चन्द्र मंगल योग / युति का प्रभाव (चन्द्र मंगल युति का फल) —
भविष्य प्रारब्ध कर्मो के अच्छे-बुरे परिणामों की फल श्रुति होता है। जीवन में अच्छे-बुरे का हेतु कर्म सिद्धान्त ही है। हम अपनी संकल्प शक्ति के बल पर कर्मफलों को अपने अनुसार भोगने का प्रयास करते हैं अथवा अपने आपको भाग्य पर रहने के लिए छो़ड देते हैं।
प्रिय मित्रों/पाठकों, कहते है ज्योतिष में योगो का बड़ा ही महत्त्व होता हैं || ज्योतिष में योग है या योग से ज्योतिष कहने में सार्थक होगा ||  ये योग कुंडली में अनेक प्रकार से बनते हैं, हमारे पंचांग में .7 योगो को बताया गया है जो नियमित बदलते रहते है | उसी प्रकार जातक या एक इन्सान की कुंडली में भी कुछ अच्छे तो कुछ बुरे योग बनते है || ज्योतिष के सूत्र के अनुसार जब सूर्य एंव चन्द्रमा के अंशो में दूरी होती है तब ,  दूसरे ग्रहो के आपस में मिलने से योगो का निर्माण होता है ||
अहंकार किसी व्यक्ति के जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करता है। जीवन में अपनी संकल्प शक्ति के बल पर जीवित रहते हुए हम संचित कर्मो को प्रारब्ध कर्मो में बदलकर जन्म-जन्मान्तर तक भोगते रहते हैं। इस संसार की भी क्रियाओं पर ग्रहों पर प़डने वाली किरणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। किसी भी भौतिक क्रिया की पूर्णता के लिए दो प्रकार की पारस्परिक किरणों का होना आवश्यक है।
चंद्र-मंगल का योग जल और अग्नि के मिलन का प्रतीक है। विभिन्न स्थितियों में यह योग कैसा प्रभाव देता है, आइए जानें… सी व्यक्ति की जन्मकुं¬डली आकाश में ग्रहों की उस समय की स्थिति का विवेचन है जिस समय उसने जन्म लिया। सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं किंतु चंद्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह होने के कारण पृथ्वी का चक्कर 27..24 दिनों में पूरा करता है और एक राशि पर औसतन 2.273 दिन रहता है। इस प्रकार चंद्रमा को किसी राशि का एक अंश पार करने में दो घंटे से भी कम का समय लगता है। तीव्रगति एवं पृथ्वी से निकटतम होने के कारण चंद्रमा का मानव जीवन पर प्रभाव बहुत ही महत्वपूर्ण है। चंद्रमा श्वेत रंग, शीतल प्रकृति, जल तत्व, स्त्री स्वभाव एवं सतोगुणी ग्रह है और मन का कारक है। 
चन्द्र प्रकृति——
चन्द्रमा कर्क राशि का स्वामी होता है. यह वृषभ राशि में उच्च का एवं वृश्चिक राशि में नीच का होता है. पृथ्वी के निकट होने के कारण व्यक्ति पर चन्द्रमा का प्रभाव भी जल्दी दिखाई देता है. ज्योतिष विधान में चन्द्रमा को सत्वगुणी एवं स्त्री स्वभाव का माना गया है यह मन का कारक ग्रह होता है. यह सूर्य से जितना दूर रहता हे उतना ही शुभ, शक्तिशाली और बलवान होता है. यह सूर्य से जितना निकट होता है उतना ही कमज़ोर और मंद होता है. 
