…2 आएगा, शुभ मुहूर्त में जोड़ियां बनाएगा—-हिन्दू विवाह 2012(लग्न मुहूर्त)—-Hindu Marriage Dates-2012 —-
शादी-विवाह माता-पिता के साथ-साथ हर एक युवक-युवती का सपना होता हें..यदि अच्छा जीवन साथी मिल जाये और श्रेष्ठ मुहूर्त में विवाह संपन्न हो जाये तो जीवन शुखी और आनंद पूर्वक गुजरता हें..इसीलिए हिन्दू विवाह हेतु शुभ मुहूर्तों की व्यवस्था की गयी हें…जीवनसाथी के साथ सात फेरों में बंधने को आतुर युवक-युवतियों के लिए इस वर्ष 2012 में विवाह के अनेक मुहूर्त हैं। वर-वधू के वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाये रखने के लिये विवाह (शादी) की तिथि ज्ञात करने के लिये सर्वश्रेष्ठ शुभ तिथि का प्रयोग किया जाता है. नए वर्ष के शुरू होते ही विवाह महोत्सव की बहार आ जाएगी। वर्ष 2012 में ग्रह-नक्षत्रों के समीकरण युवाओं का साथ देते नजर नहीं आ रहे हैं।इसलिए नया साल 2012 कुंवारे युवाओं के लिए अच्छा नहीं होगा। ज्योतिषीय आंकलन के अनुसार इस साल (2012 ) में गुरु और शुक्र ग्रह की वक्र दृष्टि पड़ रही है। इसलिए कोई भी शुभ/अच्छा मुहूर्त देखकर अपना विवाह संपन्न करवा लेवें…वेसे भी वर्ष में छह महीने विवाह के लिए उत्तम माने गए हैं। छह महीने में चार महीने विष्णु शयन एवं दो महीने खरमास के कारण विवाह निषिद्ध होता है।
हालांकि विवाह के छह महीने में भी यदि शुक्रास्त या गुरु अस्त हो जाए तो विवाह नहीं होता।विवाह हेतु रात्रि में पड़ने वाला मुहूर्त उत्तम माना जाता है। क्योंकि रात्रि का स्वामी चंद्रमा एवं दिन का स्वामी सूर्य है। चंद्रमा शुभ ग्रह है और सूर्य पापग्रह है…तुला, मिथुन, कुंभ, मकर राशि वाले बालकों के लिए अगहन का महीना एवं मीन, मिथुन, तुला, वृश्चिक वालों के लिए माघ का महीना एवं मेष, कर्क , वृश्चिक और धनु राशि वाले व्यक्तियों के लिए फाल्गुन महीना वैवाहिक दृष्टि से उत्तम होता हें । प्रचलित मान्यताओं के अनुसार मलमास,अधिकमास,एवं शुक्र तथा गुरु अस्त होने की स्थिति में शादी-विवाह तथा अन्य मांगलिक कार्य शुभ मणि मने जाते हें…
मई एवं जून में गुरु, शुक्र ग्रह के अस्त रहने से विवाह नहीं हो सकेंगे। अप्रैल के बाद मई में एक तथा जून में केवल चार विवाह मुहूर्त ही बन रहे हैं। यदि इन मुहूर्तों में किसी युगल ने फेरे नहीं लिए तो उन्हें साल भर का इंतजार करना पड़ेगा। वेसे भी आने वाले साल 2012 में चालू साल से काफी कम विवाह मुहूर्त निकल रहे हैं।
आइये जाने की विवाह मुहूर्त क्या है????
