ज्येष्ठ मास अमावस्या बुधवार . जून को शनिदेव की जयंती और वट सावित्री अमावस्या का संयोग हो रहा है। इसके साथ ही खंडग्रास सूर्यग्रहण भी पड़ रहा है, जो कि भारतवर्ष में नहीं दिखेगा। शनि जयंती के दिन भगवान शनिदेव के पूजन-अर्चन का फल कई गुना हो जाता है। इसके साथ ही ज्ञान,बुद्धि एवं प्रगति के स्वामी गुरू का भी शनि के नक्षत्र में होने से इस वर्ष का शनि जन्मोत्सव आलस्य, कष्ट, विलंब, पीड़ानाशक होकर भाग्योदय का कारक बनेगा।
शनि जयंती पर हनुमान जी एवं पीपल के पूजन का भी विशेष महत्व है। वट सावित्री अमावस्या होने के कारण महिलायें अपने पतियों की लम्बी आयु व खुशहाली के लिये बरगद के पेड़ का पूजन अर्चन कर उसमें धागा लपेटेंगी।
शनिदेव का पूजन कैसे करें?
शनि जयंती पर शनिदेव के मंदिर में जाकर पूजन-अर्चन करें तो उसका विशेष फल प्राप्त होता है। यदि मंदिर न जा सकें तो घर में लकड़ी के पट्टे पर काले कपड़े को बिछाकर उस पर शनिदेव की प्रतिमा या फोटो अथवा एक सुपारी रखकर पूजन करें।
शनिदेव का जल, दुग्ध, पंचामृत, घी, इत्र से अभिषेक कर इमरती, तेल से तली वस्तुओं का नैवेद्य लगायें। नैवेद्य से पूर्व उन पर अबीर, गुलाल, सिंदूर, कुंकुम एवं काजल लगाकर नीले या काले फूल और फल अर्पित करें।
वट सावित्री पूजन की विधि
स्त्रियां बरगद के चौबीस फल और चौबीस पूड़ियां अपने आंचल में रखकर आधे वट देवता को अर्पित करती हैं। एक लोटा जल, हल्दी, रोली लगाकर फल-फूल, धूप-दीप से पूजन करती हैं, जिसके बाद कच्चे सूत को हाथ में लेकर वट देवता की परिक्रमा करती हैं, हर परिक्रमा में एक चना वट देवता को अर्पित करती हैं।
परिक्रमा पूरी होने पर सत्यवान व सावित्री की कथा सुनती हैं, जिसके बाद बारह धागों वाली माला को वट देवता को अर्पित करती हैं और एक स्वयं पहनती हैं। पूजन समाप्त होने के बाद व्रतधारी स्त्रियां चने, वृक्ष की बौंड़ी को जल से निगलती हैं। इस प्रकार उनका व्रत संपन्न होता है। सावित्री अमावस्या के दिन लक्ष्मी-नारायण की भी पूजा-अर्चना की जाती है।
क्या कहते हैं ज्योतिषाचार्य
वर्जन-शनि जयंती और वट सावित्री अमावश्या का महासंयोग इस बार सौभाग्यवती नारियों के साथ-साथ सभी जातकों के लिये शुभ रहेगा। पुरुष शनिदेव का और स्त्रियां वट देवता का पूजन-अर्चन करें।
पं.रोहित दुबे
एक माह में दो ग्रहण प्रकृति,पहाड़,जीव,जल,नदी व वृक्षों के लिये हानिप्रद होते हैं । दोनों ग्रहण बुधवार को पड़ रहे हैं, इसलिये जल, तेल, हरी वस्तुएं, शाक-सब्जी एवं वनस्पतियों को खराब करेंगी।
डॉ.बालगोविन्द शास्त्री
ग्रहण का प्रभाव भारत वर्ष में न पड़ने के कारण शनि जयंती का पुण्य बढ़ जायेगा। शनिदेव के साथ हनुमान जी का पूजन-अर्चन करने से जातकों के कष्ट, रोग, दरिद्रता का निवारण होगा और सौभाग्य बढ़ेगा।
पं.राजकुमार शर्मा शास्त्री
वट वृक्ष सौभाग्य का प्रतीक है, इसीलिए महिलाएं यह व्रत रखती हैं। भारत वर्ष में कहीं भी ग्रहण का प्रभाव नहीं दिखाई देगा। अत: इसका दोष जातकों पर लेश मात्र भी नहीं पड़ेगा।
आचार्य वासुदेव शास्त्री
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शनि शांति यंत्र
