तलाक के लिए कौन जिम्मेदार – अभिभावक , समाज या ज्योतिषी ?
आज नवविवाहित जोड़ों में .. प्रतिशत दम्पति पहले दो साल के अन्दर ही तलाक लेने को क्यों प्रेरित हो जाते हैं। सबसे प्रथम दोष उन परिवारों का का होगा जिनके अपने निवास या उनके बच्चों की ससुराल में रसोई या निवास के उत्तर – पूर्व में आग गैस जलेगी। उनके पुत्र – पुत्रवधु परेशान होगी। इनके साथ – साथ जिन परिवारों के सीढि़यों के नीचे रसोई होगी उनकी लड़कियाँ पुत्रवधएं जल मरेगी व जिनकी सीढि़यों के नीचे बाथरूम , शौचालय होगा वह किसी न किसी प्रकार जहर खाने को बाध्य होगी।
समाज का हर वर्ग गरीब-अमीर पढ़ा लिखा विद्वान व अनपढ़ हर कोई शादी के मामले में ज्योतिषियों के ऊपर बहुत ही अधिक निर्भर हैं। होना भी चाहिए क्योंकि विज्ञान अभी तक मानव सूक्ष्म भावनाओं को समझने में पूर्णतयाः सशक्त नहीं हुआ हैं। परन्तु इसमें भी एक बहुत बड़ी त्रुटि हैं कि ज्योतिषी महोदय जो पूर्ण विद्वता से पूर्ण तो हैं पर वर्तमान की सुधार ज्योतिष में नहीं ला पाये हैं।
मंगली होना व कालसर्प दोष इत्यादि को ही ज्योतिषी विद्वान विवाह विलम्ब व विवाह तनाव का आधार मान कर चल रहे हैं जबकि मांगलिक होने का अभिप्रायः दाम्पत्य सुखः में उग्रता , एनर्जी का द्योतक कहा जाना चाहिए। विवाह विलम्ब व विवाह में तनाव में अन्य ग्रहों के योग व दृष्टि सम्बन्ध पाये जाते हैं। जिनमें भगवान राम के काल से लेकर अभी तक विद्वान ज्योतिषी समुदाय ने दृष्टिपात या अनुसंधान ही नहीं किया हैं।
मांगलिक दोष या कुंजा दोष को लेकर समाज में नारी वर्ग का जितना अपमान व अनादर हुआ हैं वह अवसाद का विषय हैं । करोड़ों कन्याओं को मंगली दोष के अज्ञानता के कारण कभी प्रथकता तो कभी वैधव्य तो कभी अत्याचार कभी हत्या, कभी हिंसा जैसे भयावह दुष्परिणामों का भागीदार बनना पड़ा हैं । जन्मांक में मंगल दोष से भयभीत होकर जो अभिभावक अपने पुत्र अथवा पुत्री का कृत्रिम जनमांक मिलापक के निमीत्त प्रस्तुत करते हैं वे अपने परिवारों के साथ क्रुर एवं अक्षम्य अपराध करते हैं ।
मिलान सारणी व मुहूर्त प्रणाली पर भी वर्तमान एवं भविष्य के संदर्भ में रखकर नये सिरे से अनुसंधान करना चाहिए। मकान , दुकान व विवाह का मुहूर्त काल स्थिर लगन में ही होना चाहिए जबकि जबकि चर व द्विस्वभाव लगन में भी शादी के मुहूर्त हो रहे हैं। इसके लिए समाज भी दोषी हैं जोकि विद्वान ज्योतिषी द्वारा सुझाए गये लग्न व मुहर्त नहीं मानकर भागड़ा इत्यादि में दुल्हा-दुल्हन को उलझाकर, शुभ लग्न को छोड़कर अशुभ लग्न में फेरे (पाणिग्रहण) हेतु बाध्य कर देते हैं । वधु के माता-पिता एवं विवाह आयोजकों को चाहिए कि वे ज्योतिषी द्वार सुझाये गये मुहर्त एवं लग्न में ही विवाह की रस्म (सम्तपदी/फेरे/पाणिग्रहण संस्कार) पूर्ण कर ले अन्यथा विवाह मुहर्त निकलवाने का कोई महत्व नही रह जाता हैं क्योकि व्यवहारिक तौर पर देखा गया हैं कि विवाह में सम्मीलित सभी लोग अपने-अपने कार्यो में व्यस्त रहते हैं कोई शराब में मस्त रहता हैं तो केाई डांस में । कुछ लोग फोटो शैसन में तो कुल लोग बातो में मशगुल रहते हैं इन सब बातों में नजरअंदाज करता हुआ शुभ विवाह मुहर्त आगे निकल जाता हैं क्योकिं समय गतिशील हैं फलतः अधिकांश विवाह मुहर्त में नहीं होते हैं जिसके कारण पारिवारिक कलह पति-पत्नि के सम्बन्धों में कटूता एवं तलाक आदि को पूरा समाज त्रासदी के रूप में झेलता हैं ।
