विदेश यात्रा में सहायक अखंड लक्ष्मी साधना —-
अखंड लक्ष्मी साधना प्रयोग हर प्रकार की सफलता, उन्नति, भाग्योदय एवं विशेष रूप से विदेश यात्रा जैसी मनोकामना पूर्ति के लिए किया जाता है। यूँ तो इस साधना को नवरात्रि के आरंभ से दीपावली तक किया जाता है लेकिन प्रस्तुत प्रयोग मात्र तीन दिन का है।
विधि : —-
इसे किसी भी बुधवार को प्रारंभ करें। प्रा‍त:काल स्नानादि से शुद्ध होकर पूर्व दिशा में किसी पात्र में अखंड लक्ष्मी यंत्र रख दें।
यंत्र की भी जल-दूध से शुद्धि करें। उस पर केसर का तिलक करें। तत्पश्चात् स्फटिक की माला से निम्न मंत्र का जाप करें। इस मंत्र की प्रतिदिन .1 मालाएँ जपना अनिवार्य है। तीन दिन तक 11 मालाएँ फेरने से मंत्र और यंत्र दोनों सिद्ध हो जाएँगे।
इस यंत्र को किसी स्वच्छ स्थान पर या तिजोरी में रखें।
मंत्र : ओम् ह्रीं अष्ट लक्ष्म्यै नम:।।
—————————————————————————————————————-
गृह रक्षा मंत्र –गृहस्थी की रक्षा करें चमत्कारी मंत्र—
मंत्र – ऊँ ह्रीं चामुण्ड भृकुटि-अट्‍टाहसे भीम दर्शने-रक्ष रक्ष चौरे: वजुवैभ्य: अग्रिभ्य: श्वापदेभ्य: दुष्ट जनेभ्य: सर्वेभ्य सर्वोपद्रवेभ्य: ग्रहणी ह्यीं हो ठ: ठ।
इस मंत्र को 1.8 बार पढ़कर मकान के चारों तरफ रेखा खींच देने से उस घर में दुष्ट आत्माएँ, भूत, प्रेत, चोर, डाकू तथा दुष्ट व्यक्ति या हिंसक जंतुओं के प्रवेश का भय, बिजली गिरने व आग लगने का भय नहीं रहता है।
किसी शुभ तिथि, घड़ी, नक्षत्र या चंद्र ग्रहण सूर्य ग्रहण में दस हजार बार पाठ करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है।
सरस्वती आकर्षण मंत्र —
मंत्र – ऊँ वाग्वादिनी स्वाहा मिन्सहरा।
इस मंत्र को किसी भी शुभ तिथि में प्रात: उठकर नहा-धोकर पवित्र होकर सवा लाख बार जाप करने से देवी सरस्वती आकर्षित होकर विद्या दान देती है। उपरोक्त मंत्र पूर्ण श्रद्धा से करें, पूर्ण लाभ होगा।
पति मोहन मंत्र —
मंत्र – ऊँ अस्य श्री सुरी मंत्र स्वार्थ वर्ण। ऋषि इति शिपस स्वाहा।
जिस नारी का पति उससे खुश ना रहता हो, उसे निम्न मंत्र का 108 बार प्रतिदिन नियम से जाप करते हुए 108 दिन तक पाठ करना चाहिए। इससे पति, पत्नी की तरफ आकर्षित होगा एवं दोनों का जीवन आनंदमय हो जाएगा।
उपरोक्त जानकारी प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों पर आधारित है। पाठक इन पर स्वविवेक से विश्वास करें।
—————————————————————————————————–
सर्वविघ्नहरण मंत्र
ऊँ नम: शान्ते प्रशान्ते ऊँ ह्यीं ह्रां सर्व क्रोध प्रशमनी स्वाहा।
इस मंत्र को नियमपूर्वक प्रतिदिन प्रात:काल इक्कीस बार स्मरण करने के पश्चात मुख प्रक्षालन करने से तथा सायंकाल में पीपल के वृक्ष की जड़ में शर्बत चढ़ाकर धूप दीप देने से घर के सभी लोग शांतमय निर्विघ्न जीवन व्यतीत करते हैं। इसका इतना प्रभाव होता है कि पालतू जानवर भी बाधा रहित जीवन व्यतीत करता है।