शनि यंत्र को ईशान दिशा की ओर मुंह करके कुश के आसन पर बैठकर शनिवार को रिक्ता [4, 9, 14] तिथि को प्रदोष काल में एक चौकोर काले पत्थर की पट्टी [शिला] पर कोयले से लिखें। यंत्र लिखकर उसे व्यक्ति के ऊपर सात बार घुमाकर किसी कुए या जलाशय में डाल दें। इसके प्रभाव से शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या आदि की अनिष्टता शांत होती है।
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शनि यंत्र
शनि यंत्र त्रिलोह या लोहे में बनाया जाता है | इसके लिए सबसे उत्तम मुहूर्त शनि रोहिणी अमृत सिद्ध योग एवं शानिपुष्य है इसके अंको का कुल योग ३३ होता है | इस यंत्र को सिद्ध करने के लिए शनि मंत्र के २३ हज़ार जप करने चाहिए | जप के दशांश हवन, मार्जन, तर्पण एवं ब्राह्मण भोजन करना चाहिए |
मंत्र
‘ओम खां खीं खौं स: शनैश्चराय नम: ‘
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शनि के दोषों को दूर करता है शनि यंत्र—-
यंत्रों का विधिवत पूजन करने से अशुभ ग्रह भी शुभ फल देने लगता हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि आपकी कुंडली में शनि अशुभ है तो आपको हर कार्य में असफलता ही हाथ लगती है या सोचे गए कार्य देर से होते हैं। कभी वाहन दुर्घटना, कभी यात्रा स्थागित तो कभी क्लेश आदि से परेशानी बढ़ती जाती है। ऐसी स्थिति में ग्रह पीड़ा निवारक शनि यंत्र की पूजा प्रतिष्ठा करने से अनेक लाभ मिलते हैं। यदि किसी व्यक्ति पर शनि की ढैय़ा या साढ़ेसाती चल रही है तो शनि यंत्र की पूजा करना बहुत लाभदायक होता है।
ऐसे करें पूजा
श्रद्धापूर्वक इस यंत्र की प्रतिष्ठा करके प्रतिदिन यंत्र के सामने सरसों के तेल का दीप जलाएं। नीला या काला पुष्प चढ़ाएं ऐसा करने से लाभ होगा। इसके साथ ही प्रतिदिन शनि स्त्रोत का पाठ करें।
मृत्यु, कर्ज, मुकद्दमा, हानि, क्षति, पैर आदि की हड्डी तथा सभी प्रकार के रोग से परेशान लोगों के लिए शनि यंत्र की पूजा फायदेमंद होती है। नौकरी पेशा लोगों को उन्नति भी शनि द्वारा ही मिलती है अत: यह यंत्र बहुत उपयोगी है।
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शनि यंत्र
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि प्रतिकूल होने पर अनेक कार्यों में असफलता देता है, कभी वाहन दुर्घटना, कभी यात्रा स्थागित तो कभी क्लेश आदि से परेशानी बढ़ती जाती है ऐसी स्थितियों में ग्रह पीड़ा निवारक शनि यंत्र की शुद्धता पूर्ण पूजा प्रतिष्ठा करने से अनेक लाभ मिलते हैं। यदि शनि की ढै़या या साढ़ेसाती का समय हो तो इसे अवश्य पूजना चाहिए।
उपयोग से लाभ——–
श्रद्धापूर्वक इस यंत्र की प्रतिष्ठा करके प्रतिदिन यंत्र के सामने सरसों के तेल का दीप जलायें नीला, या काला पुष्य चढ़ायें ऐसा करने से अनेक लाभ होगा। मृत्यु, कर्ज, केश, मुकद्दमा, हानि, क्षति, पैर आदि की हड्डी, बात रोग तथा सभी प्रकार के रोग से परेशान लोगों हेतु यंत्र अधिक लाभकारी होगा। नौकरी पेशा आदि के लोगों को उन्नति भी शनि द्वारा ही मिलती है अतः यह यंत्र अति उपयोगी यंत्र है जिसके द्वारा शीघ्र ही लाभ पाया जा सकता है।

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