उत्तम मुहूर्त में शादी करने से वर-वधू का दांपत्य जीवन सुखमय बीतता है. बाधाएं उपस्थित नहीं होतीं हैं.अतः विवाह शुभ लग्न व मुहूर्त के साथ-साथ शुद्ध मंत्रोच्चार व विधि विधान से ही होना चाहिए…सभी ग्रह अपनी अपनी उपस्थिति जीवित अवस्था में बताते हैं यथा ब्रह्मांड तथा पिंडे के कथन के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति सभी ग्रहों से पूर्ण है। संसार में पिता के रूप में सूर्य, माता के रूप में चंद्र भाई के और पति के रूप में मंगल, बहन, बुआ और बेटी के रूप में बुध, धर्म और भाग्य के प्रदाता तथा शिक्षा को देने वाले गुरु के रूप में वृहस्पति, पत्नी और भौतिक संपन्नता के रूप में शुक्र, जमीन-जायदाद कार्य तथा काम करने वाले लोगों के रूप में शनि, ससुराल और दूर के संबंधियों के रूप में राहु, पुत्र, भांजा साले आदि के रूप में केतु जीवित रूप में माने जाते हैं। इन सभी ग्रहों के अनुसार व्यक्ति के लिए विवाह मुहूर्त बनाए गए हैं, जिस प्रकार की प्रकृति व्यक्ति के अंदर होती है उसी प्रकार के ग्रह की शक्ति के समय में विवाह किया जाता है। जब स्त्री और पुरुष के आपसी संबंधों के लिए विवाह मिलान किया जाता है तथा दोनों के ग्रहों को राशि स्वामियों के अनुसार समय को तय किया जाता है तभी विवाह किया जाता है, और उसी ग्रह के नक्षत्र के समय में लगन और समय निकाल कर विवाह किया जाता है।
आइये जाने की कैसे होता है मुहूर्त संशोधन????
हिंदुओं में शुभ विवाह की तिथि वर-वधू की जन्म राशि के आधार पर निकाली जाती है। वर या वधू का जन्म जिस चंद्र नक्षत्र में हुआ होता है उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिए प्रयोग किया जाता है। विवाह कि तिथि सदैव वर-वधू की कुंडली में गुण-मिलान करने के बाद निकाली जाती है। विवाह की तिथि तय होने के बाद कुंडलियों का मिलान नहीं किया जाता।
आइये जाने की क्यों किया जाता है कुंडली मिलान???
विवाह स्त्री व पुरुष की जीवन यात्रा की शुरुआत मानी जाती है। पुरुष का बाया व स्त्री का दाहिना भाग मिलाकर एक-दूसरे की शक्ति को पूरक बनाने की क्रिया को विवाह कहा जाता है। भगवान शिव और पार्वती को अ‌र्द्धनारीश्वर की संज्ञा देना इसी बात का प्रमाण है। ज्योतिष में चार पुरुषार्थो में काम नाम का पुरुषार्थ विवाह के बाद ही पूर्ण होता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार विवाह लग्न मुहूर्त ज्ञात करते समय वर्ष 2012 में निम्न अवधियों का प्रयोग विवाहादि शुभ कार्यो के लिये करना शास्त्र संगत होगा—-
जनवरी 2012 में विवाह के 15, 16, 17, 18, 19, 27, 28, 29 व .0 तारीख के मुहूर्त हैं। इसी तरह फरवरी माह में भी अनेक मुहूर्त मूहर्त हैं। यह सिलसिला अप्रैल तक चलेगा जबकि मई माह में विवाह का एक भी मुहूर्त नहीं है।जनवरी और फरवरी माह में भी विवाह के सिर्फ छह-छह मुहूर्त हैं। मार्च माह में तो विवाह के केवल तीन ही मुहूर्त बन रहे हैं। 16 दिसंबर से 14 जनवरी तक सूर्य धनु राशि में रहने से मलमास रहेगा। मलमास में विवाह जैसे शुभ कार्य वर्जित हैं।इसके बाद 14 मार्च से 13 अप्रैल तक सूर्य मीन राशि में रहने से मलमास रहेगा। इस दौरान भी विवाह संस्कार वर्जित हैं।
