**परात्पर शिव और आद्या शक्ति****पवन तलहन
**********************************
सृष्टि में जो परम परात्पर हैं वही शिव है! माण्डूक्योपनिषद में शिव का यों वर्णन मिलता है!——
नान्त:प्रज्ञं न बहिष्प्रज्ञं नोभयत: प्रज्ञं न प्रज्ञानघन्न न प्रज्ञं नाप्रज्ञम!
अदृष्टमव्यवहार्यमग्राह्यमलक्षणचिन्त्यमव्यपदेश्यमेकात्मप्रत्ययसारं
प्रपंचोपशमं शांत शिवमद्वैतं चतुर्थ मान्यन्त्ते स आत्मा स विज्ञेय:!
जिनकी प्रज्ञा बहिर्मुखी नहीं है, अंतर्मुख नहीं है और उभयमुख भी नहीं है, जो प्रज्ञानघन नहीं हैं और अप्रज्ञ भी नहीं हैं, जो वर्णन से अतीत हैं, दर्शन से अतीत , व्यवहार से अतीत, ग्रहण से अतीत, लक्षण से अतीत, चिंता से अतीत, निर्देश से अतीत, आत्मप्रत्ययमात्र-सिद्ध, प्रपंचातीत, शांत, शिव, अद्वैत और तुरीयप स्थित हैं वे ही निरुपाधिक जानने योग्य हैं! इनका नाम “महेश्वर”, स्वयंम्भू” और “ईशान” हैं! श्रुति भी कहती है!—-
तमीश्वराणां परमं महेश्वरं
तं देवतानां परमं च दैवतम!
पतिं पतीनां परमं परस्ताद
विदाम देवं भुवनेशडयम!!
यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयम!
योSस्मात्परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम!!
तमीशानं वरदं देवमीड्यं
निचाय्येमां शान्तिमत्यन्तमेति !!
वे ईश्वर भी परम महेश्वर, देवताओं के परम देवता, पतियों के परम पति, परात्पर, परम पूज्य और भुवनेश हैं! जिनमें यह विश्व है, जिनसे यह विश्व है, जिनके स्वर यह विश्व है, जो स्वयं यह विश्व हैं, जो इस विश्व के परसे भी परे हैं, उन स्वयंम्भू की शरण लेता हूँ! ईशान और वरदाता पूज्यदेव को जानने से जीव आत्यंति की शान्ति का अधिकारी हो जाता है!
याग सदाशिव अपनी शक्ति से युक्त होकर सृष्टि रचाते हैं!
मायाँ तु प्रकृतिं विद्यान्मायिनं तु महेश्वरम !
तस्यावयवभूतैस्तु व्याप्तं जगत!!
माया प्रकृति है और महेश्वर प्रकृति–माया के अधिष्ठाता मायी है! माया के द्वारा उन्हीं के अवयवभूत जीवून से समस्त संसार परिव्याप्त हो रहा है!
इस प्रकार यह अव्यय सदाशिव सृष्टि की रचना के नोमित्त दो हो जाते हैं! क्योंकि सृष्टि बिना द्वैत [आधार-आधेय] के हो नहीं सकती! आधेय [चैतन्य पुरुष] बिना आधार [प्रकृति, उपाधि] के व्यक्त नहीं हो सकता! इसी कारण इस सृष्टि में जितने पदार्थ हैं, उनमें अभ्यंतर चेतन और बाह्य प्राकृतिक आधार अर्थात उपाधि [शरीर] देखे जाते हैं! दृश्यादृश्या सब लोकों में इन दोनों की प्राप्ति होती है!
गीता में इसी भाव को इस प्रकार प्रकट किया है—-
मम योनिर्महद ब्रह्म तस्मिन् गर्भं दधाम्यहम !
सम्भव: सर्वभूतानां ततो भवति भारत!!
महदब्रह्म [महान प्रकृति] मेरी योनी है, जिसमें मैं बीज देकर गर्भ का संचार करता हूँ और इसी से सब भूतों की उत्पत्ति होती है!
सृष्टि के समय परम पुरुष अपने ही अर्धांग से प्रकृति को निकालकर उसमें समस्त सृष्टि की उत्पत्ति करते हैं! इस प्रकार शिव-योनिभाव और अर्धनारीश्वर भाव एक ही वस्तु है!
त्वया हृतं वामवपु: शरीरं त्वं शम्भो:!!
भगवान शंकर कहते हैं—–हे देवि! आपने श्रीशिव के आधे शरीर–वाम भाग को हरण कर लिया है, अतएव आप उनके शरीर हैं!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here