श्री कालिकाष्टकम–पवन तलहन —
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श्री कालिकाष्टकम—–
इस पाठ को जपने से महानता प्राप्त होती है और साधक के घर में आठों सिद्धियाँ वर्तमान रहती हैं! यह पाठ मच्छशंकराचार्य विरचित है!
!!अथ कालिकाष्टकम!!
ध्यान—-
गलद रक्त मुंडावली कंठ माला!
महा घोर रावा सु दंष्ट्रा कराला!!
विवस्त्रा श्मशानालया मुक्त केशी!
महाकाल कामाकुला कालिकेयम!!
भुजे वाम युग्मे शिरोsसिं दधाना!
वर्ण वक्ष युग्मेsभयं वाई तथैव !!
सु मध्यापि तुंग स्तना भार नम्रा!
लसद रक्त सृक्क द्वया सु स्मितास्या!!
शव द्वन्द्व कर्णावतंसा सु केशी!
लसत प्रेत पाणिं प्रयुक्तैक कान्ची!!
शवाकार मंचाधि रुढ़ा!
शिवाभिश्चातुर्दीक्षु शब्दायमानाभि रेजे!!
!!अथ स्तुति!!
विरंच्यादि देवास्त्रयस्ते गुणांस्त्रीन!
समाराध्य कालीं प्रधाना बभूवु:!!
अनादिं सुरादिं विन्दन्ति भवादिं!
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:!!१!!
जगन्मोहनीय तू वाग्वादिनीयम!
सुहृद पौषिणी शत्रु संहारणीयम!!
वाच स्तम्भनीयम किमुच्चाटनीयम!
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:!!२!!
इयं स्वर्ग दात्री पुन: कल्प वल्ली!
मनोजान्स्तु कामां यथार्थं प्रकुर्यात!!
तथा ते क्रतार्थ भवंतीति नित्यं!
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:!!३!!
सुरा पान मत्ता सु भक्तानुरक्ता!
लास्ट पूत चित्ते सदा,,विर्भवते!!
जप ध्यान पूजा सूधा धौत पनका!
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:!!४!!
चिदानंद कांड हसन मंद मन्दं!
शरच्चन्द्र कोटि प्रभा पुंज बिम्बं !!
मुनीनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं !
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:!!५!!
महा मेघ काली सु रक्तापि शुभ्रा!
कदाचिद विचित्रा कृतिर्योग माया!!
न बाला न वृद्धा न कामातुरापि!
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:!!६!!
क्षमास्वापराधं महा गुट भावं!
मया लोक मध्ये प्रकाशी कृतं यत!!
तव ध्यान पूतें चापल्य भावात!
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:!!७!!
यदि ध्यान युक्तं पठेद यो!
मनुष्यस्तदा सर्व लोके विशालो भवेच्च!!
गृहे चाष्ट सिद्धिर्मृते चापि!
मुक्तिस्स्वरूपं त्वदीयं न विदन्ति देवा:!!८!!
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श्री कालिकाष्टकम—–
इस पाठ को जपने से महानता प्राप्त होती है और साधक के घर में आठों सिद्धियाँ वर्तमान रहती हैं! यह पाठ मच्छशंकराचार्य विरचित है!
!!अथ कालिकाष्टकम!!
ध्यान—-
गलद रक्त मुंडावली कंठ माला!
महा घोर रावा सु दंष्ट्रा कराला!!
विवस्त्रा श्मशानालया मुक्त केशी!
महाकाल कामाकुला कालिकेयम!!
भुजे वाम युग्मे शिरोsसिं दधाना!
वर्ण वक्ष युग्मेsभयं वाई तथैव !!
सु मध्यापि तुंग स्तना भार नम्रा!
लसद रक्त सृक्क द्वया सु स्मितास्या!!
शव द्वन्द्व कर्णावतंसा सु केशी!
लसत प्रेत पाणिं प्रयुक्तैक कान्ची!!
शवाकार मंचाधि रुढ़ा!
शिवाभिश्चातुर्दीक्षु शब्दायमानाभि रेजे!!
!!अथ स्तुति!!
विरंच्यादि देवास्त्रयस्ते गुणांस्त्रीन!
समाराध्य कालीं प्रधाना बभूवु:!!
अनादिं सुरादिं विन्दन्ति भवादिं!
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:!!१!!
जगन्मोहनीय तू वाग्वादिनीयम!
सुहृद पौषिणी शत्रु संहारणीयम!!
वाच स्तम्भनीयम किमुच्चाटनीयम!
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:!!२!!
इयं स्वर्ग दात्री पुन: कल्प वल्ली!
मनोजान्स्तु कामां यथार्थं प्रकुर्यात!!
तथा ते क्रतार्थ भवंतीति नित्यं!
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:!!३!!
सुरा पान मत्ता सु भक्तानुरक्ता!
लास्ट पूत चित्ते सदा,,विर्भवते!!
जप ध्यान पूजा सूधा धौत पनका!
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:!!४!!
चिदानंद कांड हसन मंद मन्दं!
शरच्चन्द्र कोटि प्रभा पुंज बिम्बं !!
मुनीनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं !
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:!!५!!
महा मेघ काली सु रक्तापि शुभ्रा!
कदाचिद विचित्रा कृतिर्योग माया!!
न बाला न वृद्धा न कामातुरापि!
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:!!६!!
क्षमास्वापराधं महा गुट भावं!
मया लोक मध्ये प्रकाशी कृतं यत!!
तव ध्यान पूतें चापल्य भावात!
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा:!!७!!
यदि ध्यान युक्तं पठेद यो!
मनुष्यस्तदा सर्व लोके विशालो भवेच्च!!
गृहे चाष्ट सिद्धिर्मृते चापि!
मुक्तिस्स्वरूपं त्वदीयं न विदन्ति देवा:!!८!!