भुवनेश्वरी—खींवराज शर्मा—-(Importance of Maa Bhuvaneshwari Mahavidhya)
भुवनेश्वरी अर्थात संसार भर के ऐश्वयर् की स्वामिनी । वैभव-पदार्थों के माध्यम से मिलने वाले सुख-साधनों को कहते हैं । ऐश्वर्य-ईश्वरीय गुण है- वह आंतरिक आनंद के रूप में उपलब्ध होता है । ऐश्वर्य की परिधि छोटी भी है और बड़ी भी । छोटा ऐश्वर्य छोटी-छोटी सत्प्रवृत्तियाँ अपनाने पर उनके चरितार्थ होते समय सामयिक रूप से मिलता रहता है । यह स्वउपार्जित, सीमित आनंद देने वाला और सीमित समय तक रहने वाला ऐश्वर्य है । इसमें भी स्वल्प कालीन अनुभूति होती है और उसका रस कितना मधुर है यह अनुभव करने पर अधिक उपार्जन का उत्साह बढ़ता है ।
भुवनेश्वरी इससे ऊँची स्थिति है । उसमें सृष्टि भर का ऐश्वर्य अपने अधिकार में आया प्रतीत होता है । स्वामी रामतीर्थ अपने को ‘राम बादशाह’ कहते थे । उनको विश्व का अधिपति होने की अनुभूति होती थी, फलतः उस स्तर का आनंद लेते थे, जो समस्त विश्व के अधिपति होने वाले को मिल सकता है । छोटे-छोटे पद पाने वाले-सीमित पदार्थों के स्वामी बनने वाले, जब अहंता को तृप्त करते और गौरवान्वित होते हैं तो समस्त विश्व का अधिपति होने की अनुभूति कितनी उत्साहवर्धक होती होगी, इसकी कल्पना भर से मन आनंद विभोर हो जाता है । राजा छोटे से राज्य के मालिक होते हैं, वे अपने को कितना श्रेयाधिकारी, सम्मानास्पद एवं सौभाग्यवान् अनुभव करते हैं , इसे सभी जानते हैं । छोटे-बडे़ राजपद पाने की प्रतिस्पर्धा इसीलिए रहती है कि अधिपत्य का अपना गौरव और आनन्द हैं ।
यह वैभव का प्रसंग चल रहा है । यह मानवी एवं भौतिक है । ऐश्वर्य दैवी,आध्यात्मिक,भावनात्मक है । इसलिए उसके आनन्द की अनुभूति उसी अनुपात से अधिक होती है । भुवन भर की चेतनात्मक आनन्दानुभूति का आनन्द जिसमें भरा हो उसे भुवनेश्वरी कहते है । गायत्री की यह दिव्यधारा जिस पर अवतरित होती है, उसे निरन्तर यही लगता है कि उसे विश्व भर के ऐश्वर्य का अधिपति बनने का सौभाग्य मिल गया है । वैभव की तुलना में ऐश्वयर् का आनन्द असंख्य गुणा बड़ा है । ऐसी दशा में सांसारिक दृष्टि से सुसम्पन्न समझे जाने की तुलना में भुवनेश्वरी की भूमिका में पहुँचा हुआ साधक भी लगभग उसी स्तर की भाव संवेदनाओं से भरा रहता है, जैसा कि भुवनेश्वर भगवान् को स्वयं अनुभव होता होगा ।
भावना की दृष्टि से यह स्थिति परिपूणर् आत्मगौरव की अनुभूति है । वस्तु स्थिति की दृष्टि से इस स्तर का साधक ब्रह्मभूत होता है, ब्राह्मी स्थिति में रहता है । इसलिए उसकी व्यापकता और समर्थता भी प्रायः परब्रह्म के स्तर की बन जाती है । वह भुवन भर में बिखरे पड़े विभिन्न प्रकार के पदार्थों का नियन्त्रण कर सकता है । पदार्थों और परिस्थितियों के माध्यम से जो आनन्द मिलता है उसे अपने संकल्प बल से अभीष्ट परिमाण में आकषिर्त-उपलब्ध कर सकता है ।
भुवनेश्वरी मनः स्थिति में विश्वभर की अन्तः चेतना अपने दायित्व के अन्तगर्त मानती है । उसकी सुव्यवस्था का प्रयास करती है । शरीर और परिवार का स्वामित्व अनुभव करने वाले इन्हीं के लिए कुछ करते रहते हैं । विश्वभर को अपना ही परिकर मानने वाले का निरन्तर विश्वहित में ध्यान रहता है । परिवार सुख के लिए शरीर सुख की परवाह न करके प्रबल पुरुषार्थ किया जाता है । जिसे विश्व परिवार की अनुभूति होती है । वह जीवन-जगत् से आत्मीयता साधता है । उनकी पीड़ा और पतन को निवारण करने के लिए पूरा-पूरा प्रयास करता है । अपनी सभी सामर्थ्य को निजी सुविधा के लिए उपयोग न करके व्यापक विश्व की सुख शान्ति के लिए, नियोजित रखता है ।
