गृह निर्माण में वास्तु की महत्वपूर्ण भूमिका… ( वास्तुसम्मत गृह निर्माण )—–
जीवन में सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है अपना मकान/कोठी/बंगला बनाना, क्योंकि इसमें हमारी सम्पूर्ण कमाई व्यय होती है. किसी महापुरुष ने ठीक ही कहा है कि घर और वर के बारें में जीवन में बहुत सोच समझ कर ही निर्णय करना चाहिए. घर का तात्पर्य अपने आशियाने से है और वर का तात्पर्य अपनी बेटी के सुहाग से कहा गया है. उसी सन्दर्भ में इस लेख में चर्चा कर रहा हूं, कि मकान के अंदर किस किस प्रयोजन के लिए किस किस स्थान का उपयोग करना चाहिए. इसका निर्देश वास्तु शास्त्र के द्वारा क्या है..
शयनकक्ष—-
गृहस्वामी का शयनकक्ष घर के दक्षिण-पश्चिम में होना चाहिए. पलंग को दक्षिणी दीवार से इस प्रकार लगा हुआ होना चाहिए कि शयन के समय सिरहाना दक्षिण दिशा की ओर व पैर उत्तर दिशा की ओर हों. यह स्थिति श्रेष्ठ मानी जाती है. ऐसा यदि किसी कारण वश न हो सके तो, इसका विकल्प यह है कि सिरहाना पश्चिम की ओर करना चाहिए. इसके विपरीत यदि हम करते है तो वास्तु के अनुरूप नहीं माना जाता है. और इसके कारण हमे हानि का सामना करना पड़ सकता है.
स्नान घर—
स्नानघर को पूर्व दिशा में बनाना चाहिए तथा शौचालय को दक्षिण-पश्चिम में बनाना चाहिए. यह श्रेष्ठ समाधान है. लेकिन आजकल व्यवहार में देखने को आता है कि स्थान की कमी आदि के कारण इन दोनों को एक ही स्थान पर बनाया जाता है. यदि किसी भी कारण इन्हें एक ही स्थान पर बनाना पड़े तो वहां इन्हें कमरों के बीच में दक्षिण-पश्चिम दिशा में बनाना चाहिए. पूर्व दिशा में स्नानघर के साथ शौचालय कभी भी नहीं बनाना चाहिए.
स्नानघर के जल का बहाव उत्तर-पूर्व दिशा की ओर रखना चाहिए. उत्तर-पूर्व दीवार पर एक्जोस्ट फैन Exhaust Fan लगाया जा सकता है.गीजर लगाना हो तो दक्षिण-पूर्व के कोण में लगाया जा सकता है.क्योंकि यह आग्नेय कोण है, गीजर का सम्बन्ध अग्नि से होता है.
रसोईघर—
रसोई के लिए आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) सबसे अच्छी स्थिति मानी जाती है. अतः रसोई मकान के दक्षिण-पूर्व कोण में ही होनी चाहिए. रसोई में भी जो दक्षिण-पूर्व का कोना है, वहां गैस सिलिंडर या चूल्हा या स्टोव रखा जाना चाहिए.
भोजन कक्ष—-
भोजन यदि रसोई घर में न किया जाए तो इसकी व्यवस्था ड्राइंगरूम में की जा सकती है. अतः डायनिंग टेबल ड्राइंगरूम के दक्षिण-पूर्व में रखनी चाहिए.
बैठक—
वर्तमान समय में ड्राइंगरूम का विशेष महत्व है. इसमें फर्नीचर दक्षिण और पश्चिम दिशाओं में ही रखना चाहिए. ड्राइंगरूम में हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि उत्तर-पूर्व अर्थात ईशान कोण को हमेशा खाली रखना चाहिए.
अतिथि कक्ष—
घर/ भवन में अतिथि कक्ष की सर्व श्रेष्ठ स्थिति उत्तर-पश्चिम का कोना है. इस जगह पर यदि अतिथि निवास करता है तो, वह आपके पक्ष में ही हमेशा रहेगा.
अन्न भण्डार गृह—
पहले समय में लोग अपने घर में पूरे वर्ष भर का अनाज भंडारण किया करते थे. अतः अन्न भण्डार के लिए अलग से एक कमरा हुआ करता था. लेकिन वर्तमान समय में एक मास या इससे भी कम अवधि के लिए अन्न रखा जाता है इसे रसोईघर में ही रख लेना वास्तु शास्त्र द्वारा सम्मत है.
गैराज—
गैराज का निर्माण दक्षिण-पूर्व या उत्तर-पश्चिम दिशा में अनुकूल होता है.
नगदी व भण्डार—-
रोकड़ एवं घरेलू सामान उत्तर में रखना चाहिए एवं कीमती सामान आभूषण आदि दक्षिण की सेफ में रखना चाहिए. इससे सम्पन्नता में वृद्धि होने लगती है.
पोर्टिको—-
इसे उत्तर पूर्व में बनवाना चाहिए एवं इसकी छत मुख्य छत से नीची होनी चाहिए.
नौकरों के घर—-
नौकरों के घरों का रुख हमेशा उत्तर में या उत्तर-पूर्व में करना चाहिए.
तहखाना—
यदि तहखाने का निर्माण कराना हो तो, उत्तर में या उत्तर-पूर्व में करना चाहिए. तहखाने में प्रवेश द्वार भी उत्तर या पूर्व दिशा की ओर से करना चाहिए.
बालकनी—
सवा और भवन की सुंदरता के लिए बालकनी का निर्माण किया जाता है. इसे उत्तर-पूर्व में बनाना चाहिए यदि पूर्व निर्मित मकानों में दक्षिण-पश्चिम दिशा में बालकनी बनी हो तो, इन्हें फिर उत्तर-पूर्व में बनाना श्रेष्ठ रहता है.
योग एवं ध्यान—
अपने जीवन में शारीर और मन को स्वस्थ रखने के लिए योग और ध्यान की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है. अतः इसके लिए घर में उत्तर-पूर्व का कोना जिसे ईशान कोण भी कहते है वहा पर योग और ध्यान करने से एकाग्रता में वृद्धि होती है.
सीढ़ी —–
सीढ़ीयां उत्तर-पूर्व को छोड़ कर अन्य दिशाओं में सुविधानुसार बनाई जा सकती है. लेकिन पश्चिम या उत्तर दिशा इसके लिए अभीष्ट है. सीढ़ीयां का निर्माण विषम संख्या में होना चाहिए एवं चढ़ते समय दांयी ओर मुड़नी चाहिए.