गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्‍वरः ।
गुरु साक्षात्‌ परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः ॥”
” गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर सभी गुरुजनों को सादर चरण वंदन.. नमन.. अभिनन्दन ..”
आप सभी को’गुरु पूर्णिमा’ के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाये एवं बधाईयाँ…..
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अब सौंप दिया इस जीवन का, सब भार तुम्हारे हाथों में ‌‌‌‌
है जीत तुम्हारे हाथों में, है हार तुमहारे हाथों में ‌‌‌‌॥
मेरा निश्चय है एक यही, इक बार तुम्हें पाऊं मैं |
अर्पण कर दूं जगती भर का, सब प्यार तुम्हारे हाथों में ‌॥
अब सौंप दिया ….
अब तो मैं जग से दूर रहूँ, और जग में रहूं तो ऐसे रहूं ‌‌
इस पार तुम्हारे हाथों में, उस पार तुम्हारे हाथों में ‌॥
अब सौंप दिया …
यदि मानुष ही तुझे जन्म मिले, तब तो चरणों का पुजारी रहूं |
मुझ पूजक कि इक रग रग का, हो तार तुम्हारे हाथों में ॥
अब सौंप दिया …….
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गुरुब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः।।
गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं और गुरु ही देवादिदेव महादेव हैं। गुरु साक्षात् परब्रह्म परमात्मा के समान हैं। अतः गुरु को मेरा सर्वदा शत्-शत् नमन है।
आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। गुरुपूर्णिमा अर्थात् गुरु के प्रति आभार एवं कृतज्ञता प्रकट करने का दिन। अतः सभी शिष्य इस तिथि पर अपने-अपने गुरुओं का पूजन करते हैं। भारतीय संस्कृति की प्रतीक यह गुरुपूजा समस्त भारत में ही नहीं अपितु संसार भर में प्रसिद्ध है, जिसे व्यासपूजा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सम्पूर्ण भारतवर्ष में गुरु पूजन एवं वन्दन होता है। शिष्यगण दूर-दूर से गुरु के धाम आकर श्रद्धापूर्वक भेंट अर्थात् गुरुदक्षिणा अर्पित करते हैं तथा आर्शीवाद प्राप्त करते हैं। सम्पूर्ण ब्रजक्षेत्र विशेषतः मथुरा, वृंदावन तथा गोवर्धन में यह गुरुपूजा बड़ी ही श्रद्धा, भक्ति, हर्ष एवं उल्हास के साथ मनायी जाती है। यह पूर्णिमा सबसे बड़ी पूर्णिमा मानी जाती है, क्यूंकि तीनों लोकों में ज्ञान को श्रेष्ठ तथा ज्ञानप्रदाता सद्गुरु को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस पूर्णिमा पर सद्-आचार, सद्-विचार तथा सत्यव्रत का पालन करने से वर्ष की समस्त पूर्णिमाओं का फल प्राप्त होता है।
गुरु परब्रह्म परमात्मा से मिलन कराकर शिष्य को भव-बन्धन से मुक्ति प्रदान करते हैं। इसी कारण संसार में गुरु का विशेष स्थान है। गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती तथा ज्ञान के बिना मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती है। अतः शिष्य को भवसागर से पार जाने के लिए गुरु रूपी नाविक तथा ज्ञान रूपी नौका की अत्यंत आवश्यकता होती है। गुरुचरणरज की विशेष महिमा है। शिष्य गुरु की चरणधूलि को हृदय एवं मस्तक से स्पर्श कराके ही सद्गति के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है। माना जाता है कि जो व्यक्ति जिस स्वभाव एवं गुणों से परिपूर्ण होता है, उसकी चरणऊर्जा में उन्हीं स्वभाव एवं गुणों के तत्‍व विद्यमान रहते हैं, जोकि चरणों से लिपटी रज अर्थात् धूल में भी अपना प्रभाव छोड़ते हैं। अतः सद्गुरु की चरणरज गुरु के सम्पूर्ण जीवन की ज्ञान-साधना के तत्त्वों से ओत-प्रोत होती है, जिसे मस्तक पर धारण करने का स्वर्णिम अवसर विरले ही शिष्यों को प्राप्त होता है। गुरुचरणधूलि से मन और मस्तिष्क दोनों के पट खुल जाते हैं। जहॉ मन के पट खुलने से आत्मा का परमात्मा से साक्षात्कार होता है, वहीं मस्तिष्क के द्वार खुलने से प्राणि इस ब्रह्माण्ड एवं जीवनचक्र के गूढ़ रहस्य को समझ पाता है। इन दोनों ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् ही मनुष्य को सद्गति अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गुरु शब्द का अर्थ अत्यंत गूढ़, व्यापक तथा व्याख्या से परे है। जो अपने शिष्यों के कानों में ज्ञान रूपी अमृत घोलता है, वह गुरु है। जो अपने सदुपदेशों के द्वारा अपने शिष्य को अज्ञान रूपी अन्धकार से निकालकर ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाता है, वह गुरु है। जो अपने शिष्य के प्रति कृपा, दया, क्षमा तथा प्रेम का भाव रखता है, वह गुरु है। जो धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने की कला प्रदान करता है, वह गुरु है। जो वेद एवं पुराणों के रहस्य को समझाता है, वह गुरु है।
गुरु का आदर-सत्कार किसी व्यक्ति विशेष का आदर-सत्कार नहीं अपितु, उस व्यक्ति अथवा गुरु के शरीर में स्थित परमज्ञानी, पवित्र एवं दिव्यआत्मा का आदर-सत्कार है अर्थात् गुरु के ज्ञान एवं गुणों का पूजन है। गुरुपूर्णिमा को व्यासपूर्णिमा के नाम से भी पुकारा जाता है। ऋषि वसिष्ठ के पौत्र तथा ऋषि पाराशर के पुत्र महर्षि व्यास का जन्म भी आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ था। अतः गुरुओं के गुरु महर्षि व्यास की जन्मतिथि होने के कारण ही इस पूर्णिमा का नाम व्यासपूर्णिमा हुआ। व्यास जी ने वेदों का विस्तार किया, इसी कारण इन्हें वेदव्यास के नाम से पुकारा जाने लगा। बाल्यावस्था में ही पवित्र तीर्थ बद्रीकाश्रम में एकमात्र बेर पर जीवन-यापन करके तपस्या करने के कारण इनका नाम बादरायण हुआ। काले अर्थात् श्याम वर्ण का होने तथा द्वीप में उत्पन्न होने के फलस्वरूप इनका एक नाम कृष्णद्वैपायन भी है।
