बुद्धि-वर्धक सरस्वती विधान—
१॰ गाय का घी १ सेर, सहिजन की जड़ १ तोला, ब्राह्मी १५ ग्राम, मीठी वच १५ ग्राम, सेंधा नमक, धवई का फूल, लोध-सबको पीसकर ४ सेर बकरी के दूध में घी डाल मन्द आँच में पकाएँ। जब दूध व दवा जल जाए, तो घी छान लें-एक तोला घी का सेवन, सरस्वती-मन्त्र से करे, तो बुद्धि, स्मृति, मेधा, कान्ति बहुत बढ़ती है।
सरस्वती मन्त्र-“ॐ ह्रां ऐं ह्रीं सरस्वतयै नमः।” (१२ हजार जप से पुरश्चरण)
२॰ हल्दी, मीठा कूट, पीपर, सोठ, जीरा, अजमोदा, मुलेठी, सहुआ, सेंधा नमक- २५-२५ ग्राम लेकर चूर्ण करे। ४ ग्राम मक्खन से खाए।
३॰ सारस्वत चूर्णः गुरुचि, अपामार्ग, चिचिरी, वायविडंग, शंखपुष्पी, मीठा वच, हरड़, मीठा कूट, शतावर-सब बराबर बराबर लेकर चूर्ण करें। घी से खाए, तो बुद्धि बढ़ेगी।
४॰ सोने की सलाई से या कुशा की जड़ से ‘गंगा-जल′ द्वारा अष्टमी या चतुर्दशी के दिन जीभ पर ‘ऐं’ बीज लिखे।
५॰ हंसारुढा मां सरस्वती का ध्यान कर मानस-पूजा-पूर्वक निम्न मन्त्र का २१ बार जप करे-”ॐ ऐं क्लीं सौः ह्रीं श्रीं ध्रीं वद वद वाग्-वादिनि सौः क्लीं ऐं श्रीसरस्वत्यै नमः।”
जप-फल माँ के हाथ में अर्पित करे। तब निम्न स्तोत्र का एक पाठ करे।
शुक्लां ब्रह्म-विचार-सार-परमां आद्यां जगद्-व्यापिनीम्।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।।
हस्ते स्फाटिक-मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धि-प्रदां शारदाम्।।१
या कुन्देन्दु-तुषार-हार-धवला या शुभ्र-वस्त्रावृता,
या वीणा वर-दण्ड-मण्डित-करा या श्वेत-पद्मासना।
या ब्रह्माऽच्युत-शंकर-प्रभृतिभिर्देवैः सदा सेविता,
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष-जाड्यापहा।।२
ह्रीं ह्रीं ह्रीं हृद्यैक-बीजे शशि-रुचि-कमले कल-विसृष्ट-शोभे,
भव्ये भव्यानुकूले कुमति-वन-दवे विश्व-वन्द्यांघ्रि-पद्मे।
पद्मे पद्मोपविष्टे प्रणत-जनो मोद सम्पादयित्री,
प्रोत्फुल्ल-ज्ञान-कूटे हरि-निज-दयिते देवि! संसार तारे।।३
ऐं ऐं दृष्ट-मन्त्रे कमल-भव-मुखाम्भोज-भूत-स्वरुपे,
रुपारुप-प्रकाशे सकल-गुण-मये निर्गुणे निर्विकारे।
न स्थूले नैव सूक्ष्मेऽप्यविदित-विभवे नापि विज्ञान-तत्त्वे,
विश्वे विश्वान्तराले सुर-वर-नमिते निष्कले नित्य-शुद्धे।।४
ऐसा करने से सरस्वती कण्ठ में वास करती है।
६॰ तीन बार निम्न स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करे। सरस्वती की पूर्ण कृपा मिलेगी एवं मोक्ष प्राप्त होगा।
ॐ रवि-रुद्र-पितामह-विष्णु-नुतं, हरि-चन्दन-कुंकुम-पंक-युतम्!
मुनि-वृन्द-गजेन्द्र-समान-युतं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।१
शशि-शुद्ध-सुधा-हिम-धाम-युतं, शरदम्बर-बिम्ब-समान-करम्।
बहु-रत्न-मनोहर-कान्ति-युतं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।२
कनकाब्ज-विभूषित-भीति-युतं, भव-भाव-विभावित-भिन्न-पदम्।
प्रभु-चित्त-समाहित-साधु-पदं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।३
मति-हीन-जनाश्रय-पारमिदं, सकलागम-भाषित-भिन्न-पदम्।
परि-पूरित-विशवमनेक-भवं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।४
सुर-मौलि-मणि-द्युति-शुभ्र-करं, विषयादि-महा-भय-वर्ण-हरम्।
निज-कान्ति-विलायित-चन्द्र-शिवं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।५
भव-सागर-मज्जन-भीति-नुतं, प्रति-पादित-सन्तति-कारमिदम्।
विमलादिक-शुद्ध-विशुद्ध-पदं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।६
परिपूर्ण-मनोरथ-धाम-निधिं, परमार्थ-विचार-विवेक-विधिम्।
सुर-योषित-सेवित-पाद-तमं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।७
गुणनैक-कुल-स्थिति-भीति-पदं, गुण-गौरव-गर्वित-सत्य-पदम्।
कमलोदर-कोमल-पाद-तलं,तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।८
।।फल-श्रुति।।
इदं स्तोत्रं महा-पुण्यं, ब्रह्मणा परिकीर्तितं। यः पठेत् प्रातरुत्थाय, तस्य कण्ठे सरस्वती।।
त्रिसंध्यं यो जपेन्नित्यं, जले वापि स्थले स्थितः। पाठ-मात्रे भवेत् प्राज्ञो, ब्रह्म-निष्ठो पुनः पुनः।।
हृदय-कमल-मध्ये, दीप-वद् वेद-सारे। प्रणव-मयमतर्क्यं, योगिभिः ध्यान-गम्यकम्।।
हरि-गुरु-शिव-योगं, सर्व-भूतस्थमेकम्। सकृदपि मनसा वै, ध्यायेद् यः सः भवेन्मुक्त।।
kya aap, रवि-रुद्र-पितामह-विष्णु-नुतं sotra ka arth bhi batayeingay ? bina arth kuch zyada samaj nahin aata paath kartay samay.
Aabhaar