरी में परेशानी, कोर्ट कचहरी प्रकरण, रोग, आर्थिक परेशानी, काम न होना, धोखाधड़ी आदि साढ़ेसाती के मूल प्रभाव है। इनसे बचने के पूर्व उपाय करके, नए खरीदी-व्यवहार टालकर, शांति से काम करके इन परेशानियों को टाला या कम किया जा सकता है। वैसे भी साढ़ेसाती के सातों वर्ष खराब हो, ऐसा नहीं है। जब शनि मित्र राशि या स्व राशि में हो, गुरु अनुकूल हो तो अशुभ प्रभाव घटता है।
मूल कुंडली में शनि ३,६,११ भाव में हो, या मकर, कुंभ, वृषभ, तुला, मिथुन या कन्या में हो तो साढ़ेसाती फलदायक ही होती है। यही नहीं यदि शनि पर गुरु की शुभ दृष्टि हो तो भी साढ़ेसाती से परेशानी नहीं होती। कुंडली में बुध-शनि जैसी शुभ युति हो तो कुप्रभाव नहीं मिलते।
शनि ग्रह के कारण गृह कलह एवं उपाय—– |
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यदि शनि की दृष्टि प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ अथव सप्तम् भाव में प्रभाव डालती है और साथ ही शनि अन्य पापी ग्रहों से सम्बन्ध बनता हों तो ऐसे शनि दाम्पत्य जीवन को उत्साह उमंग से क्षीण, परस्पर अकर्षक से विहीन बनता है। पति-पत्नी एवं परिवार के सदस्य साथ में रहते हुए पृथक रहने के समान जीवन व्यतीत करते हैं। आपस में चिड़चिडापर युक्त, कडवाहट युक्त एवं रूखा व्यवहार करते है। जिसके फलस्वरूप गृह कलह उत्पन्न होती है। |
उपाय— |
1. |
हनुमान चालीसा का पाठ नित्य करें। |
2. |
सोलह सोमवार व्रत करें। |
3. |
स्फाटिक या पारद शिवलिंग पर नित्य गाय का कच्चा दुध चढ़ाए फिर शुद्ध जल चढ़ाऐं और ओम् नमः शिवाय मन्त्र का जाप करें। |
4. |
प्रदोष व्रत रखें। |
5. |
प्रत्येक शनिवार को सूर्योदय के समय पीपल में तिल युक्त जल चढ़ाऐं और शाम को (सूर्यअस्त के बाद) तेल का दीपक जलाऐं..
६. |
शनि गृह की शान्ती के लिये हर शनिवार को पिपल के पेड मे सरसो के तेल का दिपक लगाये, हनुमानजी के दशन करे तथा हनुमान चालिसा का पाठ करे, पत्येक शनिवार को शनिदेव को तेल चढाये तथा दशरथकृत शनि स्रोत का पाठ करे, तथा शनि की होरा मे जलपान नही करे, साथ ही काले कपडे पहने नही|
शनिवार के व्रत की विधि – यह व्रत शनि गृह की अरिष्ट शांति तथा शत्रु भय, आर्थिक संकट, मानसिक संताप का निवारण करता है और धन धान्य और व्यापार में वृद्धि करता है |
प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके शनिदेव की प्रतिमा का विधि से पूजन करना चाहिए। शनि भक्तों को इस दिन शनि मंदिर में जाकर शनि देव को नीले लाजवंती के फूल, तिल, तेल, गुड़ अर्पित करने चाहिए। शनि देव के नाम से दीपोत्सर्ग करना चाहिए। पूजा के बाद उनसे अपने अपराधों व जाने-अनजाने जो भी पाप हुए हों, उसके लिए क्षमा माँगें। इनकी पूजा के बाद राहु और केतु की पूजा भी करना चाहिए। इस दिन शनि भक्तों को पीपल में जल चढ़ाना चाहिए और सूत बाँधकर सात बार परिक्रमा करना चाहिए।
शाम को शनि मंदिर में जाकर दीप भेंट करना चाहिए और उड़द दाल में खिचड़ी बनाकर शनि महाराज को भोग लगाना चाहिए। काली चींटियों को गुड़ व आटा देना चाहिए। इस दिन काले रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए। श्रद्धा से व्रत करने से शनि का कोप शांत होता है
- ये व्रत शुक्ल पक्ष के शनिवार विशेषकर श्रवण मास शनिवार के दिन लोह निर्मित शनि की प्रतिमा को पंचम्रित से स्नान करा कर धूप गंध, नीले पुष्प, फल , तिल, लौंग, सरसों का तेल, चावल, गंगाजल, दूध डाल कर पश्चिम दिशा की और अभिमुख होकर पीपल वृक्ष की जढ़ में दाल दे |
- 19 शनिवार करने के उपरांत उधापन के समय पिपलेश्वर महादेव का पूजन करे|
- इस दिन शनि स्तोत्र का पाठ, जूते, जुराब नीले रंग का वस्त्र , काला छतरी, काले तिल, काले चने,चाकू, नारियल और तेल निर्मित वस्तुओ का सेवन करे और एक समय नमक रहित भोजन करना चाहिए|
- घोडे की नाल का छल्ला पहनना चाहिए|
- हनुमानजी को तेल चढाना चाहिए और संकटमोचन का पाठ करना चाहिए|
शनि की साढ़े साती का जीवन पर प्रभाव कैसे जाने?