चंद्रमा सूर्य से जितनी दूर होगा उतना ही प्रभावी, बलशाली एवं शुभ होगा किंतु इसके विपरीत जितना निकट होगा उतना ही क्षीण एवं पापी स्वभाव का होगा। यही कारण है कि पूर्णिमा एवं उसके आस-पास चंद्र पूर्ण बलशाली एवं शुभत्व प्रभाव का होता है जबकि अमावस्या एवं उसके आस-पास क्षीण और पापी स्वभाव का होता है। चंद्र कर्क राशि का स्वामी है। यह वृषभ राशि में उच्च का तथा वृश्चिक में नीच का माना गया है। मंगल रक्त वर्ण, उष्ण प्रकृति, अग्नि तत्व, पुरुष स्वभाव एवं तमोगुणी ग्रह है। इसे राशि चक्र पूरा करने में लग¬भग .7 वर्ष 6 माह लगते हैं। यह मेष एवं वृश्चिक राशियों का स्वामी है। मेष राशि इसकी मूल त्रिकोण राशि है। मकर राशि में यह उच्च का एवं कर्क राशि में नीच का माना गया है। मंगल बल, साहस और सामथ्र्य का प्रतीक है। 
चंद्रमा चलायमान, चंचल व भावुक ग्रह हैं, अत: कर्क लग्नोत्पन्न व मंगल राशि, वृश्चिक व मीन राशि लग्नोत्पन्न व्यक्ति अत्यन्त भावुक होते हैं। इनमें धन संग्रह करने की तीव्र आकांक्षी होती है। शुक्र भोग-सेक्स, भौतिक सुख, संपत्ति, विलासिता, ऐश्वर्य, आनन्द का सूचक ग्रह है। बृहस्पति धन संपदा प्राप्ति कारक है। । लग्न, पंचम एवं नवम भाव के स्वामी ग्रहों का चन्द्रमा व शुक्र से संबंध हो तोअचानक धन प्राप्त होता है।
जन्म कुंडली में कहीं भी चंद्र मंगल एक साथ स्थित हो तो चंद्र-मंगल योग होता है। ऐसा जातक धन संग्रह करने में भी होशियार होता है। वह अपने निवेश बड़ी चतुराई पूर्ण ढंग से करता है। स्त्रियों के साथ उसके संबंध बड़े मधुर रहते हैं तथा वह धोखा देने में भी नहीं हिचकता।चंद्र या मंगल की एक दूसरे पर दृष्टि होने पर भी जातक स्त्रियों से लाभ उठाने वाला होता है। स्त्रियों से संबंधित व्यापार में लाभ प्राप्त करता है।चंद्र-मंगल यदि कारक हो तो जातक सीधे-सादे स्वभाववाला, धैर्य धारण करने वाला, ईमानदार, ज्योतिषी, डॉक्टर, वकील या अभिनेता होता है तथा प्रसिद्धि प्राप्त करता है। वह भोगी और आराम पसंद होता है।
जब शुभ बुध अथवा शुक्र का चन्द्रमा पर प्रभाव हो जाता है तो व्यक्ति राजसिक गुणों के रूप में व्यवहार करने लगता है और जब शनि अथवा मंगल का चन्द्रमा पर प्रभाव हो तो व्यक्ति में तामसिक प्रवृत्तियां पनपने लगती हैं। चन्द्र सतोगुणी है। यदि चन्द्रमा किसी जातक की कुंडली दुष्प्रभावों से मुक्त हो अर्थात शुभ प्रभावों में हो तो जातक में सतोगुण प्रकट होते हैं और वह तदनुसार आचरण करता है।
ये सभी क्रियाएं ग्रहों की गति के अनुरूप बदलती रहती हैं। चन्द्रमा के महत्वपूर्ण लक्षण हमारे शरीर में तरल रूप में विद्यमान हैं जिनमें कफ, रूधिर, मन, बाई आंख, भावनाएं मनोवैज्ञानिक समस्याएं और माँ आदि महत्वपूर्ण हैं।
**** यहाँ ध्यान देने वाली बात यह हैं की जब दो ग्रह एक ही राशि में हों तो इसे ग्रहों की युति कहा जाता है। जब दो ग्रह एक-दूसरे से सातवें स्थान पर हों अर्थात् 18. डिग्री पर हों, तो यह प्रतियुति कहलाती है। जब दो ग्रह एक राशि में एक अंश पर आ जावें तो नजूमी भाषा में उसे ‘नजरे कुरान’ कहते हैं तथा भारतीय ज्योतिषी उसको युति कहकर पुकारते हैं।
अशुभ ग्रह या अशुभ स्थानों के स्वामियों की युति-प्रतियुति अशुभ फलदायक होती है, जबकि शुभ ग्रहों की युति शुभ फल देती है।
नवग्रहों में चन्द्र को रानी का दर्जा प्राप्त है. सूर्य के समान इसकी भी एक राशि है कर्क राशि जो जल तत्व की राशि होती है।। इसे मन और चंचलता का कारक माना जाता है।। जहां तक इसकी प्रकृति की बात यह है तो यह शांत व सौम्य ग्रह होता है।। इसका रंग सफेद होता है।।
चन्द्र मंगल का अशुभ योगफल—
चन्द्र और मंगल दोनों अलग अलग गुणों को धारण करते है और इनकी प्रकृति भी अलग है फिर भी चन्द्रमा मंगल के प्रति मित्रता रखता है. चन्द्रमा मन पर अधिकार रखता है. उग्र प्रकृति का होने के कारण चन्द्रमा के साथ मंगल का योग व्यक्ति को क्रोधी और उग्र बनाता है. यह योग अशुभ प्रभाव में होने पर मन अस्थिर और विचलित रहता है. व्यक्ति में एकाग्रता की कमी रहती है. यह योग व्यक्ति में चारित्रिक दोष उत्पन्न कर सकता है. कुण्डली में चन्द्र मंगल का अशुभ योग बनने पर व्यक्ति अनैतिक तरीके से धन अर्जन करने से भी परहेज नहीं करता. 
