मंत्र साधना के अचूक प्रयोग—पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे
जप के अनुष्ठान में प्रतिदिन पहले जिस देवता का जप करना है उसका पूजन अवश्य करना चाहिए। बिना पूजन के जप नहीं करना चाहिए। मंत्रानुष्ठान स्वयं करना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो परोपकारी, बिना लोभ करने वाला संतोषी शास्त्रज्ञाता एवं सदाचारी ब्राह्मण के द्वारा कराया जा सकता है। भावनानुसार सिद्धि प्राप्त होती है।
व्याधि नाश के लिए मंत्र —
उतदेवा अवहितं देवन्नयथा पुन:।
उतागश्र्चक्रुषं देवादेवाजीवयथा पुन:।।
मंत्र को व्रतपूर्वक जप करने से प्रत्येक रोगों का नाश होता है तथा व्याधियों से छुटकारा मिलता है।
संतान-प्राप्ति के लिए मंत्र—
अपश्यं त्वमनसा दीध्यानां
स्वायां तनू ऋत्वये नाधमानाम्
उप मामुच्या युवतिर्बभूय:
प्रजायस्व प्रजया पुत्र कामे।
पवित्र होकर व्रत करके उपरोक्त मंत्र का जाप करने से संतान की प्राप्ति होती है।
मनवांछित वस्तुओं की प्राप्ति के लिए मंत्र—
उभन्यासो जातवेश: स्याम ते
स्तोतारो अग्ने सूर्यजश्र्च शर्मणि।
वस्वोराय: पुरुष्चंद्रस्य भूयस:
प्रजावत: स्वपत्यस्य शाग्धिन:।
इस मंत्र ऋचा का नियमित जप करने से मनोवांछित वस्तुओं की प्राप्ति होती है। ये सभी मंत्र ऋग्वेद के प्रमुख मंत्र हैं। इनका प्रयोग करने से मनुष्य जीवन का कल्याण होता ही है।
नजर झाड़ने का मंत्र—
ॐ नमो सत्य नाम आदेशगुरु को
ॐ नमो नजर जहाँ पर पीर न जानी
बोले छल सो अमरत बानी
कहो नजर कहाँ ते आई
यहाँ की ठौर तोहि कौन बताई
कौन जात तेरा कहाँ ठाम
किसकी बेटी कह तेरो नाम
कहाँ से उड़ी कहाँ को जाय
अब ही बस कर ले तेरी माया
मेरी बात सुनो चित लाए
जैसी होय सुनाऊँ आय
तेलिन तमोलिन चुहड़ी चमारी
कायस्थनी खतरानी कुम्हारी
महतरानी राजा की रानी
जाको दोष ताहि को सिर पड़े
जहार पीर नजर से रक्षा करे
मेरी भक्ति गुरु की शक्ति
फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा।
उपरोक्त मंत्र को पढ़ते हुए मोर के पंख से बाल के सिर से पैर तक झाड़ दें। इस क्रिया से बालक की नजर उतर जाएगी और बालक स्वस्थ हो जाएगा।
इसी प्रकार आप ग्रहण के दिन भगवती गायत्री की साधना कर मंत्र को सिद्ध कर लें फिर आप किसी भी बालक की नजर को झाड़ सकते हैं। अवश्य सफलता प्राप्त होगी। यह अचूक प्रयोग है। उपरोक्त सारे मंत्र विश्वास के साथ करें। कार्य अवश्य होगा।
——————————————————————————————————–
मंत्रों की शक्ति असीम है। यदि साधनाकाल में नियमों का पालन न किया जाए तो कभी-कभी बड़े घातक परिणाम सामने आ जाते हैं। प्रयोग करते समय तो विशेष सावधानी‍ बरतनी चाहिए। मंत्र उच्चारण की तनिक सी त्रुटि सारे करे-कराए पर पानी फेर सकत‍ी है। तथा गुरु के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन साधक ने अवश्‍य करना चाहिए।
साधक को चाहिए कि वो प्रयोज्य वस्तुएँ जैसे- आसन, माला, वस्त्र, हवन सामग्री तथा अन्य नियमों जैसे- दीक्षा स्थान, समय और जप संख्या आदि का दृढ़तापूर्वक पालन करें, क्योंकि विपरीत आचरण करने से मंत्र और उसकी साधना निष्‍फल हो जाती है। जबकि विधिवत की गई साधना से इष्‍ट देवता की कृपा सुलभ रहती है। साधना काल में निम्न नियमों का पालन अनिवार्य है।