वैभव उपाजर्न के लिए भौतिक पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है । ऐश्वर्य की उपलब्धि भी आत्मिक पुरुषार्थ से ही संभव है । व्यापक ऐश्वयर् की अनुभूति तथा सामथ्यर् प्राप्त करने के लिए साधनात्मक पुरुषाथर् करने पड़ते है । गायत्री उपासना में इस स्तर की साधना जिस विधि-विधान के अन्तगर्त की जाती है उसे ‘भुवनेश्वरी’ कहते है ।
भुवनेश्वरी के स्वरूप, आयुध, आसन आदि का संक्षेप में-विवेचन इस तरह है– भुवनेश्वरी के एक मुख, चार हाथ हैं । चार हाथों में गदा-शक्ति का एवं राजंदंड-व्यवस्था का प्रतीक है । माला-नियमितता एवं आशीर्वाद मुद्रा-प्रजापालन की भावना का प्रतीक है । आसन-शासनपीठ-सवोर्च्च सत्ता की प्रतीक है ।
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ll Shri Ganeshay Namah ll
Dash Maha Vidya
The Knowledge about The Ten Supreme Forms Of Energies
To describe Dash Maha Vidya or The Knowledge about The Ten Supreme Forms Of Energies with few words is impossible. This is only an effort to give an introductory know how about Dash Maha Vidya.
Niraarakaar (Formless) and Nirguna (Virtue less) BrahmaN displays Himself in the form of Maha Devi Aadi Shakti who does the creation and administration of all we see. Maa Aadi Shakti is manifested in .. major forms in the process of Creation, Administration and Destruction of this world, this Universe. These Ten Goddesses are known as Dash ( Ten ) Maha Vidya (Supreme Knowledge Of Shakti – The Governing Energy).
These Maha Vidyas are known as …
01. Shri Kaali Maa
06. Shri Tripur Bhairavi Maa
0.. Shri Tara Maa
07. Shri Dhumavati Maa
0.. Shri Chhinna Masta Maa
08. Shri Bagala Mukhi Maa
04. Shri Shodashi Maa
09. Shri Maatangi Maa
05. Shri Bhuvaneshwari Maa
10. Shri Kamala Maa
These Ten Maha Vidyas are categorized in to three groups mainly by the nature of the respective Goddess.
Soumya Koti ( Soft Category )
:
ó
Shri Shodashi Maa (Shrimat Tripur Sundari)
ó Shri Bhuvaneshwari Maa
ó
Shri Maatangi Maa
ó
Shri Kamala Maa
Ugra Koti ( Aggressive Category )
:
ó
Shri Kaali Maa
ó Shri Chhinna Masta Maa
ó
Shri Dhoomavati Maa
ó
Shri BagalaMukhi Maa
SoumyoGra Koti ( Soft Aggressive Category )
: ó Shri Taara Maa
ó Shri Bhairavi Maa
You must remember that Sadhana of any of these Ten Maha Vidyas must be done under the guidance of a proper Guru. Only by reading books and mantras it is not possible to do Sadhana (Practice) of any of these ten Maha Vidyas. Initiation from a proper Guru is must. For those who live in society, have families to take care of, I suggest not to do Sadhana of Ugra or SoumyoGra categories. On many web sites and in many books different mantras of these Maha Vidyas are given which are actually forbidden to practice without a Diksha ( Initiation ) and Guidance of a proper Guru. You may browse through this section for basic information but do not try to practice any of these Maha Vidyas without the guidance of a Guru. Do not put the pictures of these Goddesses in your Altar if you are not initiated by a Guru of that particular Maha Vidya. May Maa Aadi Shakti Bless You.
