*********शिव-शंकर-महादेव *************
***********************************
नान्यद देवान्महादेवाद व्यतिरिक्तं प्रपश्यति !
तमेवात्मानमंवेति य: स याति परं पदम् !!
मन्यन्ते ये स्वमात्मानं विभिन्नं परमेश्वरात!
न ते पश्यन्ति तं देवं वृथा तेषां परिश्रम:!!
अर्थात—-जो महादेव से भिन्न किसी दूसरे देवको नहीं जानता और इन्हीं को अपनी आत्मा मानता है, वह परम पद को प्राप्त होता है! जो अपनी आत्माको परमेश्वर से भिन्न मानते हैं. वे उस देवका दर्शन नहीं करते, उनका परिश्रम व्यर्थ होता है!!
एकमेव परं ब्रह्म विज्ञेयं तत्त्वमव्ययम!
स देवस्तु महादेवो नैतद विज्ञाय बध्यते!!
तस्माद यतेत नियतं संयतमानस:!
ज्ञानयोगरत: शान्तो महादेवपरायण:!!
परम ब्रह्म एक ही हैं, इन्हें ही अव्यय तत्त्वके रूप जानना चाहिये! ये अव्यय तत्त्व ब्रह्म देव ही हैं, महादेव हैं, इन्हें जान लेनेपर बंधन नहीं होता! इसलिये यति को संयतमन होकर [इन्हें प्राप्त करने के लिये] प्रयत्न करना चाहिये! ज्ञानयोग में रत रहना चाहिये, शांत रहना चाहिये और महादेव के परायण रहना चाहिये!
महादेव महादेव महादेवेति वादिनम !
वत्सं गौरिव गौरिशो धावन्तमनुधावति!!
भगवान सदाशिव का भक्त भगवान को एक ही बार प्रणाम करने से अपने को मुक्त मानता है! भगवान भी “महादेव” ऐसे नाम उच्चारण करनेवाले के प्रति ऐसे दौड़ते हैं, जैसे वत्सला गौ अपने बछड़े के प्रति!
महादेव महादेव महादेवेति यो वदेत!
एकेन मुक्तिमाप्नोति द्वाभ्यां शम्भू ऋणी भवेत्!!
जो पुरुष तीन बार “महादेव, महादेव, महादेव” इस तरह भगवान का नाम उच्चारण करता है, भगवान एक नाम से मुक्ति देकर शेष दो नाम से सदा के लिये उसके ऋणी हो जाते हैं!
शिवोSहम, शिवोSहम, शिव: केवलोSहम !!
चिदानन्दरूप: शिवोSहम शिवोSहम !!
“ॐ नम: शिवाय”
जिन्होंने गुरु धारण किया हो वह “ॐ नम: शिवाय” का मन्त्र जाप करते हैं, जिहोंने गुरु धारण नहीं किया हो वह लोग, लोग इस प्रकार मन्त्र करें! ” ॐ शिवाय नम:” ! [ अर्थात —-ॐ नम: शिवाय गुरु वाले और ॐ शिवाय नम: बिना गुरुवाले]
ॐ हौं जूँ स:, ॐ भूर्भुव: स्व:! ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम! उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ! स्व: भुव: भू: ॐ! स: जूँ हौं ॐ! इस मन्त्र की कम से कम एक माला प्रात:काल तो आवश्य करनी चाहिये!
******जय जय हो—–गोपेश्वर महादेव की जय हो——
***********************************
नान्यद देवान्महादेवाद व्यतिरिक्तं प्रपश्यति !
तमेवात्मानमंवेति य: स याति परं पदम् !!
मन्यन्ते ये स्वमात्मानं विभिन्नं परमेश्वरात!
न ते पश्यन्ति तं देवं वृथा तेषां परिश्रम:!!
अर्थात—-जो महादेव से भिन्न किसी दूसरे देवको नहीं जानता और इन्हीं को अपनी आत्मा मानता है, वह परम पद को प्राप्त होता है! जो अपनी आत्माको परमेश्वर से भिन्न मानते हैं. वे उस देवका दर्शन नहीं करते, उनका परिश्रम व्यर्थ होता है!!
एकमेव परं ब्रह्म विज्ञेयं तत्त्वमव्ययम!
स देवस्तु महादेवो नैतद विज्ञाय बध्यते!!
तस्माद यतेत नियतं संयतमानस:!
ज्ञानयोगरत: शान्तो महादेवपरायण:!!
परम ब्रह्म एक ही हैं, इन्हें ही अव्यय तत्त्वके रूप जानना चाहिये! ये अव्यय तत्त्व ब्रह्म देव ही हैं, महादेव हैं, इन्हें जान लेनेपर बंधन नहीं होता! इसलिये यति को संयतमन होकर [इन्हें प्राप्त करने के लिये] प्रयत्न करना चाहिये! ज्ञानयोग में रत रहना चाहिये, शांत रहना चाहिये और महादेव के परायण रहना चाहिये!
महादेव महादेव महादेवेति वादिनम !
वत्सं गौरिव गौरिशो धावन्तमनुधावति!!
भगवान सदाशिव का भक्त भगवान को एक ही बार प्रणाम करने से अपने को मुक्त मानता है! भगवान भी “महादेव” ऐसे नाम उच्चारण करनेवाले के प्रति ऐसे दौड़ते हैं, जैसे वत्सला गौ अपने बछड़े के प्रति!
महादेव महादेव महादेवेति यो वदेत!
एकेन मुक्तिमाप्नोति द्वाभ्यां शम्भू ऋणी भवेत्!!
जो पुरुष तीन बार “महादेव, महादेव, महादेव” इस तरह भगवान का नाम उच्चारण करता है, भगवान एक नाम से मुक्ति देकर शेष दो नाम से सदा के लिये उसके ऋणी हो जाते हैं!
शिवोSहम, शिवोSहम, शिव: केवलोSहम !!
चिदानन्दरूप: शिवोSहम शिवोSहम !!
“ॐ नम: शिवाय”
जिन्होंने गुरु धारण किया हो वह “ॐ नम: शिवाय” का मन्त्र जाप करते हैं, जिहोंने गुरु धारण नहीं किया हो वह लोग, लोग इस प्रकार मन्त्र करें! ” ॐ शिवाय नम:” ! [ अर्थात —-ॐ नम: शिवाय गुरु वाले और ॐ शिवाय नम: बिना गुरुवाले]
ॐ हौं जूँ स:, ॐ भूर्भुव: स्व:! ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम! उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ! स्व: भुव: भू: ॐ! स: जूँ हौं ॐ! इस मन्त्र की कम से कम एक माला प्रात:काल तो आवश्य करनी चाहिये!
******जय जय हो—–गोपेश्वर महादेव की जय हो——