केसा हो वास्तु सम्मत दक्षिण मुखी/साऊथ फेसिंग –मकान/भवन/आवास..????
जनसाधारण के मन में भी यह भ्रांति फैल गयी है कि दक्षिण-मुखी मकान अशुभ फलदायक होता है, जबकि यह विचारधारा सरासर गलत है। अगर दिशाओं का सही निर्धारण करके, वास्तु के सिद्धान्तों का पूर्ण रूप से परिपालन करते हुए मकान का निर्माण किया जाए तो समस्याएं पैदा होने की संभावना शुन्य हो जाती है। सच्चाई यह है कि दक्षिणमुखी मकान यदि वास्तुनुकूल बना हो तो आदमी दूसरी दिशाओं की तुलना में बहुत ज्यादा यश व मान-सम्मान पाता है। वहाँ रहने वालों का जीवन वैभवशाली होता है। परिवार चौतरफा तरक्की कर सुखी एवं सरल जीवन व्यतीत करता है।लोगों के दिलोदिमाग में भी यह बात गहराई तक समाई हुई है कि दक्षिणमुखी मकान में निवास करके कभी सुखी नहीं रह सकते हैं। इस भय के कारण भारत में कई दक्षिणमुखी प्लॉट लंबे समय तक खाली पड़े रहते हैं और बेचने वाले को प्लॉट की कीमत कम करके ही बेचना पड़ता है, जबकि सच्चाई बिलकुल इसके विपरीत है।
ऐसा भूखण्ड जिसके दक्षिण में ही सड़क होतो उसे दक्षिण भूखण्ड कहते है। दक्षिणी मुखी भूखण्ड होने का प्रभाव घर की महिलाओ पर पड़ता है। दक्षिणी दिशा को सामान्य एवं अशुभ माना गया है। किन्तु सर्वथा ऐसा नहीं है। जिनकी जन्म कुण्डली में राहु प्रधान एवं शुक्र प्रधान कुण्डली होगी तो वह दक्षिण मुखी में खूब उन्नति करेगा। सोना चान्दी एवं सरार्फा की दुकान अगर दक्षिणी मुखी होगी तो दुकान खूब चलेगी। मगर इसमें कुण्डली बताये बगेर कभी भी दुकान एवं भवन नहीं लेना चाहिये।दक्षिण दिशा का कारक ग्रह मंगल है जो सदा ही मांगलिक कार्यों का प्रणेता रहा है। लाल रंगों से सुशोभित यह ग्रह भूमि पुत्र भी कहलाता है। जन्मपत्रिका में मंगल की मजबूत स्थिति निष्चित ही जातक को बड़ा व मजबूत मकान का योग प्रदान करती है। इस दिषा को यम की दिषा भी कहते है।
दक्षिणी दिशा काल पुरूष का बाया सीना, किडनी, बाया फेफड़ा आते है। एवं कुण्डली का दशम घर है। कन्या, कक्र और मकर राशि वालो को दक्षिण मुखी भवन बनाना चाहिए।
यम के आधिपत्य एवं मंगल ग्रह के पराक्रम वाली दक्षिण दिशा पृथ्वी तत्व की प्रधानता वाली दिशा है। इसलिए दक्षिणमुखी प्लॉट पर भवन बनाते समय वास्तु के कुछ सिद्धांतों का पालन कर लिया जाए तो निश्चित है कि वहाँ रहने वालों का जीवन उत्तर या पूर्वमुखी घर में निवास करने वालों की तुलना में बहुत बेहतर हो सकता है।
दक्षिण दिशा यम के अधिपत्य और मंगल ग्रह के पराक्रम की दिशा है। यह पृथ्वी तžव की प्रधानता वाली दिशा है। इस में वास्तु नियमों के अनुसार निर्माण के बाद निवास करने वाले उन्नतिशील और सुखमय जीवन जीते हैं। दक्षिण मुखी प्लॉट में निर्माण कराते समय इन बातों का ध्यान रखना उपयोगी रहेगा—
