नींद की समस्या दो तरह से होती है –
हाइपो सोमनिया ( कम नींद आना )
और हाइपर सोमनिया ( ज्यादा नींद आना ) ।
पहली कैटिगरी में प्रमुख समस्याएं हैं : —
इनसोमनिया :
पूरी कोशिश के बाद भी मरीज को नींद नहीं आती और वहबिस्तर पर लेटकर करवटें बदलता रहता है।
मेनिया :
मरीज बहुत खुश और कुछ ज्यादा ही जोश में रहने लगता है। ऐसेमें उसे सोने की जरूरत ही महसूस नहीं होती।
अर्ली मॉर्निंग अवेकनिंग : मरीज तड़के .-4 बजे उठ जाता है और उसकेबाद उसे नींद नहीं आती।
स्लीप वॉकिंग :
मरीज बिस्तर से उठकर नींद में ही चलने लगता है। जागनेके बाद उसे यह घटना याद नहीं रहती।
स्लीप टेरर व नाइट मेअर :
मरीज घबराकर अचानक उठ जाता है याउसे बार – बार डरावने सपने दिखते हैं। किसी बुरे हादसे का सामनाकरनेवाले लोग अक्सर इस समस्या से पीड़ित होते हैं। ।
ब्रुक्सिजम या नाइट ग्रैंडिंग :
मरीज सोते हुए दांत कटकटाता है। लगातारऐसा करने पर उसके दांत घिस जाते हैं और ज्यादा सेंसिटिव हो जाते हैं।इसके लिए डेंटिस्ट गार्ड बनाते हैं , ताकि मरीज सोते हुए दांत पीसे तो दांतघिसें नहीं।
इलाज
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि नींद न आना अपने आप में बीमारी हैया किसी और बीमारी के लक्षण हैं। फिर यह जानें कि ऐसा क्यों हो रहा है ?सही जानकारी पाने के लिए डॉक्टर से मिलें। लेकिन अगर मजबूरी हो औरडॉक्टर के पास फौरन नहीं जा सकते तो नींद नहीं आने पर सोने से पहलेएलप्राजोलम (alprazolam) की एक गोली ले सकते हैं। यह माइल्डमेडिसिन है लेकिन इसे भी आदत न बनाएं।
हाइपर सोमनिया में ये समस्याएं आती हैं :
नार्कोलेप्सी : मरीज कहीं भी , कभी भी बैठे – बैठे सो जाता है , यहां तककि हंसते हुए या रोते हुए भी। मरीज दिन भर उनींदा और थका हुआ रहताहै। कितना भी सो ले लेकिन ऐसा लगता है , जैसे वह सोया ही नहीं है।ज्यादातर मोटे और बुजुर्ग लोगों में होती है यह बीमारी। डॉक्टर मरीज कोअस्पताल की स्लीप लैब में सुलाते हैं और स्लीप स्टडी करके एंटी डिप्रसेंट ,स्टिमुलेटर और चुस्ती के लिए मोटाफिनिल आदि दवा देते हैं।
स्लीप एपनिया :
मरीज की सांस की नली में रुकावट होती है। कई बारसोते हुए मरीज की मौत भी हो जाती है। स्लीप एपनिया में मरीज की सांसकी नली में सीटैप ( कंटिन्यूअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर ) मशीन लगाई जातीहै। मशीन 4.-50 हजार रुपये की आती है और .5 हजार बाकी इलाज काखर्च होता है। डेंटिस्ट एक अपलायंस भी बनाते हैं , जिसमें नीचे का जबड़ाथोड़ा आगे चला जाता है , इससे सांस लेने में होनेवाली रुकावट खत्म होजाती है।
बाकी समस्याएं
केटालेप्सी या स्लीप पैरालिसिस : मरीज की नींद खुल जाती है लेकिनवह बिस्तर से उठ नहीं पाता। उसे ऐसा महसूस होता है जैसे उसके ऊपर कोईबैठा है और उसे हिलने नहीं दे रहा। गांव – देहात में इसे भूत – प्रेतों सेजोड़कर देखा जाता है। कई बार मरीज अचानक गिर भी जाता है।
