मंगल भवन अमंगल हारी,
दॄवहुसु दशरथ अजिर बिहारि ॥
अगस्त्यसंहिताके अनुसार चैत्र शुक्ल नवमीके दिन पुनर्वसु नक्षत्र, कर्कलग्‍नमें जब सूर्य अन्यान्य पाँच ग्रहोंकी शुभ दृष्टिके साथ मेषराशिपर विराजमान थे, तभी साक्षात्‌ भगवान्‌ श्रीरामका माता कौसल्याके गर्भसे जन्म हुआ।
चैत्र शुक्ल नवमी का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। आज ही के दिन तेत्रा युग में रघुकुल शिरोमणि महाराज दशरथ एवं महारानी कौशल्या के यहाँ अखिल ब्रम्हांड नायक अखिलेश ने पुत्र के रूप में जन्म लिया था।
दिन के बारह बजे जैसे ही सौंदर्य निकेतन, शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण कि‌ए हु‌ए चतुर्भुजधारी श्रीराम प्रकट हु‌ए तो मानो माता कौशल्या उन्हें देखकर विस्मित हो ग‌ईं। उनके सौंदर्य व तेज को देखकर उनके नेत्र तृप्त नहीं हो रहे थे।
Ram Navami is commemorated in Hindu households by puja (prayer). The items necessary for the puja are roli, aipun, rice, water, flowers, a bell and a conch. After that, the youngest female member of the family applies teeka to all the members of the family. Everyone participates in the puja by first sprinkling the water, roli, and aipun on the Gods, and then showering handfuls of rice on the deities. Then everybody stands up to perform the aarti, at the end of which ganga jal or plain water is sprinkled over the gathering. The singing of bhajans goes on for the entire puja. Finally, the prasad is distributed among all the people who have gathered for worship.
श्रीराम के जन्मोत्सव को देखकर देवलोक भी अवध के सामने फीका लग रहा था। देवता, ऋषि, किन्नार, चारण सभी जन्मोत्सव में शामिल होकर आनंद उठा रहे थे। आज भी हम प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल नवमी को राम जन्मोत्सव मनाते हैं और राममय होकर कीर्तन, भजन, कथा आदि में रम जाते हैं।
रामजन्म के कारण ही चैत्र शुक्ल नवमी को रामनवमी कहा जाता है। रामनवमी के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना का श्रीगणेश किया था।
उस दिन जो कोई व्यक्ति दिनभर उपवास और रातभर जागरणका व्रत रखकर भगवान्‌ श्रीरामकी पूजा करता है, तथा अपनी आर्थिक स्थितिके अनुसार दान-पुण्य करता है, वह अनेक जन्मोंके पापोंको भस्म करनेमें समर्थ होता है।
रामनवमी—–
रामनवमी राजा दशरथ के पुत्र भगवान राम की स्‍मृति को समर्पित है। उसे “मर्यादा पुरूषोतम” कहा जाता है तथा वह सदाचार का प्रतीक है। यह त्‍यौहार शुक्‍ल पक्ष की 9वीं तिथि जो अप्रैल में किसी समय आती है, को राम के जन्‍म दिन की स्‍मृति में मनाया जाता है।
भगवान राम को उनके सुख-समृद्धि पूर्ण व सदाचार युक्‍त शासन के लिए याद किया जाता है। उन्‍हें भगवान विष्‍णु का अवतार माना जाता है, जो पृथ्‍वी पर अजेय रावण (मनुष्‍य रूप में असुर राजा) से युद्ध लड़ने के लिए आए। राम राज्‍य (राम का शासन) शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है।
रामनवमी के दिन, श्रद्धालु बड़ी संख्‍या में मन्दिरों में जाते हैं और राम की प्रशंसा में भक्तिपूर्ण भजन गाते हैं तथा उसके जन्‍मोत्‍सव को मनाने के लिए उसकी मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं। इस महान राजा की कहानी का वर्णन करने के लिए काव्‍य तुलसी रामायण से पाठ किया जाता है।
भगवान राम का जन्‍म स्‍थान अयोध्‍या, रामनवमी त्‍यौहार के महान अनुष्‍ठान का केंद्र बिन्‍दु है। राम, उनकी पत्‍नी सीता, भाई लक्ष्‍मण व भक्‍त हनुमान की रथ यात्राएं बहुत से मंदिरों से निकाली जाती हैं।
हिंदू घरों में रामनवमी पूजा करके मनाई जाती है। पूजा के लिए आवश्‍यक वस्‍तुएं, रोली, ऐपन, चावल, जल, फूल, एक घंटी और एक शंख होते हैं। इसके बाद परिवार की सबसे छोटी महिला सदस्‍य परिवार के सभी सदस्‍यों को टीका लगाती है। पूजा में भाग लेने वाला प्रत्‍येक व्‍यक्ति के सभी सदस्‍यों को टीका लगाया जाता है। पूजा में भाग लेने वाला प्रत्‍येक व्‍यक्ति पहले देवताओं पर जल, रोली और ऐपन छिड़कता है, तथा इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल छिड़कता है। तब प्रत्‍येक खड़ा होकर आ‍रती करता है तथा इसके अंत में गंगाजल अथवा सादा जल एकत्रित हुए सभी जनों पर छिड़का जाता है। पूरी पूजा के दौरान भजन गान चलता रहता है। अंत में पूजा के लिए एकत्रित सभी जनों को प्रसाद वितरित किया जाता है।

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