* जिसकी साधना की जा रही हो, उसके प्रति पूर्ण आस्था हो।
* मंत्र-साधना के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति।
* साधना-स्थल के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ-साथ साधन का स्थान, सामाजिक और पारिवारिक संपर्क से अलग-अलग हो।
* उपवास प्रश्रय और दूध-फल आदि का सात्विक भोजन किया जाए तथा श्रृंगार-प्रसाधन और कर्म व विलासिता का त्याग आवश्यक है।
* साधना काल में भूमि शयन।
* वाणी का असंतुलन, कटु-भाषण, प्रलाप, मिथ्या वाचन आदि का त्याग करें और कोशिश मौन रहने की करें। निरंतर मंत्र जप अथवा इष्‍ट देवता का स्मरण-चिंतन आवश्‍यक है।
मंत्र साधना में प्राय: विघ्न-व्यवधान आ जाते हैं। निर्दोष रूप में कदाचित ही कोई साधक सफल हो पाता है, अन्यथा स्थान दोष, काल दोष, वस्तु दोष और विशेष कर उच्चारण दोष जैसे उपद्रव उत्पन्न होकर साधना को भ्रष्ट हो जाने पर जप तप और पूजा-पाठ निरर्थक हो जाता है। इसके समाधान हेतु आचार्य ने काल, पात्र आदि के संबंध में अनेक प्रकार के सावधानीपरक निर्देश दिए हैं।
मंत्रों की जानकारी एवं निर्देश—-
.. यदि शाबर मंत्रों को छोड़ दें तो मुख्यत: दो प्रकार के मंत्र है- वैदिक मंत्र और तांत्रिक मंत्र। जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्‍ठान करना है, उसका अर्घ्य पहले से लेना चाहिए। तत्पश्चात मंत्र का जप और उसके अर्घ्य की भावना करनी चाहिए। ध्यान रहे, अर्घ्य बिना जप निरर्थक रहता है।
.. मंत्र के भेद क्रमश: तनि माने गए हैं। 1. वाचिक जप 2. मानस जप और .. उपाशु जप।
वाचिक जप- जप करने वाला ऊँचे-ऊँचे स्वर से स्पष्‍ट मंत्रों को उच्चारण करके बोलता है, तो वह वाचिक जप कहलाता है।
उपांशु जप- जप करने वालों की जिस जप में केवल जीभ हिलती है या बिल्कुल धीमी गति में जप किया जाता है जिसका श्रवण दूसरा नहीं कर पाता वह उपांशु जप कहलाता है।
मानस जप- यह सिद्धि का सबसे उच्च जप कहलाता है। जप करने वाला मंत्र एवं उसके शब्दों के अर्थ को एवं एक पद से दूसरे पद को मन ही मन चिंतन करता है वह मानस जप कहलाता है। इस जप में वाचक के दंत, होंठ कुछ भी नहीं हिलते है।
अभिचार कर्म के लिए वाचिक रीति से मंत्र को जपना चाहिए। शां‍‍‍ति एवं पुष्‍टि कर्म के लिए उपांशु और मोक्ष पाने के लिए मानस रीति से मंत्र जपना चाहिए।
3. मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखना चाहिए। मंत्र- साधक के बारे में यह बात किसी को पता न चले कि वो किस मंत्र का जप करता है या कर रहा है। यदि मंत्र के समय कोई पास में है तो मानसिक जप करना चाहिए।
4. सूर्य अथवा चंद्र ग्रहण के समय (ग्रहण आरंभ से समाप्ति तक) किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए। इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है। जप का दशांश हवन करना चाहिए। और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। वैसे तो यह सत्य है कि प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है परंतु ग्रहण काल में जप करने से कई सौ गुना अधिक फल मिलता है।
विशेष : नदी में जप हमेशा नाभि तक जल में रहकर ही करना चाहिए।

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here