इनयूरेसिस :
बिस्तर गीला करने की यह बीमारी ज्यादातर बच्चों में होतीहै। उन्हें सोने से डेढ़ – दो घंटे पहले लिक्विड न दें। हो सके तो बच्चे को बीच मेंजगाकर पेशाब करा दें।
पुअर परसेप्शन ऑफ स्लीप :
मरीज को लगता है कि उसे नींद नहीं आतीलेकिन असल में वह सो रहा होता है।
स्नोरिंग :
खर्राटे मारना बेहद आम समस्या है। इसमें काग ( युविला ) पीछेगिर जाता है और सांस की नली को ब्लॉक कर लेता है। इससे सांस लेने मेंदिक्कत आती है और मुंह से सांस लेने पर आवाज आती है। खर्राटे बंद करने केलिए सर्जरी भी की जाती है। इसमें रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन से युविला कोकाटा जाता है। दो सिटिंग्स में मरीज ठीक भी हो जाता है। लेकिन अगरस्नोरिंग के साथ मरीज को स्लीप एपनिया भी है तो अलग ट्रीटमेंट होता है।स्लीप डिस्ऑर्डर का इलाज ईईसी फीडबैक थेरपी से भी किया जा सकता है।
होम्योपैथी :
होम्योपैथी में भी दवा हमेशा नींद न आने की वजह जानकर जाती है।
अगर एंजाइटी और बेचैनी की वजह से नींद न आ रही हो तो कालिफॉस(Kaliphos) की छह – आठ गोलियां रात में सोने से दो – तीन घंटे पहले लें।
नर्वस महसूस कर रहे हैं या बहुत सेंसिटिव हैं तो नक्सवम 30 (Nuxvom 30) या पल्साटिला (Pulsatilla) छह – आठ गोलियां रात में ले सकते हैं।
मन में एक साथ बहुत सारे विचार आ रहे हैं तो कॉफिया 30 (Coffea 30) की छह – आठ गोलियां लें।
दिमाग बहुत थक गया है तो एविना सैट (Avena Sat(Q) की 10-15 बूंदेंचौथाई कप पानी में डालकर लें।
इनसोमनिया यानी नींद न आने की बीमारी हो तो पैसिफ्लोरा इंक . (Passiflora (Q) Inc) की 10-1. बूंदें चौथाई कप पानी में लें।
सबसे सेफ कलिफॉस है , जो कि किसी तरह का प्रेशर या तनाव होने पर लीजा सकती है। वैसे , कोई भी दवा डॉक्टर की सलाह से ही लें। अगर इमरजेंसीमें लेनी भी पड़े तो दो दवाएं एक साथ न लें।
कैसे लें बेहतर नींद
क्या करें
फिक्स्ड रुटीन के मुताबिक सोना चाहिए। इससे तय वक्त पर नींद आएगीऔर टूटेगी।
बेडरूम सोने के लिए होना चाहिए। अगर वहां टीवी देखते हैं या लैपटॉपपर काम करते हैं तो ब्रेन कन्फ्यूज हो जाता है कि सोना है या कुछ और कामकरना है। इससे नींद आने में दिक्कत हो सकती है।
बेडरूम साफ – सुथरा हो।
हमारी बॉडी सूरज की रोशनी के अनुसार काम करती है। लाइट जलते रहनेपर दिन जैसी फीलिंग होती है और नींद नहीं आती। बेडरूम में घुप अंधेराहोना चाहिए। ज्यादा – से – ज्यादा नाइट लैंप की हल्की रोशनी रख सकते हैं।
किसी भी शख्स के लिए सूरज की रोशनी और अंधेरा , दोनों देखना जरूरीहै। स्लीप हार्मोन मेलाटॉनिन तभी निकलता है , जब सूरज की रोशनी में भीजाएं। यह स्लीप साइकल को मेंटेन करता है।
