जहाँ प्यार, वहाँ बहार…- अनुराग तागड़े
जिंदगी हर इंसान को प्यार, कामयाबी और दौलत की ही चाह रहती होती है। मुश्किल तब होती है जब इंसान सिर्फ खुद की ही कामयाबी के बारे में खुदगर्ज होकर सोचने लगता है। नतीजा यह होता है कि शोहरत और पैसा होने के बावजूद वह अपनी खुशी और प्यार लोगों में बाँट नहीं पाता क्योंकि अपने स्वार्थ के कारण वह सबसे दूर हो चुका रहता है।
जिंदगी में कई बार इंसान के पास मौके आते है जब वह अपने प्रेम की डोर से दुसरों को मदद कर सकता है पर अपनी प्रगति और अपनी सफलता के लिए वह स्वार्थ का सहारा लेता है। एक गरीब परिवार में बूढ़े माता पिता और उनके दो बेटे रहते है जिनकी शादी हो चुकी है।
परिवार दोनों बेटों की कमाई पर ही चलता है और बेहद गरीब है लेकिन आपस में प्रेम बहुत है। बेटो को सहायता करने के लिए बुढ़े पिता भी काम पर जाते हैं। एक दिन ईश्वर को लगता है कि क्यों न इस परिवार पर कृपा की जाए। पर इसके पूर्व वह परिवार की परीक्षा भी लेना चाहता है।
एक दिन भरी गर्मी में परिवार के घर के बाहर तीन लोग आकर खड़े होते है। वे साधु किस्म के रहते है और घर पर केवल महिलाएँ रहती है। परिवार की सबसे बुजुर्ग महिला तीनों साधुओं को देखती है और उसे लगता है कि इन साधुओं को घर पर बुलाना चाहिए। वह बाहर जाकर अपना परिचय देती है और साधुओं से घर पर चलने का आग्रह करती है। पर तीनों मना कर देते है कि जब तक घर पर कोई पुरुष नहीं होगा वे घर पर नहीं आएँगे।
यह बात सुनकर महिला अपने घर चली जाती है। देर शाम को जब बुढ़े पिता घर पर आते है तब उनकी पत्नी उन्हें बताती है कि ऐसे साधु आए है और अब भी बैठे है वे अब तक घर में इस कारण नहीं आ रहे थे क्योंकि घर में कोई पुरुष नहीं था। घर के बुजुर्ग सदस्य को लगता है कि वाकई में यह साधु दिव्य ही होंगे। वे पत्नी को साधुओं को घर पर बुलाने के लिए कहते है। उनकी पत्नी साधुओं के पास जाती है तब वे कहते है कि हमारा नाम प्रेम, समृद्धि और सफलता है तुम किसे पहले अपने घर पर ले जाना चाहती हो।
यह सुनकर उसे समझ में नहीं आता कि क्या करे? वह फिर अपने घर आती है और अपने पति से यह पूछती है कि क्या करे? पति सोचता है कि समृद्धि को ही बुला ले क्योंकि वर्षों से परिवार गरीबी में रह रहा है। पत्नी कहती है नहीं हमें सफलता को बुलाना चाहिए जिसके माध्यम से समृद्धि आएगी। इतने में परिवार के अन्य सदस्य भी अपनी बात कहते है।
काफी विचार विमर्श के बाद सभी एक मत होते है कि घर में सबसे पहले प्रेम को बुलाना चाहिए। वह महिला फिर तीनों साधुओं के पास जाती है और कहती है कि सबसे पहले प्रेम को घर पर आने का न्यौता देती हूँ। यह सुनते है सफलता और समृद्धि भी साथ में चलने लगते है। वे तीनों उस महिला से कहते है कि जिस घर में प्रेम है वहाँ पर सफलता और समृद्धि अपने आप आ जाते है।
दोस्तों, हम भी लगातार समृद्धि और सफलता के बारे में ही सोचते रहते है पर प्रेम के बारे में कभी नहीं सोचते। आप कितना भी पैसा कमा ले या सफलता अर्जित कर ले पर अगर आपने समाज में या परिवार में आपके प्रेम भरे संबंध नहीं है तब बाकी सबकुछ बेमानी है।
