**कलियुग को शूद्र और स्त्रियों को साधु-साधु क्यों कहा है?*****
पवन तलहन—
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******कलियुग को शूद्र और स्त्रियों को साधु-साधु क्यों कहा है?*******
गंगा में डुबकी लगाकर ऊपर उठे और शूद्र: साधु: , कलि: साधु:’ पढ़ कर उनहोंने पुन: डुबकी लगायी! जल से ऊपर उठकर ‘योषित: साधु धन्यास्तास्ताभ्यो धन्यतरोsस्ति क:’ पढ़ कर दुबकी लगायी! अर्थ —
कलियुग प्रशंसनीय है, शूद्र साधु हैं, स्त्रियाँ श्रेष्ठ हैं, वे धन्य हैं, उनसे अधिक धन्य और कौन है?
इस का कारण–जो फल सत्ययुग में साध वर्ष जप-तप और ब्रह्मचर्यदि करने से मिलता है, उसे मनुष्य त्रेता में एक वर्ष, द्वापर में एक मॉस और कलियुग में केवल एक दिन में प्राप्त कर लेता है! जो फल सत्ययुग में ध्यान, त्रेता में यज्ञा और द्वापर में देवार्चन करने से प्राप्त होता है, वही कलियुग में भगवान श्री कृष्ण का नाम-कीर्तन करने से मिल जाता हा! कलियुग में थोड़े से परिश्रम से ही लोगों को महाधर्म की प्राप्ति हो जाती है! इन कारणों से कलियुग को श्रेष्ठ कहा!
शूद्र को श्रेष्ठ कहने का कारण बतलाते हुए व्यास जी ने कहा कि द्विज को पहले ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए वेदाध्ययन करना पड़ता है और तब गार्हस्थ्य-आश्रम में प्रवेश करने पर स्वधर्माचरण से उपार्जित धन के द्वारा विधिपूर्वक यज्ञा-दानादि करने पड़ते हैं!इसमें भी व्यर्थ वार्तालाप, व्यर्थ भोजन और व्यर्थ यज्ञ उनके पतन के कारण होते हैं, इस लिये उन्हें सदा संयमी रहना आवश्यक होता है! सभी कार्यों में विधि का ध्यान रखना पड़ता है! विधि-विपरीत करने से दोध लाता है! द्विज भोजन और पानादि भी अपने इच्छानुसार नहीं कर सकते! उन्हें सम्पूर्ण कार्यों में परतन्त्रता ही रहती है! वे अत्यंत क्लेश से पुन्य लोकों को प्राप्त करते हैं, किन्तु जिसे केवल मन्त्रहीन पाक यज्ञ का अधिकार है, वह शूद्र द्विज सेवा से ही सदगति प्राप्त कर लेता है, इस लिये वह द्विज की अपेक्षा धन्यतर है! शूद्र के लिये भक्ष्याभक्ष्य अथवा पेयापेय का नियम द्विज जैसा कडा नहीं है! इन कारणों से मैंने [व्यास जी] उसे शेष्ठ कहा!
स्त्रियों को श्रेष्ठ कहने का कारण बतलाते हुए व्यास जी ने कहा कि पुरुष जब धर्मानुकूल उपायों द्वारा दान और यज्ञ करते हैं एवं अन्य कष्टसाध्य व्रतोपवासादि करते हैं, तब पुन्यलोक पाते हैं, किन्तु स्त्रियाँ तो तन-मन वचन से पति की सेवा करने से ही उन की हितकारिणी होकर पति के समान शुभ लोकों को अनायास ही प्राप्त कर लेती हैं जो कि पुरुष को अत्यंत परिश्रम से मिलते है, इसलिये मैंने उन्हें श्रेष्ठ कहा!
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******कलियुग को शूद्र और स्त्रियों को साधु-साधु क्यों कहा है?*******
गंगा में डुबकी लगाकर ऊपर उठे और शूद्र: साधु: , कलि: साधु:’ पढ़ कर उनहोंने पुन: डुबकी लगायी! जल से ऊपर उठकर ‘योषित: साधु धन्यास्तास्ताभ्यो धन्यतरोsस्ति क:’ पढ़ कर दुबकी लगायी! अर्थ —
कलियुग प्रशंसनीय है, शूद्र साधु हैं, स्त्रियाँ श्रेष्ठ हैं, वे धन्य हैं, उनसे अधिक धन्य और कौन है?
इस का कारण–जो फल सत्ययुग में साध वर्ष जप-तप और ब्रह्मचर्यदि करने से मिलता है, उसे मनुष्य त्रेता में एक वर्ष, द्वापर में एक मॉस और कलियुग में केवल एक दिन में प्राप्त कर लेता है! जो फल सत्ययुग में ध्यान, त्रेता में यज्ञा और द्वापर में देवार्चन करने से प्राप्त होता है, वही कलियुग में भगवान श्री कृष्ण का नाम-कीर्तन करने से मिल जाता हा! कलियुग में थोड़े से परिश्रम से ही लोगों को महाधर्म की प्राप्ति हो जाती है! इन कारणों से कलियुग को श्रेष्ठ कहा!
शूद्र को श्रेष्ठ कहने का कारण बतलाते हुए व्यास जी ने कहा कि द्विज को पहले ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए वेदाध्ययन करना पड़ता है और तब गार्हस्थ्य-आश्रम में प्रवेश करने पर स्वधर्माचरण से उपार्जित धन के द्वारा विधिपूर्वक यज्ञा-दानादि करने पड़ते हैं!इसमें भी व्यर्थ वार्तालाप, व्यर्थ भोजन और व्यर्थ यज्ञ उनके पतन के कारण होते हैं, इस लिये उन्हें सदा संयमी रहना आवश्यक होता है! सभी कार्यों में विधि का ध्यान रखना पड़ता है! विधि-विपरीत करने से दोध लाता है! द्विज भोजन और पानादि भी अपने इच्छानुसार नहीं कर सकते! उन्हें सम्पूर्ण कार्यों में परतन्त्रता ही रहती है! वे अत्यंत क्लेश से पुन्य लोकों को प्राप्त करते हैं, किन्तु जिसे केवल मन्त्रहीन पाक यज्ञ का अधिकार है, वह शूद्र द्विज सेवा से ही सदगति प्राप्त कर लेता है, इस लिये वह द्विज की अपेक्षा धन्यतर है! शूद्र के लिये भक्ष्याभक्ष्य अथवा पेयापेय का नियम द्विज जैसा कडा नहीं है! इन कारणों से मैंने [व्यास जी] उसे शेष्ठ कहा!
स्त्रियों को श्रेष्ठ कहने का कारण बतलाते हुए व्यास जी ने कहा कि पुरुष जब धर्मानुकूल उपायों द्वारा दान और यज्ञ करते हैं एवं अन्य कष्टसाध्य व्रतोपवासादि करते हैं, तब पुन्यलोक पाते हैं, किन्तु स्त्रियाँ तो तन-मन वचन से पति की सेवा करने से ही उन की हितकारिणी होकर पति के समान शुभ लोकों को अनायास ही प्राप्त कर लेती हैं जो कि पुरुष को अत्यंत परिश्रम से मिलते है, इसलिये मैंने उन्हें श्रेष्ठ कहा!