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भुवनेश्वरी—-
भुवनेश्वरी अर्थात संसार भर के ऐश्वयर् की स्वामिनी । वैभव-पदार्थों के माध्यम से मिलने वाले सुख-साधनों को कहते हैं । ऐश्वर्य-ईश्वरीय गुण है- वह आंतरिक आनंद के रूप में उपलब्ध होता है । ऐश्वर्य की परिधि छोटी भी है और बड़ी भी । छोटा ऐश्वर्य छोटी-छोटी सत्प्रवृत्तियाँ अपनाने पर उनके चरितार्थ होते समय सामयिक रूप से मिलता रहता है । यह स्वउपार्जित, सीमित आनंद देने वाला और सीमित समय तक रहने वाला ऐश्वर्य है । इसमें भी स्वल्प कालीन अनुभूति होती है और उसका रस कितना मधुर है यह अनुभव करने पर अधिक उपार्जन का उत्साह बढ़ता है ।
भुवनेश्वरी इससे ऊँची स्थिति है । उसमें सृष्टि भर का ऐश्वर्य अपने अधिकार में आया प्रतीत होता है । स्वामी रामतीर्थ अपने को ‘राम बादशाह’ कहते थे । उनको विश्व का अधिपति होने की अनुभूति होती थी, फलतः उस स्तर का आनंद लेते थे, जो समस्त विश्व के अधिपति होने वाले को मिल सकता है । छोटे-छोटे पद पाने वाले-सीमित पदार्थों के स्वामी बनने वाले, जब अहंता को तृप्त करते और गौरवान्वित होते हैं तो समस्त विश्व का अधिपति होने की अनुभूति कितनी उत्साहवर्धक होती होगी, इसकी कल्पना भर से मन आनंद विभोर हो जाता है । राजा छोटे से राज्य के मालिक होते हैं, वे अपने को कितना श्रेयाधिकारी, सम्मानास्पद एवं सौभाग्यवान् अनुभव करते हैं , इसे सभी जानते हैं । छोटे-बडे़ राजपद पाने की प्रतिस्पर्धा इसीलिए रहती है कि अधिपत्य का अपना गौरव और आनन्द हैं ।
यह वैभव का प्रसंग चल रहा है । यह मानवी एवं भौतिक है । ऐश्वर्य दैवी,आध्यात्मिक,भावनात्मक है । इसलिए उसके आनन्द की अनुभूति उसी अनुपात से अधिक होती है । भुवन भर की चेतनात्मक आनन्दानुभूति का आनन्द जिसमें भरा हो उसे भुवनेश्वरी कहते है । गायत्री की यह दिव्यधारा जिस पर अवतरित होती है, उसे निरन्तर यही लगता है कि उसे विश्व भर के ऐश्वर्य का अधिपति बनने का सौभाग्य मिल गया है । वैभव की तुलना में ऐश्वयर् का आनन्द असंख्य गुणा बड़ा है । ऐसी दशा में सांसारिक दृष्टि से सुसम्पन्न समझे जाने की तुलना में भुवनेश्वरी की भूमिका में पहुँचा हुआ साधक भी लगभग उसी स्तर की भाव संवेदनाओं से भरा रहता है, जैसा कि भुवनेश्वर भगवान् को स्वयं अनुभव होता होगा ।
भावना की दृष्टि से यह स्थिति परिपूणर् आत्मगौरव की अनुभूति है । वस्तु स्थिति की दृष्टि से इस स्तर का साधक ब्रह्मभूत होता है, ब्राह्मी स्थिति में रहता है । इसलिए उसकी व्यापकता और समर्थता भी प्रायः परब्रह्म के स्तर की बन जाती है । वह भुवन भर में बिखरे पड़े विभिन्न प्रकार के पदार्थों का नियन्त्रण कर सकता है । पदार्थों और परिस्थितियों के माध्यम से जो आनन्द मिलता है उसे अपने संकल्प बल से अभीष्ट परिमाण में आकषिर्त-उपलब्ध कर सकता है ।
भुवनेश्वरी मनः स्थिति में विश्वभर की अन्तः चेतना अपने दायित्व के अन्तगर्त मानती है । उसकी सुव्यवस्था का प्रयास करती है । शरीर और परिवार का स्वामित्व अनुभव करने वाले इन्हीं के लिए कुछ करते रहते हैं । विश्वभर को अपना ही परिकर मानने वाले का निरन्तर विश्वहित में ध्यान रहता है । परिवार सुख के लिए शरीर सुख की परवाह न करके प्रबल पुरुषार्थ किया जाता है । जिसे विश्व परिवार की अनुभूति होती है । वह जीवन-जगत् से आत्मीयता साधता है । उनकी पीड़ा और पतन को निवारण करने के लिए पूरा-पूरा प्रयास करता है । अपनी सभी सामर्थ्य को निजी सुविधा के लिए उपयोग न करके व्यापक विश्व की सुख शान्ति के लिए, नियोजित रखता है ।
