किस मुहूर्त में क्या करें, क्या ना करें?????
मानव मात्र के दैनिक जीवन में प्रायः हर कार्य की सफलता के लिये बड़ी श्रद्धा और तत्परता से मुहूत्र्त का उपयोग किया जाता है। यही हमारा भारतीय धर्म है, ऋषियों की वांणी है, वेद-शास्त्र पुराण का आदेश है। हम यदि मुहूत्र्त को मानते हैं तो बारीकी से उसका पालन भी करना चाहिये। यदि हम नहीं मानते तो जबरन मनाने की कोशिश कोई भी हमारे साथ नहीं कर सकता। जिन ऋषियों के वंश-परंपरा में जिस माता-पिता ने हमें जन्म दिया है, उसी माता-पिता के बताये हुये मार्ग को यदि हम भूल जायें अथवा आलस्य-प्रमाद वश पालन न करें तो हमारी गुस्ताखी होगी।
बहुधा हम अपने पारिवारिक जीवन में पंडित जी से विवाह का मुहूत्र्त निकलवा लेते हैं। पंडित जी ने पर्याप्त गणना करके रात्रि .. बजकर 4. मिनट पर पाणिग्रहण या हस्तमिलाप का उत्तम मुहूत्र्त मिलाया है। लेकिन अपने इष्ट-मित्र, रिश्तेदारों और पड़ोसियों को इकट्ठा करके कन्या पक्ष के दरवाजे पर रात 10 बजे बारात लेकर पहुंचते हैं मर्यादावश कन्या पक्ष बारातियों के स्वागत-सत्कार में रात्रि के बारह-एक बजे तक व्यस्त हो जाता है। अब यहाँ उस विवाह मुहूत्र्त की क्या उपयोगिता सिद्ध हुई और विवाह के बाद परिणाम क्या होता है,
अतः दिग्भ्रमित समाज से प्रार्थना है कि मुहूत्तों के उपयोग में केवल दिखावापन तथा औपचारिकता का
पूर्णतः त्याग करें, और अपने हर कार्य के सुसम्पादन हेतु यदि मुहूत्र्त निकलवाते हैं तो उसका सही ढंग से
पालन भी करें। इस प्रकरण में हम कुछ आवश्यक मुहूत्र्त की जानकारी दे रहे है, स्वयं पंचांग में तलाश
कीजिये। जिस तारीख को निर्देशित तिथि, वार, नक्षत्र, लग्न वगैरह सही ढंग से मिल जायें तो उसी
समय अपने प्रयोजनीय कार्य का सम्पादन करे—
1. नवीन वस्त्र धारण- तीनों उत्तरा, रोहिणी,पुष्य, पुनर्वसु, रेवती, अश्विनी, हस्त, चित्रा, स्वाति,विशाखा, अनुराधा और घनिष्ठा, नक्षत्रों में मूंगा,सोना, हाथी दाँत की वस्तु धारण करना शुभ है।शनि, सोम और मंगलवार एवं 4, 9, 14 तिथि मना है।
2. ऋण देना व ऋण लेना- स्वाति, पुनर्वसु,विशाखा, पुष्य, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, अश्विनी,मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा नक्षत्र हों, पंचम-नवम में शुभ ग्रह; किन्तु आठवें में कोई ग्रह न हों और सोम,गुरु, शुक्रवार हो तो ऋण का लेन-देन कर सकते हैं।
.-सामान खरीदना- रिक्ता तिथि न हो,वार कोई भी हो, रेवती, शतभिषा, अश्विनी, स्वाति,श्रवण और चित्रा नक्षत्र शुभ है।
4. सामान बेचना- रिक्ता तिथि न हों,तीनों पूर्वा, विशाखा, कृतिका, आश्लेषा और भरणी नक्षत्र अच्छे हैं, पर कुंभ हो तो अच्छा है।
5. आरोग्य स्नान- शुक्र और सोमवार को छोड़कर अन्य वारों में, और तीनों उत्तरा-रोहिणी को छोड़कर अन्य नक्षत्रों में तथा चर लग्न में स्नान शुभ है। लग्न से केन्द्र, त्रिकोण और ग्यारहवे में पापग्रह रहना शुभ है।
6. दुकान खोलना या बाजार लगाना-विशाखा, कृतिका, तीनों उत्तरा, रोहिणी, हस्त, अश्विनी एवं पुष्य नक्षत्रों में, रिक्ता तिथि मंगलवार और कुंभ लग्न छोड़कर शेष तिथि, वार और लग्न में दुकान खोलना व बाजार लगाना अच्छा है।
7. नौकरी- हस्त, अश्विनी, पुष्य, मृगशिरा,रेवती, चित्रा, अनुराधा-नक्षत्रों में, बुध, शुक्र, रवि और हस्पतिवार में तिथि कोई भी हो, तो ऐसे समय में नौकरी करना अच्छा है। परन्तु मालिक के नाम से योनि मैत्री-राशि मैत्री और वर्ग मैत्री मिलान कराना जरूर है।
