वास्तुशास्त्र- शुभ दिशा ज्ञान
वास्तुशास्त्र आज चर्चा का विषय है। पिछले कुछ वर्षों में इस विषय की अनेक पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। भारत वासियों के लिए वास्तुशास्त्र नया नहीं है। आदिकाल में भी भवन निर्माण का कार्य वास्तुशास्त्र के नियमों को ध्यान में रख कर कराया जाता था, किंतु तब यह कला देवालयों, राजमहलों, राजभवनों तक ही सीमित थी। साधारण मनुष्य इस कला के ज्ञान से अनभिज्ञ था। यह ज्ञान वेदों के सहारे केवल कुछ गिने-चुने ऋषियों तक ही सीमित था जिसके आधार पर उन्हें राजमहलों में बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। उस समय के सर्वश्रेष्ठ वास्तुविद् ‘‘विश्वकर्मा जी’’ थे। जिन्होंने अनगिनत नगरों का निर्माण कर उन्हें प्रसिद्धि के शिखर तक पहुचा दिया। यही कारण है कि वर्तमान में भी सभी राजमिस्त्री उनकी पूजा करते हैं तथा उन्हें अपना गुरू मानते हैं। वास्तुशास्त्र के नियमों के अनुसार मकान, भवन इत्यादि का निर्माण व्यक्ति की जन्मपत्रिका या राशि के
अनुसार करवाना चाहिए। एक व्यक्ति के द्वारा बनाये गये मकान आवश्यक नहीं की दूसरे के लिए भी लाभप्रद हो। आज की कमर तोड़ मंहगाई में साधन सीमित हैं। भूमि, मकान या बहुमंजिला ईमारत में एक फ्लैट, वास्तुशास्त्र के अनुसार खरीदना हर व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं है। परिस्थिति वश जैसे भी भूमि, मकान या फ्लैट प्राप्त कर लेने का अथक प्रयास करता है। परंतु वह यह नहीं सोचता की वास्तु के अनुसार वह लाभदायक रहेगा या नहीं फिर
भी वास्तुशास्त्र के साधारण नियमों का पालन करने से भी व्यक्ति का भाग्य बदल सकता है जैसे-
.. जिस नगर में रहना हो उस की राशि अपनी राशि से दूसरी, पाँचवीं, नवीं, दशवीं या ग्यारहवीं हो तो वह नगर ग्राम, कसबा, कालोनी, सोसाईटी व अपार्टमेंट रहने के लिए सर्वश्रेष्ठ रहेगा।
.. मेष राशि वाले को उत्तर दिशा में मकान नहीं बनवाना चाहिए।
.. कर्क राशि वाले व्यक्ति को नेऋत्य दिशा में मकान नहीं बनाना चाहिए।
4. कन्या राशि वाले को दक्षिण दिशा में मकान नहीं बनाना चाहिए।
5. तुला राशि वाले को वायव्य दिशा में मकान नहीं बनाना चाहिए।
6. वृश्चिक राशि वाले को पूर्व दिशा में मकान नहीं बनाना चाहिए।
7. कुम्भ राशि वाले कों ईशान कोंण में मकान नहीं बनाना चाहिए।
8. मीन राशि वाले को अग्नि कोंण में मकान नहीं बनाना चाहिए।
9. शेष राशिवालों को मध्य भाग में मकान नहीं बनाना चाहिए।
दिशा सम्बन्धी एक महत्वपूर्ण सूत्र —-
भवन स्वामी के नाम का प्रथम अक्षर जिस अक्षर वर्ग में हो वही दिशा उस के लिए शुभ या (स्नबाल) होती है।
अक्षर वर्ग आठ हैंः- अ, क, च, त, ट, प, य, श।
‘अ’ अक्षर वर्ग में अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ आदि शब्द आते हैं।
इसी प्रकार ‘क’ वर्ग में क, ख, ग, घ, ड़ आदि अक्षर आते हैं। इसी प्रकार अन्य वर्गों का भी अपना अक्षर वर्ग समझें।
