राजयोग भी बताती हे हस्तरेखाएँ—-
हस्तरेखाओ से जाने राजयोग का रहस्य —-
अक्षया जन्मपत्रीयं ब्रह्मणा निर्मिता स्वयम्।
ग्रहा रेखाप्रदा यस्यां यावज्जीवं व्यवस्थिता।।
हस्त संजीवन के अनुसार मनुश्य का हाथ एक ऐसी जन्म पत्रिका है जो कभी नश्ट नही होती तथा स्वंय ब्रह्म ने बनवाया है। इस जन्मपत्रिका मे किसी भी प्रकार का गृह गणित की व्यवस्थाओ मे त्रुटि होना असंभव है। इस जन्मपत्री मे रेखाएं व चिन्ह गृह की तरह ही फल देने की सामथ्र्य रखती है। यही मात्र एक ऐसी जन्तपत्रिका जो सम्पूर्ण जीवन भर व्यवस्थित रूप मे साथ रहती है। तीनो लोको मे हस्तरेखा से बढकर कोई भविश्यकथन का उत्तम षास्त्र नही है।
हस्तेन पाणिगृहणं पूजाभोजनषान्तयः।
साध्या विपक्षविध्वंसप्रमुखाः सकलाः क्रियाः।।
हाथ ही समस्त कर्मो का साधन है। इसके द्वारा ही संसार के धर्म के पालन के लिए विवाह समय पाणिगृहण किया जाता है। इसी से पूजा,यज्ञ,दान,भोजन,षान्तिकर्म एवं विपक्षियो का विध्वंस किया जाता है। इस कारण से हस्त का अत्युत्तम महत्व सर्वविदित है। मनुश्य स्वाभाविक जिज्ञासु होता है। जिससे वह अपने भाविश्य के बारे मे जानकारी प्राप्त करने हेतु अपना हाथ दिखाता फिरता है। मनुश्य की इसी जिज्ञासा को षांत करने उदृेष्य से समुद्व मुनि ने हस्तरेखा विघा प्रकाषित कर लोगो का उपकार किया।
हस्तरेखाओ के द्वारा राजयोग की जानकारी ——
(.) जिस जातक के हाथ मे दसो अंगुलियो पर चक्र के निषान हो तो उसको उत्त्मोउत्तम राजयोग की प्राप्ति अवष्य होती है। महाराजा दुश्यन्त ने जब षेर के दांत गिनते हुए बालक को देखा तो उनकी इच्छा उस बालक के हाथ को देखे बिना षांत नही हुई। जब महाराजा ने बालक के हाथ मे दस चक्र के निषान देखे तो उन्होने पुर्णतया विष्वास के साथ कहा कि यह मेरा ही बालक हो सकता है। यही बालक आगे चलकर भरत नाम का चक्रवती सम्राट बना। किसी भी जातक के हाथ पर यदि चक्र का निषान हो तो उसे राजयोग की प्राप्ति अवष्य होती है। जितने चक्र अधिक होंगे या जितना चक्र स्पश्ट रूप से दृश्ट होगा उतना ही प्रबल राजयोग होता है।
(.) हाथ एवं अगंुलियो के पृश्ट भाग पर यदि एक छिद्र मे एक ही बाल हो तो उसे भी राजयोग की प्राप्ति अवष्य होती है। बालो का मुलायम होना एवं उनमे चमक भी रहना राजयोग को बढ़ाने वाले होते है।
(.) अंगुठे के अग्र भाग पर स्टार का चिन्ह होना राजयोग का कारक है। ऐसे जातक जनप्रतिनिधि होते है। यदि इस चिन्ह पर आडी या तिरछी रेखा टुटी फुटी हो तो राजयोग मघ्यावधि मे ही समाप्त हो जाता है।
(4) जिस जातक के नाखुन कछुए की पीठ की तरह उठाव लिए हुए, लाल, चमकीले पतले एव गुलाब की रंगत वाले हो तो जातक को राजयोग प्राप्त होता है।
(5) यदि जातक के हाथ मे समुद्व, अंकुष, कुण्डल या छत्र का चिन्ह हो तो ऐसा व्यक्ति राजयोग का सुख अवष्य भोगता है। स्वास्तिक, चॅवर, सिहासन, मुकुट, मछली, छत्र, ध्वजा, दण्ड, हाथी का चिन्ह हो उसे भी रातयोग प्राप्त होता है।
(6) जातक का अंगुठा मजबुत, 9.‘ से अधिक व कम कोण न बनाता हो, अंगुठा फेलाने पर तर्जनी अंगुजी के प्रथम पोर से आगे निकलता हो, अंगुठे के बीच मे केदार का चिन्ह हो तो जातक को राजयोग की प्रथम पोर से आगे निकलता हो, अंगुठे के बीच मे केदार का चिन्ह हो तो जातक को राजयोग की प्राप्ति अवष्य होती है।
(7) अनामिका के पहले पर्व उध्र्व रेखा हो, सूर्य रेखा भी स्पश्ट नजर आ रही हो तो जातक को राजयोग की प्राप्ति होती है। उध्र्व रेखा व सूर्य रेखा जितनी अधिक स्पश्ट होगी उतना ही प्रबल राजयोग होगाा।
(8) मणिबंध से षनि पर्वत की ओर जाने वाली रेखा को भाग्य रेखा कहते है। यदि भाग्य रेखा अंगुठे की तरफ जा रही हो तो किसी मंत्री के कारण राज्य सुख, तर्जनी की तरफ जाए तो मत्री पद, मध्यमा के मूल की तरफ जा रही हो तो राजसुख,
(9) मणिबंध की रेखाओ के बीच मे यव का निषान होने पर राज्य सुख की प्राप्ति होती है। यदि मणिबंध रेखाओ के पिछली तरफ यव का निषान हो तो तब भी राजयोग की प्राप्ति अच्छी रहती है।
(10) भाग्य रेखा का स्पश्ट होना, षनि पर्वत उभार लिए हो व सूर्य पर्वत भी उभरा हो, इन पर किसी प्रकार का अषुभ चिन्ह न हो तो राजयोग की प्राप्ति होती है।
राजयोग के क्षैत्र सम्बंन्धी जानकारी हेतु गृहो के पर्वतो की स्थिति का अवलोकन करना चाहिए। वृह पर्वत प्रधान हो एवं षुभ संकेत भी हो तो अध्यापन के श्रेत्र मे, बुध पर्वत प्रधान होने पर भी अध्यापन, लेखा कार्यो से मंगल पर्वत के प्रधान होने पर पुलिस सेना एवं अन्य साहसिक कार्यो वाली सेवा, चंद्र प्रधान हो तो चिकित्सा विभाग मे, षुक्र बलवान होने पर मनोरंजन विभागीय राजकीय सेवा प्राप्त होती है। सूर्य बलवान होने पर उच्च स्तर की राजकीय सेवा प्राप्त होती है। किसी भी प्रकार से सेवा योग नही बन रहा हो तो जातक को अलौकिक विघा का सहारा लेना चाहिए।