अक्षय तृतीया व्रतानुष्ठान पर्व
यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है । इस तिथि को किया गया दान, स्नान, जप, यज्ञादि शुभ कार्यों का फल अनन्त गुना होकर मानव के धर्म खाते में अक्षुण्य (अक्षय) हो जाता है । इीस से इसका नाम अक्षय तृतीया हुआ ।
निर्णय सिन्धु में वैशाख शुक्ल पक्षकी तृतीया में गंगा स्नान का महत्व बताया है –
बैशाखे शुक्लपक्षे तु तृतीयायां तथैव च ।
गंगातोये नर: स्नात्वा मुच्यते सर्वकिल्विषै: ॥
भगवान नर- नारायण की जयन्ती तिथि अक्षय तृतीया ही है । इसलिए ही बद्रीनारायण जी के मंदिर के पट इस दिन खोले जाते हैं । इीस दिन त्रेतायुग का आरंभ पुराणों में वर्णित है । इसी तिथि को प्रदोष काल में भगवान श्री परशुराम जी पृथ्वी पर अवतरित हुए । भारतीय ज्योतिष शास्त्र में अक्षय तृतीया मुहूर्त को सर्वसिध्दिदायक सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त माना गया है। अति शुभ फलदायक अति पावन पुनीति तिथि होने के कारण भारत दश के विभिन्न राज्यों में इस तितिपर अनेक पर्व स्थानीय प्रथा के अनुसार विभिन्न नामोंस मनाये जाते हैं । छत्तीसगढ़ राज्य में इस तिथि को आखातीज कहते है । अर्थात अखण्ड तिथि जिसका फल अक्षुण्यहै । भगवान श्री जगन्नाथ जी के रथों का निर्माण इसी तिथि से प्ररंभ होता है। किसान अपने खेतों में बीज इसदिन से बोना शुरू करते हैं जन सामान्य आज के दिन वस्त्र- आभूषण, मूर्ति, मकानवाहन आदि क्रय करते हैं । महाभारत में इस तिथि को अनन्त फल प्रदान करने वाली तिथि कहा गया है । स्नात्वा हुत्वा च दत्वा च जप्त्वाडनन्तफलं लभेत ।
भारतीय जन मानस में यह सर्वविदित आम धारणा बनी हुई है कि इस दिनयदि अपनी कन्या का कन्यादान किया जावे तो अनन्त कोटि फल मिलता है । कन्या भी अखण् सौभाग्यवती होती है । इसीलिए इस तिथि को गुड्डे गुड़िया का विवाह पतीक स्वरूप किया जाता है । कूंआरी कन्याएं ही गुडे गुड़ियों का ब्याह रचाती है ताकि इसी से स्वयं का विवाह भी निर्विध्न रूप से संपन्न हो सके उड़ीसा में जगन्नाथपुरी में चंदन यात्रा का पर्व बड़ी धूमधामसे मनाया जाता है । वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया से ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी तक नरेन्द्र पुष्करिणी में चन्दन यात्रा का आयोनज होता है । श्री जगन्नाथ जी बलभद्र जी एवं सुभद्रा जी को जल विहार नाव द्वारा कराया जाता है । पश्चात पुष्करिणी के मध्य बनें मंदिर के चन्दन कुण्ड में विजय प्रतिमायें रख दी जाती है । वैष्णव सम्प्रदाय के भक्त अक्षय तृतीया के दिन श्री हरि के अंगों में चंदन का लेपन कर पूजन करते हैं । स्कन्द पुराण में स्वंय श्री हरि कहते हैं –
वैशाखस्य सित पक्षे तृतीयारख्य संज्ञिका ।
तत्र मां लेपयेत गन्धं लेपनौरति शोभनम् ॥
अर्थात बैशाख के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिनमेरे मेरेआसपास शरीर में सुगन्धित चन्दन का लेपन करें । धर्म सिन्धु में श्रीकृष्ण की चन्दन पूजा का महत्व बताते हुए वर्णन है कि –
य: करोति तृतीया कृष्णं चन्दन भूषितमं ।
वैशाखस्य सिते पक्षे स यात्यच्युतमन्दिरम् ॥
अर्थात वैशाख शुक्ल पक्ष ततीया को योगेश्वर श्रीकृष्ण के विग्रह का चंदन द्वारा श्रृंगार करने वाला उनकी कृपा का पात्र बन जाता है और मृत्यु के पश्चात श्री कृण धाम को जाता है । वृन्दावन में श्री राधारमण , श्री राधादामोदर , श्री राधाश्यामसुन्दर आदि मंदिरों में अक्षय ततीया के दिन चन्दन से अलंकृत श्री कृष्ण क झांकी का अद्भुत दर्शन जनसाधारण को मिलता है । श्री बांके बिहारीजी के चरणों के दर्शनवर्ष में केवल इसी दिन भाग्यशाली भक्तगणों को मिलता है । बंगाल में भी श्रीकृष्ण के विग्रह पर चन्दन लेप किया जाता है । इस दिन विशे, पूजा अर्चनाकी जाती है । इस दिन श्री विष्णु एवं श्री परशुरामकीपूजा विशेषरूप से की जाती है । एवं वेदपाठी ब्राह्मण को दान दिया जाता है । इस दिन गंगा स्नान का बहुत महत्व है । यदि जो गंगा में स्नान न कर सके तो श्रध्दालु जन सात पूज्यनदियों में से जो निकट हो उसमें स्नान करे । कूंभ महापर्व में गंगा स्नानका पुण्य फल अनन्त कोटि मिलता ह पंदम पुराण में गंगा स्नानका अत्यधिक महत्व का वर्णन है । स्नान के पश्चात अक्षयतृतीया को जल से भरा कलश पंखा जी को सत्तू छाता, उपान्ह, गौ भूमि आदि का दान अपनी सामर्थ्य अनुसार अवश्य करना चाहिए ।
जिस कन्या के विवाह में बाधा हो, इस दिन कन्या घट दान के सात सात श्री सूक्त स्तोत्रम का पाठ या पार्वती मंगल स्तोत्रम का पाठ.1 ङ्कङ्क बार करे तोविवाह शीघ्र सम्पन्न होता है । बाधा दूर होती है । इसका वर्णन हमारी पुस्तक विवाहबाधा विलम्ब निवारण में है ।
प्रात: स्नानके पश्चात संकल्प करके भगवान का सोडसोपचार से पूजन करें उन्हें भेग लगायें आरती कर । नर नारायण (भगवान बद्रीनाथ) एवं श्री परशुराम जीको स्मरण कर ग्रीष्म ॠतु के फल सहित सभव हो तो स्वर्ण सहित अन्न दान करें । अक्षय फल प्राप्त होगा ।
यत्किंचित दीयते दानं स्वल्पं वा यदि वा बहु ।
तत् सर्व सर्वमक्षयं यस्मात् तेनेयमक्षया स्मृता ।