****ज्ञान-साधन और भगवन्नाम-जप*****–आध्यात्म, -पवन तलहन *****
*** *********!!सर्वशास्त्रबीज हरिनाम द्वि अक्षर !!**********
****************************************
****************************************
“हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम!
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा!!”
भगवान वेदव्यास जी कहते हैं कि “कलियुग में हरिनाम के अतिरिक्त भवसागर से पार होने का कोई दूसरा साधन नहीं है!
तमु ष्टवाम थ इमा जजान! [ऋग. ]
हम उस भगवान की स्तुति [गुण-कीर्तन] करें जिसने यह सारी सृष्टि उतपन्न की है!
सत्यमिद्वा उ तं वयमिंद्रं सतवाम नानृतम ! [ऋ]
हम उस सच्चे भगवान की करें, झूठे विषय आदि पदार्थों की नहीं!
कानों से कल्याणकारी भगवन्नाम सुनें!
भद्रं श्लोकं श्रूयासम !
कल्याणकारी भगवान के यश को सुने!
संकीर्तनं नाम भगवदगुणकर्मनाम्नां स्वयमुच्चाणम!
ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात पूर्ण मुदच्यते !
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते !!
ॐ शान्ति शान्ति शान्ति!!
वह सच्चिदानंदन परब्रह्म पुरुषोत्तम सब प्रकार से सदा-सर्वदा परिपूर्ण है! यह जगत भी उस परब्रह्म से पूर्ण ही है; क्योंकि यह उस पूर्ण पुरुषोत्तम से ही य्त्पन्न हुआ है! इस प्रकार परब्रह्म परिपूर्ण है! उस पूर्ण में से पूर्ण को निकाल लेने पर भी वह पूर्ण ही बच रहता है! आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक –तीनों तापों की शान्ति हो!
ॐ तेजोsसि तेजो मयि धेहि !
ॐ वीर्य्यमसि वीर्य्यं मयि धेहि!!
ॐ बलमसि बलं मयि धेहि!
ॐ ओजोsसि ओजो मयि धेहि!!
ॐ मन्युरसि मन्युं मयि धेहि!
ॐ सहोsसि सहो मयि धेहि!!
हे सच्चिदानन्दस्वरुप परमात्मन ! आप तेज हैं, मुझ में तेज का आधान कीजिये ! आप वीर्य हैं, मुझमें वीर्य का आधान कीजिये! आप बल हैं, मुझ में बल का आधान कीजिये! आप ओज हैं, मुझ में ओज का आधान कीजिये! आप मन्यु [क्रोधाभिमानी रूद्र देवता] हैं, मुझमें मन्यु [भीतरी एवं बाहरी शत्रुओं एवं आततायियों के प्रति न्याय युक्त क्रोध ] का आधान कीजिये! आप सह [काम क्रोध आदि वेगों को, शीत एवं उष्ण द्वुन्दों तथा कष्ट को सहन करने की शक्ति एवं दीप्ति ] हैं, मुझमें सह का आधान कीजिये!
भगवान के गुण, धर्म और नामों का स्वयं उच्चारण संकीर्तन है!
कलयुग में ऐसा कोई भी कायिक अथवा मानसिक पाप नहीं है, जो भगवान के नाम से नष्ट न हो!
बड़ा ही आश्चार्य है, भगवान के नामरुपी साधन के रहते हुए भी लोग संसार में पड़े हैं!
भद्रं नो अपि वातय मन:!
हे भगवन! हमारे मनको भगवद्भक्ति, विचार आदि शुभ कर्मों की ओर प्रेरित कीजिये!
!!सर्वशास्त्रबीज हरिनाम द्वि अक्षर !!
“हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम!
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा!!”
भगवान वेदव्यास जी कहते हैं कि “कलियुग में हरिनाम के अतिरिक्त भवसागर से पार होने का कोई दूसरा साधन नहीं है!
तमु ष्टवाम थ इमा जजान! [ऋग. ]
हम उस भगवान की स्तुति [गुण-कीर्तन] करें जिसने यह सारी सृष्टि उतपन्न की है!
सत्यमिद्वा उ तं वयमिंद्रं सतवाम नानृतम ! [ऋ]
हम उस सच्चे भगवान की करें, झूठे विषय आदि पदार्थों की नहीं!
कानों से कल्याणकारी भगवन्नाम सुनें!
भद्रं श्लोकं श्रूयासम !
कल्याणकारी भगवान के यश को सुने!
संकीर्तनं नाम भगवदगुणकर्मनाम्नां स्वयमुच्चाणम!
ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात पूर्ण मुदच्यते !
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते !!
ॐ शान्ति शान्ति शान्ति!!
वह सच्चिदानंदन परब्रह्म पुरुषोत्तम सब प्रकार से सदा-सर्वदा परिपूर्ण है! यह जगत भी उस परब्रह्म से पूर्ण ही है; क्योंकि यह उस पूर्ण पुरुषोत्तम से ही य्त्पन्न हुआ है! इस प्रकार परब्रह्म परिपूर्ण है! उस पूर्ण में से पूर्ण को निकाल लेने पर भी वह पूर्ण ही बच रहता है! आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक –तीनों तापों की शान्ति हो!
ॐ तेजोsसि तेजो मयि धेहि !
ॐ वीर्य्यमसि वीर्य्यं मयि धेहि!!
ॐ बलमसि बलं मयि धेहि!
ॐ ओजोsसि ओजो मयि धेहि!!
ॐ मन्युरसि मन्युं मयि धेहि!
ॐ सहोsसि सहो मयि धेहि!!
हे सच्चिदानन्दस्वरुप परमात्मन ! आप तेज हैं, मुझ में तेज का आधान कीजिये ! आप वीर्य हैं, मुझमें वीर्य का आधान कीजिये! आप बल हैं, मुझ में बल का आधान कीजिये! आप ओज हैं, मुझ में ओज का आधान कीजिये! आप मन्यु [क्रोधाभिमानी रूद्र देवता] हैं, मुझमें मन्यु [भीतरी एवं बाहरी शत्रुओं एवं आततायियों के प्रति न्याय युक्त क्रोध ] का आधान कीजिये! आप सह [काम क्रोध आदि वेगों को, शीत एवं उष्ण द्वुन्दों तथा कष्ट को सहन करने की शक्ति एवं दीप्ति ] हैं, मुझमें सह का आधान कीजिये!
भगवान के गुण, धर्म और नामों का स्वयं उच्चारण संकीर्तन है!
कलयुग में ऐसा कोई भी कायिक अथवा मानसिक पाप नहीं है, जो भगवान के नाम से नष्ट न हो!
बड़ा ही आश्चार्य है, भगवान के नामरुपी साधन के रहते हुए भी लोग संसार में पड़े हैं!
भद्रं नो अपि वातय मन:!
हे भगवन! हमारे मनको भगवद्भक्ति, विचार आदि शुभ कर्मों की ओर प्रेरित कीजिये!
!!सर्वशास्त्रबीज हरिनाम द्वि अक्षर !!