————————————————————————————————-
साधना स्थल कैसा हो –
मंत्र साधना की सफलता में साधना का स्थान बहुत महत्व रखता है। जो स्थान मंत्र की सफलता दिलाता है। सिद्ध पीठ कहलाता है। मंत्र की साधना के लिए उचित स्थान के रूप में तीर्थ स्थान, गुफा, पर्वत, शिखर, नदी, तट-वन, उपवन इसी के साथ बिल्वपत्र का वृक्ष, पीपल वृक्ष अथवा तुलसी का पौधा सिद्ध स्थल माना गया है।
आहार – मंत्र साधक को सदा ही शुद्ध व पवित्र एवं सात्विक आहार करना चाहिए। दूषित आहार को साधक ने नहीं ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार प्रथम एवं द्वितीय जानकारी को ध्यान में रखकर किया गया मंत्र सिद्धकारी होता है। आपके एवं जनकल्याण के लिए कुछ प्रयोग दे रहे हैं।
————————————————————————————————————-
रामचरित मानस जन-जन में लोकप्रिय एवं प्रामाणिक ग्रंथ हैं। इसमें वर्णित दोहा, सोरठा, चौपाई पाठक के मन पर अद्‍भुत प्रभाव छोड़ते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इसमें रचित कुछ पंक्तियाँ समस्याओं से छुटकारा दिलाने में भी सक्षम है। हम अपने पाठकों के लिए कुछ चयनित पंक्तियाँ दे रहे हैं। ये पंक्तियाँ दोहे-चौपाई एवं सोरठा के रूप में हैं।
इन्हें इन मायनों में चमत्कारिक मंत्र कहा जा सकता है कि ये सामान्य साधकों के लिए है। मानस मंत्र है। इनके लिए किसी विशेष विधि-विधान की जरूरत नहीं होती। इन्हें सिर्फ मन-कर्म-वचन की शुद्धि से श्रीराम का स्मरण करके मन ही मन श्रद्धा से जपा जा सकता है। इन्हें सिद्ध करने के लिए किसी माला या संख्यात्मक जाप की आवश्‍यकता नहीं हैं बल्कि सच्चे मन से कभी भी इनका ध्यान किया जा सकता है।
प्रस्तुत है चयनित मंत्र
* मुकदमें में विजय के लिए
पवन तनय बल पवन समाना।
बुधि विवेक विज्ञान निधाना।।
* शत्रु नाश के लिए
बयरू न कर काहू सन कोई।
रामप्रताप विषमता खोई।।
* अपयश नाश के लिए
रामकृपा अवरैब सुधारी।
विबुध धारि भई गुनद गोहारी।।
* मनोरथ प्राप्ति के लिए
मोर मनोरथु जानहु नीके।
बसहु सदा उर पुर सबही के।।
* विवाह के लिए
तब जन पाई बसिष्ठ आयसु ब्याह।
साज सँवारि कै।
मांडवी, श्रुतकी, रति, उर्मिला कुँअरि
लई हंकारि कै।
* इच्छित वर प्राप्ति के लिए
जानि गौरि अनुकूल सिय हिय ह‍रषि न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।
* सर्वपीड़ा नाश के लिए
जासु नाम भव भेषज हरन घोर त्रय सूल।
सो कृपालु मोहि तो पर सदा रहउ अनुकूल।।
* श्रेष्‍ठ पति प्राप्ति के लिए
गावहि छवि अवलोकि सहेली।
सिय जयमाल राम उर मेली।।
* पुत्र प्राप्ति के लिए
प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बाल चरित कर गान।।
* सर्वसुख प्राप्ति के लिए
सुनहि विमुक्त बिरत अरू विषई।
लहहि भगति गति सं‍पति सई।।
* ऋद्धि-सिद्धि प्राप्ति के लिए
साधक नाम जपहि लय लाएँ।
होहि सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here