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इन तिथियों में नहीं होंगे विवाह—–(वर्ष 2012 में)
16 दिसंबर ,2011से 14 जनवरी 2012तक – मलमास
29 फरवरी से 8 मार्च 2012तक – होलिका अष्टक
14 मार्च से 13 अप्रैल2012 तक – सूर्य मीन राशि में
4 से 29 मई तक 2012- गुरु तारा अस्त
2 से 9 जून तक 2012- शुक्र तारा अस्त
30 जून से 23 नवंबर 2012 – देवशयन
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हिन्दू शुभ विवाह लग्न मुहूर्त जनवरी माह 2012 —–
वर् तिथियां वधू तिथियां
मेष राशि 15,16,17,24,27,28,29,30 मेष राशि 15,16,17,24
वृ्षभ राशि 15,16,17,18,19,24,27,28,29,30 वृ्षभ राशि 15,16,17,24,27,28,29,30
मिथुन राशि कोई तिथि नहीं है. मिथुन राशि 1,17,18,19,27,28,29,30
कर्क राशि 15,18,19,24,27,28,29,30 कर्क राशि 15,18,19,24,27,28,29,30
सिंह राशि 15,16,17,24,29,30 सिंह राशि 15,16,17,24,29,30
कन्या राशि 15,16,17,18,19,24,27,28,29 कन्या राशि 15,16,17,18,19,24,27,28,29
तुला राशि कोई तिथि नहीं है. तुला राशि 15,16,17,18,19,27,28,29,30
वृ्श्चिक राशि 15, 16, 17, 18,19,24,27,28,29,30 वृ्श्चिक राशि 15, 16, 17,18,19, 24,27, 28,29, 30
धनु राशि 15,16,17,18,19,24,29,30 धनु राशि 15,16,17,18,19,24,29
मकर राशि 15,16,17,18,19,24,27,28,29 मकर राशि 15,,16,17,18,19,24,27,28,29
कुम्भ राशि कोई तिथि नहीं है. कुम्भ राशि 16,17,18,19,24,27,28,29,30
मीन राशि 15,18,19,24,27,28,29,30 मीन राशि 15,18,19,24,27,28,29,30
15 जनवरी 2012 —माघ कृष्ण पक्ष ७ रविवार
19 जनवरी 2012 —माघ कृष्ण पक्ष ११ गुरुवार..
28 जनवरी को बसानी पंचमी का अबूझ सवा/मुहूर्त रहेगा..
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फरवरी :—-निम्न मुहूर्त शुभ रहेंगे—-
08 -02 -2011–फ़ाल्गुन कृष्ण पक्ष १ बुधवार
10 -02 -2011-फ़ाल्गुन कृष्ण पक्ष ३ शुक्रवार
17 -02 -2012–फ़ाल्गुन कृष्ण पक्ष १० शुक्रवार
24 -02 -2012–फ़ाल्गुन शुक्ल पक्ष ३ शुक्रवार
25, 26, 27 तारीख।
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मार्च,2011 : 9 व 11 तारीख के विवाह के श्रेष्ठ मुहूर्त हैं।
1 से 8 मार्च 2012 तक होलाष्टक होने से भी विवाह के मुहूर्त नहीं दिए गए हैं।
मई में गुरु-शुक्र तारा अस्त होने से मुहूर्त नहीं,
14 मार्च से मीन संक्रांति का मलमास लगेगा।
14 अप्रैल तक विवाह के लिए मुहूर्त नहीं हैं।
3 मई को गुरु अस्त, 18 मई को उदय होंगे।
1 जून को शुक्र अस्त, 11 जून को पुन: उदय।
जून 2012 में 24, 27, 29 जून को विवाह के लिए श्रेष्ठ मुहूर्त आ रहे है। इन दिनों में जमकर विवाह होंगे।
ग्रीष्मकाल के माह अप्रैल, मई एवं जून की तिमाही में महज 9 शुभ मुहूर्त विवाह समारोह के लिए बन रहे हैं। जिनमें 13, 24, 25 एवं 30 अप्रैल, एक मई तथा 12, 24, 27 एवं 29 जून को शुभ महूर्त बन रहे हैं।
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क्या विवाह मुहूर्त में जरूरी है त्रिबल शुद्दि…???