शनि की साढेसाती में शनि तीन राशियों पर गोचरवश परिभ्रमण करता है। तीन राशियों पर शनि के गोचर को साढेसाती कहते हैं। जब शनि जन्म या लग्न राशि से बारहवें, पहले व दूसरे हो तो शनि की साढ़े साती होती है। यदि शनि चौथे या आठवें हो तो शनि की ढैया होती है। तीन राशिओं के परिभ्रमण में शनि को साढे़ सात वर्ष लगते हैं। ढाई-ढाई वर्ष के तीन चरण में शनि भिन्न-भिन्न फल देता है। शनि की साढेसाती चल रही है यह सुनते ही लोग भयभीत हो उठते हैं और मानसिक तनाव में आ जाते हैं। ऐसे में उसके मन में आने वाले समय में होने वाली घटनाओं को लेकर तरह-तरह के विचार कौंधने लगते है। शनि की साढेसाती को लेकर परेशान न हों, शनि आपको अनुभवी बनाता है। आईये शनि के चरणों को समझने का प्रयास करते है-
साढेसाती के विभिन्न चरणों का फल- तीनों चरणों हेतु शनि की साढेसाती निम्न रुप से प्रभाव डाल सकती है-
- प्रथम चरण – वृ्षभ, सिंह, धनु राशियों के लिये कष्टकारी होता है।
- द्वितीय चरण – मेष, कर्क, सिंह, वृ्श्चिक, मकर राशियों के लिये प्रतिकूल होता है।
- अन्तिम चरण- मिथुन, कर्क, तुला, वृ्श्चिक, मीन राशि के लिये कष्टकारी माना जाता है।
शनि का साढ़े साती का आपके जीवन पर प्रभाव कैसा होगा इसका विश्लेषण ईमेल पर पा सकते हैं। इसके लिए अपना जन्म विवरण लिखकर भेज दें। आपको ईमेल पर बता देंगे कि शनि आपको कितना सताएगा। इस परेशानी से बचने के क्या उपाय हैं। इसके लिए विवरण फार्म में भरें जोकि सम्पर्क करें में दे रखा है। इसका शुल्क है : रू 500/- प्रथम चरण का फल
साढेसाती का प्रथम चरण-कहते हैं कि इस चरण में शनि मस्तक पर रहता है। इस चरणावधि में व्यक्ति की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है। आय की तुलना में व्यय अधिक होते है। सोचे गए कार्य बिना बाधाओं के पूरे नहीं होते है। आर्थिक तंगी के कारण अनेक योजनाएं आरम्भ नहीं हो पाती है। अचानक धनहानि होती है, अनिद्रा रोग हो सकता है एवं स्वास्थ्य खराब रहता है। भ्रमण के कार्यक्रम बनकर बिगडते रह्ते है। यह अवधि बुजुर्गों हेतु विशेष कष्टकारी सिद्ध होती है। मानसिक चिन्ताओं में वृ्द्धि हो जाती है। पारिवारिक जीवन में बहुत सी कठिनाईयां आती है और परिश्रम के अनुसार लाभ नहीं मिलता है.
