***ब्रह्मवैवर्तपुराण******
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[ श्री कृष्ण, राधा, शिव, पार्वती, ब्रह्मा, सरस्वती ]
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यह सारा जगत ब्रह्म [परमात्मा श्रीकृष्ण ] का विवर्त है अर्थात श्रीकृष्ण में ही भ्रम से इसको आरोप हुआ है! इस बात को बतानेवाला पुराण ब्रह्मवैवर्त है!
परब्रह्म परमात्मा नाम से श्रीकृष्ण ही इस पुराण में प्रतिपादन हुआ है!
“वन्दे कृष्णं गुणातीतं परं ब्रह्माच्युतं यात:” [ब्र. खण्ड १/४]
प्रकृति, ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि देवों का आविर्भाव श्रीकृष्ण से हुआ है—
“आविर्बभूवु: प्रकृतिब्रह्मविष्णुशिवायदय:!!”
ब्रह्म, परमात्मा और भगवान एक ही अद्वय परमसत्ता के तीन नाम हैं! ये ही परमात्मा अथवा ब्रह्म ही ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्रीकृष्ण बतलाये गये हैं! वे ही श्रीकृष्ण,—-महाविष्णु, विष्णु, नारायण, शिव तथा गणेश आदि रूपों में प्रकट हैं और प्रेम तथा प्राणों की अधिदेवी श्रीराधा ही दुर्गा, महालक्ष्मी, सरस्वती, सावित्री, काली आदि रूपों में प्रकट हैं! कभी श्रीकृष्ण महादेव का स्तवन करते हैं, उन्हें परमतत्त्व तथा अपने से अभिन्न बताते हैं तो कहीं महादेव श्रीकृष्ण का स्तवन करते हुए उन्हें परम आदितत्त्व और अपने से अभिन्न बताते हैं! कहीं श्रीराधा जी दुर्गा एवं पार्वती का स्तवन करती हैं और सर्वदेवीस्वरूपा बतलाती हैं तो कहीं श्रीदुर्गा श्रीराधा जी को सर्वदेवीस्वरूपा तथा सब को आदेश देनेवाली आदिस्वरूपा मशादेवी बतलाती हैं! तात्पर्य यह है कि एक ही परमतत्त्व तथा उनकी शक्ति अनेक रूपों में आवीर्भूत है!
सृष्टि के अवसर पर परब्रह्म परम परमात्मा भगवान श्रीकृष्ण स्वयं दो रूपों में प्रकट होते हैं—प्रकृति तथा पुरुष! उनका दाहिना अंग पुरुष और बायाँ अंग प्रकृति है! वही मूलप्रकृति राधा हैं! ये ब्रह्मस्वरूपा नित्या और सनातनी है, फिर इनके पांच रूप हो गये–१–शिवस्वरूपा नारायणी और पूर्णब्रह्मस्वरूपिणी भगवती दुर्गा! २–शुद्धसत्त्वस्वरूपा, परमप्रभु श्रीहरि कि शक्ति, समस्त सम्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी श्रीमहालक्ष्मी! ३–वाणी, विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी श्रीसरस्वती ! ४–ब्रह्मतेजसम्पन्ना शुद्धसत्त्वमयी ब्रह्मा जी की परम प्रियशक्ति श्रीसावित्री! ५–प्रेम तथा प्राणों की अधिदेवी, परमात्मा श्रीकृष्ण की प्राणाधिका प्रिया, अनुपमेय-अतुलनीय सौन्दर्य-माधुर्य-सदगुण-समूह एवं गौरव से सम्पना श्रीराधा! ये नित्य निकुंजेश्वरी, राजेश्वरी, सुरसिका नाम से प्रसिद्ध हैं! निर्लिप्ता हैं और आत्मस्वरूपिणी हैं! ये ही मूलप्रकृति हैं! इन्हीं के अंश-कला-कालांश से गंगा, तुलसी, काली, पृथ्वीदेवी आदि का आविर्भाव हुआ है! समस्त “स्त्रीतत्त्व ” इन्हीं श्रीराधा का भेद-भेदांश अथवा प्रभेदांश है! ये प्राणशक्ति राधा और प्राणेश्वर श्रीकृष्ण परस्पर अनुस्यूत हैं! यही मुख्यत: तात्पर्यार्थ से ब्रह्मवैवर्त पुराण का प्रतिपाद्य विषय है!