दिन में एक्सरसाइज करें। इससे शरीर थकता है और रात में अच्छी नींदआती है।
रात में कुछ दिलचस्प पढ़ने से बचना चाहिए। बोरिंग – सी किताब पढ़ें।इससे नींद जल्दी आएगी।
सोने से पहले गुनगुना दूध पिएं। इससे मेलाटॉनिन निकलता है।
सोने से पहले प्राणायाम करें।
क्या न करें
बेडरूम में बाहर की आवाजें और तेज रोशनी न आए।
तेज म्यूजिक सुनने और फास्ट डांस करने से बचें।
देर रात तक कंप्यूटर गेम्स न खेलें , न ही टीवी देखें।
सोने से पहले तेज एक्सरसाइज न करें। वर्कआउट के तुरंत बाद खून में स्ट्रेसहार्मोन बढ़ जाता है।
सोने से करीब दो घंटा पहले खाना खा लें।
सोने से पहले चाय , कॉफी और मसालेदार खाना न खाएं। इनसे नींद कीक्वॉलिटी गिर सकती है।
सोने से पहले खाने से बचें क्योंकि इससे शुगर लेवल बढ़ जाता है। भूख लगेतो फल खाएं या गुनगुना दूध पिएं।
अगर रात में बार – बार टॉयलेट जाना पड़ता है तो सोने से डेढ़ घंटे पहलेकुछ न पिएं।
ज्यादा शराब पीनेवालों को भी बाद में नींद आने में परेशानी हो सकती है।निकोटिन का सेवन न करें।
काम या किसी और तरह का तनाव न लें।
जरूरत नहीं है तो दिन में न सोएं। कम – से – कम लंबी नींद न लें।
जब नींद न आए …
जबरन बिस्तर पर लेटकर जबरन सोने की कोशिश न करें। उठकर कुछकाम करें। पढ़ें , टीवी देखें या हल्की एक्सरसाइज भी कर सकते हैं। मेडिटेशनकरें। इससे मन रिलैक्स होता है।
जब जागना हो …
अगर कभी नींद आ रही हो और जागना जरूरी हो तो चाय और कॉफी पिएं।एंटी स्लीप टैब्लेट डॉफिनल (dofinal) ले सकते हैं। लेकिन इसे आदत नबनाएं।
कैसा हो गद्दा और तकिया
सोने के लिए सख्त बेड होना चाहिए। जमीन पर सोने से बचना चाहिए।मेट्रेस का खास ध्यान रखें। कॉयर का मेट्रेस बेहतर होता है। स्पंज से बचनाचाहिए। तकिए की मोटाई कम होनी चाहिए। उसे इस तरह लगाएं कि गर्दनको सपोर्ट मिले।
नींद और डायबीटीज
डायबीटीज और नींद का आपस में गहरा नाता है। नींद न आने पर शुगर होनेकी आशंका बढ़ जाती है तो डायबीटीज के 40 फीसदी मरीजों में स्लीपडिस्ऑर्डर होते हैं। नींद पूरी न होने पर तनाव होता है। इससे बीपी औरशुगर लेवल बढ़ता है। इसी तरह स्लिप डिस्ऑडर्र का मरीज रात में सोतानहीं है तो अक्सर बार – बार खाता रहता है। इससे मोटापा बढ़ता है औरशुगर की आशंका भी। अगर डायबीटीज के मरीज का प्रोस्टेट बढ़ा हुआ है याशुगर कंट्रोल में नहीं है तो वह बार – बार टॉयलेट जाता है। इससे नींद खराबहोती है। साथ ही , यूरीन इन्फेक्शन की आशंका भी ज्यादा होती है। कुछमरीजों को पैरों में जख्म हो सकते हैं। उससे भी नींद डिस्टर्ब होती है।इसलिए डायबीटीज के मरीजों को नींद का खास ख्याल रखना चाहिए।
कुछ खास सवाल
खाना खाने के बाद नींद आती है खासकर , चावल , मट्ठा , दहीआदि। क्यों ?