ज्ञान-विज्ञान के भंड़ार, भक्ति की प्रतिमूर्ति, बुद्धिमत्ता की सीमा से परे तथा श्रेष्ठ कवि-गुणों से ओत-प्रोत इनके जैसा दूसरा गुरु एवं ऋषि भूत, भविष्य एवं वर्तमान में मिलना असंभव है। व्यास जी ने वेदों को मनुष्य की सुविधानुसार विभाजित किया। इन्होंने ब्रह्मसूत्रा, महाभारत, भागवतपुराण सहित सत्रह (.7) अन्य पुराणों का निर्माण किया। इनके द्वारा वर्णित सिद्धान्तों एवं सूत्रों से विश्व के सभी धर्मगुरु एवं धर्मशास्त्र प्रभावित हुए हैं। व्यास जी ने समस्त मानव जाति को सत्य एवं धर्म पर चलने का परामर्श दिया। संसार में जितने भी ज्ञानी-ध्यानी एवं ऋषि-मुनि हुए, सभी ने व्यास जी की विद्वता की भूरि-भूरि प्रशंसा की तथा उन्हें आचार्यों का आचार्य माना है। व्यास जी के शास्त्रों का अध्ययन किये बिना कोई भी कुशल उपदेशक अथवा अध्यात्मिक गुरु नहीं हो सकता है।
इस व्यासपूर्णिमा पर कोई गुरु न होने की दशा में जगद्गुरु श्रीकृष्ण अथवा महर्षि व्यास का ध्यान करने से मनुष्य के हृदय में ज्ञान का दीपक स्वतः ही प्रज्वलित हो उठता है। जिन सद्पुरुषों ने सम्पूर्ण जीवन शास्त्रों एवं ग्रन्थों के निर्माण तथा विद्यादान हेतु न्यौछावर कर दिया, उनके प्रति इस दिन आभार व्यक्त करके हम गुरु द्वारा प्रदान ज्ञान रूपी ऋण का कुछ सूद तो अवश्य ही चुका सकते हैं। यह पूर्णिमा आस्था, भक्ति, श्रद्धा, प्रेम, समपर्ण एवं कृतज्ञताभाव में वृद्धि करती है। अपने बड़ों एवं बुजुर्गों का, अपने गुरुओं एवं आचार्यों का तथा समस्त श्रेष्ठ एवं सद्जनों के प्रति धन्यवाद प्रकट करने वाला यह पर्व भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का अनुपम उदाहरण है।
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Festivals – Guru Purnima
Guru Purnima, also referred as Sage Veda Vyasa Poornima, is celebrated on the full moon day in the Hindu month of Ashada (July). The day is dedicated to Guru and he/she is honored and given due respect. Sage Vyasa is considered the Adi Guru or the first Guru in Hinduism and therefore the day is also known as Vyas Poornima. In ..09, the date of Guru Purnima is July 7.
The Guru Gita in the Skanda Purana hails guru in this famous verse:
Guru brahma Guru vishnu Gururdevo Maheshwaraha
Guruhu sakshaat Parambrahman tasmai Shrigurave namaha
Guru is Brahma, Vishnu and Shiva,
Veneration to the Guru who has manifested as Parabrahman.’
While venerating the Guru we must also be cautious as the world today is filled with fake gurus and swamis – who make a living out of spirituality.
Ramakrishna Paramahamsa says about true guru like this
He alone is the true teacher who is illumined by the light of true knowledge.
Bees come of themselves to the full-blown flower when the breeze wafts its fragrance all around. Ants come of themselves to the spot where sweets are placed. No one needs to invite the bee or the ant. So when a man becomes pure and perfect, the sweet influence of his character spreads everywhere, and all who seek the Truth are naturally drawn towards him. He need not go in search of an audience to listen to him.
The true Guru is a transmitting medium, a transporting agent and transparent embodiment of the divine grace and compassion, the focal point of the timeless eternity and finite time*.
A real Guru not only points the direction to the goal but takes the consciousness of the surrendered disciple into his consciousness and makes the inflow of the Higher into the lower continuously, till the three consciousness of the Isvara, the Guru and the Atman of the disciple become one undifferentiated whole*.
It is very hard to find a true Guru but luckily the great Gurus of ancient world have stored their wisdom in the Upanishads, Yoga Vashista and Gita. Guru Purnima day is rightly termed as Veda Vyasa Poornima because Guru Vyasa is the greatest editor and compiler of holy texts in Hinduism. He has provided all the necessary elements needed to understand Brahman; only we need to find time and have patience to read and digest the unparalleled holy texts in Hinduism.
A Guru need not always be a person clad in saffron or white, it can be a book, an incident, a small child or any aspect in nature. Any person or incident that removes darkness and fills with light or Brahman realization is a Guru.

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