साढे़ साती का द्वितीय चरण
व्यक्ति को शनि साढेसाती की इस अवधि में पारिवारिक तथा व्यवसायिक जीवन में अनेक उतार-चढाव आते है। उसके संबंधी भी उसको कष्ट देते है, उसे लम्बी यात्राओं पर जाना पड सकता है और घर-परिवार से दूर रहना पड़ता है। रोगों में वृ्द्धि होती है, संपति से संम्बन्धित मामले परेशान कर सकते है। मित्रों एवं स्वजनों का सहयोग समय पर नहीं मिल पाता है. कार्यों के बार-बार बाधित होने के कारण व्यक्ति के मन में निराशा घर कर जाती है। कार्यो को पूर्ण करने के लिये सामान्य से अधिक प्रयास करने पडते है. आर्थिक परेशानियां तो मुहं खोले खड़ी रहती हैं।
साढे साती का तीसरा चरण
शनि साढेसाती के तीसरे चरण में भौतिक सुखों में कमी होती है, उसके अधिकारों में कमी होती है और आय की तुलना में व्यय अधिक होता है, स्वास्थय संबन्धी परेशानियां आती है, परिवार में शुभकार्य बिना बाधा के पूरे नहीं होते हैं। वाद-विवाद के योग बनते है और संतान से वैचारिक मतभेद उत्पन्न होते है. यह अवधि कल्याण कारी नहीं रह्ती है. इस चरण में वाद-विवादों से बचना चाहिए…
सद्कर्मों से प्रसन्न करें शनि को—– |
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सूर्य देव के पुत्र शनि बचपन से लेकर युवावस्था तक बहुत क्रोध किया करते थे, लेकिन बाद में इन्हीं को न्याय के सिंहासन पर बैठा दिया गया। शनि मनुष्यों के सद्कर्मों का अच्छा फल देने में कोई कमी नहीं करते, वहीं अगर कर्म बुरे हों तो उनका वही क्रोध सामने आ जाता है। शनि की साढ़ेसाती सभी के जीवन में एक बार जरूर आती है। इसके नाम से ही कुछ लोग भयभीत हो जाते हैं, लेकिन इससे डरने की कोई जरूरत ही नहीं है। सद्कर्म करने वालों के लिए साढ़ेसाती अच्छी भी होती है।
सद्कर्मों से प्रसन्न करें शनि को :- भगवान सूर्य और देवी छाया के पुत्र शनि से लोग भयभीत रहते हैं। सच तो ये है कि उनसे डरने का कोई कारण ही नहीं है। अगर सद्कर्म की राह पर चलें तो शनि की साढ़ेसाती भी लाभ ही प्रदान करती है। विद्वान ज्योतिषियों की मानें तो शनि सभी व्यक्तियों के लिए कष्टकारी नहीं होते हैं। शनि की दशा के दौरान बहुत से लोगों को उम्मीद से ज्यादा लाभ मिलता है। हालाँकि कुछ लोगों को कष्ट का सामना भी करना पड़ता है। शनि का प्रभाव लोगों पर उनकी राशि, कुंडली में वर्तमान विभिन्न तत्वों व कर्म पर निर्भर करता है। शनि किसी के लिए सुखकारी और किसी को मिश्रित फल देता है।
कैसे हैं शनि :- साढ़ेसाती के प्रभाव के लिए कुंडली में लग्न व लग्नेश की स्थिति के साथ ही शनि और चंद्र की स्थिति पर भी विचार किया जाता है। शनि की दशा के समय चंद्रमा की स्थिति बहुत मायने रखती है। चंद्रमा अगर उच्च राशि का होता है तो आपमें अधिक सहनशक्ति आ जाती है। कार्यक्षमता बढ़ जाती है जबकि कमजोर व नीच का चंद्र सहनशीलता को कम कर देता है, जिससे काम में मन नहीं लगता है।
तो नहीं पहुँचाएँगे नुकसान :- अगर आपका लग्न वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर अथवा कुंभ है तो शनि आपको नुकसान नहीं पहुँचाते हैं। और तो और वे आपका सहयोग करते हैं। इनके अलावा जो भी लग्न हैं, उनमें जन्म लेने वाले व्यक्ति को शनि के कुप्रभाव का सामना करना पड़ता है। शनि जब देव हाथी पर चढ़कर व्यक्ति के जीवन में प्रवेश करते हैं तो उसे धन की प्राप्ति होती है। दूसरी ओर जब गधे पर आते हैं तो अपमान और कष्ट उठाना पड़ता है।