पूर्व दिशा में उदयमान सूर्य, सौर-मंडल की ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत है। यही कारण है कि धार्मिक शास्त्रों में पूर्व दिशा को एक महत्वपूर्ण दिशा का दर्जा दिया गया है। वास्तु विषय में पूर्व दिशा के साथ, उत्तर दिशा का भी उतना ही महत्व है। केवल सुबह के समय प्राप्त होने वाली सूर्य-रश्मियां ही अधिक प्रभावशाली तथा सकारात्मक ऊर्जा दायक होती है। लेकिन उत्तर दिशा से निरंतर चुम्बकीय किरणें प्रवाहित होती है, जो जीवन को संतुलित रखने के लिए उतनी ही आवश्यक होती है, जितनी कि सूर्य-रश्मियां।
दक्षिणमुखी प्लॉट पर कंपाउंड वॉल एवं घर का मुख्य द्वार दक्षिण आग्नेय में रखें, किसी भी कीमत पर दक्षिण नैऋत्य में न रखें। दक्षिण नैऋत्य में ही द्वार रखना मजबूरी हो तो ऐसी स्थिति में आप उस प्लॉट पर मकान बिलकुल न बनाएँ और उस प्लॉट को बेच दें, क्योंकि दक्षिण नैऋत्य में द्वार रखकर वास्तुनुकूल घर बन ही नहीं सकता।
– किसी भी प्रकार के भूमिगत टैंक जैसे फ्रेश वाटर टैंक, बोरिंग, कुआँ इत्यादि केवल उत्तर दिशा, उत्तर ईशान व पूर्व दिशा के बीच ही कंपाउंड वॉल के साथ बनाएँ और सेप्टिक टैंक उत्तर या पूर्व दिशा में ही बनाएँ। ध्यान रहे सेप्टिक टैंक ईशान कोण में न बनाएँ।
– प्लॉट पर भवन का निर्माण करते समय इस बात का विशेष तौर पर ध्यान रखें कि भवन का ईशान कोण घटा, कटा, गोल, ऊँचा इत्यादि नहीं होना चाहिए और नैऋत्य कोण किसी भी तरह से बढ़ा हुआ या नीचा नहीं होना चाहिए।
– बनने वाले भवन की ऊँचाई प्लॉट से . से . फुट ऊँची अवश्य रखें और पूरे भवन के फर्श का लेवल एक जैसा रखें। भवन के किसी भी हिस्से का फर्श ऊँचा-नीचा न रखें अर्थात समतल रखें। यदि साफ-सफाई के लिए थोड़ा ढाल देना चाहें तो उत्तर, पूर्व दिशा या ईशान कोण की ओर ढाल दे सकते हैं। इसी प्रकार प्लॉट के खुले भाग का ढाल भी उत्तर, पूर्व दिशा एवं ईशान कोण की ओर ही दें ताकि बरसात का पानी ईशान कोण से होकर ही बाहर निकले।
– घर के आसपास बहुत अधिक बड़े पेड़ नहीं होना चाहिए साथ ही मुख्यद्वार के समक्ष भी अधिक बड़ा पेड़ नहीं होना चाहिए क्योंकि यह घर पर आने वाले हवा और प्रकाश को रोकता है।
– वास्तु नियम के अनुसार हर दो घरों के बीच खाली जगह होना चाहिए। हालांकि भीड़भाड़ वाले शहर में कतारबद्ध मकान बनाना किफायती होता है लेकिन वास्तु के नियमों के अनुसार यह नुकसानदेय होता है क्योंकि यह प्रकाश, हवा और ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के आगमन को रोकता है।
– आमतौर पर उत्तर दिशा की ओर मुंह वाले कतारबद्ध घरों में तमाम अच्छे प्रभाव प्राप्त होते हैं जबकि दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाले मकान बुरे प्रभावों को बुलावा देते हैं। हालांकि पूर्व और पश्चिम की ओर मुंह वाले कतारबद्ध मकान अनुकूल स्थिति में माने जाते हैं क्योंकि पश्चिम की ओर मुंह वाले मकान सामान्य ढंग के न्यूट्रल होते हैं
