लक्ष्मी प्राप्ति हेतु आराधना क्यों, केसे और क्यूँ ????----
(ऐश्वर्य,वशीकरहण,उच्चाटन,पुत्र प्राप्ति,राजसम्मान,सुख और संपत्ति की प्राप्ति के मार्ग)
हवन केसे और क्यों करें---
नवरात्रों के प्रारम्भ होने से पूर्व अपने सभी मित्रों को बताने का प्रयास कर रहा कि हमें आराधना करते समय और भगवान से कुछ मांगते समय किन किन नियमो का पालन करना चाहिऐ। हम मन से भगवान कि प्रार्थना कर...
लक्ष्मी प्राप्ति हेतु आराधना क्यों, केसे और क्यूँ ????----
(ऐश्वर्य,वशीकरहण,उच्चाटन,पुत्र प्राप्ति,राजसम्मान,सुख और संपत्ति की प्राप्ति के मार्ग)
हवन केसे और क्यों करें---
नवरात्रों के प्रारम्भ होने से पूर्व अपने सभी मित्रों को बताने का प्रयास कर रहा कि हमें आराधना करते समय और भगवान से कुछ मांगते समय किन किन नियमो का पालन करना चाहिऐ। हम मन से भगवान कि प्रार्थना कर...
मनपंसद संतान-प्राप्ति के योग----
स्त्री के ऋतु दर्शन के सोलह रात तक ऋतुकाल रहता है,उस समय में ही गर्भ धारण हो सकता है,उसके अन्दर पहली चार रातें निषिद्ध मानी जाती है,कारण दूषित रक्त होने के कारण कितने ही रोग संतान और माता पिता में अपने आप पनप जाते है,इसलिये शास्त्रों और विद्वानो ने इन चार दिनो को त्यागने के लिये...
मनपंसद संतान-प्राप्ति के योग----
स्त्री के ऋतु दर्शन के सोलह रात तक ऋतुकाल रहता है,उस समय में ही गर्भ धारण हो सकता है,उसके अन्दर पहली चार रातें निषिद्ध मानी जाती है,कारण दूषित रक्त होने के कारण कितने ही रोग संतान और माता पिता में अपने आप पनप जाते है,इसलिये शास्त्रों और विद्वानो ने इन चार दिनो को त्यागने के लिये...
ॐकार रूद्राष्ट्क(भावार्थ सहित)----
परम शिव भक्त कागभुशुण्डि ने जब अपने गुरू की अवहेलना की तो वे शिव के क्रोध-भाजन हुए। अपने शिष्य के लिए क्षमादान की अपेक्षा रखने वाले सहृदय गुरू ने रूद्राष्टक की रचना की तथा महादेव को प्रसन्न किया। सम्पुर्ण कथा रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में वर्णित है।
नमामी शमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं, ब्रह्म वेदस्वरूपम् ।
निजं, निर्गुणं, निर्विकल्पं, निरीहं,...
ॐकार रूद्राष्ट्क(भावार्थ सहित)----
परम शिव भक्त कागभुशुण्डि ने जब अपने गुरू की अवहेलना की तो वे शिव के क्रोध-भाजन हुए। अपने शिष्य के लिए क्षमादान की अपेक्षा रखने वाले सहृदय गुरू ने रूद्राष्टक की रचना की तथा महादेव को प्रसन्न किया। सम्पुर्ण कथा रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में वर्णित है।
नमामी शमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं, ब्रह्म वेदस्वरूपम् ।
निजं, निर्गुणं, निर्विकल्पं, निरीहं,...
ब्रह्माकृत शिव स्तोत्रम्----
परमपिता ब्रह्मा ने पर्मात्मा एवं परंब्रह्म शिव की उपासना की थी। इस स्तोत्र को ब्रह्मा कृत माना जाता है।
नमस्ते भगवान रुद्र भास्करामित तेजसे|
(1)नमो भवाय देवाय रसायाम्बुमयात्मने||
ब्रह्माजी बोले कि हे भगवान! हे रुद्र! आपका तेज अनगिनत सूर्यों के तेज सा है| रसरूप, जलमय विग्रहवाले हे भवदेव! आपको नमस्कार है|
(2)शर्वाय क्षितिरूपाय नंदीसुरभये नमः|
ईशाय वसवे सुभ्यं नमः स्पर्शमयात्मने||
नंदी और सुरभि...
ब्रह्माकृत शिव स्तोत्रम्----
परमपिता ब्रह्मा ने पर्मात्मा एवं परंब्रह्म शिव की उपासना की थी। इस स्तोत्र को ब्रह्मा कृत माना जाता है।
नमस्ते भगवान रुद्र भास्करामित तेजसे|
(1)नमो भवाय देवाय रसायाम्बुमयात्मने||
ब्रह्माजी बोले कि हे भगवान! हे रुद्र! आपका तेज अनगिनत सूर्यों के तेज सा है| रसरूप, जलमय विग्रहवाले हे भवदेव! आपको नमस्कार है|
(2)शर्वाय क्षितिरूपाय नंदीसुरभये नमः|
ईशाय वसवे सुभ्यं नमः स्पर्शमयात्मने||
नंदी और सुरभि...
रावण कृत शिव ताण्डव स्तोत्रम्---
(1)जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले
गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्
डमड्डमड्डमड्डम-न्निनादव-ड्डमर्वयं
चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् .. १..
जिन शिव जी की सघन जटारूप वन से प्रवाहित हो गंगा जी की धारायं उनके कंठ को प्रक्षालित क होती हैं, जिनके गले में बडे एवं लम्बे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं, तथा जो शिव जी डम-डम डमरू बजा कर प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्यान करें (2)जटा-कटा-हसं-भ्रम...
रावण कृत शिव ताण्डव स्तोत्रम्---
(1)जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले
गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्
डमड्डमड्डमड्डम-न्निनादव-ड्डमर्वयं
चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् .. १..
जिन शिव जी की सघन जटारूप वन से प्रवाहित हो गंगा जी की धारायं उनके कंठ को प्रक्षालित क होती हैं, जिनके गले में बडे एवं लम्बे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं, तथा जो शिव जी डम-डम डमरू बजा कर प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्यान करें (2)जटा-कटा-हसं-भ्रम...