खाना खाने के बाद हम रिलैक्स महसूस करते हैं। साथ ही , हमारा ब्लडसर्कुलेशन भी पेट की तरफ ज्यादा हो जाता है और दिमाग की तरफ कम।इससे भी सुस्ती महसूस होती है। ब्रेन का वजन शरीर का सिर्फ 2 फीसदीहोता है , लेकिन उसे 20 फीसदी ब्लड सप्लाई की जरूरत महसूस होती है।चावल , दही खाने पर कुछ लोगों को नींद या भारीपन महसूस होता हैलेकिन सभी के साथ ऐसा नहीं होता।
पढ़ते वक्त या ऑफिस में काम करते वक्त नींद आती है। खेलते हुए यामूवी देखते हुए नींद नहीं आती। क्यों ?
कोई भी ऐसा काम जिसमें दिमाग बहुत रिलैक्स या बोरिंग महसूस करे ,इसमें नींद आती है। शरीर में सिरोटोनिन ( खुशी और जोश फील करानेवाला हार्मोन ) का लेवल ज्यादा हो तो अच्छा महसूस होता है और आलसमहसूस नहीं होता। खेलते हुए शरीर में सिरोटोनिन हार्मोन निकलता है ,जिससे तरोताजा महसूस होता है।
क्लासिकल म्यूजिक सुनना क्या नींद लाने में मदद करता है ?
जिन लोगों को क्लासिकल म्यूजिक पसंद है , उन्हें इससे नींद आने में मददमिल सकती है। जो ब्रेन वेव्स सोने में मददगार होती हैं , क्लासिकल म्यूजिकसे वे ज्यादा निकलती हैं।
अचानक नींद खुल जाए तो सिर में दर्द क्यों होने लगता है ?
कच्ची नींद में आंख खुलने से सिरदर्द करने लगता है। इसकी वजह स्लीपिंगएंग्जाइटी है यानी बॉडी की जरूरत के मुताबिक हमारी नींद पूरी नहीं होतीतो सिर दर्द करने लगता है।
हाइपो सोमनिया ( कम नींद आना )
और हाइपर सोमनिया ( ज्यादा नींद आना ) ।
पहली कैटिगरी में प्रमुख समस्याएं हैं : —
इनसोमनिया :
पूरी कोशिश के बाद भी मरीज को नींद नहीं आती और वहबिस्तर पर लेटकर करवटें बदलता रहता है।
मेनिया :
मरीज बहुत खुश और कुछ ज्यादा ही जोश में रहने लगता है। ऐसेमें उसे सोने की जरूरत ही महसूस नहीं होती।
अर्ली मॉर्निंग अवेकनिंग : मरीज तड़के .-4 बजे उठ जाता है और उसकेबाद उसे नींद नहीं आती।
स्लीप वॉकिंग :
मरीज बिस्तर से उठकर नींद में ही चलने लगता है। जागनेके बाद उसे यह घटना याद नहीं रहती।
स्लीप टेरर व नाइट मेअर :
मरीज घबराकर अचानक उठ जाता है याउसे बार – बार डरावने सपने दिखते हैं। किसी बुरे हादसे का सामनाकरनेवाले लोग अक्सर इस समस्या से पीड़ित होते हैं। ।
ब्रुक्सिजम या नाइट ग्रैंडिंग :
मरीज सोते हुए दांत कटकटाता है। लगातारऐसा करने पर उसके दांत घिस जाते हैं और ज्यादा सेंसिटिव हो जाते हैं।इसके लिए डेंटिस्ट गार्ड बनाते हैं , ताकि मरीज सोते हुए दांत पीसे तो दांतघिसें नहीं।
इलाज
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि नींद न आना अपने आप में बीमारी हैया किसी और बीमारी के लक्षण हैं। फिर यह जानें कि ऐसा क्यों हो रहा है ?सही जानकारी पाने के लिए डॉक्टर से मिलें। लेकिन अगर मजबूरी हो औरडॉक्टर के पास फौरन नहीं जा सकते तो नींद नहीं आने पर सोने से पहलेएलप्राजोलम (alprazolam) की एक गोली ले सकते हैं। यह माइल्डमेडिसिन है लेकिन इसे भी आदत न बनाएं।