– पूर्व की ओर मुंह वाले घर लाभकारी होते हैं। कतार के आखिरी छोर वाले मकान लाभकारी हो सकते हैं यदि उनका दक्षिणी भाग किसी अन्य मकान से जुड़ा हो या पूरी तरह बंद हो। ऐसी स्थिति में जहां कतारबद्ध घर एक-दूसरे के सामने हों, वहां सीध में फाटक या दरवाजे लगाने से बचना चाहिए।
– यह भी ध्यान रखना चाहिए कि दक्षिण की ओर मुंह वाले घर यदि सही तरीके से बनाए जाएं तो लाभकारी परिणाम हासिल किए जा सकते हैं।मकान जिनके सामने एक बगीचा हो, भले ही वह छोटा हो, अच्छे माने जाते हैं, जिनके दरवाजे सीधे सड़क की ओर खुलते हों क्योंकि बगीचे का क्षेत्र प्राण के वेग के लिए अनुकूल माना जाता है। घर के सामने बगीचे में ऐसा पेड़ नहीं होना चाहिए, जो घर से ऊंचा हो।
-दक्षिण मुखी प्लाट में मुख्य द्वार आग्न्ये दक्षिण दिशा में बनाएं। किसी भी कीमत पर नैऋत्य दिशा में मुख्य द्वार नहीं बनाएं। क्योंकि नैऋत्य दिशा पितृ आधिपत्य की दिशा होती है। दक्षिण मुखी प्लाट में मकान बनाते समय उत्तर तथा पूर्व की तरफ ज्यादा व पश्चिम व दक्षिण में कम से कम खुला स्थान छोडें। बगीचे में छोटे पौधे पूर्व-ईशान में लगाएं।
-पानी का टैंक ऊपरी नैऋत्य दिशा में बनवाएं। सैप्टिक टैंक मकान के पश्चिम दिशा में बनाएं। किसी भी प्रकार के भूमिगत टैंक जैसे वाटर टैंक, बोरिंग, कुआ इत्यादि केवल उत्तर दिशा, उत्तर ईशान या पूर्व दिशा के बीच कंपाउंड वाल के साथ बनाएं। प्लॉट पर भवन का निर्माण करते समय इस बात का ध्यान रखें कि भवन का ईशान कोण घटा, कटा, गोल, ऊंचा नहीं हो और नैऋत्य कोण किसी भी तरह से बढा हुआ या नीचा नहीं हो। बनने वाले भवन की ऊंचाई प्लॉट से 1 से 2 फुट ऊंची रखें और पूरे भवन के फर्श का लेवल एक जैसा बनाएं। भवन के किसी भी हिस्से का फर्श ऊंचा-नीचा नहीं रखें। यदि साफ-सफाई के लिए थोडा ढाल देना चाहें तो उत्तर, पूर्व दिशा या ईशान कोण की ओर दे सकते हैं। इसी प्रकार प्लॉट के खुले भाग का ढाल भी उत्तर, पूर्व दिशा एवं ईशान कोण की और ही दें, ताकि बरसात का पानी ईशान कोण से होकर बाहर निकल जाए।
यदि गंदे पानी की निकासी की व्यवस्था उत्तर या पूर्व दिशा में न हो पा रही हो तो ऐसी स्थिति में कंपाउंड वॉल के साथ प्लॉट के पूर्व ईशान से एक नाली बनाकर पूर्व आग्नेय की ओर बाहर निकालें या उत्तर ईशान से नाली बनाकर उत्तर वायव्य से बाहर निकाल दें।
