समृद्धि में अवरोध – कारण पूजा कक्ष तो नहीं…!!!!!
पूजाघर भौतिक सुखों की प्राप्ति के साथ-साथ पारलौकिक सुखों एवं आध्यात्मिक शांति की प्राप्ति का साधन हैं। यह वह कक्ष हैं, जिसमें विश्व का संचालक (ईश्वर) निवास करता हैं। अतः इसका निर्माण एवं इसकी साज सज्जा वास्तुशास्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार करनी चाहिए। कई बार वास्तुशास्त्र के सिद्धान्तों का हम उल्लंघन करते हैं और अपनी सुविधानुसार पूजा घर बना लेते हैं। वास्तुसम्मत सिद्धान्तों के विपरीत पूजाघर मुसीबतों का कारण बन सकता है। वास्तुशास्त्र में पूजाघर के सम्बन्ध में विस्तृत दिशा-निर्देश मिलते हैं।
पूजा कक्ष का की स्थापना ईशान दिशा में होना चाहिए इसकी स्थापना किसी भी स्थिति में दक्षिण दिशा में नहीं करना चाहिए। मूर्तियों की स्थापना इस प्रकार करनी चाहिए कि देवताओं का मुँह दक्षिण और उत्तर दिशा में रहे। शयनकक्ष में पूजा घर की स्थापना नही होनी चाहिए। दीप जलाने का स्थान आग्नेय कोण में निश्चित करना चाहिए। पूजा कक्ष के ऊपर शौचालय या स्नानघर नहीं होना चाहिए। कभी भी शयन कक्ष में पूजा कक्ष की ओर पांव कर नहीं सोना चाहिए।
वास्तु नियमों का उल्लंघन वास्तुदोष के नाम से जाना जाता हैं । वास्तुदोष का प्रभाव हमारे ऊपर न केवल शारीरिक एवं मानसिक रूप से पड़ता हैं, वरन् जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में यथा कैरियर, आर्थिक स्थिति संतानसुख, यश, अपयश अच्छा एवं बुरा समय सभी पर पड़ता हैं । वास्तुदोष होने पर इमारत में रहने वाले अथवा कार्य करने वाले व्यक्तियों का जहाँ स्वास्थ्य खराब रहता हैं अर्थात् वे बीमार पड़ने लगते हैं, मानसिक तनाव बढ़ जाते हैं, अनिद्रा जैसी समस्याओं से उन्हें जूझना पड़ता हैं, व्यवसाय में अचानक हानि अथवा अच्छे चलते हुए व्यवसाय का ठप्प हो जाना, आर्थिक संकट, ऋणग्रस्तता, पत्नि या संतान का बीमार होना, नित नई समस्याएॅ आना जैसे दुष्परिणाम प्राप्त होने लगते हैं ।
यदि आपके भवन में उत्तर अथवा उत्तर पूर्व दिशा में भण्डार ग्रह अथवा वैसे ही टूटे-फूटे सामान एवं पूरानी वस्तुएं पड़ी हुई हैं तो भी आय में कमी होती हैं उन्हें तुरन्त हटा देना चाहिए । छत को साफ सुथरा रखना चाहिए । यदि घर के उत्तर पूर्व और उत्तरी कक्षों की ऊचाई अन्य कक्षों से ऊची हैं तो आय में कमी आती हैं । पूजा कक्ष में ईश्वर के विग्रहों या चित्रों को एक दूसरे के सम्मुख नहीं लगाना चाहिए । ध्यान रखे पूजा कक्ष में ईश्वर के चित्रों के साथ पितरों (पूर्वजों) के चित्र नहीं लगाना चाहिए।
पूजा कक्ष की दीवारों का रंग हल्का पिला, सफेद या बादामी कलर का होना चाहिए । पूजा कक्ष में गहरें रंगों का प्रयोग वर्जित हैं तथा फर्श भी हल्के पिले, या सफेद रंग का होना चाहिए । काले या नीले (गहरे) रंगों के फर्श निशेध हैं, पूजा कक्ष में संगमरमर (ग्रेनाईट) का प्रयोग नहीं करना चाहिए। संगमरमर का प्रयोग कब्रगाह, मकबरों व मन्दिर में बाहरी प्रयोग हेतु किया जा सकता हैं ं। पूजा कक्ष यथा सम्भव ग्राउण्ड फ्लोर (भू-तल) पर होना चाहिए साथ ही प्रयास करें कि पूजा कक्ष की छत गुम्बदाकार या पिरामिडाकार हो ।
