क्या जन्मकुंडली देखकर बताया जा सकता है कि ये जन्मकुंडली स्त्री/पुरूष/पशु/पक्षी आदि किस की है ?—
अक्सर जब भी कोई पाठक मुझसे ज्योतिष अथवा सनातन धर्म के विषय में कोई प्रश्न करता है तो मेरा ये भरकस प्रयास रहता है कि तुरन्त ही उसके सवाल का उत्तर उसे मिल सके। प्रश्न यदि व्यक्तिगत हो तो प्राथमिकता के आधार पर उनका जवाब पहले देने का प्रयास करता हूँ। किन्तु यदि प्रश्न निजि न होकर सामाजिक हो तो यदा कदा समयाभाव के कारण उनके उत्तर देने में देरी हो ही जाती है। आज कुछ ऎसे ही प्रश्नों को लेकर ये पोस्ट लिख रहा हूँ,जो कि ईमेल अथवा टिप्पणी के माध्यम से विभिन्न पाठकों के द्वारा पूछे गये थे किन्तु अभी तक उन्हे व्यक्तिगत रूप से जवाब प्रेषित नहीं कर पाया हूँ। यहाँ इस पोस्ट के जरिये सिर्फ ये सोचकर उन सवालों के जवाब देने का प्रयास कर रहा हूँ कि हो सकता है कि कुछ लोग ऎसे भी हों,जिनके मन में भी ऎसा ही कोई प्रश्न कौंध रहा हो और मेरा जवाब उनके जिज्ञासा भाव का शमन करने और साथ ही कुछ नया जानने,समझने में सहायक हो सकें। किन्तु गोपनीयता बनाए रखने हेतु यहाँ प्रश्नकर्ता के नाम का उल्लेख नहीं किया जा रहा।
सवाल:- भारतीय ज्योतिष में सूर्योदय से ही वार का प्रारम्भ माना जाता है । पश्चिमी मतानुसार् अर्धरात्री (.. बजे से) आगामी वार की प्रवृ्ति मानी जाती है । कौन सा मत ठीक है ?
ये तो सर्वविदित है कि सूर्य जिस काल अवधि में दिखाई देता है उसे “दिन” और जिस अवधि में वह अदृ्श्य रहता है,उसे रात्रि कहा जाता है । दिन और रात की ये मूल परिभाषा तो समस्त संसार में एक जैसी ही है । तदनुसार भारतीय ज्योतिष शास्त्रीय वार प्रणाली का सिद्धान्त बिल्कुल सही है । वैसे तो पश्चिमी एवं अन्य देशों के लोग भी मूलत: इसी परिभाषा के अनुयायी हैं,लेकिन तीव्रगति के इस आधुनिक युग में अलग अलग देशों में वार प्रारम्भ होने की भिन्न भिन्न प्रणाली होने से व्यवहारिक दृ्ष्टि से बडी भारी अव्यवस्था से बचने के लिए ही स्थानीय स्टैंण्डर्ड टाईम अनुसार अर्धरात्रि 12 बजे से ही वार आरंभ करने की प्रणाली को अपनाया गया है । जो कि मूल रूप से सही न होने पर भी सुविधा की दृ्ष्टि से तो उचित ही है ।
सवाल:- क्या किसी जन्मकुंडली को देखकर ये बताया जा सकता है कि ये जन्मकुंडली लडका,लडकी,पशु या पक्षी में से किसकी है ? क्या ये जान पाना संभव है ?
जन्मकुंडली देखकर जातक के लिंग(स्त्री एवं पुरूष) अथवा उसकी योनि (पशुयोनि,पक्षीयोनि इत्यादि) का निर्धारण कर पाना किसी भी ज्योतिषी के लिए संभव नहीं है । क्यों कि जन्म के क्षणों को लिंगभेद अथवा योनिभेद से विभाजित नहीं किया जा सकता । प्रकृ्ति नें ऎसी कोई व्यवस्था नहीं बनाई है कि समय के इस अन्तराल में केवल पुरूषों का जन्म होगा, इस क्षण में स्त्रियों का, इस क्षण में पशुओं का या कि इस क्षण में सिर्फ पक्षी ही जन्म लेंगें । कोई भी प्राणी चाहे वह किसी भी लिंग,जाति अथवा योनि का क्यों न हो, वह किसी भी क्षण में जन्म लेने के लिए स्वतंत्र है ।
अब यदि विज्ञान प्रकृ्ति के नियमों में सेंध लगाकर ये सुनिश्चित करवा सके कि दिनरात के चौबीस घंटों में इतने घंटे इन्सानों के जन्म के लिए रक्षित हैं ओर इतने पशु पक्षियों के लिए तो फिर जरूर बतलाया जा सकता है कि जन्मपत्री इन्सान की है या कि जानवर की 🙂

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