1. ये सभी अक्षर वर्ग पूर्वार्द्ध दिशा में क्रम से बलवान होते हैं।
2. प्रत्येक अक्षर वर्ग की अपनी दिशा होती है अतः भवन के स्वामी को मुख्य द्वार अपने अक्षर वर्ग की दिशा में ही बनाना चाहिए।
3. प्रत्येक अक्षर वर्ग की अपने से पाँचवें अक्षर वर्ग के साथ विकट शत्रुता होती है अतः भवन स्वामी को अपने अक्षर वर्ग से पाँचवें अक्षर वर्ग की दिशा में मुख्य द्वार कभी नहीं बनवाना चाहिए।
अक्षर वर्ग- शुभ दिशाः-
1. ‘अ’ वर्ग के लिए पूर्व दिशा शुभ है।
2. ‘क’ वर्ग के लिए आग्नेय दिशा शुभ है।
3. ‘च’ वर्ग के लिए दक्षिण दिशा शुभ है।
4. ‘ट’ वर्ग के लिए नैऋत्य दिशा शुभ है।
5. ‘त’ वर्ग के लिए पश्चिम दिशा शुभ है।
6. ‘प’ वर्ग के लिए वायव्य दिशा शुभ है।
7. ‘य’ वर्ग के लिए उत्तर दिशा शुभ है।
8. ‘श’ वर्ग के लिए ईशान दिशा शुभ है।
विशेषः-
1. यदि राशि के अनुसार दिशा पूर्व हो तथा अक्षर वर्ग के अनुसार दिशा पश्चिम हो तो ऐसी स्थिति में अक्षर वर्ग वाली दिशा को महत्त्व देना चाहिए।
2. नाम राशि का विचार, परिवार के श्रेष्ठ व्यक्ति, जिनके नाम से अथवा द्वारा निर्माण कार्य करवाया गया हो, से करनी चाहिए।
3. किसी भी नगर के मध्य में सुवर्ण लोगों को निवास करना चाहिए।
निवास दो तरह के होते हैं:–पहला अपना शरीर (आध्यात्मिक दृष्टि से) दूसरा निवास। जिसमें अपना परिवार रहता है। अपने परिवार का निवास कैसा होना चाहिए? उसमें क्या-क्या सुविधायें होनी चाहियें? जिससे सुख, समृद्धि, शान्ति व वैभव इत्यादि की दिनोदिन वृद्धि होती रहे और
व्यक्ति का जीवन आनन्द से परिपूर्ण हो जाये उपरोक्त सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर कुछ सूत्र निम्नांकित हैं…
जिसे प्रयोग में लाने से सभी सुख सुविधाओं का आपके भवन में वास होगा।
1. घर में झाडू, लकड़ी, निसरनी इत्यादि खड़ी अवस्था में नहीं रखें अन्यथा शत्रुओं का बोलबाला रहता है। अतः इन्हें लेटी हुई अवस्था में रखना चाहिए।
2. घर की सीमा में कांटे वाले पौधे कैक्टस, अर्जुन के लम्बे वृक्ष, सहजने का वृक्ष नहीं लगायें। इस से आकस्मिक घटनाओं को प्रोत्साहन मिलता है और परेशानियाँ पैदा होती हैं। तुलसी के पौधे अधिक से अधिक लगावें इससे वातावरण शुद्ध होता है और रोगों से रक्षा होती है।
3. सड़क पर मिले हुए पैसों को धोकर पूजा स्थान पर रखकर रोजाना पूजा करनी चाहिये इससे धन की वृद्धि होती है।
4. घर के मुख्य द्वार के दोनो ओर दूध$पानी मिलाकर डालें बीच में हल्दी का स्वास्तिक ं बनायें उस पर गुड़ की छोटी डली रखकर चार बूंद पानी की डालकर पूजा करें इससे भवन के अनेक दोष दूर होंगे। बाहरी हवा का दुष्प्रभाव नही होगा तथा सुख समृद्धि की वृद्धि होगी।
5. पानी कभी भी दक्षिण दिशा में न रखें न ही इस दिशा में कपडे धोयें और न ही बर्तन साफ करें। इससे घर में अशांति एवं रोगों का आगमन होता है।
