क्या और केसे करें —सौभाग्य-प्राप्ति, वर-वधू-प्राप्ति प्रयोग—वैदिक जगत—
मन्त्रः- “ह्रीं क्लीं इन्द्राणि, सौभाग्य-देवते, मघ-वत्-प्रिये ! सौभाग्यं देहि मे स्वाहा ।।”
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीइन्द्राणी-मन्त्रस्य बृहस्पति ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्रीइन्द्राणी देवता, सर्व-सौभाग्य-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः- बृहस्पति ऋषये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, श्रीइन्द्राणी देवतायै नमः हृदि, सर्व-सौभाग्य-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास – | कर-न्यास – | अंग-न्यास – |
ह्रीं क्लीं | अंगुष्ठाभ्यां नमः | हृदयाय नमः |
इन्द्राणि | तर्जनीभ्यां नमः | शिरसे स्वाहा |
सौभाग्य-देवते | मध्यमाभ्यां नमः | शिखायै वषट् |
मघ-वत्-प्रिये | अनामिकाभ्यां नमः | कवचाय हुम् |
सौभाग्यं | कनिष्ठिकाभ्यां नमः | नेत्र-त्रयाय वौषट् |
देहि मे स्वाहा | करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः | अस्त्राय फट् |
ध्यानः-
कल्पद्रुमोद्यान-मध्ये विविध-मणि-विलसन्मण्डपान्तर्विराजन्,
मातंगाराति-पीठ-प्रविलसित-सरोज-संस्थां प्रसन्नाम् ।
पीनोत्तुंग-स्तनार्तां पृथुज-घन-भरां पद्म-पत्रायताक्षीं,
इन्द्राणीमिन्द्र-नीलोत्पल-शकल-निभां हृद्य-भूषां नमामि ।।
पूजन-यन्त्रः-
पहले षट्-कोण, फिर अष्ट-दल तथा भूपुर ।
पीठ-पूजाः-
‘आधार-शक्तये नमः’ से ‘परमात्मने नमः’ तक पीठ-पूजन करे । आठों दिशाओं में आठ तथा मध्य में नवमी पीठ-शक्ति का पूजन करें । नाम के आदि में ‘ॐ’ तथा अन्त में ‘नमः’ का प्रयोग सर्वत्र करें । यथा – ॐ कान्त्यै नमः रमायै, प्रभायै, रमायै, विद्यायै, मदनायै, मदनातुरायै, रम्भायै, मनोज्ञायै ।
आसन-पूजन-मन्त्रः– “ह्रीं सर्व-शक्ति-कमलासनाय नमः ।”
आवाहन-मन्त्रः-
आगच्छ वरदे देवि ! परिवार-समन्विते !
यावत् त्वां पूजयिष्यामि, तावत् तवं सुस्थिरा भव ।।
उक्त प्रकार आवाहन करके यथा-उपलब्ध उपचारों से भगवती इन्द्राणी का पूजन करें । तत्पश्चात् ‘आवरण-पूजन’ करने की आज्ञा माँगे और आज्ञा मिल गई, इस भावना से ‘आवरण-पूजन’ करे –
प्रथम आवरण (षट्-कोण में) – षडंग-न्यास के मन्त्रों से पूजन करे ।
द्वितीय आवरण (अष्ट-दल-कमल में) – ॐ उर्वश्यै नमः, ॐ मेनकायै नमः, ॐ रम्भायै नमः, ॐ प्रम्लोचायै नमः, ॐ पुञ्जिक-स्थलायै नमः, ॐ तिलोत्तमायै नमः, ॐ घृताच्यै नमः, ॐ सुरुपायै नमः ।
तृतीय आवरण (भू-पुर में) – ॐ इन्द्राय नमः, ॐ अग्न्ये नमः, ॐ यमाय नमः, ॐ निऋतये नमः, ॐ वरुणाय नमः, ॐ वायवे नमः, ॐ सोमाय नमः, ॐ ईशानाय नमः, ॐ ब्रह्मणे नमः, ॐ अनन्ताय नमः ।
चतुर्थ आवरण (भू-पुर में दिक्पालों के साथ) – ॐ वज्राय नमः, ॐ शक्तये नमः, ॐ दण्डाय नमः, ॐ खड्गाय नमः, ॐ पाशाय नमः, ॐ अंकुशाय नमः, ॐ गदायै नमः, ॐ शूलाय नमः, ॐ पद्माय नमः, ॐ चक्राय नमः ।
इस प्रकार पूजन करने के बाद मन्त्र का ‘जप’ करें । पुरश्चरण हेतु १ लाख और लाल कमल या बकुल (मौलश्री) के फूलों को त्रि-मधु (घृत, शक्कर व शहद) के साथ मिलाकर दस हजार हवन करे । इस प्रकार पुरश्चरण करने से यह सौभाग्य-लक्ष्मी-दाता मन्त्र सिद्ध हो जाता है । तब प्रयोग करे । यथा –
१॰ प्रातः-काल चम्पा के फूलों से हवन करने से वेश्याओं का वशीकरण होता है ।