यथासंभव घर में पूजा के लिए पूजाघर का निर्माण पृथक से कराना चाहिए । यदि पूजा हेतु पृथक कक्ष का निर्माण स्थानाभाव के कारण संभव न हो, तो भी पूजा का स्थान एक निश्चित जगह को ही बनाना चाहिए तथा भगवान की तस्वीर, मूर्ति एवं अन्य पूजा संबंधी सामग्री को रखने के लिए पृथक से एक अलमारी अथवा ऊॅचे स्थान का निर्माण करवाना चाहिए । जिस स्थान पर बैठकर पूजा की जाए, वह भी भूमि से कुछ ऊँचा होना चाहिए तथा बिना आसन बिछाए पूजा नहीं करनी चाहिए । पूजाघर के लिए सर्वाधिक उपर्युक्त दिशा ईशान कोण होती हैं । अर्थात पूर्वोत्तर दिशा में पूजाघर बनाना चाहिए ।
यदि पूजाघर गलत दिशा में बना हुआ हैं तो पूजा का अभीष्ट फल प्राप्त नहीं होता हैं फिर भी ऐसे पूजाघर में उत्तर अथवा पूर्वोत्तर दिशा में भगवान की मूर्तियाॅ या चित्र आदि रखने चाहिए । पूजाघर की देहरी को कुछ ऊँचा बनाना चाहिए । पूजाघर में प्रातःकाल सूर्य का प्रकाश आने की व्यवस्था बनानी चाहिए । पूजाघर में वायु के प्रवाह को संतुलित बनाने के लिए कोई खिड़की अथवा रोशनदान भी होनी चाहिए । पूजाघर के द्वार पर मांगलिक चिन्ह, (स्वास्तीक, ऊँ,) आदि स्थापित करने चाहिए । ब्रह्मा, विष्णु, महेश या सूर्य की मूर्तियों का मुख पूर्व या पश्चिम में होना चाहिए । गणपति एवं दुर्गा की मूर्तियों का मुख दक्षिण में होना उत्तम होता हैं । काली माॅ की मूर्ति का मुख दक्षिण में होना शुभ माना गया हैं । हनुमान जी की मूर्ति का मुख दक्षिण पश्चिम में होना शुभ फलदायक हैं । पूजा घर में श्रीयंत्र, गणेश यंत्र या कुबेर यंत्र रखना शुभ हैं ।
पूजाघर के समीप शौचालय नहीं होना चाहिए । इससे प्रबल वास्तुदोष उत्पन्न होता हैं । यदि पूजाघर के नजदीक शौचालय हो, तो शौचालय का द्वार इस प्रकार बनाना चाहिए कि पूजाकक्ष के द्वार से अथवा पूजाकक्ष में बैठकर वह दिखाई न दे । पूजाघर का दरवाजा लम्बे समय तक बंद नहीं रखना चाहिए । यदि पूजाघर में नियमित रूप से पूजा नहीं की जाए तो वहाॅ के निवासियों को दोषकारक परिणाम प्राप्त होते हैं । पूजाघर में गंदगी एवं आसपास के वातावरण में शौरगुल हो तो ऐसा पूजाकक्ष भी दोषयुक्त होता हैं चाहे वह वास्तुसम्मत ही क्यों न बना हो क्यांेकि ऐसे स्थान पर आकाश तत्व एवं वायु तत्व प्रदूषित हो जाते हैं जिसके कारण इस पूजा कक्ष में बैठकर पूजन करने वाले व्यक्तियों की एकाग्रता भंग होती हैं तथा पूजा का शुभ फला प्राप्त नहीं होता । पूजाघर गलत दिशा में बना हुआ होने पर भी यदि वहां का वातावरण स्वच्छ एवं शांतिपूर्ण होगा तो उस स्थान का वास्तुदोष प्रभाव स्वयं ही घट जाएगा ।
इस प्रकार बिना तोड़-फोड़ के उपर्युक्त उपायो के आधार पर पूजाकक्ष के वास्तुदोष दूर कर समृद्धि एवं खुशहाली पुनः प्राप्त की जा सकती हैं ।
पं. दयानन्द शास्त्री
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार,
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) ..6023
मो0 नं0 ….

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