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गुरु का जीवन में विशेष स्थान होता है। यदि योग्य गुरु का साथ मिल जाए तो उनके आशीर्वाद से जीवन के संघर्ष कम होते है। यश व उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। गुरु अपने वचनों से हमारे मन की परेशानी कम करते हैं।
लेकिन हर व्यक्ति को श्रेष्ठ गुरु का सुख मिले, यह जरूरी नहीं। गुरु का साथ मिलेगा या नहीं, इस बारे में कुंडली भी मार्गदर्शन करती है।
सामान्यत: जिन लग्नों के लिए गुरु केंद्र या त्रिकोण का स्वामी बनता है। (विशेषत: मेष, कर्क और वृश्चिक लग्न के लिए) उन व्यक्तियों की कुंडली में यदि गुरु शुभ भावों में स्थित हो तो उन्हें अच्छे गुरुओं का मार्गदर्शन अवश्य प्राप्त होता है। यदि गुरु पंचम या नवम में हो तो गुरु की कृपा से भाग्योदय होता है। यदि गुरु चतुर्थ या दशम भाव में हो तो क्रमश: माता-पिता ही गुरु रूप में मार्गदर्शन व सहायता देते हैं। गुरु यदि 6, 8, .. में हो तो गुरु कृपा से प्राय: वंचित ही रहना पड़ता है।
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लग्न के गुरु के बारे में भी कुछ विशेष अनुभव देखे गए हैं। लग्न का गुरु व्यक्ति को स्वयं ही ज्ञान व आध्यात्म के रास्ते पर जाने को प्रेरित करता है। यदि गुरु पर पाप प्रभाव न हो तो ये व्यक्ति स्व-परिश्रम से ज्ञानार्जन करते हैं, दूसरों को रास्ता दिखाते हैं, अच्छे सलाहकार भी बनते हैं और लोगों में गुरु के रूप में पूजे-सराहे जाते हैं, मगर इनके जीवन में गुरु का अभाव ही रहता है। इनके ज्ञानार्जन में केवल स्व-परिश्रम का ही साथ रहता है।
गुरु कृपा प्राप्त करने के लिए :
1. पूर्णिमा के दिन (विशेषत: गुरु पूर्णिमा को) सफेद कपड़े में एक नारियल और चंद सिक्के बाँधकर हार-फूल व मिष्ठान्न के साथ इष्ट देव के सामने या किसी मंदिर में रखें व श्रद्धापूर्वक गुरु-प्राप्ति की प्रार्थना करें। गुरु कृपा जल्दी मिलेगी।
2. अपने आचरण में सच्चरित्रता, सात्विकता रखें। ऊँ गुं गुरवे नम: का जाप करें, पीले या नारंगी वस्त्रों का अधिक प्रयोग करें।