विवाह मुहूर्त के लिए मुहूर्त शास्त्रों में शुभ नक्षत्रों और तिथियों का विस्तार से विवेचन किया गया है। उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद,रोहिणी, मघा, मृगशिरा, मूल, हस्त, अनुराधा, स्वाति और रेवती नक्षत्र में, 2, 3, 5, 6, 7, 10, 11, 12, 13, 15 तिथि तथा शुभ वार में तथा मिथुन, मेष, वृष, मकर, कुंभ और वृश्चिक के सूर्य में विवाह शुभ होते हैं। मिथुन का सूर्य होने पर आषाढ़ के तृतीयांश में, मकर का सूर्य होने पर चंद्र पौष माह में, वृश्चिक का सूर्य होने पर कार्तिक में और मेष का सूर्य होने पर चंद्र चैत्र में भी विवाह शुभ होते हैं।
विवाह मुहूर्त का विचार करते समय वर के लिए सूर्य का बल, कन्या के लिए बृहस्पति (गरू) का बल और वर-कन्या दोनों के लिए चंद्रमा के बल का विचार किया जाता है। यदि सूर्य, चंद्रमा तथा गुरू का बल पूर्ण नहीं हो तो विवाह नहीं किया जाता है। क्योंकि वर-कन्या के विवाह के समय गुरू जीवनदाता एवं भाग्य विधाता होते हैं। चंद्रमा धन देने वाले तथा मानसिक शांति प्रदान करते हैं। इसी प्रकार सूर्य तेज प्रदान करते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि ये सब ग्रह यदि विवाह के समय पूर्ण अनुकूल हों तो सर्वथा उत्तम हैं। वर-वधु के लिए सौभाग्यशाली होते हैं।
जन्म लग्न से अथवा जन्म राशि से अष्टम लग्न तथा अष्टम राशि में विवाह शुभ नहीं होते हैं। विवाह लग्न से द्वितीय स्थान पर वक्री पाप ग्रह तथा द्वादश भाव में मार्गी पाप ग्रह हो तो कर्तरी दोष होता है, जो विवाह के लिए निषिद्ध है। इन शास्त्रीय निर्देशों का सभी पालन करते हैं, लेकिन विवाह मुहूर्त में वर और वधु की त्रिबल शुद्धि का विचार करके ही दिन एवं लग्न निश्चित किया जाता है। कहा भी गया है—
स्त्रीणां गुरुबलं श्रेष्ठं पुरुषाणां रवेर्बलम्।
तयोश्चन्द्रबलं श्रेष्ठमिति गर्गेण निश्चितम्।।
अत: स्त्री को गुरु एवं चंद्रबल तथा पुरुष को सूर्य एवं चंद्रबल का विचार करके ही विवाह संपन्न कराने चाहिए। सूर्य, चंद्र एवं गुरु के प्राय: जन्मराशि से चतुर्थ, अष्टम एवं द्वादश होने पर विवाह श्रेष्ठ नहीं माना जाता। सूर्य जन्मराशि में द्वितीय, पंचम, सप्तम एवं नवम राशि में होने पर पूजा विधान से शुभफल प्रदाता होता है। गुरु द्वितीय, पंचम, सप्तम, नवम एवं एकादश शुभ होता है तथा जन्म का तृतीय, षष्ठ व दशम पूजा से शुभ हो जाता है। विवाह के बाद गृहस्थ जीवन के संचालन के लिए तीन बल जरूरी हैं— देह, धन और बुद्धि बल। देह तथा धन बल का संबंध पुरुष से होता है, लेकिन इन बलों को बुद्धि ही नियंत्रित करती है। बुद्धि बल का स्थान सर्वोपरि है, क्योंकि इसके संवर्धन में गुरु की भूमिका खास होती है। यदि गृहलक्ष्मी का बुद्धि बल श्रेष्ठ है तो गृहस्थी सुखद होती है, इसलिए कन्या के गुरु बल पर विचार किया जाता है। चंद्रमा मन का स्वामी है और पति-पत्नी की मन:स्थिति श्रेष्ठ हो तो सुख मिलता है, इसीलिए दोनों का चंद्र बल देखा जाता है। सूर्य को नवग्रहों का बल माना गया है। सूर्य एक माह में राशि परिवर्तन करता है, चंद्रमा 2.25 दिन में, लेकिन गुरु एक वर्ष तक एक ही राशि में रहता है। यदि कन्या में गुरु चतुर्थ, अष्टम या द्वादश हो जाता है तो विवाह में एक वर्ष का व्यवधान आ जाता है।
