**कुन्जलक [तोते के] द्वारा भगवान के शतनाम-स्तोत्र का वर्णन**पवन तलहन—***
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हम मनुष्य होकर भी नाम नहीं ले सकते! धन्य है कुन्जलक जी महाराज!
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कुन्जलक शतनाम-स्तोत्र
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नमाम्यहं हृषीकेशं केशवं मधुसूदनम !
सूदनं सर्वदैत्यानां नारायणमनामयम!!
जयन्तं विजयं कृष्णमनन्तं वामनं यथा!
विष्णुं विश्वेश्वरं पुण्यं विश्वात्मानं सुरार्चितम!!
अनघं त्वघहर्तानं नारसिंहं श्रिय:प्रियम!
श्रीपतिं श्रीधरं श्रीदं श्रीनिवासं महोदयम !!
श्रीरामं माधवं मोक्षं क्षमारूपं जनार्दनम!
सर्वज्ञं सर्ववेत्तार्न सर्वेशं सर्वदायकम!!
हरिं मुरारिं गोविन्दं पद्मनाभं प्रजापतिम !
आनन्दं ज्ञानसम्पन्नं ज्ञानदं ज्ञानदायकम!!
अच्युतं सबलन चन्द्रवक्त्रं व्याप्तपरावरम!
योगेश्वरं जगद्योनिं ब्रह्मरूपं महेश्वरम !!
मुकुम्दं चापि वैकुण्ठमेकरूपं कविं ध्रुवम!
वासुदेवं महादेवं ब्रह्मण्यं ब्रह्मणग्रियम!!
गोप्रियं गोहितं यज्ञं यज्ञांग यज्ञवर्धनम!
यज्ञस्यापि सुभोक्तारं देसदांगपारगम!!
वेदज्ञं वेदरूपं तं विद्यावासं सुरेश्वरम!
प्रत्यक्षं च महाहंसं शंख्पानिं पुरातनम !!
पुष्करं पुष्कराकष्ण च वाराहं धरणीधरम!
प्रद्युम्न्न कामपालं च व्यासध्यात्तं महेश्वरम !!
सर्वसौख्यं महासौख्यं सांख्यं च पुरुषोत्तमम!
योगरूपं महाज्ञानं योगीशमजितं प्रियम !!
असुरारिं लोकनाथं पद्महस्तं गदाधरम!
गुहावासं सर्ववासं पुन्यवासं महाजनम!!
वृंदानाथं बृहत्कायं पावनं पापनाशनम!
गोपीनाथं गोपससं गोपालं गोगणाश्रयम!!
परात्मानं पराधीशं कपिलं कार्य मानुषम!
नमामि निखिलं नित्यं मनो वाक्काय कर्मिभि!!
नाम्नां शतेनापि तु पुण्यकर्ता
य: स्तौति कृष्णं मनसा स्थिरेण!
स याति लोकं मधुसूदनस्य
विहाय दोषानिह पुण्यभूत:!!
नाम्नां शतं महापुण्यं सर्वपातकशोधनम!
अनन्यमनसा ध्यायेज्जपेद्धयानसमन्वित:!!
नित्यमेव नर: पुण्यं गंगास्नानफलं लभेत!
तस्मात्तु सुस्थिरो भूत्वा समाहितमना जपत!!
[पद्म पु.भू.खं.८७/९–२५]
हृषिकेश [इन्द्रियों के स्वामी], केशव, मधुसूदन [मधु दैत्य को मारने वाले], सर्वदैत्यसूदन [सम्पूर्ण दैत्यों के संहारक ], नारायण, अनामय, [रोग-शोक से रहित], जयंत, विजय, कृष्ण, अनंत्य, वामन, विष्णु, विश्वेश्वर, पुण्य, विश्वात्मा, सुरचर्चित[ देवताओं द्वारा पूजित] , अनघ, [पापरहित], अघहर्ता, नारसिंह, श्रीप्रिय [लक्ष्मी के प्रियतम], श्रीपति, श्रीधर, श्रीद [लक्ष्मी प्रदान करने वाले], श्रीनिवास, महोदय [महान अभ्युदय शाली ], श्रीराम, माधव, मोक्ष, क्षमारूप, जनार्दन, सर्वज्ञ, सर्ववेत्ता, सर्वेश्वर, सर्वदायक, हरि, मुरारि, गोविन्द, पद्मनाभ, प्रजापति, आनंद,ज्ञानसंपन्न, ज्ञानद, ज्ञानदायक अच्छ्युत, सबल, चन्द्रवक्त्र, [चन्द्रमाके समान मनोहर मुख वाले], व्याप्तपरावर[ कार्य-कारण रूप सम्पूर्ण जगत में व्याप्त], योगेश्वर, जगद्योनि [जगत की उत्पति के स्थान], ब्रह्मरूप,महेश्वर, मुकुंद, वैकुण्ठ, एकारूप, कवि, ध्रुव, वासुदेव, महादेव, ब्रह्मण्य, ब्रह्मण-प्रिय, गोप्रिय, गोहित, यज्ञ, यज्ञांग, यज्ञवर्धन, [यज्ञों का विस्तार करने वाले[, यज्ञभोक्ता, वेद-वेदांग-पराग, वेदज्ञ, वेदरूप,विद्यावास, सुरेश्वर, प्रत्यक्ष, महाहंस,शंखापानि, पुरातन, पुष्कर,पुष्करराज, वाराह, धरणीधर, प्रद्युम्न,कामपाल,व्यासध्यात [व्यास जि के द्वारा चिंतित], महेश्वर [महान ईश्वर], सर्वसौख्य, महासौख्य,सांख्य,पुरोषोत्तम, योगरूप,महाज्ञान,योगीश्वर, अजित,प्रिय, असुरारि, लोकनाथ, पद्महस्त, गदाधर,गुहावास, सर्ववास,पुन्यावास,महाजन, वृन्दानाथ,बृहत्काय, पाबन, पापनाशन, गोपीनाथ,गोपसखा, गोपाल, गोगणाश्रय, परात्मा, पराधीश, कपिल,तथा कार्यमानुष [संसार का उद्धार करने के लिये मानव शरीर धारण करनेवाले], आदि मानों से प्रसिद्ध सर्वस्वरूप परमेश्वर को मैं प्रतिदिन मन, वाणी तथा क्रियाद्वारा नमस्कार करता हूँ! जो पुण्यात्मा पुरुष शतनाम-स्तोत्र पढ़ कर स्थिर चित्त सर भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति करता है, वह सम्पूर्ण दोषों का त्याग करके इस लोक में पुण्य स्वरूप हो जाता है तथा अंत में वह भगवान मधुसूदन के लोक को प्राप्त होता है! यह शनाम-स्तोत्र महान पुण्य का जनक और समस्त पातकों की शुद्धि करने वाला है! मनुष्य को ध्यानयुक्त होकर अनन्यचित्त से इसका जप और चिंतन करना चाहिये! प्रतिदिन इसका जप करनेवाले पुरुष को नित्यप्रति गंगास्नान का फल मिलता है! इसलिये सुस्थिर और एकाग्रचित्त होकर इसका जप करना उचित है!
मित्रो आप ने क्या ज्ञान पाया?

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