हाइपर सोमनिया में ये समस्याएं आती हैं :
नार्कोलेप्सी : मरीज कहीं भी , कभी भी बैठे – बैठे सो जाता है , यहां तककि हंसते हुए या रोते हुए भी। मरीज दिन भर उनींदा और थका हुआ रहताहै। कितना भी सो ले लेकिन ऐसा लगता है , जैसे वह सोया ही नहीं है।ज्यादातर मोटे और बुजुर्ग लोगों में होती है यह बीमारी। डॉक्टर मरीज कोअस्पताल की स्लीप लैब में सुलाते हैं और स्लीप स्टडी करके एंटी डिप्रसेंट ,स्टिमुलेटर और चुस्ती के लिए मोटाफिनिल आदि दवा देते हैं।
स्लीप एपनिया :
मरीज की सांस की नली में रुकावट होती है। कई बारसोते हुए मरीज की मौत भी हो जाती है। स्लीप एपनिया में मरीज की सांसकी नली में सीटैप ( कंटिन्यूअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर ) मशीन लगाई जातीहै। मशीन 4.-50 हजार रुपये की आती है और .5 हजार बाकी इलाज काखर्च होता है। डेंटिस्ट एक अपलायंस भी बनाते हैं , जिसमें नीचे का जबड़ाथोड़ा आगे चला जाता है , इससे सांस लेने में होनेवाली रुकावट खत्म होजाती है।
बाकी समस्याएं
केटालेप्सी या स्लीप पैरालिसिस : मरीज की नींद खुल जाती है लेकिनवह बिस्तर से उठ नहीं पाता। उसे ऐसा महसूस होता है जैसे उसके ऊपर कोईबैठा है और उसे हिलने नहीं दे रहा। गांव – देहात में इसे भूत – प्रेतों सेजोड़कर देखा जाता है। कई बार मरीज अचानक गिर भी जाता है।
इनयूरेसिस :
बिस्तर गीला करने की यह बीमारी ज्यादातर बच्चों में होतीहै। उन्हें सोने से डेढ़ – दो घंटे पहले लिक्विड न दें। हो सके तो बच्चे को बीच मेंजगाकर पेशाब करा दें।
पुअर परसेप्शन ऑफ स्लीप :
मरीज को लगता है कि उसे नींद नहीं आतीलेकिन असल में वह सो रहा होता है।
स्नोरिंग :
खर्राटे मारना बेहद आम समस्या है। इसमें काग ( युविला ) पीछेगिर जाता है और सांस की नली को ब्लॉक कर लेता है। इससे सांस लेने मेंदिक्कत आती है और मुंह से सांस लेने पर आवाज आती है। खर्राटे बंद करने केलिए सर्जरी भी की जाती है। इसमें रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन से युविला कोकाटा जाता है। दो सिटिंग्स में मरीज ठीक भी हो जाता है। लेकिन अगरस्नोरिंग के साथ मरीज को स्लीप एपनिया भी है तो अलग ट्रीटमेंट होता है।स्लीप डिस्ऑर्डर का इलाज ईईसी फीडबैक थेरपी से भी किया जा सकता है।
होम्योपैथी :
होम्योपैथी में भी दवा हमेशा नींद न आने की वजह जानकर जाती है।
अगर एंजाइटी और बेचैनी की वजह से नींद न आ रही हो तो कालिफॉस(Kaliphos) की छह – आठ गोलियां रात में सोने से दो – तीन घंटे पहले लें।
नर्वस महसूस कर रहे हैं या बहुत सेंसिटिव हैं तो नक्सवम 30 (Nuxvom 30) या पल्साटिला (Pulsatilla) छह – आठ गोलियां रात में ले सकते हैं।