8. प्रथम ऋतुमती स्त्री का स्नान- हस्त, स्वाति, अश्विनी, मृगशिरा अनुराधा, धनिष्ठा, ज्येष्ठा, तीनों उत्तरा व रोहिणी नक्षत्र में और शुभ तिथि तथा शुभ दिन में स्नान शुभ है। यदि मृगशिरा, रेवती, स्वाति, हस्त, अश्विनी और रोहिणी में स्नान करें तो शीघ्र गर्भ की स्थिति होती है।
9. प्रसूति का स्नान- रेवती, मृगशिरा, हस्त, स्वाति, अश्विनी, अनुराधा, तीनों उत्तरा और रोहिणी नक्षत्रों में तथा रवि, भौम और बृहस्पति को स्नान शुभ है। आद्र्रा, पुनर्वसु, पुष्य, श्रवण, मधा, भरणी, मूल, विशाखा, कृत्तिका, चित्रा नक्षत्र, बुध, शनिवार, अष्टमी और षष्ठी और रिक्ता तिथि में प्रसूती स्नान शुभ नहीं हैं शेष वारादिक में मध्यम है।
10. घर के किस तरफ कुआँ है, क्या फल देता है?- घर के बीच में कुआँ बनाने से धन की हानि, ईशान कोण में पुष्टि, पूर्व में ऐश्वर्य वृद्धि, अग्नि कोण में पुत्र-नाश, दक्षिण में स्त्री नाश, नैऋत्य में गृह-कर्ता की मृत्यु, परिश्रम में शुभ, वायव्य में शत्रु से पीड़ा और उत्तर में सुख होता है। अतः घर के उत्तर, पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर-पूर्व कोण पर कुआँ शुभ होता है।
11. यात्रा करने के मुहूत्र्त में योगिनीविचार- नवमी-प्रतिपदा को योगिनी का वास पूर्व दिशा में, एकादशी तीज को अग्नि कोण में, तेरह-पंचमी को दक्षिण में, द्वादशी-चैथ को नैऋत्य दिशा में, षष्ठी चतुर्दशी को पश्चिम में, पूर्णमासी-सप्तमी को वायव्य दिशा में, दशमी और दूज को उत्तर में और अष्टमी अमावस्या को ईशान कोण में योगिनी का वास रहता है। यात्रा में सन्मुख व दाहिने योगिनी अशुभ है, बायें और पीछे शुभ मानकर यात्रा करनी चाहिये।
12. चन्द्रमा वास ज्ञान- मेष, सिंह और धनु के चन्द्रमा का वास एवं दिशा मंे होता है। वृष-कन्या-मकर का चन्द्र दक्षिण में, मिथुन, तुला, कुंभ का चन्द्र वास पश्चिम में और कर्क-वृश्चिक-मीन का चन्द्र वास उत्तर में होता है।
13. चन्द्रमा का फल- यात्रा में सन्मुख चन्द्रमा हो तो अर्थ लाभ, दाहिने हो तो सुख सम्पदा, पीछे हो तो शोक-सन्ताप, बाँये हो तो धन का नाश होता है। चन्द्र विचार, योगिनी विचार और दिक्शूल विचार प्रत्येक महत्वपूर्ण यात्रा में अनिवार्य माना जाता है।
14. अग्नि-वास- जिस दिन हवन करना हो, उस दिन हवन-समय की तिथि-संख्या में रव्यादिवार-संख्या के योग मेें 1 जोड़कर 4 से भाग दें। शेष 0 या 3 बचे तो अग्नि का वास पृथ्वी मंे रहता है, हवन सुखदायक होता हैं। 1 शेष बचे तो अग्नि-देव स्वर्ग में रहते हैं, उस दिन हवन करना प्राण नाशक होता है। 2 शेष बचे तो अग्नि का वास पाताल में रहता है, उस तिथि में हवन करने से धन का नाश होता है।
15. बही खाता लिखने का प्रारंभिक मुहूत्र्त –अश्विनी, रोहिणी, पुनर्वसु, पुष्य, तीनों उत्तरा, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल, श्रवण, रेवती नक्षत्र के साथ रवि, सोम, बुध, गुरु, शुक्रवार, 2, 3, 5, 7, 8, 10,
11, 12, 13, 15 तिथियाँ हों तो चर लग्न एवं द्विस्वभाव लग्न में बही खाता-लेजर लिखना आरंभ करना चाहिये। केन्द्र-त्रिकोण में शुभग्रह रहना ठीक है।
16. अर्जी-दावा दायर करने का मुहूत्र्त- भद्रा, वैद्यृति, व्यतीपात सहित रिक्ता तिथि 4, 9, 14, मंगलवार, शनिवार को भरणी, कृत्तिका, आद्र्रा, आश्लेषा, मधा, पू० फा०, विशाखा, ज्येष्ठा, पू० षा०, धनिष्ठा, शतभिषा और पू० भा० नक्षत्र मिले तो चर लग्न में नालिश-अर्जी-दावा दायर करना चाहिये।
पं0 दयानन्द शास्त्री
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार,
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) 326023
मो0 नं0…..

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