चन्द्र मंगल का शुभ योग फल—-
कुण्डली में चन्द्रमा और मंगल मिलकर शुभ योग का निर्माण करता है तो व्यक्ति को उत्तम प्रभाव देता है. मंगल व्यक्ति को सामर्थ्यवान और शक्तिशाली बनाता है तो चन्द्रमा बुद्धिमान बनाता हैं एवं मन को एकाग्रता प्रदान करता है. इन गुणों के कारण व्यक्ति समाज एवं परिवार में सम्मान व आदर प्राप्त करता है. इस उत्तम योग के कारण व्यक्ति की आर्थिक स्थिति भी अच्छी रहती है. 
चन्द्र मंगल युति और विवाह—–
शुक्र को सामान्य रूप से काम कारक माना जाता है परंतु स्त्रियों में मंगल को भी काम कारक के रूप में देखा जाता है. जिस स्त्री की कुण्डली में मंगल और चन्द्र पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि होती है उनके सुखमय वैवाहिक जीवन में बाधा आती है. ग्रहों की ऐसी स्थिति जिस स्त्री की कुण्डली में पायी जाती है उनकी शादी में काफी परेशानी आती है. इनकी शादी विलम्ब से होती है. पति के साथ मधुर सम्बन्ध नहीं रहता है. ग्रहों की ऐसी स्थिति होने पर मतभेद के कारण पति पत्नी को अदालत के चक्कर भी लगाने पड़ सकते हैं ऐसा ज्योतिषशास्त्र का विधान कहता है.
चन्द्रमा जब कुण्डली में किसी अन्य ग्रह के साथ युति सम्बन्ध बनाता है तो कुछ ग्रहों के साथ इसके परिणाम शुभ फलदायी होते हैं तो कुछ ग्रहों के साथ इसकी शुभता में कमी आती ह
जब किसी जातक की कुंडली में अष्टम भाव में स्थित चन्द्रमा बालारिष्ट का कारक होता है। शनि के साथ द्वादश भाव में स्थित क्षीण चन्द्रमा पागलपन और उन्माद देता है जबकि शनि, केतु और चन्द्रमा की युति व्यक्ति को पागल बना देती है। लग्न आत्मा होता है और चन्द्रमा प्राण होते हैं।
हम सूर्य से अहं और चन्द्रमा से मन ग्रहण करते हैं और अहं व मन का संयोग हमारे व्यवहार में सुधार लाता है। ये दोनों ग्रह सूर्य और चन्द्र ज्योतिष में ऎसे ग्रह हैं जिनसे व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार का निरूपण आसानी से किया जा सकता है। वैदिक ज्योतिष में चन्द्रमा पर बहुत बल दिया गया है।।
क्योंकि चन्द्रमा हमारे जागृत और सुप्त दोनों प्रकार के मस्तिष्क को प्रभावित करता है। जहां तक मनुष्य के स्वभाव को समझने की बात है वास्तव में मन ही वह शक्ति है जो ग्रहों और वातावरणीय कारणों से आने वाली किरणों को ग्रहण करके उन पर प्रतिक्रिया अभिव्यक्त करता है। किसी जातक की कुंडली में शुभ स्थित चन्द्रमा अच्छे स्वास्थ्य और बलवान मन का सूचक है।
मन ही सभी प्रकार की क्रियाओं का कारक है। जैसा कि जॉन मिल्टन कहते हैं कि मन का अपना स्थान है, वह चाहे तो नरक को स्वर्ग और स्वर्ग को नरक बना सकता है। गोचर में चन्द्रमा की प्रधान भूमिका रहती है।
चन्द्रमा मंगल को सम मानते हैं जबकि मंगल, चन्द्र को मित्र मानते हैं। दोनों ही ग्रह भिन्न-भिन्न प्रकृति और अलग चरित्रगत विशेषताएं रखते हैं। सूर्य इन दोनों ग्रहों के मित्र हैं परन्तु शनि उन्हें शत्रु मानते हैं।
चंद्र-मंगल : यह योग व्यक्ति को जिद्‍दी व अति महत्वाकांक्षी बनाता है। यश तो मिलता है, मगर स्वास्थ्‍य हेतु यह योग हानिकारक है। रक्त संबंधी रोग होते हैं।
