**सरस्वती सिद्ध विश्वजयं कवच**********
*****************************************
ॐ ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहेति श्रोत्रे पातु निरन्तरम! ॐ श्रीं ह्रीं भगवत्यै सरस्वत्यै स्वाहा नेत्रयुग्मं सदावातु!!
ऐं ह्रीं वाम्वादिन्ये[यै] स्वाहा नासां मे सर्वदावातु! ॐ ह्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वहा चोष्ठं सदावतु!!
ॐ श्रीं ह्रीं ब्राह्मयें [यै] स्वाहेति दन्तपंगपंग्क्ति सदावतु! ऐमित्येकाक्षारो मंत्रो मम कण्ठे सदावतु!!
ॐ श्रीं ह्रीं पातु मे ग्रीवां स्कन्धौ मे श्रीं सदावतु! ॐ ह्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा वक्ष: सदावतु!!
ॐ ह्रीं विद्याधिस्वरूपायै स्वाहा मे पातु नाभिकाम! ॐ ह्रीं क्लीं वाण्यै स्वाहेति मम हस्तौ सदावतु!!
ॐ सर्ववर्णात्मिकायै पादायुग्मं सदावतु! ॐ वागधिष्ठतृदेव्यै स्वाहा सर्वें सदावतु!!
ॐ सर्वकन्ठवासिन्ये स्वाहा प्राच्यां सदावतु! ॐ सर्व जिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहाग्निदिशी रक्षतु!!
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा! सततं मन्त्रोराजोsयं दक्षिणे मां सदावतु!!
ऐं ह्रीं श्रीं त्र्यक्षरो मन्त्रो नैर्त्रित्यां सर्वदावातु ! ॐ ऐं जिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहा मां वारुणेsवतु !!
ॐ सर्वाम्बिकायै स्वाहा वायव्ये मां सदावतु! ॐ ऐं श्रीं क्लीं गद्यवासिन्यै स्वाहा मां मामुत्तरेsवतु !!
ऐं सर्वशास्त्रवासिन्यै सवाहैशान्यां सदावतु! ॐ ह्रीं सर्वपूजितायै स्वाहा चोर्ध्वं सदावतु!!
ह्रीं पुस्तकवासिन्यै स्वाहाधो मां सदावतु! ॐ ग्रन्थबीजस्वरूपायै स्वाहा मां सर्वतोsवतु!!
इति ते कथितं विप्र ब्रह्म मंत्रौघविग्रहम ! इदं विश्वजयं नाम कवचं ब्रह्मस्वरूपकम !!
पूरा श्रुतं धर्मवक्त्रात पर्वते गंधमादाने! तव स्त्रेहान्मयाssख्यातं प्रवक्तव्यं न कस्यचित !!
गुरुमभ्यर्च्य विधिवद्वस्त्रा लंकारचन्दनै! प्रणम्य दण्डवद्भुमौ कवचं धारयेत सुधी:!!
पंचलक्षजपेनैव् सिद्धं तु कवचं भवेत्! यदि स्यात सिद्धकवचो वृहस्पतिसमो भवेत्!!
महावाग्मी कवीन्द्रश्च त्रैलोक्यविजयी भवेत्! शक्रोती सर्वें जेतुं च कवचस्य प्रसादत:!!
यह “विश्वविजय कवच” है! जैसा इस कवच का नाम है वैसे ही इसका फल है!
इसके करने पर महामूर्ख भी ज्ञानी बन जाता है!
*****************************************
ॐ ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहेति श्रोत्रे पातु निरन्तरम! ॐ श्रीं ह्रीं भगवत्यै सरस्वत्यै स्वाहा नेत्रयुग्मं सदावातु!!
ऐं ह्रीं वाम्वादिन्ये[यै] स्वाहा नासां मे सर्वदावातु! ॐ ह्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वहा चोष्ठं सदावतु!!
ॐ श्रीं ह्रीं ब्राह्मयें [यै] स्वाहेति दन्तपंगपंग्क्ति सदावतु! ऐमित्येकाक्षारो मंत्रो मम कण्ठे सदावतु!!
ॐ श्रीं ह्रीं पातु मे ग्रीवां स्कन्धौ मे श्रीं सदावतु! ॐ ह्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा वक्ष: सदावतु!!
ॐ ह्रीं विद्याधिस्वरूपायै स्वाहा मे पातु नाभिकाम! ॐ ह्रीं क्लीं वाण्यै स्वाहेति मम हस्तौ सदावतु!!
ॐ सर्ववर्णात्मिकायै पादायुग्मं सदावतु! ॐ वागधिष्ठतृदेव्यै स्वाहा सर्वें सदावतु!!
ॐ सर्वकन्ठवासिन्ये स्वाहा प्राच्यां सदावतु! ॐ सर्व जिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहाग्निदिशी रक्षतु!!
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा! सततं मन्त्रोराजोsयं दक्षिणे मां सदावतु!!
ऐं ह्रीं श्रीं त्र्यक्षरो मन्त्रो नैर्त्रित्यां सर्वदावातु ! ॐ ऐं जिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहा मां वारुणेsवतु !!
ॐ सर्वाम्बिकायै स्वाहा वायव्ये मां सदावतु! ॐ ऐं श्रीं क्लीं गद्यवासिन्यै स्वाहा मां मामुत्तरेsवतु !!
ऐं सर्वशास्त्रवासिन्यै सवाहैशान्यां सदावतु! ॐ ह्रीं सर्वपूजितायै स्वाहा चोर्ध्वं सदावतु!!
ह्रीं पुस्तकवासिन्यै स्वाहाधो मां सदावतु! ॐ ग्रन्थबीजस्वरूपायै स्वाहा मां सर्वतोsवतु!!
इति ते कथितं विप्र ब्रह्म मंत्रौघविग्रहम ! इदं विश्वजयं नाम कवचं ब्रह्मस्वरूपकम !!
पूरा श्रुतं धर्मवक्त्रात पर्वते गंधमादाने! तव स्त्रेहान्मयाssख्यातं प्रवक्तव्यं न कस्यचित !!
गुरुमभ्यर्च्य विधिवद्वस्त्रा लंकारचन्दनै! प्रणम्य दण्डवद्भुमौ कवचं धारयेत सुधी:!!
पंचलक्षजपेनैव् सिद्धं तु कवचं भवेत्! यदि स्यात सिद्धकवचो वृहस्पतिसमो भवेत्!!
महावाग्मी कवीन्द्रश्च त्रैलोक्यविजयी भवेत्! शक्रोती सर्वें जेतुं च कवचस्य प्रसादत:!!
यह “विश्वविजय कवच” है! जैसा इस कवच का नाम है वैसे ही इसका फल है!
इसके करने पर महामूर्ख भी ज्ञानी बन जाता है!