२॰ सायं-काल जल के साथ घिसे हुए चन्दन के साथ नव-मालिका (वासन्ती, नेवारी, सेउती या मोगरा) के फूलों का अथवा पलाश (ढाक, छेवला) के फूलों का त्रि-मधु के साथ हवन करने से, कन्या को उत्तम वर तथा वर को उत्तम कन्या प्राप्त होती है ।
३॰ नित्य एक अञ्जली लाजा (धान के फूले) घी में मिलाकर आठ आहुतियाँ देने से, मन-पसन्द कन्या प्राप्त होती है । इसी विधि से हवन करने से धन-धान्य, गौ-धन, पुत्र और सौभाग्य की प्राप्ति होती है ।
४॰ उत्तम गुणों से युक्त कन्या प्रदान करती हुई, भगवती इन्द्राणी का धऽयान करते हुए, नित्य १००० जप करने से शीघ्र ही उत्तम कन्या प्राप्त होगी ।
कल्पद्रुमोद्यान-मध्ये विविध-मणि-विलसन्मण्डपान्तर्विराजन्,
मातंगाराति-पीठ-प्रविलसित-सरोज-संस्थां प्रसन्नाम् ।
पीनोत्तुंग-स्तनार्तां पृथुज-घन-भरां पद्म-पत्रायताक्षीं,
इन्द्राणीमिन्द्र-नीलोत्पल-शकल-निभां हृद्य-भूषां नमामि ।।
पूजन-यन्त्रः-
पहले षट्-कोण, फिर अष्ट-दल तथा भूपुर ।
पीठ-पूजाः-
‘आधार-शक्तये नमः’ से ‘परमात्मने नमः’ तक पीठ-पूजन करे । आठों दिशाओं में आठ तथा मध्य में नवमी पीठ-शक्ति का पूजन करें । नाम के आदि में ‘ॐ’ तथा अन्त में ‘नमः’ का प्रयोग सर्वत्र करें । यथा – ॐ कान्त्यै नमः रमायै, प्रभायै, रमायै, विद्यायै, मदनायै, मदनातुरायै, रम्भायै, मनोज्ञायै ।
आसन-पूजन-मन्त्रः– “ह्रीं सर्व-शक्ति-कमलासनाय नमः ।”
आवाहन-मन्त्रः-
आगच्छ वरदे देवि ! परिवार-समन्विते !
यावत् त्वां पूजयिष्यामि, तावत् तवं सुस्थिरा भव ।।
उक्त प्रकार आवाहन करके यथा-उपलब्ध उपचारों से भगवती इन्द्राणी का पूजन करें । तत्पश्चात् ‘आवरण-पूजन’ करने की आज्ञा माँगे और आज्ञा मिल गई, इस भावना से ‘आवरण-पूजन’ करे –
प्रथम आवरण (षट्-कोण में) – षडंग-न्यास के मन्त्रों से पूजन करे ।
द्वितीय आवरण (अष्ट-दल-कमल में) – ॐ उर्वश्यै नमः, ॐ मेनकायै नमः, ॐ रम्भायै नमः, ॐ प्रम्लोचायै नमः, ॐ पुञ्जिक-स्थलायै नमः, ॐ तिलोत्तमायै नमः, ॐ घृताच्यै नमः, ॐ सुरुपायै नमः ।
तृतीय आवरण (भू-पुर में) – ॐ इन्द्राय नमः, ॐ अग्न्ये नमः, ॐ यमाय नमः, ॐ निऋतये नमः, ॐ वरुणाय नमः, ॐ वायवे नमः, ॐ सोमाय नमः, ॐ ईशानाय नमः, ॐ ब्रह्मणे नमः, ॐ अनन्ताय नमः ।
चतुर्थ आवरण (भू-पुर में दिक्पालों के साथ) – ॐ वज्राय नमः, ॐ शक्तये नमः, ॐ दण्डाय नमः, ॐ खड्गाय नमः, ॐ पाशाय नमः, ॐ अंकुशाय नमः, ॐ गदायै नमः, ॐ शूलाय नमः, ॐ पद्माय नमः, ॐ चक्राय नमः ।
इस प्रकार पूजन करने के बाद मन्त्र का ‘जप’ करें । पुरश्चरण हेतु १ लाख और लाल कमल या बकुल (मौलश्री) के फूलों को त्रि-मधु (घृत, शक्कर व शहद) के साथ मिलाकर दस हजार हवन करे । इस प्रकार पुरश्चरण करने से यह सौभाग्य-लक्ष्मी-दाता मन्त्र सिद्ध हो जाता है । तब प्रयोग करे । यथा –
१॰ प्रातः-काल चम्पा के फूलों से हवन करने से वेश्याओं का वशीकरण होता है ।
२॰ सायं-काल जल के साथ घिसे हुए चन्दन के साथ नव-मालिका (वासन्ती, नेवारी, सेउती या मोगरा) के फूलों का अथवा पलाश (ढाक, छेवला) के फूलों का त्रि-मधु के साथ हवन करने से, कन्या को उत्तम वर तथा वर को उत्तम कन्या प्राप्त होती है ।
३॰ नित्य एक अञ्जली लाजा (धान के फूले) घी में मिलाकर आठ आहुतियाँ देने से, मन-पसन्द कन्या प्राप्त होती है । इसी विधि से हवन करने से धन-धान्य, गौ-धन, पुत्र और सौभाग्य की प्राप्ति होती है ।
४॰ उत्तम गुणों से युक्त कन्या प्रदान करती हुई, भगवती इन्द्राणी का धऽयान करते हुए, नित्य १००० जप करने से शीघ्र ही उत्तम कन्या प्राप्त होगी ।