दो ग्रहों युति का फल–
चन्द्र की अन्य गृहों से युति/सम्बन्ध का प्रभाव—-चंद्र+मंगल– शत्रुओं पर एवं ईर्ष्या करने वालों पर, सफलता प्राप्त करने के लिए एवं उच्च वर्ग (सरकारी अधिकारी) विशेषकर सैनिक व शासकीय अधिकारी से मुलाकात करने के लिए उत्तम रहता है।
विवाह भाव में चन्द्र एवं अन्य ग्रहों की युति–
चन्द्र-मंगल -सप्तम भाव में चन्द्र-मंगल युति—-अगर कुण्डली में विवाह भाव में चन्द्र-मंगल दोनों की युति हो रही हो तो व्यक्ति के जीवनसाथी के स्वभाव में मृदुलता की कमी की संभावना बनती है ||
चन्द्र मंगल की युति का फल––मंगल भी सूर्य के समान अग्नि प्रधान ग्रह है. चन्द्र एवं मंगल की युति होने पर व्यक्ति के स्वभाव में उग्रता आ जाती है. मंगल को ग्रहों में सेनापति कहा जाता है जो युद्ध एवं शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक होता है. जैसे युद्ध के समय बुद्धि से अधिक योद्धा बल का प्रयोग करते हैं, ठीक उसी प्रकार इस युति वाले व्यक्ति परिणाम की चिंता किये किसी भी कार्य में आगे कदम बढ़ा देते हैं जिससे इन्हें नुकसान भी होता है. वाणी में कोमलता एवं नम्रता की कमी के कारण यह अपनी बातों से कभी-कभी मित्रों को भी शत्रु बना लेते हैं. हनुमान जी की पूजा करने से इन्हें लाभ मिलता है ||
चन्द्रमा का अन्य ग्रहो से सम्बन्ध–
मंगल के साथ जाते ही गर्म भाप का रूप चन्द्रमा ले लेता है और मानसिक सोच या जो भी गति होती है वह गर्म स्वभाव की हो जाती है ||मंगल के साथ चन्द्रमा मिलता है तो वह अपनी सोच को क्रूर रूप से पैदा कर लेता है उसकी सोच मे केवल गर्म पानी जैसी बौछार ही निकलती है ||
—- चन्द्र +मंगल+बुध  =  मन, साहस , बुद्धि का सामंजस्य। स्वास्थ अच्छा। नीतिवान साहसी ,सोच-विचार से काम करे। पाप दृष्टी में होतो, डरपोक /. दुर्घटना /ख्याली पुलाव पकाए।
—- चन्द्र+मंगल+शनि = नज़र कमजोर। बीमारी का भय। डॉक्टर , वै ज्ञानिक , इंजीनियर , मानसिक तनाव। ब्लड प्रेशर कम या अधिक।
—– चन्द्र+मंगल+राहू =  पिता के लिए अशुभ। चंचलता। माता तथा भाई के लिए हल्का।
—- गजकेसरी योग —-  जब चन्द्रमा से बृहस्पति जब कुण्डली के केन्द्र स्थान में ( १,४,७,१० ) में हो तो ‘गजकेसरी’ नामक महापुरुष योग बनता है ||चन्द्र-मंगल योग जन्मकुण्डली के किसी भी भाव में चन्द्र-मंगल की युति होने से चन्द्र-मंगल नामक शुभ धनदायक योग कानिर्माण होता है ||
—–महालक्ष्मी योग –  मंगल -चन्द्र जब कुण्डली के केन्द्र स्थान में ( १,४,७,१० ) भावो मे का मेल चन्द्र की राशी हो ,चन्द्र उच्च का हो , मंगल की राशी हो या मंगल गृह उच्च का हो तब महालक्ष्मी नमक योग बनता है      
शुक्र भी चन्द्र को शत्रु मानते हैं। बुध मंगल के शत्रु हैं। चन्द्र सफेद (सित्वर्णी) रंग के हैं जबकि मंगल लाल (रक्तगौर) रंग के हैं।
चन्द्रमा में स्त्री तत्व और मंगल में पुरूषोचित गुण रहते हैं।
चन्द्र मंगल का यह योग व्यक्ति को जिद्दी व अति महत्वाकांक्षी बनाता है। यश तो मिलता है, मगर स्वास्थ्य हेतु यह योग हानिकारक है। रक्त संबंधी रोग होते हैं।