अगर किसी भी जातक जिसकी शादी हो रही हैं उन दोनो पति पत्नि में या किसी एक के जन्म लग्न में सूर्य पर शनि का व बुध या मंगल या बुध मंगल दोनो पर राहू का गोचर भ्रमण या दृष्टि संबंध बन रहा हो तो शादी नहीं करनी चाहिए जब तक यह गोचर दृष्टि संबंध समाप्त नहीं हो जाता । अन्यथा नवदम्पति का तलाक या आत्महत्या अथवा आग से जलने मरने की दुर्घटना हो सकती हैं । सुखी वैवाहिक जीवन के लिए कुल 36 गुणों में से कम से कम .8 गुणों का मिलान आवश्यक माना गया हैं । परन्तु विवाह से पूर्व पूर्ण रूप से पत्रिका मिलान के बाद भी विवाह में झगड़े, तलाक या आत्महत्या को नहीं रोका जा सकता हैं । कुछ पति पत्नि एक दूसरे के साथ रहते अवश्य हैं किन्तु मन नहीं मिलता ।
कई लोग सिर्फ अच्छे परिवार में विवाह के लिए अथवा कोई एक मांगलिक होने के कारण नकली जन्म पत्रिका मिलवाकर विवाह कर देते है अथवा सिर्फ नाम से ही विवाह कर दिया जाता हैं । कई बार ज्योतिष वर्ग भी दक्षिणा के आधार पर सिर्फ पाॅच मिनट में ही जन्म पत्रिका का मिलान कर देते हैं जबकि मेलापक वास्तव में एैसा विषय नहीं है जो सिर्फ पाॅच मिनट में ही पूर्ण विवाह मिलान कर दिया जावे । वे मंगल की स्थिति भी नहीं देखते हैं कि मंगल किस राशि व किस भाव में हैं क्योकि मंगल के उपरोक्त स्थान में होने मात्र से जातक मंगली नहीं हो जाता । कई ज्योतिषी तो ऐसे भी होते हैं जो प्रथम, चतुर्थ , सप्तम , अष्ठम व द्वादश भाव में मंगल के होने मात्र से ही मंगली का हौवा बैठा देते हैं । हमारे ऋषि मुनियों ने मेलापक सिर्फ इसलिए बनाया कि विवाह से पूर्व दो जीवन के बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त की जा सके । उनके विवाहित जीवन में किसी प्रकार की समस्या न आये और दोनो ही अपना जीवन सुखी, सौहार्दपूर्ण व सफल रूप से जीवन यापन कर सके । मांगलिक दोष के भ्रामक तथ्यों एवं विघटनकारी तत्वों का सम्यक विश्लेषण यहां पूर्णतः सम्भव नहीं हैं ।
दामपत्य कलह के कारण व ज्योतिष –
दामपत्य कलह के पीछे कभी भी एक कारण जिम्मेदार नहीं होता हैं क्योकिं किसी कारण विशेष का किसी भी प्रकार से निदान किया जा सकता हैं । कलह के पीछे अनेक कारण अपनी भूमिका अदा करते हैं । जिनमें से यदि कुछ का समाधान नहीं होता हैं तो स्थिति बिगढ जाती हैं वे कारण निम्न हो सकते हैं:-
1 पति पत्नि में वैचारिक मतभेद होना ।
. पति पत्नि में अहम्, शंका व महत्वांकांशा होना अथवा एक-दूसरे के प्रति अविश्वास ।
3 काम कला में न्यूनाधिकता होना ।
4 आर्थिक संकट होना ।
5 भाग्यहिनता ।
6 पति या पत्नि में से किसी एक का रोगी होना ।
7 पति या पत्नि में से किसी एक में हिन भावना का होना या विचार मेल न खाना ।
8 पारिवारिक कलह ।
9 गुण मिलान, शिक्षा, व संतान न होना आदि किसी एक में चारित्रिक दोष का होना ।
10 एक दूसरे को समय न दे पाना । पति अथवा पत्नि का किसी भी कारण से विदेश प्रवास।
11 किसी एक के परिवार के अन्य सदस्यों का हस्तक्षेप ।
जन्म पत्रिका में सुखी वैवाहिक जीवन की भूमिका –
1 लग्न व उसका स्वामी अथवा लग्नेश ।
2 राशि तथा राशि का स्वामी ।
3 षष्ठम भाव तथा उसका स्वामी अर्थात षष्ठेश ।
4 सप्तम भाव तथा उसका स्वामी अर्थात सप्तमेश ।
5 मंगल, शुक्र तथा गुरू की स्थिति (विशेषकर स्त्री के लिए)
6 द्वितीय, चतुर्थ, पंचम अष्ठम व द्वादश भाव तथा इनके स्वामी ।
7 नाड़ी दोष, राशि दोष , षडष्टकम्योग
पं0 दयानन्द शास्त्री
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार,
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) 326023
मो0 नं0 … .

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