6. गणपति या अपने इष्टदेव की प्रतिमा, तस्वीर घर के मुख्य द्वार के ऊपर सड़क की ओर मुख करके नहीं लगानी चाहिये। क्योकि गणपति जी की पीठ के पीछे दरिद्रता का वास होता है। इस लिए गणपति की प्रतिमा मुख्य द्वार के ऊपर अन्दर की ओर लगावें। इस से सुख समृद्धि व शांति में वृद्धि होती है।
7. भवन की छत साफ रखें छत पर चैखट या फालतू सामान उल्टा मटका इत्यादि नहीं रखें इससे दरिद्रता आती है।
8. मुख्यद्वार के ऊपर बिजली का मीटर नहीं लगवायें इससे शुभ कार्यों में बाधायें आती हैं।
9. पानी की टंकी भवन के मुख्य द्वार के ऊपर कभी नहीं रखनी चाहिये इससे हृदय सम्बन्धी रोग हाने की सम्भावनाऐं रहती हैं।
1.. घर में घंटी या घंटा न रखें न ही बजायें, इससे आर्थिक बाधायें आती हैं।
11. घर में संगीत का सामान, तबला, पेटी, ढोलक, सितार आदि स्पर्श से ऊपर न रखें अन्यथा अपना ही संगीत बजने लगता है।
12. मकान चैरस हो (लम्बाई चैडई समान हो), या चैडाई से लम्बाई दूनी होनी चाहिए।
13. मकान हवादार, चारों ओर से खुला हुआ सुर्य की रोशनी से युक्त हो। मकान की छत ऊँची और छत से लगी हुई सीमेंट या लोहे की जालियाँ हों जिससे शुद्ध वायु का आवागमन बना रहे।
14. अलमारी जिसमें कपड़े, धन इत्यादि रखते हों उत्तर दिशा में रखें। अलमारी का मुख दक्षिण में नहीं खुलना चाहिए।
15. भोजन पकाने का स्थान पूर्व दक्षिण में होना चाहिए इससे भोजन शरीर को लगता है। पाचन क्रिया ठीक रहती है तथा स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।
16. सीढ़ीयों के नीचे शौचालय, बिजली की मोटर, या बिजली का मीटर न रखें। इससे घर में अशांति का वातावरण बना रहता है।
17. पढ़ने-लिखने की पुस्तकें उत्तर दिशा में रखें। उत्तर दिशा के अलावा अन्य दिशाओं में पढ़ाई का सामान रखने से अपेक्षित लाभ नहीं मिलेगा।
18. अग्नि सम्बन्धी वस्तुऐं आग्नेय कोंण (दक्षिण-पूर्व) में ही रखें।
इस प्रकार उपरोक्त सूत्रों के अतिरिक्त भवन निर्माण में पंचभूतों का संतुलन परमावश्यक है। सूर्य की रश्मियों, चुम्बकीय धाराओं तथा वायु का प्रभाव-प्रवाह सुचारू रूप से हो या बिना किसी रूकावट के हो। मनुष्य के आसपास जो चुम्बकीय क्षेत्र होता है उसे भी भवन के किसी भाग में जाने में कोई रूकावट न हो। मनुष्य को चाहिए की वास्तुशास्त्र में बताये गये प्राकृतिक स्त्रोतो एवम् ऊर्जाओं का अपने कल्याण के लिए भरपूर उपयोग करें। यह तभी सम्भव है। जब जातक की जन्म कुण्डली में ग्रहों की स्थिति का विशेष रूप से अध्ययन करके जातक को भवन निर्माण के लिए, भूखण्ड खरीदने का दैवज्ञ परामर्श दे। आज के युग में भवन निर्माण योगों पर अनुसन्धानात्मक कार्य की आवश्यकता है।
पं0 दयानन्द शास्त्री
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार,
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) 326023
मो0 नं0 ….

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