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धन लाभ के कुछ विशेष योग:—
कुंडली में द्वितीय, 8 व 9 भाव के स्वामी ग्रहों का केन्द्र त्रिकोण से शुभ संबंध होने पर साहसी, खतरनाक प्रतियोगिताओं, प्रतिस्पर्धाओं से धन प्राप्ति होती है।
लग्न, पंचम एवं नवम भाव का अथवा उनके स्वामी ग्रहों का आपसी शुभ संबंध होने पर बुद्धि क्षमता वाली प्रतियोगिताओं से धन प्राप्ति होती है।
धन, भाव एकादश भाव एवं भाग्य भाव में स्थित ग्रहों अथवा इन भावों से स्वामी ग्रहों का आपसी भाव परिवर्तन होने पर करोड़पति अवश्य बनता है।
एकादशेश तथा द्वितीयेश चतुर्थ भाव में हों तथा चतुर्थेश शुभ ग्रह की राशि में शुभ ग्रह से युत अथवा दृष्टï हो तो जातक को आकस्मिक रूप से धन का लाभ हो तो जातक को आकस्मिक रूप से धन का लाभ होता है। यदि पंचम भाव में स्थित चन्द्रमा शुक्र से दृष्टï हो तो व्यक्ति को लाटरी, शेयर, सट्टïे, रेस आदि से धन प्राप्त होता है। यदि धनेश शनि हो और वह चतुर्थ, अष्टïम अथवा द्वादश भाव में स्थित हो तथा बुध सप्तम भाव में स्वक्षैत्री होकर स्थित हो तो आकस्मिक रूप से धन का लाभ होता है।
जानिए निम्न लग्नों में प्रभाव–
वृश्चिक लग्न :—
गुरु व बुध पंचम स्थान में हों तथा चंद्रमा 11 वें भावस्थ हो तो जातक करोड़पति होता है।
चन्द्रमा गुरु, केतु नवम भाव में हों तो विशेष भाग्योदय होता है। चंद्रमा भाग्येश है, गुरु के साथ स्तित हो गज केशरी योग बनाता है, गुरु अपनी उच्च राशि में भी होता है जो कि धनेश है।
धनु लग्न:—
गुरु, बुध लग्न में सूर्य, शुक्र द्वितीय भाव में मंगल, राहु, षष्ठïम् भाव में तथा शेष 3 ग्रह अलग-अलग कहीं भी हों तो जातक आजीवन सुख भोगता है। चंद्रमा 8वें भाव में हों, कर्क राशि में सूर्य शुक्र शनि स्थित हों तो विख्यात, शिल्पादि कलाओं का जानकार पतला पर दृढ़ शरीर से युक्त अनेक सन्तानों से युक्त व निरन्तर संपत्तिवान रहता है।
मकर लग्न :—-
चन्द्रमा व मंगल एक साथ 1/4/7/10 केन्द्र भावस्थ 5/9 त्रिकोण में अथवा 2/11 भाव में कही हो तो जातक धनाढ्य होता है।
धनेश तुला राशि में एवं लाभेश मंगल मकर राशिगत अर्थात् लग्न में हो तो जातक धनवान होता है।
कुंभ लग्न:—
10वें भाव में अर्थात वृश्चिक राशि में चन्द्र शनि का योग हो तो वह जातक कुबेर तुल्य ऐश्वर्य सम्पन्न होता है।
कुंभ लग्न हो, शनि लग्न में स्व का स्थित हो, मंगल की 8वीं दृष्टिï शनि पर हो तो राजराजेश्वर योग होने से जातक पूर्णरूपेण संपन्न, सुखी, धनवान, दीर्घायु होता है।
मीन लग्न :—-
यदि दूसरे भाव में चन्द्रमा एवं 5वें भाव में मंगल हो तो मंगल की दशा में श्रेष्ठï धन लाभ होता है।
गुरु 6वें भाट में हो, शुक्र 8वें, शनि 12वें तथा चन्द्रमा मंगल 11वें भावस्थ हों तो उच्चाति उच्च धनदायक योग बनात है।
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कल्याण शकट योग—