जहाँ दक्षिण आग्नेय का द्वार बहुत शुभ होता है, वहीं दक्षिण नैऋत्य का द्वार अत्यंत अशुभ होता है। दक्षिण नैऋत्य के द्वार का कुप्रभाव विशेष तौर पर परिवार की स्त्रियों पर पड़ता है। उन्हें मानसिक व शारीरिक कष्ट रहता है। यही द्वार परिवार की आर्थिक स्थिति को भी खराब रखता है। द्वार के इस दोष के साथ ही यदि मकान के ईशान कोण में भी कोई वास्तुदोष है तो यह परिवार के किसी सदस्य के साथ अनहोनी का कारण भी बन जाता है।
आग्नेय के कमरे में शयन-कक्ष होने के कारण, पुरुष वर्ग के स्वास्थ्य व समृद्धि में प्रतिकुलता पैदा होती है तथा पति-पत्नी के आपस में वैचारिक मतभेद रहते हैं।
दक्षिणाभिमुखी मकान में सड़क़ से सटा कर मकान बनाना चाहिये। अगर आगे जगह ज्यादा खुल्ली रख दी है तो धन नाश के अलावा महिलाओ की वजह से अस्पतालो में पैसा खर्च होगा।
दक्षिणाभिमुखी अगर कुण्डली में काम कर जाये तो अगर कुण्डली दक्षिणाभीमुखी बताती है तो दक्षिणाभिमुखी मकान गृहस्वामी को धन से मालामाल कर देती है।
पीडि़त मंगल के व्यक्तियों को स्वयं के नाम का मकान नहीं बनाना चाहिए और विषेशकर दक्षिणमुखी तो हरगिज नहीं बनाए। दक्षिण दिषा में सामान्यतः शयन कक्ष, रसोईघर, सीढि़यां, स्टोर, भार युक्त सामग्री स्थल बनवाया जाता है जो शुभता लिए हुए परिणाम देता है परन्तु दक्षिण दिशा में तहखाना, ट्यूबवैल, सेप्टिक टैंक, भूमिगत जल स्टोरेज नहीं बनाया जाता ।
दक्षिण में बच्चो की पढ़ाई का कमरा होगा तो बच्चो की पढ़ाई में व्यवधान होगा।
अगर दक्षिण दिशा का फर्श नीचा होगा तो घर की मालकीन बीमार रहेगी।
दक्षिण में किसी भी प्रकार का खड्डा, नीचा स्थान, सेफ्टिक टेंक ज्यादा खुल्ला स्थान होने पर महिलाओ को असहाय रोग रहेगा।
दक्षिणाभिमुखी मकान का गेट अगर नैऋत्य की तरफ होगा तो घर में अकाल मृत्यु, आत्महत्या, शत्रुभय, धन्धे में घाटा एवं मालिक का दिमाग अस्थिर, चैरी का भय रहेगा।
किसी भी नाहर/शहर के विशेषकर दक्षिण भाग में ही प्लाट लेकर भवन निर्माण करना भाग्यवर्धक है। क्यों कि प्रत्येक शहर का दक्षिण भाग अपेक्षाकृत समृद्ध लोगों के अधिकार क्षेत्र में आ जाता है या जिनका मंगल ग्रह शुभता लिए हुए हो तो उतना ही शुभ परिणाम वाला होता है।
अगर दक्षिण दिशा में कहीं भी दरार पड़ गई होतो गृहस्वामी का समय उसी दिन से खराब हो जायेगा और धीरे-धीरे समय में परिवर्तन के साथ गृहस्वामी दुःखी होता जायेगा।
दक्षिणाभिमुखी गेट आग्नेय की तरफ होतो घर में आग लग जायेगी, चैरी हो सकती है। प्रथम संतान से वैमनस्य रह सकता है।
दक्षिण में कुआ हो तो अर्थ-हानि अथवा दुर्घटना द्वारा मृत्यु सम्भव है।
दक्षिण भाग के मे दरवाजा आग्नेय मुखाभि हों तो चोर-भय, अग्नि-संबंधी विपदाएं एवं अदालती कार्यवाही के होने की संभावना है।
दक्षिणाभिमुखी मकान में सड़क़ से सटा कर मकान बनाना चाहिये। अगर आगे जगह ज्यादा खुल्ली रख दी है तो धन नाश के अलावा महिलाओ की वजह से अस्पतालो में पैसा खर्च होगा।
