मोन व्रत मनुष्य अपने जीवन में रखता है ताकि उसकी वाणी शुद्ध हो अंतकरण साफ हो पर मोन एक घटना है जो किसी भी मनुष्य के जीवन में घटित हो सकती है एक ऐसी घटना जो घाट गयी तो मनुष्य को आपना स्वरुप दिख जाता है , फिर उसमे आत्मबोध की भावनाए जागृत होती है और आत्मानुभव होने लगता है ! फलस्वरूप उसमे जो खूबियाँ पनपती है सरलता की , सहजता की , समनव्य की , और साधुता की , फिर क्या बहने लगता है आत्मा से परमात्मा की ओर ! उसके जीवन में दो बाते महत्वपूरण हो जाती है एक प्रेम और दूसरा चेतना की ————————– –
उसका व्यतित्व प्रेम पूरण हो जाता है जिसके कारन दुनिया सुन्दर और अति सुंदर दिखने लगाती है !प्रेम एक ऐसी घटना है जो व्यति को निर्भय बना देती है जो जित लेती है अहंकार को ,क्रोध को ,वासना को , और जीवन बहाने लगता है सरलता से , सहजता से , सोंदर्य से —— !
जैसा सर्व वितित है सेवरी के प्रेम में प्रभु उसके घर गए , केवट के प्रेम में उसके झोपड़ी तक गए सेवरी प्रभु के घर नहीं गयी केवट प्रभु के घर नहीं गया बलकी उसने प्रभु को विवस किया आपने घर आने के लिए और भगवान को जाना पड़ा क्योकि वे सिर्फ और सिर्फ प्रेम के वस में है!एक और उधाहरण है जहाँ क्रोध प्रेम से हार जाता है , अहंकार घुटने टेक देता है प्रेम के सामने क्युकी प्रेम अमर है , प्रेम निर्भय है , जिसका स्वाभाव प्रेम पूरण है वह क्रोध से नहीं डरता ,अहंकार उसका कुछ बिगड़ नहीं सकता ! जैसा की विदित है अंगुली मार डाकू का भय इतना था की कलपना मात्र से लोग भय भीत हो जाते थे , उसके नाम मात्र से लोग की सांसे रुकने लगाती थी , पर महात्मा बुद्ध के सामने उसका क्रोध ,अहंकार भय सब घुटने टेक दिए , क्यकी बुद्ध प्रेमी थे उनका स्वभाव प्रेम मय था , अंगुली मार भी उन्हें प्रेमी दिखा फिर क्या ? बोझार कर दिया प्रेम का जिससे धुल गगयी ,उसकी जिन्दगी ! साधू हो गया एक सच्चा साधू क्यकी वह प्रेम का रस पण कर लिया था !————————– —
मोन से दूसरी बाते जो जागृत होती है वह चेतना है ! अन्दर और बहार की कोलाहल से मनुष्य की चेतना सोयी रहती है , और वह जब मोन होता है तो सोयी चेतना जागृत हो जाती है फिर मनुष्य आपने कार्यो के प्रति जागृत होता है , वह किस लिए आया है उसको क्या करना है , क्या कर रहा है एन सब बातो के प्रति सचेत हो जाता है ! जब चेतना जागृत होती है तो अपने को प्रभु का अभिकर्ता समझ लेता है और वह जो कार्य करता है प्रभु के लिए करता है यानि निष्काम भाव से करता है !उसका हसना प्रभु के लिए है तो रोना भी प्रभु के लिए ही है ,यानि सब कुछ प्रभु को ही समर्पित है ! तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मोरा —-!
फलस्वरूप जीवन सरल हो जाता है सहज हो जाता है जीवन आनंद से भर जाता है ——
उसका व्यतित्व प्रेम पूरण हो जाता है जिसके कारन दुनिया सुन्दर और अति सुंदर दिखने लगाती है !प्रेम एक ऐसी घटना है जो व्यति को निर्भय बना देती है जो जित लेती है अहंकार को ,क्रोध को ,वासना को , और जीवन बहाने लगता है सरलता से , सहजता से , सोंदर्य से —— !
जैसा सर्व वितित है सेवरी के प्रेम में प्रभु उसके घर गए , केवट के प्रेम में उसके झोपड़ी तक गए सेवरी प्रभु के घर नहीं गयी केवट प्रभु के घर नहीं गया बलकी उसने प्रभु को विवस किया आपने घर आने के लिए और भगवान को जाना पड़ा क्योकि वे सिर्फ और सिर्फ प्रेम के वस में है!एक और उधाहरण है जहाँ क्रोध प्रेम से हार जाता है , अहंकार घुटने टेक देता है प्रेम के सामने क्युकी प्रेम अमर है , प्रेम निर्भय है , जिसका स्वाभाव प्रेम पूरण है वह क्रोध से नहीं डरता ,अहंकार उसका कुछ बिगड़ नहीं सकता ! जैसा की विदित है अंगुली मार डाकू का भय इतना था की कलपना मात्र से लोग भय भीत हो जाते थे , उसके नाम मात्र से लोग की सांसे रुकने लगाती थी , पर महात्मा बुद्ध के सामने उसका क्रोध ,अहंकार भय सब घुटने टेक दिए , क्यकी बुद्ध प्रेमी थे उनका स्वभाव प्रेम मय था , अंगुली मार भी उन्हें प्रेमी दिखा फिर क्या ? बोझार कर दिया प्रेम का जिससे धुल गगयी ,उसकी जिन्दगी ! साधू हो गया एक सच्चा साधू क्यकी वह प्रेम का रस पण कर लिया था !————————– —
मोन से दूसरी बाते जो जागृत होती है वह चेतना है ! अन्दर और बहार की कोलाहल से मनुष्य की चेतना सोयी रहती है , और वह जब मोन होता है तो सोयी चेतना जागृत हो जाती है फिर मनुष्य आपने कार्यो के प्रति जागृत होता है , वह किस लिए आया है उसको क्या करना है , क्या कर रहा है एन सब बातो के प्रति सचेत हो जाता है ! जब चेतना जागृत होती है तो अपने को प्रभु का अभिकर्ता समझ लेता है और वह जो कार्य करता है प्रभु के लिए करता है यानि निष्काम भाव से करता है !उसका हसना प्रभु के लिए है तो रोना भी प्रभु के लिए ही है ,यानि सब कुछ प्रभु को ही समर्पित है ! तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मोरा —-!
फलस्वरूप जीवन सरल हो जाता है सहज हो जाता है जीवन आनंद से भर जाता है ——