1. वैद्यनाथ दीक्षित के अनुसार कल्याण शकट योग का निर्माण तभी होता है जब गुरू से चन्द्रमा 6 या आठ भाव में हो। इस योग का केवल एक ही अपवाद है कि यदि चन्द्रमा लग्न से केन्द्र में स्थित हो तो यह योग भंग हो जाता है।
शषष्टमा गताश्चन्द्र सूर्य राज पुरोहित: केन्द्र दान्य गतो लग्नाद्योग: शकट समग्नित:।। 
परिणामों पर विचार करते हैं तो—
 अपि राजा कुले जातो निश्व शकट योगज:। क्लेश यशवस नित्यम संतोप्त निरूप विप्रय:।।
अर्थ—चाहे कोई व्यक्ति राज परिवार में क्यों नहीं जन्मे, इस योग वाले को निर्धनता, दिन-प्रतिदिन दु:ख-कष्ट और अन्य राजाओं के क्रोध का भाजन बनना प़डता है।
2. मंत्रेश्वर, फलदीपिकाकार के अनुसार, जीवन्त्यश्तरी समष्टे शशिनितु शकट:, केन्द्रगे नास्ते लग्नथ:।।
जब बृहस्पति से छठे, आठवें या बारहवें भाव में चन्द्र हो तो शकट योग बनता है परन्तु यदि चन्द्र केन्द्र में हो तो शकट योग भंग हो जाता है।
क्वचित क्वचित भाग्य परिचयत: सन् पुन: सर्वा मुपैते भाग्य:,
लोके प्रस्तीधो परिहर्य मन्त: सल्यम प्रपन्न: शकटे ति दु:खी:।।
इस शकट योग में जन्मा जातक प्राय: भाग्यहीन होता है अथवा भाग्यहीन हो जाता है और जीवन में खोए हुए को पुन: पा भी सकता है और प्रतिष्ठा आदि में एक सामान्य व्यक्ति होता है और इस दुनिया में उसका कोई महत्व नहीं होता है। वह नि:स्संदेह भारी मानसिक वेदना सहता है और जीवन में दु:खी ही रह जाता है। दूसरे विद्वानों के विचारों पर दृष्टिपात करते हैं तो यह देखते हैं कि—
3. यदि चन्द्र अपनी उच्चा राशि में हो, स्वग्रही हो अथवा बृहस्पति के भावों में हो और चन्द्रमा बृहस्पति से छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव में हो तो यह शकट योग का अपवाद बन जाता है। ऎसी स्थिति में शकट योग ही भंग नहीं होता अपितु उसके दुष्परिणाम भी आते हैं परन्तु यही योग जातक को मुकुट योग देकर ऊंचाइयों पर भी पहुंचा देता है।
4. यदि चन्द्रमा बृहस्पति से छठे-आठवें भाव में हो परन्तु वह मंगल से दृष्ट हो तो भी शकट योग भंग हो जाता है।
5. यदि राहु-चन्द्र की युति हो अथवा राहु उन्हें देखें तो भी शकट योग भंग हो जाता है।
6. बृहस्पति से छठे, आठवें या बारहवें भाव में पूर्ण चन्द्र स्थित हो तो भी शकट योग भंग हो जाता है।
7. यदि षड्बल में बृहस्पति चन्द्र से बली हों तो भी शकट योग भंग हो जाता है।
8. यदि चन्द्र बृहस्पति से छठे आठवें भाव में स्थित होकर द्वितीय भाव में बैठे तो शकट योग भंग हो जाता है और व्यक्ति धनी होता है। ऎसी ग्रह स्थिति मिथुन लग्न वाले जातकों की ही होती है। चन्द्र से छठे भाव में स्थित बृहस्पति से हंस योग का निर्माण होता है क्योंकि वे निज भाव में होंगे जो सप्तमेश और दशमेश का लग्न से केन्द्र स्थान होगा, चन्द्रमा से अष्टम भाव में स्थित होने पर जातक धनवान नहीं बन सकता है। सूर्य नवम भाव में स्थित होकर गुरू से युति करें और द्वितीय भाव में चन्द्रमा पर उनकी पूर्ण रश्मियां प़डें तो जातक प्रचुर धन का स्वामी हो सकता है परन्तु ऎसी स्थिति में गुरू अस्तंगत दोष से मुक्त हों अथवा दुष्प्रभाव में नहीं हों।
