>मंगल ही देता है शुभ फल…

मंगल से मिलती है आर्थिक संपन्नता—-

एक तरफ मंगल जहाँ दाम्पत्य जीवन के लिए सबसे खराब ग्रह कहा गया है। तथा मांगलिक दोष के कारण वैवाहिक जीवन को तहस-नहस करने वाला कहा गया है वहीं पर यह मंगल आर्थिक सम्पन्नता एवं भूमि-भवन, वाहन आदि की समृद्धि को भी दर्शाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि मंगल के द्वारा कुंडली मांगलिक होने पर दाम्पत्य जीवन को कठिनाई का सामना करना पड़ता है। किन्तु यहाँ यह बात भी नहीं भूलना है कि इस मंगल का वैवाहिक जीवन पर दुष्प्रभाव तभी पड़ सकता है जब यह मंगल वास्तव में योग, भाव, राशि एवं दृष्टि संबंध के द्वारा अशुभ हो।

यदि मंगल इस प्रकार अशुभ नहीं है तो यही मंगल वैवाहिक जीवन को अत्यंत मधुर, सुखी एवं संपन्न बना देता है। मंगल चौथे अथवा सातवें भाव में बैठा हो तो कुंडली मांगलिक कहलाएगी ही। किन्तु यदि यही मंगल मेष राशि का होकर लग्न में सूर्य के साथ अथवा चौथे भाव में मकर राशि का होकर शनि के साथ हो तो वह व्यक्ति धन-धान्य से संपन्न होकर सबसे सुखी एवं शांत जीवन व्यतीत करेगा इसमें कोई संदेह नहीं है। इसी प्रकार यदि मंगल भले ही आठवें हो किन्तु लग्नेश एवं सप्तमेश की युति किसी भी केंद्र में हो तो उस जातक का वैवाहिक जीवन बहुत ही सुखी एवं यशस्वी होगा।

मंगल भले ही बारहवें भाव में हो, किन्तु यदि गुरु या शुक्र में से कोई भी एक उच्चस्थ होकर एक-दूसरे के साथ किसी भी केंद्र में बैठा हो तो दाम्पत्य जीवन सुखी होगा, इसके विपरीत देखे तो दसवें भाव में मंगल रहने से कुंडली मांगलिक नहीं होती है। तो हम इस भाव में मंगल को उच्च मकर राशि में दसवें भाव में मान लेते हैं। तथा दशमेश को शुभ केंद्र लग्न में शुभ ग्रह बुध के साथ युति मान लेते हैं। इस प्रकार सभी तरह से मंगल के शुभ होने पर भी वैवाहिक जीवन अनर्थकारी हो जाता है।

जातक दर-दर का भिखारी एवं जाति, समाज से बहिष्कृत हो जाता है। इसमें तो कोई संदेह ही नहीं है कि अगर कुंडली में मंगल कमजोर हुआ तो आदमी गरीब हो जाता है।

कहा जाता है की मंगल अगर आठवें अथवा बारहवें भाव में हो तो आदमी मांगलिक हो जाता है। किन्तु अगर मंगल आठवें या बारहवें भाव में अपने घर में हो या आठवें घर में बारहवें घर के स्वामी के साथ अथवा बारहवें घर में आठवें भाव के स्वामी के साथ हो तो आचार्य मीनराज के शब्दों में सरल एवं विमल नामक शुभ योग बनते हैं। कुंडली मांगलिक होने की मात्र कुछ एक शर्तें ही हैं। जिससे कुंडली मांगलिक हो जाती है। अन्यथा कुंडली में मंगल अगर पापपूर्ण अथवा अस्त आदि से कमजोर न हो तो जीवन धन-धान्य पूर्ण शांत एवं सुखी होता है।

नाम के अनुरूप मंगल हमेशा मंगल ही करता है। परन्तु विविध भ्रांतियों ने इस देवग्रह की महिमा ही खंडित कर दी है। जो मंगल भूमि-भवन एवं वाहन का द्योतक है, जिस मंगल के कारण वंश वृद्धि होती है, जो मंगल स्थायी संपदा का द्योतक है, जो मंगल विवाह जैसा पवित्र बंधन प्रदान करता है। उस मंगल को इतना बदनाम कर दिया गया है की आम जनता इससे सदा भयभीत रहती है। यह जान लेना चाहिए की मंगल यदि कमजोर हो तो वंश वृद्धि रुक जाएगी। धन-संपदा नष्ट हो जाएगी। साहस एवं पराक्रम क्षीण हो जाएगा।

आचार्य व्याघ्र पाद के शब्दों में कुंडली मांगलिक प्रायः तभी होती है जब लग्न से पहले वाली राशि जन्म राशि हो अथवा अगली राशि जन्म राशि हो तथा मंगल मांगलिक सूचक भावों अथवा घरों में बैठा हो। अन्यथा मंगल चाहे कहीं भी क्यों न बैठा हो कुंडली मांगलिक नहीं हो सकती है। अपितु इसके विपरीत मंगल ऐश्वर्य एवं स्थायी धन-संपदा को देने वाला हो जाता है।

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