आइये जाने देव गुरु और गुरुओं के गुरु बृहस्पति—-


।।ॐ बृं बृहस्पते नम:।।


नवग्रहों में बृहस्पति को गुरु की उपाधि प्राप्त है। मानव जीवन पर बृहस्पति का महत्वपूर्ण स्थान है। यह हर तरह की आपदा-विपदाओं से धरती और मानव की रक्षा करने वाला ग्रह है। बृहस्पति का साथ छोड़ना अर्थात आत्मा का शरीर छोड़ जाना है।


पौराणिक कथा : पुराणों के अनुसार बृहस्पति समस्त देवी-देवताओं के गुरु हैं। गुरु बृहस्पति सत्य के प्रतीक हैं। उन्हें ज्ञान, सम्मान एवं विद्वता का प्रतीक भी माना जाता है। गुरु बुद्धि और वाक् शक्ति के स्वामी हैं। वे महर्षि अंगिरा के पुत्र हैं। उनकी माता का नाम सुनीमा है। इनकी बहन का नाम ‘योग सिद्धा’ है।


वैज्ञानिक दृष्टिकोण : सौरमंडल में सूर्य के आकार के बाद बृहस्पति का ही नंबर आता है। पृथ्‍वी से बहुत दूर स्थित इस ग्रह का व्यास लगभग डेढ़ लाख किलोमीटर और सूर्य से इसकी दूरी लगभग 778.00000 किलोमीटर मानी गई है। 


यह .. कि.मी. प्रति सेकंड की रफ्तार से सूर्य के गिर्द 11 वर्ष में एक चक्कर लगा लेता है। यह अपनी धुरी पर 10 घंटे में ही घूम जाता है। लगभग 1300 धरतियों को इस पर रखा जा सकता है। जिस तरह सूर्य उदय और अस्त होता है, उसी तरह बृहस्पति जब भी अस्त होता है तो 30 दिन बाद पुन: उदित होता है। 


उदित होने के बाद 1.8 दिनों तक सीधे अपने पथ पर चलता है। सही रास्ते पर अर्थात मार्गी होने के बाद यह पुन: 128 दिनों तक परिक्रमा करता रहता है एवं इसके पश्चात पुन: अस्त हो जाता है। गुरुत्व शक्ति पृथ्वी से 318 गुना ज्यादा।


अशुभ के लक्षण : ——
सिर पर चोटी के स्थान से बाल उड़ जाते हैं। गले में व्यक्ति माला पहनने की आदत डाल लेता है। सोना खो जाए या चोरी हो जाए। बिना कारण शिक्षा रुक जाए। व्यक्ति के संबंध में व्यर्थ की अफवाहें उड़ाई जाती हैं। आंखों में तकलीफ होना, मकान और मशीनों की खराबी, अनावश्यक दुश्मन पैदा होना, धोखा होना, सांप के सपने। सांस या फेफड़े की बीमारी, गले में दर्द। 2, 5, 9, 12वें भाव में बृहस्पति के शत्रु ग्रह हों या शत्रु ग्रह उसके साथ हों तो बृहस्पति मंदा होता है।


शुभ के लक्षण:—–
 व्यक्ति कभी झूठ नहीं बोलता। उनकी सच्चाई के लिए वह प्रसिद्ध होता है। आंखों में चमक और चेहरे पर तेज होता है। अपने ज्ञान के बल पर दुनिया को झुकाने की ताकत रखने वाले ऐसे व्यक्ति के प्रशंसक और हितैषी बहुत होते हैं। यदि बृहस्पति उसकी उच्च राशि के अलावा 2, 5, 9, 12 में हो तो शुभ।


उपाय : पीपल में जल चढ़ाना। सत्य बोलना। आचरण को शुद्ध रखना। पिता, दादा और गुरु का आदर करना। गुरु बनाना। घर में धूप-दीप देना।


देवता : ब्रह्मा
पेशा : शिक्षा, सुनार
गोत्र : अंगिरा
जाति-रंग : ब्राह्मण, पीत वर्ण
वाहन : ऐरावत (सफेद हाथी)
स्वभाव : मौन एवं शांत क्षत्रिय पुरुष
दिशा : ईशान कोण
दिवस : बृहस्पतिवार
बल-वृद्धि : मंगल के साथ होने से बलशाली
भ्रमण काल : एक राशि में 13 माह
नक्षत्र: पूर्वा विशाखा, पूर्वा भाद्रपद
विशेषता : रहस्यमय ज्ञानी
गुण : हवा, रूह, सांस, पिता, गुरु और सुख।
शक्ति : हकीम, सांस लेने तथा दिलाने की शक्ति
वस्तु : सोना, पुखराज
शरीर के अंग : गर्दन, नाक, माथे या नाक का सिरा
पोशाक : पगड़ी
पशु : बब्बर शेर
वृक्ष : पीपल
राशि :——- धनु और मीन राशि के स्वामी गुरु के सूर्य, मंगल, चंद्र मित्र व शुक्र, बुध शत्रु तथा शनि, राहु, केतु सम हैं। 
अन्य नाम : देवमंत्री, देव पुरोहित, देवेज्य, इज्य, गुरु, सुराचार्य, जीव, अंगिरा और वाचस्पति सूरी।
मकान :——-हवा के रास्ते। दरवाजा उत्तर-दक्षिण न होगा। हो सकता है कि पीपल का वृक्ष या कोई धर्मस्थान मकान के आसपास हो।

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