चंद्र एवं सूर्य तो कुछ दिनों या महीने में राशि परिवर्तन के साथ शुद्ध हो जाते हैं, लेकिन गुरु का काल लंबा होता है। सूर्य, चंद्र एवं गुरु के लिए ज्योतिषशास्त्र के मुहूर्त ग्रंथों में कई ऐसे प्रमाण मिलते हैं, जिनमें इनकी विशेष स्थिति में यह दोष नहीं लगता। गुरु-कन्या की जन्मराशि से गुरु चतुर्थ, अष्टम तथा द्वादश स्थान पर हो और यदि अपनी उच्च राशि कर्क में, अपने मित्र के घर मेष तथा वृश्चिक राशि में, किसी भी राशि में होकर धनु या मीन के नवमांश में, वर्गोत्तम नवमांश में, जिस राशि में बैठा हो उसी के नवमांश में अथवा अपने उच्च कर्क राशि के नवमांश में हो तो शुभ फल देता है।
त्रिबल विचार के लिए वर-कन्या की जन्म राशि से तत्समय जिन-जिन राशियों में गुरू-सूर्य तथा चंद्र विचरण कर रहे हों, वहां तक गिनती की जाती है तथा इनका निर्णय निम्न प्रकार से करते हैं-
वर के लिए सूर्य विचार- यदि वर की राशि से वर्तमान राशि में गतिशील सूर्य गिनती करने पर चौथे, आठवें या बारहवें स्थान में पड़ें तो ऎसे समय में विवाह नहीं करें यह पूर्णरू पेण अशुभ है। यदि पहले, दूसरे, पांचवें, सातवें या नवें स्थान में सूर्य पड़े तो सूर्य पड़े तो सूर्य के दान और पूजादि करके विवाह शुभ हो सकता है। वक्री राशि से यदि सूर्य तीसरे, छठे, दशवें या ग्यारहवें स्थानों में हों तो विवाह अधिक शुभप्रद होता है।
कन्या के लिए बृहस्पति विचार- कन्या की राशि से वर्तमान राशि में गतिशील गुरू यदि चौथे, आठवें या बारहवें स्थान में पड़े तो विवाह अशुभ होगा। ऎसे समय में विवाह नहीं करें। यदि पहले, तीसरे, छठे या दशवें स्थान में गुरू हों तो दान-पूजादि करने पर ही शुभकारक होता है। यदि दूसरे, पांचवे, सातवें, नौवें या ग्यारहवें स्थान में गुरू हों तो शुभप्रद होंगे। यानी विवाह करना शुभ रहेगा।
चंद्र विचार [दोनों के लिए]- यदि वर-कन्या दोनों की राशि से चंद्रमा चौथे, आठवें या बारहवें स्थान में पड़े तो अशुभ है। ऎसे में विवाह नहीं करें। अन्य सभी स्थानों पर चंद्रमा के रहते विवाह करना शुभ रहेगा।
सारांश यह है कि सूर्य-चंद्र तथा गुरू तीनों ही विवाह के समय यदि चौथे, आठवें या बारहवें स्थान पर पड़ें तो अशुभ होते हैं। इस समय विवाह नहीं करें। कुछ शास्त्रकार पुरूष के लिए बारहवें चंद्रमा को शुभ मानते हैं, परन्तु स्त्री के लिए बारहवां चंद्रमा सर्वथा निषिद्ध है। इसी प्रकार त्रिबल [सूर्य-चंद्र तथा गुरू] विचार में ग्यारहवां स्थान सर्वथा शुभ होता है।
सिंह राशि भी गुरु की मित्र राशि है, लेकिन सिंहस्थ गुरु वर्जित होने से मित्र राशि में गणना नहीं की गई है। भारत की जलवायु में प्राय: 12 वर्ष से 14 वर्ष के बीच कन्या रजस्वला होती है। अत: बारह वर्ष के बाद या रजस्वला होने के बाद गुरु के कारण विवाह मुहूर्त प्रभावित नहीं होता है.