द्वितीय भाव में स्थित उच्चा के गुरू से अष्टम भाव में चन्द्र की स्थिति शुभ नहीं होती है और ऎसे जातक संभवत: 40 वर्ष की आयु होते-होते सब कुछ गंवा देते हैं परन्तु यह बाद में आने वाली दशाओं पर निर्भर करता है कि वह अपना खोया धन और सम्मान पुन: प्राप्त कर लें। माना कोई जातक शनि महादशा में हो और 40 वर्ष की आयु का हो चुका है तो वह बृहस्पति की दशा में सब कुछ गंवा देगा और शनि की अंतर्दशा में पुन: प्राप्त कर लेगा। यदि शनि उनकी कुंडली में शुभ स्थिति में हो। तुला और मीन लग्न के जातकों का शनि शुभ स्थिति में होता है। वृश्चिक में भी शनि की स्थिति ठीक होती है। बृहस्पति से द्वादश भाव में स्थित चन्द्रमा अनफा योग का सृजन करते हैं। द्वितीय भाव के स्वामी लग्नस्थ होकर चन्द्र या बृहस्पति की अन्तर्दशा में किसी जातक को बर्बाद नहीं करते। बहुत सी कुंडलियों का अध्ययन करने के बाद अब मुझे यह विश्वास हो गया है कि शकट योग के कुछ भी परिणाम होते हों परन्तु यह कहना ठीक नहीं होगा कि जीवन में बुरे दिन सदा नहीं रहते। जीवन परिवर्तनशील है। बुरा समय जीवन में परीक्षा लेता है और इस परीक्षा एवं कसौटी के लिए शकट योग एक महत्वपूर्ण स्थिति है। योग जीवन में बहुत लंबे समय तक फलीभूत नहीं होते हैं। कुछ समय बाद ये योग स्वत: विलीन होने लगते हैं। यहां मंत्रेश्वर महाराज हमें आशा दिलाते हैं कि रूठा हुआ भाग्य पुन: मनाया जा सकता है, खोई हुई प्रतिष्ठा और धन पुन: अर्जित किए जा सकते हैं। एक साधारण एवं गरीब व्यक्ति भी मानसिक रूप से बहुत प्रसन्न एवं प्रफुल्लित हो सकता है अथवा वही व्यक्ति बहुत अधिक दु:खी, पीç़डत और कष्ट से भरा जीवन व्यतीत करता है। ये सभी परिस्थितियां विभिन्न प्रकार के योगायोग, शकट योगादि के कारण बनती हैं और कई बार इनके अपवाद भी पाए जाते हैं।
गर्ग होरा : उन्होंने कल्याण शकट योग का अद्भुत वर्णन किया है। इस योग के लिए निम्न स्थितियां होती हैं—
1. चन्द्र शुक्र यति।
2. चन्द्रमा बृहस्पति से छठे, आठवें और बारहवें भाव में स्थित हों।
3. लग्न से केन्द्र में स्थित चन्द्र शुभ है और लग्न से बृहस्पति केन्द्र स्थित हो तो और भी शुभ होते हैं।
बृहस्पति से छठे भाव में स्थित चन्द्र के कारण निम्न स्थितियां हो सकती हैं—
1. लग्न में चन्द्र-शुक्र युति और बृहस्पति अष्टम भाव में उच्चा के हों।
2. चन्द्र-शुक्र युति सप्तम भाव में हो और बृहस्पति द्वितीय भाव में नीच राशि में हो।
3. चन्द्र-शुक्र युति दशम भाव में हो और बृहस्पति पंचम भाव में मित्र राशि में हों।
4. चन्द्र शुक्र युति चतुर्थ भाव में हो और बृहस्पति एकादश भाव में शत्रु राशि में हों।
5. बृहस्पति प्रथम भाव में हो और चन्द्र-शुक्र छठे भाव में उच्चा राशि में हों।
6. बृहस्पति चतुर्थ भाव में हों और चन्द्र-शुक्र नवम भाव में मित्र राशि में हों।
7. बृहस्पति सप्तम भाव में हो और चन्द्र शुक्र युति द्वादश भाव में नीच राशि में हों।
8. बृहस्पति दशम भाव में हो और चन्द्र शुक्र युति तृतीय भाव में शत्रु राशि में हों।