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वर्ष 2011 में मंगल, गुरु, राहु आदि ग्रहों का भी राशि परिवर्तन होने से शनि के गोचर फल का भी न्यूनाधिक रूपेण अंतर पड़ जाएगा। सिंह, कन्या, तुला राशि पर शनि साढ़ेसाती का शुभाशुभ प्रभाव 14 नवंबर तक रहेगा।
ढैय्या विचार- मिथुन व कुंभ राशि वालों को शनि की ढैय्या का अशुभ प्रभाव 14 नंवबर तक होगा।
मेष राशि- को शनि षष्ठ में संचार होने तथा पाया सोना होने से कठिन संघर्ष रहेगा। परंतु वर्ष के पूर्वार्द्ध में मंगल की स्वगृही दृष्टि, फिर मई में मंगल व गुरु की स्थिति होने से निर्वाह योग्य आय के साधन बनते रहेंगे।
वृषभ राशि- को पंचमस्थ शनि पूज्य होगा। पाया लौहपाद होने से उच्च विद्या प्राप्ति में एवं कार्य, व्यवसाय में विघ्न-बाधाएँ होंगी। आय कम व खर्च भी अधिक रहेंगे। शनि का उपाय करना शुभ होगा।
मिथुन राशि- चतुर्थ शनि होने से शनि की ढैय्या का प्रभाव अभी रहेगा। इस पर शनि का पाया भी सुवर्ण है जिससे आकस्मिक खर्च बढ़ेंगे तथा घरेलू उलझनें व व्यवसायिक परेशानियों में भी वृद्धि होगी। शनि को शांति करानी शुभ होगी।
कर्क राशि- में शनि तृतीयस्थ होने से शुभफली है। इस राशि को शनि का पाया ताँबा होने से पराक्रम में वृद्धि, निर्वाह योग्य धन प्राप्ति के साधन बनेंगे। वर्षारंभ में मंगल की नीच दृष्टि से स्वास्थ्य हानि व खर्च भी बढ़ेंगे।
सिंह राशि- में द्वितीय स्थान का शनि होने से साढ़ेसाती का प्रभाव अभी रहेगा। आर्थिक परेशानियाँ एवं घरेलू उलझनें रहेंगी। परंतु इस पर शनि का पाया रजत होने से गुजारे योग्य आय के साधन बनते रहेंगे।
कन्या राशि- में शनि का संचार 14 नवंबर तक रहेगा। शनि साढ़ेसाती का प्रभाव अभी बना रहेगा। इस पर शनि का पाया लौह होने से आय सीमित परंतु खर्च अधिक रहेंगे। तनाव रहेगा, बनते कामों में अड़चनें पैदा होंगी।
तुला राशि- में शनि साढ़ेसाती का प्रभाव बना रहेगा जिससे कार्य व्यवसाय में आय कम, परंतु खर्च अधिक रहेंगे। शनि का पाया ताम्र होने से निर्वाह योग्य आय के साधन बनते रहेंगे। 15 नवंबर से शनि इसी राशि पर संचार करने से आकस्मिक धन लाभ के अवसर भी प्राप्त होंगे।
वृश्चिक राशि- में 11वाँ शनि शुभफलदायक होगा। 3 मई से 24 जुलाई तक मंगल की स्वगृही दृष्टि होगी जिससे कुछ बिगड़े काम बनेंगे। निर्वाह योग्य आय के साधन बनेंगे। परंतु इस पर शनि का पाया सुवर्ण होने से खर्च अधिक तथा तनाव भी रहेंगे।
धनु राशि- में शनि दसवें स्थान पर होने से व्यवसाय एवं परिवार संबंधी कठिन परिस्थितियों का सामना रहेगा। खर्चों में भी विशेष अधिकता होगी। इस पर पाया चाँदी होने से निर्वाह योग्य आय के साधन बनते रहेंगे। मई के बाद गुरु की दृष्टि शुभ होगी।
मकर राशि- में शनि नवमस्थ होने से भाग्योन्नति व धन लाभ में अड़चनें पैदा होंगी। शनि का पाया लोहा होने से आय कम परंतु खर्चों में अत्याधिक वृद्धि होगी। गुप्त चिंताएँ भी रहेंगी। शनि स्तोत्र का पाठ करना शुभ होगा।
कुंभ राशि- में शनि अष्टमस्थ होने से शनि की ढैय्या अभी 14 नवंबर तक रहेगी जिससे व्यवसाय एवं पारिवारिक उलझनें तथा खर्च बढ़ेंगे। यद्यपि शनि का पाया ताँबा होने से गुजारे योग्य आमदनी के साधन बनते रहेंगे।
मीन राशि- में शनि सप्तमस्थ होने से परिवार एवं करियर संबंधी परेशानियाँ रहेंगी। शनि का पाया चाँदी है तथा 7 मई तक गुरु का भी इस राशि पर स्वगृही संचार होने से धर्म-कर्म की ओर रुचि होगी तथा निर्वाह योग्य आय के साधन बनते रहेंगे। खर्चों में भी अधिकता रहेगी।