आइये जरा इस विषयपर भी करे विचार / बात करें —( क्यों होता हें ऐसा??सच क्या हें..???
प्रिय बंधुओं, जीवन में जीवन संबंधी विषय व समस्याएं चाहे जो भी रही है उनके निदान हेतु जब सूक्ष्म गहन अध्ययन नहीं किये जाते तब तक थ्यौरी भी तैयार नहीं की जा सकती, इससे ये साबित हो जाता है कि जीवन में सदा अनुभव ही काम आते है।
उक्त समस्या कटे होंठ और तालू जिसे विज्ञानियों ने चिंता का विषय तो कहा ही इसकी मूल वजहों को भी सगोत्र शादी व कुपोषण माना है? इस नकारात्मक सोच साबित हो जाता है कि यदि सटीक अनुभव न हो तो विज्ञान की थ्यौरी किसी भी काम की नहीं हो सकती?
जब विज्ञान में ही विकृतियां भरी पड़ी हो तो वो बच्चों में पैदा होने वाली तरह-. की विकृतियों का निदान खोज पायेगा?
तो क्या, बच्चों में पैदा होने वाली विकृतियों ‘नेत्रहीनता व कटे होंठ और तालू इत्यादि को भी रोका जा सकता है?
चिकित्सा विज्ञानिकों को समझना चाहिए कि कटे होंठ और तालू एवं अन्य तरह की विकृतियों वाले बच्चों का पैदा होते रहना, यह समस्या किसी सगोत्रिय शादी व कुपोषण से नहीं बल्कि सीधे- सूर्यग्रण की विकिरणों से हैं, जबकि चन्द्र ग्रहण की विकिरणों बच्चों में भिन्न तरह की विकृतियां पैदा करती है, जो क्रमशः इस प्रकार से हैं—
चन्द्रग्रहण के वक्त विभिन्न कार्य करने से गर्भणी स्त्रियों के भ्रूणों में विभिन्न विकृतियों पैदा हो जाती है जैसे –
. – चन्द्रग्रहण के वक्त- यदि स्त्री को गर्भ ठहरता है तो बच्चा मांस का लोथड़ा या अविकसित पैदा होता है।
2 – चन्द्रग्रहण के वक्त– गर्भणी स्त्री यदि सिर धोती, बालों को संवारती व रंगती है तो बच्चा पूरे शरीर व चेहरे पर अनचाहे बालों वाला पैदा होता है
.- चन्द्रग्रहण के वक्त – गर्भणी स्त्री के साथ यदि समागम या बलात्कार होता है तो बच्चा अतिरिक्त अंगों हाथ, पांव व सिर वाला पैदा होता है। इत्यादि
इस तरह बच्चों में ये विकृतियां गर्भणी स्त्रियों के भ्रूणों में सूर्यग्रहण व चन्द्रग्रहण की विकिरणों की वजह से पैदा होती है। क्यों..???
मेरा उद्देश्य किसी गर्भणी स्त्रियों को भयभीत करने या भ्रम में डालने का कतई नहीं है, बल्कि यह एक कड़वा सच है और मैं समझता हूं दुनिया को सूर्यग्रहण व चन्द्रग्रहण से जागरूक करने का इससे सटीक तरीका कोई ओर हो भी नहीं सकता। क्योंकि इसी जागरूकता के द्वारा स्त्रियों को विकिरणों की समझ आयेगी और इसी समझ के द्वारा समूची दुनिया में बच्चे पूर्णतय स्वस्थ् और सुन्दर पैदा होंगे जिससे माता- पिता की दुनिया की बदल जायेगी।
सूर्य ग्रहण के समय / वक्त निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक हें—(अन्यथा ये होती हें संभावना)
1- सूर्यग्रहण के वक्त – गर्भणी स्त्री, यदि भोजन ग्रहण करती है, तो बच्चा कटे होंठ और तालू वाला पैदा होता है।
2- सूर्यग्रहण के वक्त – गर्भणी स्त्री, यदि झाडू पौंचा लगाती है तो पैदा होने वाले बच्चे के कई अंग भग हुए मिलते है जैसे कि (क) कद केवल 3,5 फुट तक बढ़ पाता है (ख) सीने के सबसे नीचे वाली तीन पसलियां कम होती हैं (ग) नाक छोटी व भद्दी (घ) गर्दन छोटी (ड) आवाज मोटी व झरझरी (च) दाहिने हाथ का अंगूठा अविकसित व हाथ का पंजा कमजोर होता है और बच्चा अपने बांये हाथ से काम चलाता है।
3- सूर्यग्रहण के वक्त – गर्भणी स्त्री, यदि सूर्य को देखती है तो बच्चा नेत्रहीन (अविकसित-गड्रडेनुमा) पैदा होता है।