वैभव उपाजर्न के लिए भौतिक पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है । ऐश्वर्य की उपलब्धि भी आत्मिक पुरुषार्थ से ही संभव है । व्यापक ऐश्वयर् की अनुभूति तथा सामथ्यर् प्राप्त करने के लिए साधनात्मक पुरुषाथर् करने पड़ते है । गायत्री उपासना में इस स्तर की साधना जिस विधि-विधान के अन्तगर्त की जाती है उसे ‘भुवनेश्वरी’ कहते है ।
भुवनेश्वरी के स्वरूप, आयुध, आसन आदि का संक्षेप में-विवेचन इस तरह है– भुवनेश्वरी के एक मुख, चार हाथ हैं । चार हाथों में गदा-शक्ति का एवं राजंदंड-व्यवस्था का प्रतीक है । माला-नियमितता एवं आशीर्वाद मुद्रा-प्रजापालन की भावना का प्रतीक है । आसन-शासनपीठ-सवोर्च्च सत्ता की प्रतीक है ।
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BHUVANESHWARI MAHAVIDHYA
MAA BHUVANESHWARI Mahavidya
Bhuvneswari mean the ruler of the world and by worshipping her one can achieve success and victorious in every fields of life and become powerful IT is said that Lord Ram had done this sadhna before defeating Ravan who is so much powerful that he conquered heaven , IT remove the the malefic effects of planet MOON
Whatever he wishes is fulfilled, for he is bestowed with 64 divine virtues ( CALLED 64 Yogini) which help him succeed in every venture that he undertakes. He becomes a virtual Man of his Age. This Sadhana can be started on first day of any month.
The presiding of Mani-dwipa (name of a place) as described in Devi Bhagawat is an embodiment of the Mantra ‘Hrillekha’ (HRIM), Shakti and Maha Laxmi and also a companion of Lord Shiva in all of his divine activities and is called Goddess Bhuvaneshwari.
Goddess Bhuvaneshwari is the preeminent and a nurturer of the whole humanity. Her appearance is Somber and her complexion is red. She blesses her devotee by making him fearless and also help him in the accomplishment of all the powers. In the scriptures her greatness has been described in detail.
MaaBhuvaneshwari Yantra
Before chanting the mantras the Bhuvaneshwari Yantra should be properly worshipped.
Cryptic Mantra – “HRIM”
Om Hrim Shreem Kleem Bhuvaneshrayah Namah
This mantra has been called as Pranav (OM) in Devi Bhagawat. A devotee who chants this cryptic mantra and methodically performs ‘Homa’ (burnt offering), feeds the Brahmins with complete faith and devotion himself attains divinity.Sada Shiva is the cause behind the evolution of this creation and his powers lies in goddess Bhuvaneshwari. Her ambrosia nurtures the whole world.
Her complexion is red like a rising Sun and has three eyes. She possesses moon in her crown. Her soft smile gives information about her favor and kindness. A hook and a noose in her hand show her controlling power.
Meditation
UDYADDIN DYUTI MINDU KIRITANTUNGA KUCHANNAYANTRAYA YUKTAM
SMERAMUKHIM TVARADANKUSHA PASHA BHITIKARAM PRABHAJE BHUVANESHIM
Worship – Normally, wishes and aspirations get fulfilled if either the cryptic mantra or the other mantras are chanted for 5,00000 times (five lakhs), with full faith and devotion. The chanting of the mantras can be raised according to the requirement.
If goddess Bhuvaneshwari is pleased then all the aspirations of man gets fulfilled and he is saved from the dangerous calamities.

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