मेलापक पद्वति–आचार्य एल.डी.शर्मा
ज्योतिष शास्त्र नक्षत्र, योग, ग्रह तथा राशि आदि के तत्वों के आधार पर व्यक्ति के स्वभाव व गुणों का निश्चय कर यह बतलाता है कि अमुक नक्षत्र, ग्रह और राशि के प्रभाव से उत्पन्न पुरुष का अमुक नक्षत्र, ग्रह और राशि से उत्पन्न नारी के साथ संबंध करना अनुकूल रहेगा या नहीं। ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक माना गया है। आचार्यों ने जन्म के समय चंद्रमा की स्थिति के आधार पर ही जन्म राशि तथा जन्म नक्षत्र के द्वारा मेलापक पद्वति का ज्ञान करना बताया है।
मेलापक पद्वति में जिन आठ बातों पर कुंडली मिलान की प्रक्रिया अपनायी जाती है, उनमें से एक से लेकर आठ तक का योग .6 बनता है। तथा निम्न क्रमानुसार उनके गुणों की संख्या निर्धारित है, जैसेः
वर्णः एक गुण
वश्यः दो गुण
ताराः तीन गुण
योनिः चार गुण
ग्रह मैत्रीः पांच गुण
गण मैत्रीः छह गुण
भकूटः सात गुण
नाड़ीः आठ गुण
इस तरह कुल योग 36 हुआ। गुणों की संख्या के आधार पर मिलान करने का नियम निर्धारित है। जितने अधिक गुण मिलते हैं, उसको उतना ही अच्छा माना गया है।
यहां अलग-अलग विधि का ज्ञान आपको कराने का प्यास किया जा रहा है, ताकि जन साधारण भी इस वैज्ञानिक पद्वति को समझ कर इसका लाभ पूरी तरह से उठा सके। साथ ही यहां यह भी बताया जाएगा कि आठ बिंदुओं में से प्रत्येक बिंदू अलग-अलग किन गुणों का प्रतिनिधित्व करता है। सबसे पहले लेते हैं वर्ण को…
वर्णः-ऋषियों ने बारह राशियों को चार प्रकार के वर्ण में विभाजित कर उनके बारे में बताया है। ये चार विभाजन ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के रूप में बताये गये हैं। इसी तरह हरेक वर्ण से संबंधित राशियां भी निर्धारित हैं। ब्राह्मण गुण वाली राशियां कर्क, वृश्चिक तथा मीन हैं। क्षत्रिय वर्ण वाली राशियां मेष, सिंह तथा धनु हैं। वैश्य वर्ण वाली राशियां वृष, कन्या तथा मकर हैं और क्षूद्र वर्ण वाली राशियां मिथुन, तुला व कुंभ हैं। उक्त राशियो से संबंधित जातक संबंधित वर्ण के गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
ब्राह्मण वर्ण वाली राशियां ज्ञान, शिक्षा, खोज आदि के कार्यो में प्रवीणता लिए हुए होती हैं। क्षत्रिय वर्ण वाली राशियां सामाजिक रक्षा, सेना, पुलिस आदि सशस्त्र वलों के कार्यों की संचालन योग्यता रखने वाली होती हैं। वैश्य वर्ण सामाजिक आश्यकताओं की पूर्ति और उत्पत्ति आदि के विषय में योग्यता रखती है। शूद्र वर्ण वाली राशियां परिश्रम आदि के विषय में प्रवीणता रखती हैं।
कुंडली मिलान में उपरोक्त वर्णित विशेषताओं के प्रतिनिधित्व के गुणों द्वारा इस बात पर जोर दिया गया है कि कन्या का वर्ण वर के वर्ण से श्रेष्ठ नहीं होना चाहिए, जैसे कन्या वर्ण शूद्र है तो वर के किसी भी वर्ण से (36 गुणों में) एक गुण प्राप्त होगा। कन्या का वैश्य वर्ण होने पर वर के अन्य वर्णों से भी एक गुण प्राप्त होगा, परंतु यदि वर्ण शद्र वर्ण से संबंधित है तो शून्य गुण ही प्राप्त हो पाएगा।
कन्या का क्षत्रिय वर्ण होने पर वर केवल ब्राह्मण या क्षत्रिय वर्ण का ही होना चाहिए, तभी एक गुण प्राप्त होगा। अन्य वर्णों वैश्य या शूद्र वर्ण के वर से शून्य गुण ही प्राप्त हो पाएगा। इसी तरह यदि कन्या ब्राह्मण वर्ण की है तो वर का वर्ण भी ब्राह्मण होना चाहिए, तभी एक गुण प्राप्त होगा। अन्य तीनों वर्णों के वर से शून्य गुण ही प्राप्त हो पाएगा।
वश्यः-यह दूसरा बिंदू है, जिससे कुछ राशियों का संबंध चतुष्पादों से कुछ का द्विपाद से तथा अन्य राशियों का कीट, सर्प एवं जलचर से संबध बताया गया है। दोनों वर-वधु की कुंडली के मिलान का तात्पर्य वश्य के पूरी तरह मिलने से दो गुण (36 गुण में से) तथा कुछ समानता पाए जाने पर एक गुण और असमानता पाए जाने पर शून्य गुण प्राप्त होते हैं। इन्हीं गुणों का योग आगे जाकर कुंडली मिलान में कुल जितने गुण मिलते हैं, के योग में समाहित करते हैं।
आचार्य एल.डी.शर्मा
(लेखक मथुरा में ज्योतिष समाधान केंद्र के संचालक और familypandit.com सीनियर पैनलिस्ट हैं।)