उपर्युक्त सभी आठ प्रकार के योगों से यह स्पष्ट होता है कि अंतिम योग अधम प्रकृति का है। बृहस्पति षड्बल में हीन बली है जबकि चन्द्र और शुक्र बलवान हैं।
चन्द्र मंगल योग :—- भविष्य प्रारब्ध कर्मो के अच्छे-बुरे परिणामों की फल श्रुति होता है। जीवन में अच्छे-बुरे का हेतु कर्म सिद्धान्त ही है। हम अपनी संकल्प शक्ति के बल पर कर्मफलों को अपने अनुसार भोगने का प्रयास करते हैं अथवा अपने आपको भाग्य पर रहने के लिए छो़ड देते हैं। अहंकार किसी व्यक्ति के जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करता है। जीवन में अपनी संकल्प शक्ति के बल पर जीवित रहते हुए हम संचित कर्मो को प्रारब्ध कर्मो में बदलकर जन्म-जन्मान्तर तक भोगते रहते हैं। इस संसार की भी क्रियाओं पर ग्रहों पर प़डने वाली किरणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। किसी भी भौतिक क्रिया की पूर्णता के लिए दो प्रकार की पारस्परिक किरणों का होना आवश्यक है। ये सभी क्रियाएं ग्रहों की गति के अनुरूप बदलती रहती हैं।
चन्द्रमा के महत्वपूर्ण लक्षण हमारे शरीर में तरल रूप में विद्यमान हैं जिनमें कफ, रूधिर, मन, बाई आंख, भावनाएं मनोवैज्ञानिक समस्याएं और माँ आदि महत्वपूर्ण हैं। किसी जातक की कुंडली में अष्टम भाव में स्थित चन्द्रमा बालारिष्ट का कारक होता है। शनि के साथ द्वादश भाव में स्थित क्षीण चन्द्रमा पागलपन और उन्माद देता है जबकि शनि, केतु और चन्द्रमा की युति व्यक्ति को पागल बना देती है। लग्न आत्मा होता है और चन्द्रमा प्राण होते हैं। हम सूर्य से अहं और चन्द्रमा से मन ग्रहण करते हैं और अहं व मन का संयोग हमारे व्यवहार में सुधार लाता है। ये दोनों ग्रह सूर्य और चन्द्र ज्योतिष में ऎसे ग्रह हैं जिनसे व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार का निरूपण आसानी से किया जा सकता है। वैदिक ज्योतिष में चन्द्रमा पर बहुत बल दिया गया है
क्योंकि चन्द्रमा हमारे जागृत और सुप्त दोनों प्रकार के मस्तिष्क को प्रभावित करता है। जहां तक मनुष्य के स्वभाव को समझने की बात है वास्तव में मन ही वह शक्ति है जो ग्रहों और वातावरणीय कारणों से आने वाली किरणों को ग्रहण करके उन पर प्रतिक्रिया अभिव्यक्त करता है। किसी जातक की कुंडली में शुभ स्थित चन्द्रमा अच्छे स्वास्थ्य और बलवान मन का सूचक है। मन ही सभी प्रकार की क्रियाओं का कारक है। जैसा कि जॉन मिल्टन कहते हैं कि मन का अपना स्थान है, वह चाहे तो नरक को स्वर्ग और स्वर्ग को नरक बना सकता है। गोचर में चन्द्रमा की प्रधान भूमिका रहती है।
चन्द्रमा मंगल को सम मानते हैं जबकि मंगल, चन्द्र को मित्र मानते हैं। दोनों ही ग्रह भिन्न-भिन्न प्रकृति और अलग चरित्रगत विशेषताएं रखते हैं। सूर्य इन दोनों ग्रहों के मित्र हैं परन्तु शनि उन्हें शत्रु मानते हैं। शुक्र भी चन्द्र को शत्रु मानते हैं। बुध मंगल के शत्रु हैं। चन्द्र सफे द (सित्वर्णी) रंग के हैं जबकि मंगल लाल (रक्तगौर) रंग के हैं। चन्द्रमा में स्त्री तत्व और मंगल में पुरूषोचित गुण रहते हैं। 

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