4- सूर्यग्रहण के वक्त – गर्भणी स्त्री, यदि सूर्य को काले चश्मे से देखती है तो बच्चा आंखे होते हुए भी अंधा पैदा होता है।
5- सूर्यग्रहण के वक्त – गर्भणी स्त्री, यदि पांव की एडियो को रगड़ रगड़ कर धोती या चमकती है तो बच्चा टेढे पंजों वाला पैदा होता है।
6- सूर्य ग्रहण के वक्त – गर्भणी स्त्री, यदिग्रहण को समाप्त होते हुए भी (आखरी चरण में) पानी में देख लेती है तो बच्चा अंधा नहीं बल्कि अर्धनेत्र या अधखुली आंखों वाला पैदा होता है।
7- सूर्य ग्रहण के वक्त- गर्भणी स्त्री, यदि अपना कान भी खुजला लेती है तो बच्चा अविकसित कान वाला पैदा होता है
8- सूर्यग्रहण के वक्त – गर्भणी स्त्री यदि लेखन कार्य भी करती है तो बच्चा अविकसित उंगलियों वाला (पैननुमा हाथ वाला) पैदा होता है। इत्यादि ये सभी विकृतियां गर्भणी स्त्रियों के द्वारा किये गये कार्यों से सूर्यग्रहण के दौरान, भ्रणों में ही पैदा हो जाती है, जबकि सूर्यग्रहण का दुनिया के आम नागरिकों पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता।
भारतीय वैज्ञानिकों को टीवी न्यूज चैनलों पर किसी के भी साथ तर्क-वितर्क बंद कर देने चाहिए अन्यथा उल्टे भारतीय वैज्ञानिकों के उपर मानवाधिकार हनन का ग्रहण लग सकता है?
क्योंकि खगोलिया वैज्ञानिकों के आधे अधूरे शोधकार्य एवं अनुभव हीन जागरूकता की वजह से देश वासियों में प्रतिकूल संदेश जा रहा है, जिनसे बच्चों में पैदा होने वाली तरह तरह की विकृतियों नेत्रहीनता व कटे होंठ और तालू इत्यादि को बढ़ावा मिल रहा है?
बात यही तक सीमित नहीं, बल्कि जिन जिन माता पिता के घरों के चिराग अस्वस्थ व तरह तरह की विकृतियां लिये पैदा हो रहे है, उनसे पूछे कोई भी वैज्ञानिक उनकी सुध तक लेने वाला नहीं है कि आखिर इन विकृतियोंकी मूल वजह क्या हो सकती है? नहीं बल्कि उन असहाय और मजबूर बच्चों के वास्ते नेत्रहीन व स्माइल पिंकी प्रोजेक्ट जैसे न जाने कितने संस्थान खोल दिये जाते है और इन संस्थानों की संख्या बढ़ती चली जा रही है यह बच्चों की जिन्दगी व उनके स्वास्थ् के साथ समझौता नहीं तो ओर क्या है?
अतः यह समस्या अति गंभरी है, चिकित्सा विज्ञानिकों को इस समस्या पर चिंता जाहिर करने की बजाय गंभीरता से विचार विमर्श कर शोध् समिति का गठन करना चाहिए और यदि इस समस्या के निदान हेतु किसी ठोस कदम का विचार करना चाहिए..
सूर्य ग्रहण के दौरान वैज्ञानिक बड़ी बड़ी बहस करते हुए जो घंटों तक चलती है इसी दौरान भारत के कई प्रख्यात योगी- जिन्हें प्रकृति एवं जीवन के मूल सिद्धांत के अनुभव व जानकारियां तक नहीं वो भी इस बहस में कुछ भी सिद्ध् न कर पाने की वजह से वैज्ञानिकों से सहमत हो अपने घुटने टिका देते है और इसी दौरान वैज्ञानिकों के द्वारा देश के प्रसिद्ध ज्योतियों सहित धार्मिक आस्था की भी खूब धज्जियां उड़ाई जाती है, इस पर वैज्ञानिकों ने कहा कि ये लोग सूर्यग्रहण के दौरान देश में भय का वातावरण पैदा कर उन्हें ठगते है ओर अपनी अपनी दुकाने चलाते हैं लोगों को इनसे बच कर रहना चाहिए।
ठीक इसी दौरान वैज्ञानिक विज्ञान की अनुभव हीन थ्यौरी के अनुसार देश को जागरूक करते हुए, संदेश देते है कि सूर्यग्रहण से किसी को भी डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि सूर्यग्रहण यह सूर्य के ऊपर पड़ी छाया मात्र है यह एक अदभूत नजारा है, इस दौरान भोजन खाये, मौजमस्ती करें और उस समय खूब जश्न मानना चाहिए?
आपकी क्या सोच/विचार/राय हें इस विषय पर..बताइयेगा जरुर…प्रतीक्षारत..