हिन्दू धर्म ग्रंथ-खींवराज शर्मा –(An very important article)—

हिन्दू धर्म व्यक्ति प्रवर्तित धर्म नहीं है। इसका आधार वेदादि धर्मग्रन्थ है, जिनकी संख्या बहुत बड़ी है। ये सब दो विभागों में विभक्त है-

.. इस श्रेणी के ग्रन्थ श्रुति कहलाते हैं। ये अपौरुषेय माने जाते हैं। इसमें वेद की चार संहिताओं, ब्राह्मणों, आरण्यकों, उपनिषदों, वेदांग, सूत्र आदि ग्रन्थों की गणना की जाती है। आगम ग्रन्थ भी श्रुति-श्रेणी में माने जाते हैं।

1. इस श्रेणी के ग्रन्थ “स्मृति´´ कहलाते हैं। ये ऋषि प्रणीत माने जाते हैं।

इस श्रेणी में 18 स्मृतियाँ, 18 पुराण तथा रामायण व महाभारत ये दो इतिहास भी माने जाते हैं।

श्रुति-

वेद

यद्यपि वेद से ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद की संहिताओं का ही बोध होता है, तथापि हिन्दू लोग इन संहिताओं के अलावा ब्राह्मण ग्रन्थों, आरण्यकों तथा उपनिषदों को भी वेद ही मानते हैं। इनमें ऋक् आदि संहितायें स्तुति प्रधान हैं; ब्राह्मण ग्रन्थ यज्ञ कर्म प्रधान हैं और आरण्यक तथा उपनिषद् ज्ञान चर्चा प्रधान हैं।

* ऋग्वेद संहिता – यह चारों संहिताओं में प्रथम गिनी जाती है। अन्य संहिताओं में इसके अनेक सूक्त संग्रह किये गये हैं। यह अष्टकों और मण्डलों में विभक्त है, जो फिर वर्गों और अनुवाकों में विभक्त है। इसमें 1. मण्डल हैं, जिनमें 1017 सूक्त है। इन सूक्तों में शौनक की अनुक्रमणी के अनुसार 10,580 मंत्र है। यह संहिता सूक्तों अर्थात् स्तोत्रों का भण्डार है।

* सामवेद संहिता – यह कोई स्वतन्त्र संहिता नहीं है। इसके अधिकांश मन्त्र ऋग्वेद के ही हैं। केवल 78 मंत्र इसके अपने हैं। कुल 1549 मन्त्र हैं। यह संहिता दो भागों में विभक्त है –

1. पूर्वार्चिक : पूर्वार्चिक – छ: प्रपाठकों में विभक्त है। इसे `छन्द´ और `छन्दसी´ भी कहते हैं। पूर्वार्चिक को `प्रकृति´ भी कहते हैं
.. उत्तरार्चिक : उत्तरार्चिक को `ऊह´ और `रहस्य´ कहते हैं।

* यजुर्वेद संहिता – इस वेद की दो संहितायें हैं –

1. एक शुक्ल : शुक्ल यजुर्वेद याज्ञवल्क्य को प्राप्त हुआ। उसे `वाजसनेयि-संहिता´ भी कहते हैं।`वाजसनेयि-संहिता´ की 17 शाखायें हैं। उसमें 40 अध्याय हैं। उसका प्रत्येक अध्याय कण्डिकाओं में विभक्त है, जिनकी संख्या 1975 है। इसके पहले के 25 अध्याय प्राचीन माने जाते हैं और पीछे के 15 अध्याय बाद के। इसमें दर्श पौर्णमास, अग्निष्टोम, वाजपेय, अग्निहोत्र, चातुर्मास्य, अश्वमेध, पुरूषमेध आदि यज्ञों के वर्णन है।
2. दूसरी कृष्ण : कृष्ण-यजुर्वेद-संहिता शुक्ल से की है। उसे `तैत्तिरिय-संहिता´ भी कहते हैं। यजुर्वेद के कुछ मन्त्र ऋग्वेद के हैं तो कुछ अथर्ववेद के हैं। `तैत्तिरिय-संहिता´ 7 अष्टकों या काण्डों में विभक्त है। इस संहिता में मन्त्रों के साथ ब्राह्मण का मिश्रण है। इसमें भी अश्वमेध, ज्योतिष्टोम, राजसूय, अतिरात्र आदि यज्ञों का वर्णन है।

* अथर्ववेद संहिता – यह संहिता 20 काण्डों में विभक्त है। प्रत्येक काण्ड अनुवाकों और अनुवाक 760 सूक्तों में विभक्त है। इस संहिता में 1200 मन्त्र ऋक्-संहिता के हैं। कुल मन्त्र संख्या 6015 है।

ब्राह्मण

इस श्रेणी के ग्रन्थ वेद के अंग ही माने जाते हैं। ये दो विभागों में विभक्त है। एक विभाग के कर्मकाण्ड-सम्बन्धी हैं, दूसरे विभाग के ज्ञानकाण्ड-सम्बन्धी है। ज्ञानकाण्ड-सम्बन्धी ब्राह्मण ग्रन्थ `उपनिषद्´ कहलाते हैं। प्रत्येक ब्राह्मण ग्रन्थ में एक-न-एक उपनिषद् अवश्य है, किन्तु स्वतन्त्र उपनिषद् ग्रन्थ भी हैं, जो किसी भी ब्राह्मण का भाग नहीं हैं और न `अरण्यकों´ के ही भाग हैं। कुछ उपनिषद् अरण्यकों में भी पाये जाते हैं। ब्राह्मण ग्रन्थों में यज्ञ-विषय का वर्णन है। अरण्यकों में वानप्रस्थ-आश्रम के नियमों का वर्णन है। उपनिषदों में ब्रह्मज्ञान का निरूपण किया गया है। प्रत्येक ब्राह्मण किसी न किसी वेद से सम्बन्ध रखता है। ऋग्वेद के ब्राह्मण -ऐतरेय और कौशीतकि (सामवेद के ब्राह्मण -ताण्डय, षड्विंश, सामविधान, वंश, आर्षेय, देवताध्याय, संहितोपनिषत्, छान्दोग्य, जैमिनीय, सत्यायन और भल्लवी है( कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण -तैत्तिरीय है और शुक्ल यजुर्वेद का शतपथ है( अथर्ववेद का ब्राह्मण – गोपथ ब्राह्मण है। ये कुछ मुख्य-मुख्य ब्राह्मणों के नाम हैं।

आरण्यक

इस विभाग में ऐतरेय, कौशीतकि और बृहदारण्यक मुख्य हैं।

उपनिषद्

इस विभाग के ग्रन्थों की संख्या 12. से लेकर 1194 तक मानी गई है, किन्तु उनमें 10 ही मुख्य माने गये हैं। ईष, केन, कठ, प्रश्, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य और बृहदारण्यक के अतिरिक्त श्वेताश्वतर और कौशीतकि को भी महत्त्व दिया गया हैं।

उक्त श्रुति-ग्रन्थों के अलावा कुछ ऐसे ऋषि-प्रणीत ग्रन्थ भी हैं, जिनका श्रुति-ग्रन्थों से घनिष्ट सम्बन्ध है।

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