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शुभ मूहूर्त के अनुसार विवाह में वर्जित काल —–
वैवाहिक जीवन की शुभता को बनाये रखने के लिये यह कार्य शुभ समय में करना उतम रहता है. अन्यथा इस परिणय सूत्र की शुभता में कमी होने की संभावनाएं बनती है. कुछ समय काल विवाह के लिये विशेष रुप से शुभ समझे जाते है. इस कार्य के लिये अशुभ या वर्जित समझे जाने वाला भी समय होता है. जिस समय में यह कार्य करना सही नहीं रहता है. आईये देखे की विवाह के वर्जित काल कौन से है.:-
1. नक्षत्र व सूर्य का गोचर —–
27 नक्षत्रों में से 10 नक्षत्रों को विवाह कार्य के लिये नहीं लिया जाता है ! इसमें आर्दा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुणी, उतराफाल्गुणी, हस्त, चित्रा, स्वाती आदि नक्षत्र आते है. इन दस नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र हो व सूर्य़ सिंह राशि में गुरु के नवांश में गोचर कर तो विवाह करना सही नहीं रहता है.
2. जन्म मास, जन्मतिथि व जन्म नक्षत्र में विवाह —-इन तीनों समयावधियों में अपनी बडी सन्तान का विवाह करना सही नहीं रहता है. व जन्म नक्षत्र व जन्म नक्षत्र से दसवां नक्षत्र, 16वां नक्षत्र, 23 वां नक्षत्र का त्याग करना चाहिए !
3. शुक्र व गुरु का बाल्यवृ्द्धत्व—-शुक्र पूर्व दिशा में उदित होने के बाद तीन दिन तक बाल्यकाल में रहता है. इस अवधि में शुक्र अपने पूर्ण रुप से फल देने में असमर्थ नहीं होता है. इसी प्रकार जब वह पश्चिम दिशा में होता है. 10 दिन तक बाल्यकाल की अवस्था में होता है. शुक्र जब पूर्व दिशा में अस्त होता है. तो अस्त होने से पहले 15 दिन तक फल देने में असमर्थ होता है व पश्चिम में अस्त होने से 5 दिन पूर्व तक वृ्द्धावस्था में होता है. इन सभी समयों में शुक्र की शुभता प्राप्त नहीं हो पाती है.गुर किसी भी दिशा मे उदित या अस्त हों, दोनों ही परिस्थितियों में 15-15 दिनों के लिये बाल्यकाल में वृ्द्धावस्था में होते है.
उपरोक्त दोनों ही योगों में विवाह कार्य संपन्न करने का कार्य नहीं किया जाता है. शुक्र व गुरु दोनों शुभ है. इसके कारण वैवाहिक कार्य के लिये इनका विचार किया जाता है.
4. चन्द्र का शुभ/ अशुभ होना—चन्द्र को अमावस्या से तीन दिन पहले व तीन दिन बाद तक बाल्य काल में होने के कारण इस समय को विवाह कार्य के लिये छोड दिया जाता है. ज्योतिष शास्त्र में यह मान्यता है की शुक्र, गुरु व चन्द्र इन में से कोई भी ग्रह बाल्यकाल में हो तो वह अपने पूर्ण फल देने की स्थिति में न होने के कारण शुभ नहीं होता है. और इस अवधि में विवाह कार्य करने पर इस कार्य की शुभता में कमी होती है.