मन में एक साथ बहुत सारे विचार आ रहे हैं तो कॉफिया 30 (Coffea 30) की छह – आठ गोलियां लें।
दिमाग बहुत थक गया है तो एविना सैट (Avena Sat(Q) की 10-15 बूंदेंचौथाई कप पानी में डालकर लें।
इनसोमनिया यानी नींद न आने की बीमारी हो तो पैसिफ्लोरा इंक . (Passiflora (Q) Inc) की 10-1. बूंदें चौथाई कप पानी में लें।
सबसे सेफ कलिफॉस है , जो कि किसी तरह का प्रेशर या तनाव होने पर लीजा सकती है। वैसे , कोई भी दवा डॉक्टर की सलाह से ही लें। अगर इमरजेंसीमें लेनी भी पड़े तो दो दवाएं एक साथ न लें।
कैसे लें बेहतर नींद
क्या करें
फिक्स्ड रुटीन के मुताबिक सोना चाहिए। इससे तय वक्त पर नींद आएगीऔर टूटेगी।
बेडरूम सोने के लिए होना चाहिए। अगर वहां टीवी देखते हैं या लैपटॉपपर काम करते हैं तो ब्रेन कन्फ्यूज हो जाता है कि सोना है या कुछ और कामकरना है। इससे नींद आने में दिक्कत हो सकती है।
बेडरूम साफ – सुथरा हो।
हमारी बॉडी सूरज की रोशनी के अनुसार काम करती है। लाइट जलते रहनेपर दिन जैसी फीलिंग होती है और नींद नहीं आती। बेडरूम में घुप अंधेराहोना चाहिए। ज्यादा – से – ज्यादा नाइट लैंप की हल्की रोशनी रख सकते हैं।
किसी भी शख्स के लिए सूरज की रोशनी और अंधेरा , दोनों देखना जरूरीहै। स्लीप हार्मोन मेलाटॉनिन तभी निकलता है , जब सूरज की रोशनी में भीजाएं। यह स्लीप साइकल को मेंटेन करता है।
दिन में एक्सरसाइज करें। इससे शरीर थकता है और रात में अच्छी नींदआती है।
रात में कुछ दिलचस्प पढ़ने से बचना चाहिए। बोरिंग – सी किताब पढ़ें।इससे नींद जल्दी आएगी।
सोने से पहले गुनगुना दूध पिएं। इससे मेलाटॉनिन निकलता है।
सोने से पहले प्राणायाम करें।
क्या न करें
बेडरूम में बाहर की आवाजें और तेज रोशनी न आए।
तेज म्यूजिक सुनने और फास्ट डांस करने से बचें।
देर रात तक कंप्यूटर गेम्स न खेलें , न ही टीवी देखें।
सोने से पहले तेज एक्सरसाइज न करें। वर्कआउट के तुरंत बाद खून में स्ट्रेसहार्मोन बढ़ जाता है।
सोने से करीब दो घंटा पहले खाना खा लें।
सोने से पहले चाय , कॉफी और मसालेदार खाना न खाएं। इनसे नींद कीक्वॉलिटी गिर सकती है।
सोने से पहले खाने से बचें क्योंकि इससे शुगर लेवल बढ़ जाता है। भूख लगेतो फल खाएं या गुनगुना दूध पिएं।
अगर रात में बार – बार टॉयलेट जाना पड़ता है तो सोने से डेढ़ घंटे पहलेकुछ न पिएं।
ज्यादा शराब पीनेवालों को भी बाद में नींद आने में परेशानी हो सकती है।निकोटिन का सेवन न करें।
काम या किसी और तरह का तनाव न लें।
जरूरत नहीं है तो दिन में न सोएं। कम – से – कम लंबी नींद न लें।
जब नींद न आए …
जबरन बिस्तर पर लेटकर जबरन सोने की कोशिश न करें। उठकर कुछकाम करें। पढ़ें , टीवी देखें या हल्की एक्सरसाइज भी कर सकते हैं। मेडिटेशनकरें। इससे मन रिलैक्स होता है।