“सत्यं सत्यं न संशय”*******************
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[ श्री कृष्ण, राधा, शिव, पार्वती, ब्रह्मा, सरस्वती ]
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यह सारा जगत ब्रह्म [परमात्मा श्रीकृष्ण ] का विवर्त है अर्थात श्रीकृष्ण में ही भ्रम से इसको आरोप हुआ है! इस बात को बतानेवाला पुराण ब्रह्मवैवर्त है!
परब्रह्म परमात्मा नाम से श्रीकृष्ण ही इस पुराण में प्रतिपादन हुआ है!
“वन्दे कृष्णं गुणातीतं परं ब्रह्माच्युतं यात:” [ब्र. खण्ड १/४]
प्रकृति, ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि देवों का आविर्भाव श्रीकृष्ण से हुआ है—
“आविर्बभूवु: प्रकृतिब्रह्मविष्णुशिवायदय:!!”
ब्रह्म, परमात्मा और भगवान एक ही अद्वय परमसत्ता के तीन नाम हैं! ये ही परमात्मा अथवा ब्रह्म ही ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्रीकृष्ण बतलाये गये हैं! वे ही श्रीकृष्ण,—-महाविष्णु, विष्णु, नारायण, शिव तथा गणेश आदि रूपों में प्रकट हैं और प्रेम तथा प्राणों की अधिदेवी श्रीराधा ही दुर्गा, महालक्ष्मी, सरस्वती, सावित्री, काली आदि रूपों में प्रकट हैं! कभी श्रीकृष्ण महादेव का स्तवन करते हैं, उन्हें परमतत्त्व तथा अपने से अभिन्न बताते हैं तो कहीं महादेव श्रीकृष्ण का स्तवन करते हुए उन्हें परम आदितत्त्व और अपने से अभिन्न बताते हैं! कहीं श्रीराधा जी दुर्गा एवं पार्वती का स्तवन करती हैं और सर्वदेवीस्वरूपा बतलाती हैं तो कहीं श्रीदुर्गा श्रीराधा जी को सर्वदेवीस्वरूपा तथा सब को आदेश देनेवाली आदिस्वरूपा मशादेवी बतलाती हैं! तात्पर्य यह है कि एक ही परमतत्त्व तथा उनकी शक्ति अनेक रूपों में आवीर्भूत है!
सृष्टि के अवसर पर परब्रह्म परम परमात्मा भगवान श्रीकृष्ण स्वयं दो रूपों में प्रकट होते हैं—प्रकृति तथा पुरुष! उनका दाहिना अंग पुरुष और बायाँ अंग प्रकृति है! वही मूलप्रकृति राधा हैं! ये ब्रह्मस्वरूपा नित्या और सनातनी है, फिर इनके पांच रूप हो गये–१–शिवस्वरूपा नारायणी और पूर्णब्रह्मस्वरूपिणी भगवती दुर्गा! २–शुद्धसत्त्वस्वरूपा, परमप्रभु श्रीहरि कि शक्ति, समस्त सम्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी श्रीमहालक्ष्मी! ३–वाणी, विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी श्रीसरस्वती ! ४–ब्रह्मतेजसम्पन्ना शुद्धसत्त्वमयी ब्रह्मा जी की परम प्रियशक्ति श्रीसावित्री! ५–प्रेम तथा प्राणों की अधिदेवी, परमात्मा श्रीकृष्ण की प्राणाधिका प्रिया, अनुपमेय-अतुलनीय सौन्दर्य-माधुर्य-सदगुण-समूह एवं गौरव से सम्पना श्रीराधा! ये नित्य निकुंजेश्वरी, राजेश्वरी, सुरसिका नाम से प्रसिद्ध हैं! निर्लिप्ता हैं और आत्मस्वरूपिणी हैं! ये ही मूलप्रकृति हैं! इन्हीं के अंश-कला-कालांश से गंगा, तुलसी, काली, पृथ्वीदेवी आदि का आविर्भाव हुआ है! समस्त “स्त्रीतत्त्व ” इन्हीं श्रीराधा का भेद-भेदांश अथवा प्रभेदांश है! ये प्राणशक्ति राधा और प्राणेश्वर श्रीकृष्ण परस्पर अनुस्यूत हैं! यही मुख्यत: तात्पर्यार्थ से ब्रह्मवैवर्त पुराण का प्रतिपाद्य विषय है!
“सत्यं सत्यं न संशय”*******************