इस वर्ष …6 में होलिका दहन कब और किस दिन किया जाये और क्यों ???
आइये यह जानने और समझने का प्रयास करें—-
हमारी भारतीय सनातन संस्कृति में प्रमुख त्यौहारों को कब और कैसे मनाना चाहिए उसके बारे में भारतीय धर्म ग्रंथों में निर्णय सिंधु , धर्म सिंधु, पुरुषार्थ चिंतामणि, समय प्रकाश, तिथि निर्णय और व्रत पर्व विवेक आदि में उसके नियम स्पष्ट लिखे हुए है ।
कुछ अल्प ज्ञानी लोग जिनको इन नियमो की जानकारी तो होती नही है वे लोग अपनी अल्प जानकारी के कारण लोगों को भ्रमित करते और त्योहारों को एक दिन की जगह दो दिन करवा देते है इस कारण लोगों की आस्था कम होती हैं ।
उसी क्रम में इस साल 2016 में “होलिका दहन” को लेकर भ्रम की स्थिति बन रही है उसमे कुछ अल्प ज्ञानी उसको मनाने की दिनांक को सवेरे और सायं काल को मनाने की परिस्थिति उत्पन्न कर रहे हैं ऐसे लोगों और धर्म प्रेमी लोगों के लिए कुछ नियम लिख रहे है ।
वैसे होलिका दहन के बारे में विभिन्न ग्रंथो में ” फाल्गुन पूर्णिमा में प्रदोष के समय होलिका दहन किया जाता है और भद्रा में होलिका दहन पूर्ण रूप से वर्जित हैं विशेष परिस्थिति में भद्रा मुख को छोड़ कर भद्रा के पुच्छ में करने का विधान है और इसके कई नियम और भी है जिनको आप को बताना जरुरी है ।
🙏🙏नियम 1— यदि पूर्णिमा दो दिन प्रदोष को व्याप्त कर रही हो तो दूसरे दिन ही प्रदोष काल में होलिका दहन किया जाता है । क्योंकि प्रथम दिन प्रदोष भद्रा के कारण दूषित रहता है ।
🙏🙏नियम 2 — यदि दूसरे दिन प्रदोष के समय पूर्णिमा स्पर्श न करे और पहले दिन प्रदोष में भद्रा हो तब दूसरे दिन पूर्णिमा साढ़े तीन प्रहर या उससे ज्यादा हो और अगले दिन प्रतिपदा वृद्धिगामिनि हो तब दूसरे दिन ही प्रदोष व्यापिनी प्रतिपदा में ही होलिका दहन होता है ।
यहाँ प्रतिपदा का ह्रास हो तो पहले दिन भद्रा के पुच्छ या भद्रा मुख को छोड़कर भद्रा में ही होलिका दहन किया जाता है ।
🙏🙏नियम . — दूसरे दिन प्रदोष को पूर्णिमा स्पर्श न करे और पहले दिन निशा काल से पहले भद्रा समाप्त हो जाये तो वहाँ भद्रा समाप्त होने पर होलिका दहन करना चाहिए ।
इस स्थिति में वेद व्यास जी के “भविष्योत्तर पुराण ” में लिखे वाक्य को बताना जरुरी है :- सार्धयाम प्रयम् वा स्यात् द्वितीये दिवसे यदा ।
प्रतिपद् वर्धमाना तू तदा सा होलिका स्मृता ।।
इसका अर्थ यह है की यदि पूर्णिमा साढ़े तीन प्रहर या इससे अधिक समय को व्याप्त करे और उसके साथ प्रतिपदा वृद्धिगामिनी हो तो वहाँ होलिका दहन सायं व्यापिनी पूर्णिमा के कल में करनी चाहिए ।
यहाँ ध्यान रहे की कोई भी तिथि यदि सार्ध त्रियाम व्यापिनी है तो वह अनिवार्यतः सायं व्यापिनी व्यापिनी अवश्य होती है और सार्ध त्रियाम पूर्णिमा सयम व्यापिनी होने से प्रदोष व्यापिनी ही मणि जाती है अतः वहाँ होलिका दहन शास्त्र सम्मत है ।
यही बात “पुरुषार्थ चिंतामणि ” ग्रन्थ में इस प्रकार स्पष्ट लिखी हूई है —
“यदा तु द्वितीय दिने सार्धयाम त्रयं पूर्णिमा प्रतिपदश्च वृद्धि: ।
तदा पूर्णिमान्त्यभागे सायाह्न काल एव दीपनीया होलिका ”
यानि उपरोक्त लिखित विस्तृत विवेचन का सारांश यह है की क्या इस वर्ष 2016 में ( 22-23 मार्च को) होलिका दहन में भद्रा बनेगी बाधा ???
होलिका दहन में इस बार भद्रा बाधक बन रहा है।
22 मार्च 2016 दिन मंगलवार को भद्रा कुल 11 घंटे 10 मिनट का होगा जो शाम 2/29बजे से रात 3/19 बजे तक रहेगा।
फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा उत्तरा फाल्गुन नक्षत्र गण्ड योग . दिन मंगलवार
होलिका दहन भद्रा के पुच्छ समय रात 03/19 बजे से 05/05बजे तक हो सकेगा। रात 03/19 बजे के बाद होली जलाई जा सकती है।
अगले दिन 23 मार्च 2016 को धुलेंडी मनेगी। होली मनाई जायेगी
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार प्रतिवर्ष धुलेंडी चैत्र प्रतिपदा को होती है लेकिन इस बार 9 वर्ष बाद फाल्गुन में ही धुलेंडी मनेगी। उन्होंने बताया कि भद्रा में होलिका दहन नहीं करना चाहिए।
भद्रा में होली जलाने से राष्ट्र, नगर एवं ग्राम को हानि होती है।
धर्म सिंधु ग्रंथ के अनुसार भद्रा मुख की रात्रि 02/29 से 03/19 बजे तक रहेगी।
उस समय को त्याग करके भद्रा का पुच्छ समय 03/19 बजे से 05/05 बजे तक होलिका दहन करें या फिर प्रातः 05/05 बजे से सूर्योदय तक होलिका दहन श्रेष्ठ होगा।