5. तीन ज्येष्ठा विचार—विवाह कार्य के लिये वर्जित समझा जाने वाला एक अन्य योग है. जिसे त्रिज्येष्ठा के नाम से जाना जाता है. इस योग के अनुसार सबसे बडी संतान का विवाह ज्येष्ठा मास में नहीं करना चाहिए. इस मास में उत्पन्न वर या कन्या का विवाह भी ज्येष्ठा मास में करना सही नहीं रहता है ! ये तीनों ज्येष्ठ मिले तो त्रिज्येष्ठा नामक योग बनता है.
इसके अतिरिक्त तीन ज्येष्ठ बडा लडका, बडी लडकी तथा ज्येष्ठा मास इन सभी का योग शुभ नहीं माना जाता है. एक ज्येष्ठा अर्थात केवल मास या केवल वर या कन्या हो तो यह अशुभ नहीं होता व इसे दोष नहीं समझा जाता है.
6. त्रिबल विचार—इस विचार में गुरु कन्या की जन्म राशि से 1, 8 व 12 भावों में गोचर कर रहा हो तो इसे शुभ नहीं माना जाता है.
गुरु कन्या की जन्म राशि से 3,6 वें राशियों में हों तो कन्या के लिये इसे हितकारी नहीं समझा जाता है. तथा 4, 10 राशियों में हों तो कन्या को विवाह के बाद दु:ख प्राप्त होने कि संभावनाएं बनती है.गुरु के अतिरिक्त सूर्य व चन्द्र का भी गोचर अवश्य देखा जाता है !इन तीनों ग्रहों का गोचर में शुभ होना त्रिबल शुद्धि के नाम से जाना जाता है.
7. चन्द्र बल—चन्द्र का गोचर 4, 8 वें भाव के अतिरिक्त अन्य भावों में होने पर चन्द्र को शुभ समझा जाता है. चन्द्र जब पक्षबली, स्वराशि, उच्चगत, मित्रक्षेत्री होने पर उसे शुभ समझा जाता है अर्थात इस स्थिति में चन्द्र बल का विचार नहीं किया जाता है.
8. सगे भाई बहनों का विचार—एक लडके से दो सगी बहनों का विवाह नहीं किया जाता है. व दो सगे भाईयों का विवाह दो सगी बहनों से नहीं करना चाहिए. इसके अतिरिक्त दो सगे भाईयों का विवाह या बहनों का विवाह एक ही मुहूर्त समय में नहीं करना चाहिए. जुडंवा भाईयों का विवाह जुडवा बहनों से नहीं करना चाहिए. परन्तु सौतेले भाईयों का विवाह एक ही लग्न समय पर किया जा सकता है. विवाह की शुभता में वृ्द्धि करने के लिये मुहूर्त की शुभता का ध्यान रखा जाता है.
9. पुत्री के बाद पुत्र का विवाह—पुत्री का विवाह करने के 6 सूर्य मासों की अवधि के अन्दर सगे भाई का विवाह किया जाता है. लेकिन पुत्र के बाद पुत्री का विवाह 6 मास की अवधि के मध्य नहीं किया जा सकता है. ऎसा करना अशुभ समझा जाता है. यही नियम उपनयन संस्कार पर भी लागू होता है. पुत्री या पुत्र के विवाह के बाद 6 मास तक उपनयन संस्कार नहीं किया जाता है दो सगे भाईयों या बहनों का विवाह भी 6 मास से पहले नहीं किया जाता है.
10. गण्ड मूलोत्पन्न का विचार—मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाली कन्या अपने ससुर के लिये कष्टकारी समझी जाती है. आश्लेषा नक्षत्र में जन्म लेने वाली कन्या को अपनी सास के लिये अशुभ माना जाता है. ज्येष्ठा मास की कन्या को जेठ के लिये अच्छा नहीं समझा जाता है. इसके अलावा विशाखा नक्षत्र में जन्म लेने पर कन्या को देवर के लिये अशुभ माना जाता है. इन सभी नक्षत्रों में जन्म लेने वाली कन्या का विवाह करने से पहले इन दोषों का निवारण किया जाता है.

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