जब जागना हो …
अगर कभी नींद आ रही हो और जागना जरूरी हो तो चाय और कॉफी पिएं।एंटी स्लीप टैब्लेट डॉफिनल (dofinal) ले सकते हैं। लेकिन इसे आदत नबनाएं।
कैसा हो गद्दा और तकिया
सोने के लिए सख्त बेड होना चाहिए। जमीन पर सोने से बचना चाहिए।मेट्रेस का खास ध्यान रखें। कॉयर का मेट्रेस बेहतर होता है। स्पंज से बचनाचाहिए। तकिए की मोटाई कम होनी चाहिए। उसे इस तरह लगाएं कि गर्दनको सपोर्ट मिले।
नींद और डायबीटीज
डायबीटीज और नींद का आपस में गहरा नाता है। नींद न आने पर शुगर होनेकी आशंका बढ़ जाती है तो डायबीटीज के 40 फीसदी मरीजों में स्लीपडिस्ऑर्डर होते हैं। नींद पूरी न होने पर तनाव होता है। इससे बीपी औरशुगर लेवल बढ़ता है। इसी तरह स्लिप डिस्ऑडर्र का मरीज रात में सोतानहीं है तो अक्सर बार – बार खाता रहता है। इससे मोटापा बढ़ता है औरशुगर की आशंका भी। अगर डायबीटीज के मरीज का प्रोस्टेट बढ़ा हुआ है याशुगर कंट्रोल में नहीं है तो वह बार – बार टॉयलेट जाता है। इससे नींद खराबहोती है। साथ ही , यूरीन इन्फेक्शन की आशंका भी ज्यादा होती है। कुछमरीजों को पैरों में जख्म हो सकते हैं। उससे भी नींद डिस्टर्ब होती है।इसलिए डायबीटीज के मरीजों को नींद का खास ख्याल रखना चाहिए।
कुछ खास सवाल
खाना खाने के बाद नींद आती है खासकर , चावल , मट्ठा , दहीआदि। क्यों ?
खाना खाने के बाद हम रिलैक्स महसूस करते हैं। साथ ही , हमारा ब्लडसर्कुलेशन भी पेट की तरफ ज्यादा हो जाता है और दिमाग की तरफ कम।इससे भी सुस्ती महसूस होती है। ब्रेन का वजन शरीर का सिर्फ 2 फीसदीहोता है , लेकिन उसे 20 फीसदी ब्लड सप्लाई की जरूरत महसूस होती है।चावल , दही खाने पर कुछ लोगों को नींद या भारीपन महसूस होता हैलेकिन सभी के साथ ऐसा नहीं होता।
पढ़ते वक्त या ऑफिस में काम करते वक्त नींद आती है। खेलते हुए यामूवी देखते हुए नींद नहीं आती। क्यों ?
कोई भी ऐसा काम जिसमें दिमाग बहुत रिलैक्स या बोरिंग महसूस करे ,इसमें नींद आती है। शरीर में सिरोटोनिन ( खुशी और जोश फील करानेवाला हार्मोन ) का लेवल ज्यादा हो तो अच्छा महसूस होता है और आलसमहसूस नहीं होता। खेलते हुए शरीर में सिरोटोनिन हार्मोन निकलता है ,जिससे तरोताजा महसूस होता है।
क्लासिकल म्यूजिक सुनना क्या नींद लाने में मदद करता है ?
जिन लोगों को क्लासिकल म्यूजिक पसंद है , उन्हें इससे नींद आने में मददमिल सकती है। जो ब्रेन वेव्स सोने में मददगार होती हैं , क्लासिकल म्यूजिकसे वे ज्यादा निकलती हैं।
अचानक नींद खुल जाए तो सिर में दर्द क्यों होने लगता है ?
कच्ची नींद में आंख खुलने से सिरदर्द करने लगता है। इसकी वजह स्लीपिंगएंग्जाइटी है यानी बॉडी की जरूरत के मुताबिक हमारी नींद पूरी नहीं होतीतो सिर दर्द करने लगता है।