औद्योगिक इकाइयों में भी दक्षिण दिषा में अग्नियुक्त यंत्र व भारी मशीने रखना उपयुक्त है। खाली स्थान उत्तर की अपेक्षा कम होना अच्छा है तथा भूमितल उत्तर, पूर्व की अपेक्षा ऊंचा होना श्रेष्ठ है। भवन का निर्माण करवाते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि प्लाट का दक्षिणी दीवार मोटी, मजबूत व भारीपन लिए होना अच्छा परिणाम प्रदत्त होती है। छत का झुकाव, फर्शों का ढ़लान दक्षिण दिशा में नही करें। भवनों के अन्दर का वास्तु भी इसी दिशा निर्देष पर आधारित है। यानि प्रत्येक कमरे में अपेक्षाकृत दक्षिण भाग भारी वस्तुओं के लिए निर्धारित है।
अगर नैऋत्य में गेट होगा तो मालिक कितना भी कमायेगा मगर धन कभी भी संग्रह नहीं कर पायेगा और एक दिन ऐसा आयेगा कि वह दिवालिया हो जायेगा ।
कुछ लोगो का मानना है कि दक्षिण यम का है अतः कोशिश करनी चाहिये कि दक्षिण मुखी भूखण्ड कभी भी नहीं खरीदे।
दक्षिण दीवार सबसे मोटी होनी चाहिये एवं 9. डिग्री कोण में होनी चाहिये। अगर ऐसा न हुआ तो गृहस्वामी को गृह भी त्याग कर परदेश गमन करना पड़ सकता है।
दक्षिण में कभी भी बरामदा एवं ज्यादा जालिया नहीं बनानी चाहिये।
दक्षिणी फर्श तल उत्तरी फर्श तल से नीचा होने पर स्त्री रोग, धन हानि, अकाल मृत्यु की आशंका रहती है एवं गृहस्वामी कर्जदार रहेगा।
सोते वक्त दक्षिण में सिर व उत्तर में पैर होना नैसर्गिकता की सुखद स्थिति को दर्षाता है। पानी की निकासी भी दक्षिण दिषा में वर्जित है। जरुरत होने पर दक्षिण पूर्वी भाग को इस व्यवस्था के लिए काम में लिया जा सकता है परन्तु दक्षिणी पश्चिमी भाग को इस कार्य के लिए निहायत ही वर्जित है।
यदि मकान के दक्षिण में दरवाजा है, सामने दीवार है या मकान है तो यह स्थिती शुभ है। यदि दक्षिण के दरवाजे के सामने गड्ढा है, मैदान है या अंधेरा है तो गृहस्वामी भाई कष्टों का शिकार होंगे।
दक्षिण में सेफ्टिक टेंक, कुआ, अन्डर ग्राउन्ड, नीचापन होने पर पत्नी पति पर हावी रहती है। गृहस्वामी पत्नी के सामने भीगी बिल्ली की तरह रहेगा।
दक्षिण भाग सबसे ऊँचा होने पर हर जगह विजय होगी। गृहस्वामी कभी भी कर्जदार नहीं रहेगा।
दक्षिण में पूजा स्थल होगी तो वह एक नाम मात्र की पूजा होगी। पूजा का फल कभी भी नहीं मिलेगा।
प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है। उपरोक्त फेरबदल करवाने के बाद आपको यह अहसास हो जाएगा कि दक्षिण-मुखी मकान भी, अन्य दिशाओं के मकान के अनुरूप ही शुभ परिणाम दायक व सौभाग्यशाली होता है।
उपाय/समाधान—
1. मैंन गेट पर स्वास्तिक के चिन्ह लगाये।
2. दक्षिण दीवार पर बड़े पहाड़ की सिनहरी लगाये।
.. दक्षिण का मैंन गेट सुन्दर बनाये।
4. भैरव या हनुमान की उपासना करें।
5. दक्षिणावृति सूंड वाले गणपति द्वार के अन्दर-बाहर लगावें।