जिंदगी हर इंसान को प्यार, कामयाबी और दौलत की ही चाह रहती होती है। मुश्किल तब होती है जब इंसान सिर्फ खुद की ही कामयाबी के बारे में खुदगर्ज होकर सोचने लगता है। नतीजा यह होता है कि शोहरत और पैसा होने के बावजूद वह अपनी खुशी और प्यार लोगों में बाँट नहीं पाता क्योंकि अपने स्वार्थ के कारण वह सबसे दूर हो चुका रहता है।
जिंदगी में कई बार इंसान के पास मौके आते है जब वह अपने प्रेम की डोर से दुसरों को मदद कर सकता है पर अपनी प्रगति और अपनी सफलता के लिए वह स्वार्थ का सहारा लेता है। एक गरीब परिवार में बूढ़े माता पिता और उनके दो बेटे रहते है जिनकी शादी हो चुकी है।
परिवार दोनों बेटों की कमाई पर ही चलता है और बेहद गरीब है लेकिन आपस में प्रेम बहुत है। बेटो को सहायता करने के लिए बुढ़े पिता भी काम पर जाते हैं। एक दिन ईश्वर को लगता है कि क्यों न इस परिवार पर कृपा की जाए। पर इसके पूर्व वह परिवार की परीक्षा भी लेना चाहता है।
एक दिन भरी गर्मी में परिवार के घर के बाहर तीन लोग आकर खड़े होते है। वे साधु किस्म के रहते है और घर पर केवल महिलाएँ रहती है। परिवार की सबसे बुजुर्ग महिला तीनों साधुओं को देखती है और उसे लगता है कि इन साधुओं को घर पर बुलाना चाहिए। वह बाहर जाकर अपना परिचय देती है और साधुओं से घर पर चलने का आग्रह करती है। पर तीनों मना कर देते है कि जब तक घर पर कोई पुरुष नहीं होगा वे घर पर नहीं आएँगे।
यह बात सुनकर महिला अपने घर चली जाती है। देर शाम को जब बुढ़े पिता घर पर आते है तब उनकी पत्नी उन्हें बताती है कि ऐसे साधु आए है और अब भी बैठे है वे अब तक घर में इस कारण नहीं आ रहे थे क्योंकि घर में कोई पुरुष नहीं था। घर के बुजुर्ग सदस्य को लगता है कि वाकई में यह साधु दिव्य ही होंगे। वे पत्नी को साधुओं को घर पर बुलाने के लिए कहते है। उनकी पत्नी साधुओं के पास जाती है तब वे कहते है कि हमारा नाम प्रेम, समृद्धि और सफलता है तुम किसे पहले अपने घर पर ले जाना चाहती हो।
यह सुनकर उसे समझ में नहीं आता कि क्या करे? वह फिर अपने घर आती है और अपने पति से यह पूछती है कि क्या करे? पति सोचता है कि समृद्धि को ही बुला ले क्योंकि वर्षों से परिवार गरीबी में रह रहा है। पत्नी कहती है नहीं हमें सफलता को बुलाना चाहिए जिसके माध्यम से समृद्धि आएगी। इतने में परिवार के अन्य सदस्य भी अपनी बात कहते है।
काफी विचार विमर्श के बाद सभी एक मत होते है कि घर में सबसे पहले प्रेम को बुलाना चाहिए। वह महिला फिर तीनों साधुओं के पास जाती है और कहती है कि सबसे पहले प्रेम को घर पर आने का न्यौता देती हूँ। यह सुनते है सफलता और समृद्धि भी साथ में चलने लगते है। वे तीनों उस महिला से कहते है कि जिस घर में प्रेम है वहाँ पर सफलता और समृद्धि अपने आप आ जाते है।
दोस्तों, हम भी लगातार समृद्धि और सफलता के बारे में ही सोचते रहते है पर प्रेम के बारे में कभी नहीं सोचते। आप कितना भी पैसा कमा ले या सफलता अर्जित कर ले पर अगर आपने समाज में या परिवार में आपके प्रेम भरे संबंध नहीं है तब बाकी सबकुछ बेमानी है।